Monday, August 20, 2018

जर्जर हो चुकी धरोहरें बदल सकती हैं पन्ना जिले की तकदीर

  •   वास्तुशिल्प की दृष्टि से बेजोड़ है अजयगढ़ का किला
  •   अनगिनत खूबियां फिर भी नहीं  जीत पा रहा  पर्यटकों का मन
  •   सही  ढंग से सुनियोजित विकास हो तो किले बन सकते हैं आकर्षण का केन्द्र



पन्ना जिले के अजयगढ़ दुर्ग में स्थित रंगमहल का दृश्य। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। सदियों पुराने जर्जर और बदहाल हो  चुके किले पन्ना जिले की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकते  हैं। यदि इन प्राचीन धरोहरों का सही  ढंग से कायाकल्प कराकर सुनियोजित विकास किया जाए तो ये देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते  हैं। इस जिले में भव्य और अनूठे मन्दिरों की पूरी श्रृंखला व प्राकृतिक मनोरम स्थलों की भरमार है , फिर भी पन्ना पर्यटन की दृष्टि से अपनी पहचान बना पाने में कामयाब नहीं हो सका है। पन्ना टाईगर रिजर्व की दम पर खजुराहो  में पर्यटन उद्योग खूब फल फूल रहा है और सब कुछ रहते हुए भी राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में पन्ना आज भी उपेक्षित और दीनहीन बना हुआ है।
किसी समय चन्देल राजाओं के शक्ति का केन्द्र रहा पन्ना जिले का ऐतिहासिक अजयगढ़ दुर्ग स्वाधीनता के बाद प्रशासनिक उपेक्षा के चलते खण्डहर में तब्दील होता जा रहा है। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर विन्ध्यांचल की दुर्गम पर्वत श्रेणियों पर स्थित यह अजेय दुर्ग अपने जेहन में भले ही  वीरता की अनेकों गौरव गाथायें सहेजे है , लेकिन इसके बावजूद यहां  भूले भटके भी पर्यटक दिखाई नहीं  देते। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित इस दुर्ग की वास्तुकला के अवशेषों का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि खजुराहो और कालींजर के विश्व प्रसिद्ध शिल्प के शिल्पियों के हांथ में इतनी पैनी छैनियां नहीं  थीं, जितनी की अजयगढ़ दुर्ग के वास्तुकारों के पास थीं। वास्तव में अजयगढ़ का किला वास्तु शिल्प की दृष्टि से अधिक कलात्मक, अनूठा और बेजोड़ है।
उल्लेखनीय है कि खजुराहो  शिल्प में यक्ष-यक्षिणी की मैथुन मुद्राओं को पाषाण पर उकेर कर जहाँ जीवंत रूप प्रदान किया गया है, वहीँ अजयगढ़ की शिल्पकला सत्यं शिवम सुन्दरम् की गरिमा से युक्त है। राजाओं और महाराजाओं के उत्थान एवं पतन के इतिहास को अपने जेहन में समेटे अजयगढ़ दुर्ग का प्राकृतिक सौन्दर्य चिरस्थायी है । पर्वत शिखरों से फूटते झरने, नागिन सी बल खाती घाटियां, मनोरम गुफायें, गहरी खाईयां, विशाल सरोवर व श्याम गौर चïट्टानें दर्शकों का मन मोह लेती  हैं। इसके बावजूद इस अनूठे दुर्ग की लगातार घोर उपेक्षा हुई है , जिससे यह अभी तक पर्यटन के मानचित्र से ओझल बना हुआ है । गौरतलब है  कि चन्देल राजाओं द्वारा निर्मित इस भव्य दुर्ग के निर्माण में पत्थरों का तो प्रयोग किया गया है  किन्तु उनको जोडऩे में कहीं  भी मसाले का प्रयोग नहीं  हुआ । जानकारों का कहना है  कि इसके निर्माण में गुरूत्वाकर्षण के सिद्धातों के आधार पर कोणीय संतुलन विधि का प्रयोग किया गया है । प्राकृतिक झंझावातों, प्रकोपों, मानवीय युद्धों के विध्वंशक प्रहारों तथा अभिशापों को झेलने वाला यह दुर्ग अपनी भव्यता, अद्वितीयता और सुदृढ़ता का परिचय दे रहा है , जो निश्चित ही  खजुराहों  तथा अन्य ऐतिहासिक स्थलों से किसी भी दृष्टि से कम नहीं है।

