Monday, June 28, 2021

मध्य प्रदेश : पर्यटन उद्योग को "बफर में सफऱ" से मिलेगी संजीवनी

  • कोरोना महामारी के चलते लगाये गए प्रतिबंधों से मध्य प्रदेश में पर्यटन उद्योग को भारी क्षति हुई है। टाइगर रिजर्वों के खुलने से थोड़ी राहत मिली थी लेकिन बारिश के मौसम में 3 माह के लिए प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व बंद हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में मानसून सीजन में "बफर में सफऱ" पर्यटन उद्योग के लिए संजीवनी साबित हो सकता है।

पन्ना के जंगल में खतरे की आहट मिलते ही चौकन्ना होकर खड़े सांभर। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। बारिश के मौसम में प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व तीन माह के लिए 1 जुलाई से 30 सितंबर तक पर्यटकों के भ्रमण हेतु बंद हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में पर्यटन उद्योग व स्थानीय रहवासियों को राहत देने के लिए प्रदेश के पन्ना, बांधवगढ़, कान्हा, पेंच एवं सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में बारिश के मौसम में भी पर्यटन चालू रहेगा। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि "बफर में सफर" योजना के तहत प्रदेश के अन्य टाइगर रिज़र्वों की तरह पीटीआर के अकोला व झिन्ना बफर क्षेत्र में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए पर्यटकों को जंगल में सैर करने की इजाजत रहेगी।

क्षेत्र संचालक ने बताया 30 जून से टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में पर्यटन बंद हो जायेगा। लेकिन बफर क्षेत्र के अकोला व झिन्ना सहित पांडव फॉल एवं रनेह फॉल में पर्यटन मानसून सीजन में भी यथावत जारी रहेगा। इसके लिए पार्क प्रबंधन द्वारा पूरी तैयारियां कर ली गई हैं। बारिश के दौरान जंगल की सैर में पर्यटकों को असुविधा न हो, इसके लिए उन मार्गों पर जहां मिट्टी है वहां पत्थर की पिचिंग करा दी गई है। श्री शर्मा ने बताया कि बारिश के तीन माह टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र पर्यटन हेतु इसलिए बंद रहते हैं, क्योंकि नदी व नालों में पानी आ जाता है तथा जंगली मार्ग भी खराब हो जाते हैं। इसके अलावा वन्य प्राणियों का यह प्रजनन काल भी होता है। पर्यटन बंद रहने से उन्हें इस दौरान एकांत और शांत वातावरण मिल जाता है।

 होटल, रिसॉर्ट संचालकों व गाइडों की हुई बैठक

 पन्ना टाइगर रिजर्व के उपसंचालक जरांडे ईश्वर रामहरि ने बताया कि मानसून पर्यटन को बेहतर तरीके से संचालित करने के लिए पूरी तैयारियां की गई हैं। आपने बताया कि विगत 23 जून को कर्णावती व्याख्यान केंद्र मंडला में होटल व रिसॉर्ट संचालकों सहित गाइडों और जिप्सी ड्राइवरों की बैठक भी ली गई है। जिसमें उन्हें बफर क्षेत्र के पर्यटक मार्गो व अट्रैक्शन प्वाइंटों की जानकारी दी गई है। आपने बताया कि अकोला बफर में बराछ डेम, रॉक पेंटिंग तथा बाघ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहेंगे। जबकि झिन्ना बफर क्षेत्र में बल्चर पॉइंट के साथ प्राकृतिक मनोरम स्थल, वाटरफॉल तथा गहरे सेहा हैं, जिनका पर्यटक लुत्फ उठा सकेंगे।



गौरतलब है कि कोरोना महामारी के चलते लगाये गए प्रतिबंधों से पर्यटन उद्योग बेपटरी हो गया था। विदेशी पर्यटकों के न आने से पन्ना टाइगर रिजर्व के निकट स्थित पर्यटन गांव मंडला के होटल और रिसॉर्ट सूने पड़े थे। मंदिरों के लिए प्रसिद्ध खजुराहो में भी सन्नाटा पसरा था। लेकिन 1 जून से टाइगर रिजर्व खुलने के बाद होटलों में चहल-पहल शुरू हुई है। होटल संचालक प्रदीप सिंह राठौड बताते हैं कि बफर क्षेत्र में पर्यटन जारी रहने से इस संकट काल में कम से कम होटल का खर्च निकल आयेगा। स्थानीय गाइडों, जिप्सी ड्राइवरों को भी मानसून पर्यटन से लाभ मिलेगा। पर्यटक गाइड पुनीत शर्मा ने बताया कि अकोला बफर का पर्यटकों में जबरदस्त आकर्षण है, क्योंकि यहां टाइगर की अच्छी साइटिंग हो रही है। निश्चित ही जब पर्यटक आएंगे तो हमें इसका लाभ भी मिलेगा।

सैर करने में कहाँ कितना होगा खर्च


अकोला बफर में भ्रमण हेतु प्रवेश के लिए सड़क मार्ग के किनारे इस तरह लग रही पर्यटक वाहनों की कतार। 

मानसून सीजन में पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में पर्यटकों को सैर करने के लिए कहां कितना खर्च करना पड़ेगा, सैर में जाने से पहले यह जानना भी जरूरी है। उप संचालक श्री जरांडे ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि अकोला व झिन्ना बफर क्षेत्र में 12 सौ रुपए प्रति जिप्सी या 200 रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क देना होता है। आपने बताया कि दोनों जगह पर्यटक दिन के उजाले में जंगल की सैर करने के साथ-साथ नाइट सफारी का भी आनंद ले सकते हैं। बफर क्षेत्र में सुबह, शाम व रात तीन शिफ्ट में पर्यटकों को भ्रमण हेतु इंट्री मिलती है।

श्री जरांडे बताते हैं की अकोला और झिन्ना बफर क्षेत्र के अलावा पर्यटक बारिश के मौसम में पन्ना-मंडला घाटी के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित सुप्रसिद्ध पांडव जलप्रपात के सौंदर्य का भरपूर लुत्फ ले सकते हैं। इसके अलावा खजुराहो के पास केन घडय़िाल अभयारण्य में रनेह फॉल के अचंभित कर देने वाले नजारे का भी पूरा आनंद उठा सकते हैं। श्री जरांडे ने बताया कि पांडव फॉल में प्रवेश शुल्क दोपहिया वाहन सौ रुपये, तीन पहिया वाहन 200 रुपये तथा चार पहिया वाहन का 300 रुपये लगता है। जबकि रनेह फॉल में दोपहिया वाहन 200 रुपये, तीन पहिया वाहन 400 तथा चार पहिया वाहन का 600 रुपए शुल्क लिया जाता है।

 बाघ शावक हीरा व पन्ना बने आकर्षण का केंद्र

 पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे अकोला बफर के जंगल में पर्यटकों को अमूमन रोज ही टाइगर दिख जाते हैं। बफर क्षेत्र के इस जंगल में 7-8 बाघों का रहवास है। अकोला बफर में तैनात रहे वन अधिकारी लालबाबू तिवारी ने बताया कि यहां बाघिन पी-234 (23) अपने तीन शावकों के साथ जहां अक्सर नजर आती है, वहीं 17 माह के हो चुके दो बाघ शावक हीरा और पन्ना जंगल में खूब चहल-कदमी मचाते हैं। यहां के वन परिक्षेत्राधिकारी राहुल पुरोहित बताते हैं कि पन्ना-अमानगंज मार्ग पर भी चहल-कदमी करते हुए आए दिन हीरा और पन्ना नजर आते हैं। यह दोनों बाघ शावक पर्यटकों को बेहद प्रिय हैं तथा पर्यटकों ने ही इनका नाम हीरा और पन्ना रखा है। श्री पुरोहित ने बताया कि अकोला बफर में हजारों वर्ष पुरानी रॉक पेंटिंग भी हैं, जिन्हें देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।

वीडियो - अकोला बफर क्षेत्र में पन्ना-अमानगंज मार्ग के किनारे चहल-कदमी करते बाघ शावक हीरा और पन्ना



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Sunday, June 27, 2021

पीएम नरेंद मोदी ने सतना के किसान रामलोटन की बगिया को सराहा

 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रेडियो के माध्यम से मन की बात के द्वारा देशभर के लोगों को नई और रोचक जानकारियां भी उपलब्ध कराई जा रही है। इसके साथ ही ऐसे लोगों की प्रशंसा भी की जा रही है जो कुछ नया करते हैं। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सतना जिले के पद्मश्री से सम्मानित बाबूलाल दाहिया के नेतृत्व में दुर्लभ जड़ीबूटियों का संरक्षण करने वाले पिथौराबाद नई बस्ती के रामलोटन कुशवाहा की भरपूर प्रसंसा की है।

उन्होंने कहा कि रामलोटन कुशवाहा अपने घर को ही म्यूजियम बना दिया है। जिसको दूर दूर से लाए जड़ी बूटियों के संरक्षण करते है। उनकी बागवानी देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इसके साथ-साथ वह देसी सब्जियों का भी उत्पादन करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। सभी देशवासियों को राम लोटन जी से सीख लेकर ऐसे प्रयोग करना चाहिए इससे आपकी आमदनी भी बढ़ेगी और स्वास्थ्य लाभ भी होगा।

जानते है रामलोटन कुशवाहा के बारे में

रामलोटन कुशवाहा सतना जिले के उचेहरा विकाशखण्ड क्षेत्र के ग्राम पंचायत पिथौराबाद नई बस्ती के एक छोटे किसान है पर इनकी दुनिया अलग  है इन्हें विलुप्त हो रही दुर्लभ प्रजाति की जड़ी- बूटियों सब्जियों को छोटी सी बगिया में सहेजने का जुनून इस कदर चढ़ा कि मौजूदा समय में उनके बगीचे में दो सौ अधिक प्रजातियों के दुर्लभ पौधे मौजूद हैं साल दर साल वह इनकी संख्या और बढ़ाते जा रहे हैं ।


रामलोटन के पास ऐसे भी औषधि पौधे है जो विंध्य के पहाड़ों जंगलों में अब ढूंढ़े नहीं मिलते उन्हें भी रामलोटन ने ढूंढ़ निकाला और अपनी बगिया में उन्हें भी सजा दिया । जैवविविधता पर शोध और अध्ययन करने वाले जब पिथौराबाद पहुंचते हैं और रामलोटन बगीचे में जाते हैं तो वहां मौजूद विभिन्न जड़ी - बूटियों को देखकर हैरान हो जाते कई बड़े अधिकारी भी यहां आ चुके हैं और उनके प्रयास को देखकर दंग रह गए ।