धरमसागर तालाब स्थित किले व मकबरे को जीर्णोद्धार की दरकार


धरमसागर तालाब के किनारे स्थित प्राचीन मकबरा । फोटो - अरुण सिंह 

मन्दिरों के शहर पन्ना में प्राचीन धरमसागर तालाब के किनारे जीर्ण-शीर्ण हालत में मौजूद किले व यहां आसपास स्थित प्राचीन मकबरों  को भी जीर्णोद्धार की दरकार है । इन प्राचीन धरोहरों  का संरक्षण व समुचित देखरेख न हो  पाने के कारण पेड़-पौधों और वनस्पतियों के उगने से यह क्षतिग्रस्त हो  रही हैं। यहाँ स्थित किले के आगे वाले हिस्से को यादवेन्द्र क्लब के नाम से जाना जाता है  जिसका निर्माण तत्कालीन पन्ना नरेशों ने कराया था। यदि जर्जर हो  चुके किला सहित यादवेन्द्र क्लब का जीर्णोद्धार कराकर यहाँ  का सुनियोजित विकास कराया जाए तो धरमसागर तालाब का सौन्दर्य जहां  कई गुना बढ़ जाएगा वहीं  यह स्थल पर्यटकों के पसंदीदा स्थलों में शुमार हो  सकता है। इसी तरह पन्ना जिले के आदर्श ग्राम महोबा में भी प्राचीन दुर्ग है जो उपेक्षा के चलते जीर्ण-शीर्ण और जर्जर हो  चुका है। इस दुर्ग को लेकर भी अनेकों गाथायें प्रचलित  हैं, लेकिन इस प्राचीन धरोहर को भी संरक्षित करने की दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल नहीं हुई।

धरमसागर तालाब के किनारे स्थित प्राचीन किला। फोटो - अरुण सिंह 

अजयगढ़ दुर्ग का हो विकास : के.पी. सिंह

अजयगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग पुरातात्विक महत्व के साथ-साथ एक कला तीर्थ भी है , जिसका संरक्षण किया जाकर सुनियोजित विकास कराया जाना चाहिए। इस दुर्ग के विकास व जीर्णोद्धार के कार्य में विशेष रुचि रखने वाले अजयगढ़ निवासी के.पी. सिंह का कहïना है  कि धरातल से लगभग 600 फिट की ऊँचाई पर पहाड़ के ऊपर स्थित इस दुर्ग में प्रवेश के लिए सात द्वार थे जो अधिकांश अब जर्जर व धराशायी हो  चुके हैं । मौजूदा समय यहां  प्रवेश के लिए सिर्फ दो द्वार बचे हैं । जिनमें एक मुख्य दरवाजा तथा दूसरा तरौनी दरवाजा कहलाता है । अभी इस दुर्ग तक पहुंचने के लिए सीढिय़ों से जाना पड़ता है, यदि कालींजर किले की तर्ज पर यहां  भी सड़क मार्ग का निर्माण हो  जाए तो आवागमन सुगम हो  जाएगा और लोग इस अनूठे दुर्ग को देखने आने लगेंगे।
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Sunday, August 12, 2018

पन्ना में पर्यटन से रोजगार के नये अवसरों का होगा सृजन

  • प्रकृति व्याख्यान केन्द्र मड़ला में आयोजित हुई सलाहकार समिति की बैठक
  • पर्यावरण व वन्य प्राणी संरक्षण तथा पर्यटन विकास पर हुई चर्चा



अरुण सिंह,पन्ना। कर्णावती व्याख्यान केन्द्र मड़ला में सागर संभाग के कमिश्नर मनोहर दुबे की अध्यक्षता में
शुक्रवार को सलाहकार समिति की बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में पर्यावरण व वन्य प्राणी संरक्षण सहित पर्यटन विकास से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई। पर्यटन व्यवसाय का लाभ पन्ना टाईगर रिजर्व से लगे ग्रामों के रहवासियों को भी मिले, इस संबंध में भी विस्तृत विचार विमर्श हुआ तथा सदस्यों द्वारा कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये गये।