रामलोटन के इस भगीरथ प्रयास को देखते हुए जैव विविधता बोर्ड द्वारा वर्ष 2017 में पद्मश्री बाबूलाल दाहिया के नेतृत्व में पांच सदस्यीय दल को एमपी के 40 जिलों के भ्रमण पर भेजा गया था। उस टीम में पद्मश्री बाबूलाल दाहिया सहित जगदीश सिंह यादव रीवा, शैलेष कुशवाहा ग्वालियर, अनिल करने जबलपुर और सतना से रामलोटन कुशवाहा भी साथ में गए थे। जहां भ्रमण के दौरान रामलोटन ने जड़ी बूटियों के संरक्षण की बारीकिंया समझी। इसके बाद में सभी प्रजा​तियों के बीज का संरक्षण करते हुए अपने कच्चे घर को म्यूजियम का रूप देकर रखने लगे।उन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार देने के साथ समय समय पर वनस्पतियों जड़ीबूटियो के संरक्षण के लिए जैविविधिता द्वारा अनुदान राशि भी दिया गया है।  

रामलोटन के पास ये हैं अमूल्य जड़ी बूटियां

रामलोटन की ​बगिया में एक सैकड़ा दुर्लभ औषधीय पौधे है। अकेले 24 प्रकार के केवल कंद मौजूद हैं ।इसके अलावा दहिमन, मेदा, कुम्ही, सादन, बीजा ओदार, भेड़ार, मैनहर, खूझा, बोथी, कसही, बरौता, राजमकोर की किस्में आदि आयुर्वेद में अधिक डिमांड रहती है। वहीं इनके अलावा बराही कंद, खनुआ, बैचंदी, तीखुर, काली और समेद मुसली, केवकंद जैसे बहुत सारे कंद एवं सफेद भटकैया, सफेद घुघची, काली घुघची आदि बहुत सारी जड़ी बूटियां और गुल्म लताएं मौजूद है।

(अनुपम दाहिया की फेसबुक वॉल से साभार) 

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Thursday, June 24, 2021

सोयाबीन की खेती से किसानों का हो रहा मोहभंग

  •  मध्य प्रदेश सोयाबीन उत्पादन के मामले में रहा है अग्रणी 
  •  पन्ना जिले के किसानों का रुझान धान व उड़द की ओर बढ़ा 

मध्यप्रदेश में "पीले सोने" के रूप में मशहूर सोयाबीन की फसल जिससे अब हो रहा मोहभंग। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। प्रदेश के अधिकांश जिलों में सोयाबीन की खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है। उन्नत किस्म के प्रमाणित बीज न मिलने तथा खेती की लागत अधिक होने के चलते किसानों का रुझान अब सोयाबीन के बजाय धान व उड़द की फसलों की ओर बढ़ा है। इस वर्ष ज्यादातर किसानों ने सोयाबीन की जगह धान व उड़द की फसल लेने का मन बना लिया है। किसानों के इस रुझान से राज्य में "पीले सोने" के रूप में मशहूर इस नकदी फसल के उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है।

 मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी सोयाबीन को घाटे का सौदा करार देते हुए किसानों को सलाह दी है कि वे अपनी आय बढ़ाने के लिए खरीफ सीजन में दूसरी फसलें लें। कृषि मंत्री श्री पटेल ने पिछले दिनों एक समाचार एजेंसी से कहा है कि पिछले तीन खरीफ सत्रों के दौरान सोयाबीन की फसल को भारी बारिश और कीटों के प्रकोप से काफी नुकसान हुआ है। इस कारण इसके बीज की कमी उत्पन्न हो गई है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार यह कमी दूर करने का प्रयास कर रही है, लेकिन वक्त का तकाजा है कि किसान खरीफ सत्र में बुवाई के लिए अन्य फसलों को तरजीह दे। 


खरीफ सीजन में फसलों के चयन को लेकर किसानों की बदल रही इस मानसिकता का असर प्रदेश के अन्य दूसरे जिलों की तरह पन्ना जिले के किसानों में भी देखने को मिल रहा है। उप संचालक कृषि ए.पी. सुमन ने जानकारी देते हुए बताया कि जिले में गुनौर, पवई व पन्ना ब्लॉक के देवेन्द्रनगर क्षेत्र में सोयाबीन की फसल बड़े पैमाने पर ली जाती रही है। वर्ष 2015 में सोयाबीन का रकबा 28000 हेक्टेयर हो गया था। लेकिन पीला मोजेक के प्रकोप, उत्पादन लागत बढऩे तथा अनियमित बारिश के कारण सोयाबीन की खेती घाटे का सौदा हो गया। उप संचालक श्री सुमन ने बताया कि यही वजह है कि पन्ना जिले में खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान व उड़द हो रही है।

 उप संचालक कृषि ने कहा कि पूरे प्रदेश में सोयाबीन के बीज की किल्लत है लेकिन पन्ना जिले में नहीं है। जिले के किसान सोयाबीन बीज की डिमांड ही नहीं कर रहे। जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा है वे धान की ओर जा रहा है। आपने बताया कि धान के रकबे में  हर साल इजाफा हो रहा है। इस वर्ष 115.20 हजार हेक्टेयर में धान की फसल का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उप संचालक श्री सुमन ने बताया कि जिले के शाहनगर, अजयगढ़ व देवेंद्रनगर क्षेत्र में धान की सर्वाधिक खेती होती है।

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Wednesday, June 23, 2021

झूंठी शादी रचाकर ठगी करने वाले गिरोह का हुआ पर्दाफास

  • अंत्तर्राज्यीय गिरोह की 2 महिलाओं सहित 8 पुरुषों को पुलिस ने किया गिरफ्तार
  • आरोपियों के कब्जे से 14 लाख 25 हजार रूपये कीमत का सामान हुआ बरामद 

पुलिस अधीक्षक पन्ना प्रेसवार्ता में मामले की जानकारी देते हुए। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में पुलिस ने एक अंत्तर्राज्यीय ठग एवं चोर गिरोह का पर्दाफाश किया है। पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना ने आयोजित प्रेसवार्ता में आज बताया कि यह गिरोह मिथ्या शादी रचवाकर ठगी की वारदात को अंजाम देते थे। इस लुटेरी गैंग में महिलायें भी शामिल हैं जो  लोगो के घर दुल्हन बनकर रहने एवं कुछ दिन बाद उस घर से कीमती जेवरात एवं नगदी पैसा लेकर चंपत हो जाती थीं। मामले में पुलिस ने 2 महिलाओं सहित 8 पुरुषों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों के कब्जे से 01 नग अवैध कट्टा, 01 कारतूस, सोने-चाँदी के जेवरात, 01 लैपटॉप एवं 01 प्रिन्टर कुल करीब 14 लाख 25 हजार रूपये कीमत का सामान बरामद किया है। 

घटना के सम्बन्ध में दी गई जानकारी के मुताबिक 20 जून को फरियादी पुरषोत्तम पटैरिया 33 साल निवासी बडख़ेरा थाना कोतवाली पन्ना जिला पन्ना ने थाना कोतवाली पन्ना में रिपोर्ट किया कि मेरी रिश्तेदारी ग्राम टीला जिला टीकमगढ़ तरफ है जहाँ मेरा आना जाना लगा रहता है। पिछले साल ग्राम टीला के रहने वाले मेरी पहचान के एक व्यक्ति और महिला ने मेरी शादी एक लड़की से करवाई थी। शादी के बाद वह लड़की मेरे साथ 5 दिन रूकी और छठवें दिन मेरे घर का जेवरात एवं नगदी रूपये लेकर घऱ से भाग गयी। फरियादी की रिपोर्ट पर थाना कोतवाली पन्ना में धोखाधड़ी एवं छलकपट से आर्थिक हानि पहुँचाने के आशय से गैंग बनाकर मिथ्या विवाह करने पर से तीन आरोपियों के विरूद्ध अपराध पंजीबद्ध किया जाकर विवेचना में लिया गया ।

 पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना ने उक्त घटना को गंभीरता से लेते हुये आरोपियों का पता लगाने तथा उनकी गिरफ्तारी हेतु कोतवाली पन्ना निरीक्षक अरूण कुमार सोनी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित किया। पुलिस टीम द्वारा आरोपियों की पतारसी एवं गिरफ्तारी हेतु अपने मुखबिर तंत्र को सक्रिय किया जाकर पुलिस सायबर सेल से जानकारी लेते हुये मामलों के खुलासा एवं आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास किये गये। थाना प्रभारी कोतवाली को गत 23 जून को मुखबिर द्वारा सूचना प्राप्त हुई कि फर्जी तरीके से शादियाँ कराकर लोगो के घर से जेवरात एवं नगदी लेकर फरार होने के साथ ही नकबजनी की घटनाओ में शामिल होने वाले गैंग के सदस्य पन्ना में एक घर में छिपे बैठै हैं। मुखबिर के बताये स्थान धाम मोहल्ला पन्ना में जाकर देखा गया, जहाँ एक मकान में 08 पुरुष और 02 महिलायें मिलीं। पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेकर पूँछताछ किया तो एक  पुरुष और दो महिलाओं द्वारा मिथ्या शादी रचाकर दूल्हे के घर से कीमती जेवरात एवं नगदी पैसा चोरी करने की वारदात को अंजाम देना स्वीकार किया गया । 

पुलिस हिरासत में ली गई महिलाओं में एक महिला इन घटनाओ की मास्टरमाइंड है। उक्त महिला द्वारा अपने साथ पुलिस हिरासत में लिये गये 01 महिला एवं 03 पुरुष के अलावा अन्य 02 महिलाओं सहित 01 पुरुष के साथ मिलकर ऐसी ही अन्य घटनायें कारित करना स्वीकार करते हुये हिरासत में लिये गये 05 व्यक्तियों के साथ मिलकर अन्य 03 साथियों के सहयोग से चोरी एवं नकबजनी की घटनाओं को कारित करना स्वीकार किया। हिरासत में लिये गये अन्य लोगो से पूँछताछ किये जाने पर अभियुक्तों द्वारा पन्ना जिले में हुई नकबजनी की घटनाओं में से थाना कोतवाली पन्ना के 05 प्रकरण, थाना पवई के 07 प्रकरण, थाना सिमरिया के 06 प्रकरण, थाना अमानगंज के 02 प्रकरण, थाना धरमपुर के 01 प्रकरण में शामिल होना कबूल किया।

 पुलिस द्वारा अभियुक्तो के कब्जे से 01 नग अवैध 315 बोर का देशी कट्टा, 01 कारतूस, 05 किलो चाँदी एवं सोने के जेवरात वजनी करीब 160 ग्राम, 01 लैपटॉप, 01 प्रिन्टर कुल कीमती करीब 14 लाख 25 हजार रूपये के जप्त किये गये । मामले के अन्य फरार आरोपियों की तलाश पुलिस द्वारा की जा रही है । आरोपियों से पूँछताछ पर पन्ना जिले के अलावा टीकमगढ़, दमोह, छतरपुर एवं म.प्र. के बाहर अन्य राज्यों में मिथ्या शादी कर कीमती जेवरात एवं नगदी रूपये लेकर भागने की अन्य घटनाओं में शामिल होने की वारदासो के खुलासा होने की संभावना है ।