बैठक के प्रारंभ में क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने समिति के सदस्यों को बैठक के एजेण्डे से अवगत कराया, तदुपरान्त बिन्दुवार एजेण्डे में शामिल सभी विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई। सभी सदस्यों ने इस बात पर सहमति जताई कि पन्ना टाईगर रिजर्व विकास का वाहक बने, इस दिशा में सार्थक और प्रभावी पहल की जानी चाहिये। टाईगर रिजर्व से लगे ग्रामों के लोगों को पर्यटन व्यवसाय का अधिक से अधिक लाभ मिले, इस बात पर विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत है, ताकि ग्रामवासी पर्यावरण व वन्य प्राणियों के संरक्षण में रूचि लेने के लिये प्रेरित हो सकें। बिना जन भागीदारी के संरक्षण संभव नहीं है, ऐसी स्थिति में टाईगर रिजर्व से जब ग्रामवासियों को रोजी-रोजगार व आर्थिक लाभ होगा तो वे स्मवेव संरक्षण के लिये आगे आयेंगे।
स्थानीय सलाहकार समिति के सदस्य श्यामेन्द्र सिंह  बिन्नी राजा ने पर्यटन को बढ़ावा देकर रोजगार के नये अवसरों के सृजन बावत महत्वपूर्ण सुझाव दिये, जिन पर गहन विचार विमर्श हुआ। बैठक में यह सुझाव भी दिया गया कि पन्ना टाईगर रिजर्व से लगे वे गाँव जो अत्यधिक पिछड़े और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोडऩे के लिये चिह्नित किया जाये तथा पर्यटन व्यवसाय से होने वाली आय का उपयोग इन ग्रामों के विकास में किया जाये। पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर एरिया से कितनी दूरी पर व्यवसायिक व अन्य गतिविधि होनी चाहिये, इस संबंध में भी चर्चा हुई और सहमति बनी कि न्यूनतम 250 मीटर दूरी होनी चाहिये।

सलाहकार समिति की बैठक में सदस्यों ने पन्ना टाईगर रिजर्व में पर्यटन को बढ़ावा देने तथा देशी व विदेशी पर्यटकों को पार्क भ्रमण हेतु आकृष्ट करने के लिये उपयोगी सुझाव दिये गये। जिस पर कमिश्नर श्री दुबे व क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व श्री भदौरिया ने सहमति जताई और कहा कि खजुराहो के प्रमुख स्थलों पर होॄडग लगवाई जायेंगी। समिति के अध्यक्ष एवं कमिश्नर सागर संभाग मनोहर दुबे ने कहा कि पन्ना के प्राचीन भव्य मन्दिरों का भी प्रभावी ढंग से प्रचार-प्रसार होना चाहिये, इससे पर्यटकों का आकर्षण बढ़ेगा। आपने कहा कि पन्ना के आस-पास स्थिति ऐतिहासिक व प्राकृतिक महत्व के स्थलों का भी योजनाबद्ध तरीके से विकास होना चाहिये। 

पर्यटक वाहनों की संख्या का हुआ निर्धारण 


बैठक में पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर जोन में भ्रमण के लिये पर्यटक वाहनों की संख्या के संबंध में विचार विमर्श के साथ संख्या का निर्धारण हुआ। मालुम हो कि पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 543 वर्ग किमी है, जिसके
20 प्रतिशत भाग पर पर्यटन की अनुमति है। इसके लिय दो प्रवेश द्वार मड़ला व हिनौता संचालित है। गत वर्ष पन्ना टाईगर रिजर्व में पर्यटकों के भ्रमण हेतु प्रतिदिन 70 वाहन धारण क्षमता निर्धारित थी। लेकिन अब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली की गाइड लाइन के अनुसार पर्यटन वर्ष 2018-19 हेतु कुल 85 वाहन निर्धारित किया गया है। जिसमें प्रवेश द्वार मड़ला से प्रात:कालीन सफारी हेतु 35 वाहन तथा सायंकालीन सफारी हेतु 25 वाहन तथा हिनौता प्रवेश द्वार से प्रात: 15 वाहन एवं सायं 10 हवानों के प्रवेश की अनुमति प्रदान की गई।
  
बफर क्षेत्र में भ्रमण हेतु खुलेगा अकोला गेट 


पन्ना टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में पर्यटकों के भ्रमण हेतु पर्यटन वर्ष 2018-19 से अकोला प्रवेश द्वार का शुभारंभ किया जायेगा। सलाहकार समिति की बैठक में चर्चा उपरान्त इस प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की गई। इस नवीन प्रवेश द्वार से प्रतिदिन 15 पर्यटक वाहन भ्रमण हेतु प्रवेश कर सकेगे, जिसमें सुबह 10 वाहन तथा सायंकालीन सफारी के लिये 5 वाहन निर्धारित किये गये हैं। बैठक में कमिश्नर सागर मनोहर दुबे, क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया, कलेक्टर मनोज खत्री, उप संचालक वासु कनौजिया, सहायक संचालक पन्ना व मड़ला सहित सलाहकार समिति के सदस्यगण मौजूद रहे।
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दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर 




दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी बनेगी पन्ना की वत्सला

  •  केरल के नीलांबुर फारेस्ट डिवीजन से मंगाया जायेगा जन्म का  रिकॉर्ड
  •  गिनीज बुक ऑफ  वर्ल्ड  रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने होगी पहल


पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन चुकी उम्रदराज हथिनी वत्सला। फोटो - अरुण सिंह 

अरुण सिंह,पन्ना।  म.प्र. के पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर बन चुकी दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ  वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के प्रयास शुरू हो गये हैं।हथिनी वत्सला के जन्म का पूरा  रिकॉर्ड केरल प्रान्त के नीलांबुर फारेस्ट डिवीजन से मगाया जायेगा। यह बात तीन दिवसीय दौरे पर पन्ना आये प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी शहवाज अहमद ने शनिवार को सायं चर्चा के दौरान कही। मालुम  हो कि केरल के नीलांबुर फारेस्ट डिवीजन में जन्मी व पली - बढ़ी यह हथिनी 1972 में वहाँ  से होशंगाबाद  के बोरी अभ्यारण्य में लाई गई थी। इसके बाद वहाँ से यह हथिनी वर्ष 1992 में पन्ना टाइगर रिजर्व पहुंची। तभी से यह यहाँ की शोभा बढ़ा रही है।
उल्लेखनीय है कि लगभग सौ वर्ष की उम्र पार कर चुकी हथिनी वत्सला का  उपयोग पन्ना टाइगर रिजर्व में पूरे डेढ़ दशक तक यहाँ आने वाले पर्यटकों को बाघों का दीदार कराने के लिये किया जाता रहा है। लेकिन अत्यधिक उम्रदराज होने के कारण इसे  आराम की जिंदगी गुजारने के लिये रिटायर कर दिया गया। रिटायरमेंट के बाद से हथिनी वत्सला की पूरी देखरेख की जा रही है। उम्र को देखते हुये वत्सला को जहाँ सुगमता से पचने वाला आहार दिया जाता है,वहीं नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण भी होता है। पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. एस.के. गुप्ता ने बताया कि टाइगर रिजर्व के ही एक नर हांथी ने वर्ष 2003 और 2008 में दो मर्तवे प्राण घातक हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया था। मदमस्त नर हांथी ने दांतों से प्रहार कर वत्सला का  पेट चीर दिया  था।लेकिन बेहतर उपचार और सेवा से इस बुजुर्ग हथिनी को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया गया। मौजूदा समय यह हथिनी देशी व विदेशी पर्यटकों  लिये जहाँ आकर्षण का केंद्र है,वहीं पन्ना टाइगर रिजर्व के लिये भी किसी अनमोल धरोहर से कम नहीं है। पीसीसीएफ  श्री अहमद ने बताया कि वत्सला का जन्म रिकॉर्ड नीलांबुर से मंगाने के निर्देश उन्होंने दिये हैं। यदि जरूरत पड़ी तो पन्ना टाईगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता को रिकॉर्ड लाने के लिये नीलांबुर भेजा जायेगा ताकि वत्सला की उम्र कितनी है,इसकी प्रामाणिक रूप से पुष्टि हो सके।वत्सला के शतायु होने का पन्ना में उत्सव मनाने के साथ ही गिनीज बुक ऑफ  वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने की भी पहल की जायेगी ताकि वत्सला को दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी का गौरव हासिल हो सके।

हांथी की 50 से 70 वर्ष होती है औसत उम्र

पन्ना टाईगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता  जो वत्सला की बीते 18 वर्षो से चिकित्सकीय देखरेख कर रहे हैं, उन्होंने बताया कि हांथी की औसत उम्र 50 से 70 वर्ष होती है। 70 वर्ष की उम्र तक हांथी के दांत गिर जाते हैं।आपके मुताबिक वर्ष 2000 में जब उन्होंने देखा था तो वत्सला के एक भी दांत नहीं थे। जबकि महावत का कहना था कि 1995 के बाद वत्सला दांतविहीन हो चुकी थी। दुनिया का सबसे अधिक उम्र का लिन वांग नाम का हांथी ताइवान के चिडिय़ाघर में था जिसकी 86 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो चुकी है। इस तरह से वत्सला जो 95 वर्ष से भी अधिक उम्र की है उसे सबसे उम्रदराज हथिनी कहा जा रहा है।
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