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जंगल के शातिर शिकारी अब कर रहे वन्य प्राणियों का संरक्षण

  • सदियों से वन्य प्राणियों का शिकार करने वाले पारधी समुदाय के लोगों ने अपने हुनर तथा जंगल व वन्यजीवों के ज्ञान को अब रोजी रोजगार का जरिया बना लिया है। इस समुदाय के युवक व युवतियां नेचर गाइड बनकर पर्यटकों को जंगल की निराली दुनिया से रूबरू कराते हैं।

 रानीपुर जंगल के सेहा में पाए जाने वाले वन्यजीवों व पक्षियों के बारे में बताते हुए पारधी गाइड।

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। डेढ़ दशक पूर्व तक जंगलों के आसपास डेरा डालकर शिकार करना जिनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा था, वे शातिर शिकारी कभी जंगल और वन्य प्राणियों का संरक्षण करेंगे इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन यह अविश्वसनीय सी लगने वाली बात मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में साकार हो रही है। शिकार के लिए मध्य प्रदेश सहित महाराष्ट्र और राजस्थान के जंगलों में घूमने वाले इन पारधियों का पहले कोई स्थाई ठिकाना नहीं था, लेकिन वन महकमे की पहल से अब उन्हें बसाकर समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का काम किया जा रहा है।

 पन्ना शहर से 7 किलोमीटर दूर गांधीग्राम में पारधियों की बस्ती है, जहां 60-70 परिवार निवास करते हैं। पारधियों के इस कुनबे में सबसे बुजुर्ग 70 वर्षीय तूफान सिंह हैं। तूफान सिंह ने बताया कि "मुगलों के जमाने से हम जंगल में जाकर शिकार करते रहे हैं। हमारे बाप दादा भी यही काम करते थे। जंगल में घूम-घूम कर शिकार करना हमारी जिंदगी थी। हमारे पुरखों ने कितने जानवरों का शिकार किया, इसका कोई हिसाब नहीं है।"

पन्ना शहर से 7 किलोमीटर दूर गांधीग्राम स्थित पारधी समुदाय की बस्ती का दृश्य।  (फोटो - अरुण सिंह)

शिकार और शिकारियों का यह सिलसिला तब थमा जब पन्ना टाइगर रिजर्व सहित आसपास के जंगलों से वर्ष 2008-09 में बाघों का नामोनिशान मिट गया। पन्ना के जंगलों में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर आबाद करने से पहले शिकारी पारधियों की जीवन शैली में बदलाव लाना जरूरी था। इस दिशा में वन विभाग ने सकारात्मक पहल करते हुए उन्हें गांधीग्राम में बसाकर उनके बच्चों को शिक्षा से जोड़ा तथा पारधी युवकों का उपयोग नेचर गाइड के रूप में करना शुरू किया। इस पहल का असर यह हुआ कि पारधियों के बच्चे जहां अब पढऩे लगे हैं, वहीं नेचर गाइड सहित अन्य रचनात्मक गतिविधियां उनकी कमाई का जरिया बन गया है।

पारधियों की इस बस्ती में किलकिली बाई पारधी ने बताया कि जंगल की जड़ी बूटियों का ज्ञान बुजुर्गों से हमें मिला है। इन जड़ी-बूटियों से औषधि बनाकर हम बेचते हैं। लेकिन पिछले एक डेढ़ साल से कोरोना के कारण यह धंधा प्रभावित हुआ है। गांव-गांव जाकर हम दवा बेचते थे, कुछ महिलाएं चूडय़िां बेचती थीं लेकिन अब रोक होने से कहीं नहीं जा पा रहे। वहीं पास में टेबल नुमा पत्थर की पटिया में पढ़ाई कर रही युवती सिजारन पारधी की ओर सहज ही हमारा ध्यान आकृष्ट हुआ। उसने बताया कि वह महात्मा गांधी कॉलेज सतना में बी.ए. फाइनल में पढ़ती है। पारधियों के इस कुनबे में सिजारन पारधी सबसे ज्यादा शिक्षित है। इसके पति बड्डा पारधी नेचर गाइड हैं। सिजारन जब गांधीग्राम में होती है, तो वह कुनबे के बच्चों को पढ़ाती भी है।

रानीपुर के जंगल में चलाते हैं पर्यटन गतिविधि
 

जंगल में वृक्ष की डाल पर दूर बैठे दूधराज पक्षी को निहारते हुए। 

"पहले हम शिकार के लिए इस जंगल से उस जंगल भटकते फिरते थे, लेकिन अब हमारा यही हुनर आय का जरिया बन रहा है"। नेचर गाइड वीरेन पारधी बताते हैं कि जंगली जानवरों व पक्षियों की आवाज निकाल कर हम पर्यटकों को जब जंगल की सैर कराते हैं तो उनको बहुत अच्छा लगता है। सोमवार 21 जून को हम पारधी गाइडों के साथ रानीपुर के जंगल व सैकड़ों फिट गहरे सेहा का भ्रमण किया। यहां का गहरा सेहा, घना जंगल तथा सैकड़ों प्रजाति के पक्षी व वन्यजीव पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। इस पर्यटन गतिविधि को "वॉक विद पारधी" कहा जाता है।  जंगल, वन्यजीव और पक्षी पारधियों के जीवन में इस कदर रचे बसे हैं कि वे जंगल की आबोहवा से ही भांप लेते हैं कि कौन सा वन्यजीव आसपास मौजूद है। 

वन्य प्राणियों के पग मार्क से उनकी मौजूदगी पता करने में पारधी गाइड माहिर हैं। वे जब पक्षियों की आवाज निकालते हैं तो पक्षी भी धोखा खा जाते हैं और आवाज की दिशा में चले आते हैं। रानीपुर सेहा के ऊपर गाइड वीरेन पारधी ने हमें भी तेंदुआ, तीतर, राष्ट्रीय पक्षी मोर सहित अन्य कई पक्षियों की आवाज निकाल कर सुनाई। इस वॉक में नेचर गाइड बड्डा पारधी, रातनी पारधी व दिशावरनी पारधी भी थे, जिन्होंने पेड़-पौधों और पक्षियों के बारे में रोचक जानकारी दी।

 कई जिलों में है पारधी समुदाय की मौजूदगी 


डेढ़ दशक पूर्व जंगल के आसपास इस तरह डेरा डाल कर रहते थे पारधी। 

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि पारधी मूलत: शिकारी समुदाय के लोग हैं, जिनमें हंटिंग के अलावा दूसरा कोई स्किल नहीं था। हमने नई पीढ़ी को शिक्षित करने की पहल की है। पारधी बच्चों के लिए स्कूल व छात्रावास संचालित किया जा रहा है। आपने बताया कि अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग में पारधी नहीं आते, उन्हें विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ समुदाय के रूप में जाना जाता है।

 लास्ट विल्डरनेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला ने बताया कि इनका आधार कार्ड बनवाया जा चुका है तथा वोट डालने का भी इन्हें अधिकार है। पारधियों का पन्ना जिले में राशन कार्ड भी बनवाया गया है, जिससे उन्हें राशन मिल रहा है। आप ने बताया कि इस समुदाय की मौजूदगी छोटे-छोटे कुनबों में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में है। लेकिन बुंदेलखंड क्षेत्र में इनकी संख्या अधिक है। प्रदेश में इनकी अनुमानित संख्या लगभग 10 हजार है। आपने बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना, कटनी, छतरपुर, दमोह व सागर जिले में पारधी समुदाय के लोग रहते हैं। इसके अलावा होशंगाबाद, डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, भोपाल, विदिशा व निवाड क्षेत्र में भी इनकी मौजूदगी पाई गई है।

सेहा राज्य पक्षी दूधराज का अच्छा हैबिटेट



रानीपुर सेहा का जंगल जहां पर्यटन गतिविधि "वॉक विद पारधीज" संचालित होती है, वह मध्य प्रदेश के राज्य पक्षी दूधराज का अच्छा हैबिटेट (पर्यावास) है। लास्ट विल्डरनेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला जो पारधी समुदाय के युवकों को पर्यटन गतिविधि के संचालन में मदद करते हैं, उन्होंने बताया कि रानीपुर का सेहा दूधराज पक्षी (इंडियन पैराडाइज फ्लाइकैचर) का प्रिय रहवास है। यहां टुइयाँ (तोता), उल्लू, पपीहा, धनेश, इंडियन पिटटा (नवरंगा) सहित दर्जनों प्रजाति के पक्षी बहुतायत से पाए जाते हैं। विलुप्त प्राय गिद्धों की प्रजाति भी यहां पाई जाती है। श्री बुंदेला ने बताया कि रानीपुर का यह जंगल पन्ना टाइगर रिजर्व व रानीपुर वन्य जीव अभ्यारण के बीच का गलियारा है, जिसका उपयोग बाघ करते रहे हैं। वर्ष 2015 में पन्ना टाइगर रिजर्व की एक बाघिन इसी गलियारे का उपयोग करते हुए चित्रकूट के जंगल में पहुंची थी।

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Sunday, June 20, 2021

जिंदगी बचाने के लिए कोविड-19 वैक्सीनेशन का महाअभियान

  • एक दिन में 10 लाख से अधिक व्यक्तियों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य
  • मुख्यमंत्री ने सभी नागरिकों से की अभियान में सहयोग की अपील

 मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोविड-19 वैक्सीनेशन महाअभियान के सम्बन्ध में अपील करते हुए। 

पन्ना। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश में 21 जून को कोविड-19 वैक्सीनेशन महाअभियान आयोजित किया जा रहा है। अभियान के अतर्गत प्रदेश में 7 हजार वैक्सीनेशन सेंटर पर वैक्सीनेशन की व्यवस्था की जायेगी। हमारा प्रयास है कि वैक्सीनेशन महाअभियान में एक दिन में 10 लाख से अधिक व्यक्ति वैक्सीनेशन करायें। 

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि वैक्सीनेशन ही है जो संक्रमण की स्थिति में भी हमें बचाएगा। वैक्सीनेशन का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। जितने वैज्ञानि‍क और विशेषज्ञ हैं वे यह कहते हैं कि वैक्सीन सुरक्षा चक्र प्रदान करता है। यदि हमें दोनों डोज लग गए तो कोरोना संक्रमण फैलने पर भी या तो कोरोना होगा ही नहीं और यदि हुआ तो वह घातक नहीं होगा। हो सकता है कि अस्पताल जाने की नौबत ही न आए। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि वह वायरस का मुकाबला कर सकता है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया के वैज्ञानिक यही कह रहे हैं। दुनिया भर के देश अपने नागरिकों को बचाने के लिए वैक्सीनेशन का सुरक्षा चक्र दे रहे हैं। वैक्सीन 21 जून से मिलना आरंभ होगी। अत: यह निर्णय लिया गया है कि 21 जून से वैक्सीनेशन का महाअभियान शुरू किया जायेगा।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि यह महाअभियान साधारण नहीं होगा। यह लोगों की जिंदगी बचाने का अभियान है। यह लोगों को कोरोना से सुरक्षा प्रदान करने का अभियान है। मुख्यमंत्री होने के नाते मैं यह महसूस करता हूँ कि इस समय इससे पवित्र कोई और कार्य नहीं हो सकता है। मेरी अंतरात्मा की आवाज है कि अभियान में जी-जान से जुट जाया जाए, ताकि सितम्बर-अक्टूबर तक जब तीसरी लहर आये, तब तक हम प्रदेश के अधिकांश लोगों को वैक्सीन लगा चुके हों। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि इस अभियान में मैं अकेला नहीं जुटूंगा। पूरी सरकार जुटेगी, मंत्री, विधायक और सांसद सबसे मैंने बात की है, वे सब अभियान में जुटेंगे साथ ही समाज को जुटना होगा।

पन्ना जिलावासियों से खनिज मंत्री ने की अपील 


प्रदेश के खनिज मंत्री एवं पन्ना विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने पन्ना जिलावासियों से भी अपील की है कि वैक्सीनेशन के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए वैक्सीनेशन सेंटर पर जायें। यह जिंदगी बचाने का अभियान है। तीसरी लहर के खिलाफ हम वेक्सीनेशन से जितना सख्त कवच निर्मित करेंगे आपका मोहल्ला, शहर, जिला और प्रदेश उतना ही सुरक्षित रहेगा। कोरोना वेक्सीनेशन के लिए कल 21 जून से पूरे मध्यप्रदेश में महाअभियान शुरु हो रहा है। इस अभियान की सफलता में ही हमारी, आपकी और सबकी सुरक्षा है। सुरक्षा कवच को मजबूत बनाने वैक्सीन जरूर लगवायें। 

वीडियो अपील -  



हाइबे, विशालकाय बांध, हीरे की खदान और शेरनी !

 

फिल्म शेरनी में एक ईमानदार वन अधिकारी की भूमिका निभाते हुए विद्या बालन। 

। अरुण सिंह 

जब हम अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु जंगल काटते हैं और बड़े पैमाने पर खनिज संपदा का दोहन कर पर्यावरण को तहस-नहस करते हैं, तो इसे नाम देते हैं विकास। इस कथित विकास से जब वन्य प्राणियों का जीवन संकट में पड़ता है और वह अपने को बचाने के लिए हमलावर होते हैं, तो इसे क्रूरता कहकर उन्हें ही खत्म कर दिया जाता है। बिना यह जाने और समझे कि जंगल और वन्यजीवों का वजूद हमारे खुद के अस्तित्व को कायम रखने के लिए बेहद जरूरी है।

 फिल्म शेरनी में इन्हीं सब मुद्दों को बड़े ही प्रभावी ढंग से उठाया गया है। आज ही मैंने यह फिल्म देखी, जो रुचिकर लगी। आपने यदि नहीं देखी तो जरूर देखें। यह फिल्म विकास व पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की अहमियत पर जहां ध्यान आकृष्ट करती है, वहीं सियासत के पाखंड व रीढ़ विहीन, लचर और सुविधा भोगी अफसरशाही की असलियत को भी उजागर करती है। नेता आम जनता को भ्रमित कर किस तरह से जंगल व वन्य जीवों के प्रति उनमें वैर भाव पैदा करते हैं, इसको बड़े ही प्रभावी ढंग से फिल्म में प्रस्तुतीकरण हुआ है। 

फिल्म में एक ईमानदार महिला वन अधिकारी के रूप में विद्या बालन ने अच्छी भूमिका निभाई है। विषम व विपरीत परिस्थितियों के बीच वह दो नन्हे शावकों की मां (शेरनी) को सियासत और अफसरशाही के नापाक गठजोड़ से बचाने का हर संभव प्रयास करती है, लेकिन बचा नहीं पाती। उसे आदमखोर बताकर मरवा दिया जाता है। 

इस फिल्म को देखना मुझे इसलिए भी अच्छा लगा क्योंकि इसे मध्य प्रदेश के जंगलों में ही फिल्माया गया है। फिल्म को देखते समय पन्ना के जंगलों का एहसास होता है। फिल्म की कहानी भी इतनी चिर परिचित लगती है, मानो इसे पन्ना टाइगर रिजर्व को केंद्र में रखकर ही बनाया गया हो। हाईवे, खदान, जंगल की कटाई, इंसान व वन्य प्राणियों के बीच द्वन्द के हालात ! यही सब मुद्दे तो पन्ना के हैं, जिन्हें शेरनी फिल्म में प्रमुखता से उठाया गया है। इस  फिल्म में एक कार्यक्रम में सीनियर अफसर कहता है कि "क्या विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी है ? विकास के साथ जाओ तो पर्यावरण को बचा नहीं सकते और अगर पर्यावरण को बचाओ तो विकास बेचारा उदास हो जाता है।" अब राजनीति के सौदागर भला विकास को कैसे उदास कर सकते हैं ? जाहिर है कि बलि पर्यावरण की ही चढ़ेगी। 


फिल्म में एक संवाद यह भी है जंगल कितना भी बड़ा हो शेरनी अपना रास्ता खोज ही लेती है। लेकिन शेरनी तब क्या करेगी जब उसके रास्ते में हाईवे, हीरे की खदान और विशालकाय बांध आ जाएंगे ? इन बाधाओं को पार कर कैसे अपने लिए एक सुरक्षित ठिकाना ढूंढ पाएगी ?  मालुम हो कि बक्स्वाहा हीरा खदान के कारण जंगल कटने से पन्ना टाइगर रिज़र्व से लगा एक शानदार गलियारा ( कॉरिडोर ) नष्ट हो जायेगा, जिससे वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित होगा। 

यहां पन्ना के अतीत का जिक्र करना जरूरी है कि आखिर क्यों पन्ना के जंगलों से बाघों की दहाड़ लुप्त हो गई थी ? इसकी वजह थी वर्ष 2007 में एक शेरनी की मौत ! दरअसल पन्ना के जंगलों में उस समय तक सिर्फ एक ही शेरनी (बाघिन) बची थी, उसे भी जहर देकर मार दिया गया। फिर क्या हुआ यह सबको पता है। लेकिन शायद गलतियों से सीखने की हमारी फितरत नहीं है। हम फिर उसी रास्ते पर चल पड़े हैं, जिस पर चलने से कथित विकास मुस्कुराता है और पर्यावरण की बलि चढ़ती है।

 केन-बेतवा लिंक परियोजना तथा बक्सवाहा हीरा खदान के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता व समर्थन यही संकेत करता है। कोरोना महामारी के इस दौर में पर्यावरण की अहमियत को यदि हम न समझ पाये तो फिर मनुष्य जाति को भगवान भी नहीं बचा पायेगा। आर्थिक उन्नति और विकास हमारे जीवन को खुशहाल बनाने के लिए होना चाहिए न कि उसे नई मुसीबत में डालने और नष्ट करने के लिए ? जरा सोंचे, जब जीवन ही नहीं होगा तो फिर यह कथित विकास किसके लिए ?

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Friday, June 18, 2021

आखिर किसान क्यों कहने लगे सोयाबीन को सत्यानासी भस्मासुर ?

 

फोटो इंटरनेट से साभार 

  @ बाबूलाल दाहिया

लोक का अपना अलग ही रंग ढंग होता है। कोई भी विदेशी  वस्तु आये तो उसका वहां का नाम भले ही कुछ भी रहा हो किन्तु लोक उसके गुण धर्मो के अनुसार ही उसका नामकरण कर लेता  है ?

उदाहरण के लिए  50 के दसक में हमारे देश में आइपोमिया नामक एक पौधा आयातित किया गया। लेकिन लोगों ने अनुभव किया कि यह "जंगल ,पहाड़, नदी ,खेत ,मैदान ,दल-दल जहां भी फेक दिया, हर जगह उग आता है ? इसलिए उसका नाम उसके स्वभाव के अनुरूप बेसरम रख लिया। इसके पहले भी मोटर साइकिल को निरन्तर फट-फट की आवाज निकालने के कारण गाँव के लोगों ने उसका नाम फटफटिया रख दिया था। और मजे की बात तो यह है कि,सयाने लोग आज भी उसे फटफटिया ही कहते हैं।

शुरू-शुरू में जब देश में सोयाबीन आया तो किसानों ने उसे हाथों हाथ लिया एवं ऊँचे खेतों की कौन कहे, उसे उन बड़े-बड़े बांधो तक को फोड़ कर बोने लगे  जो जुलाई से अक्टूबर तक तालाब की तरह भरे रहकर गाँव का जल स्तर बढाने में सहायक थे। इधर उसने खेतो केे रकबे में बिस्तार करते कोदो, ज्वार, अरहर, तिल, मूग, उड़द, मक्का आदि 10 -12 अनाजों की भी बलि ले ली और उससे जो जल स्तर घटा व खेतों ने अपनी उर्वर शक्ति खोई वह अलग।

पर सोयाबीन के साथ अब एक कलंक और जुड़ गया है कि "जहां-जहां किसानों की आत्म हत्यायें हुई, वह अमूमन सोयाबीन और उसके बाद उसी खेत में बोये जाने वाले गेहूं के क्षेत्र में ही हो रही हैं। क्यों कि सोयाबीन पूर्णत: ब्यावसायिक फसल है, जिसका किसान के घर में कोई उपयोग नहीं है। इसकी खेती में हल, बैल, गाय, गोबर, हलवाहा, श्रमिक किसी का कोई स्थान नहीं है। पूरा पूँजी का खेल है।

पहले मंहगे दामों पर बीज फिर रासायनिक उर्वरक फिर जुताई में डीजल या किराए के रूप में नगदी खर्च। फिर कीटनासक, नीदा नाशक आदि जहर में नगद  ही खर्च। पर फसल आ जाने पर कटाई, मिजाई भी पंजाब के हारवेष्टरों को एक मुश्त राशि देकर। अब यदि खुदा न खास्ता किसी  कारण कोई दैवी प्रकोप हो गया और बांक्षित फसल न मिली तो कर्ज में डूबे किसान के सामने उबरने का कोई रास्ता ही नहीं बचता ।

इसलिए यदि किसान इसे भष्मासुर या सत्यानासी कहना शुरू कर दिए हैं तो यह कोई अनुचित नहीं कहा जायेगा ?

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Thursday, June 17, 2021

बृजेन्द्र बुन्देला की पावन स्मृतियों से नम हुई आंखें

  • पूर्व नपाध्यक्ष की पुण्यतिथि पर पन्ना शहरवासियों ने किया याद
  • छत्रसाल पार्क पन्ना में उनके शुभचिंतकों ने दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि

छत्रसाल पार्क पन्ना में स्व. श्री बुन्देला को श्रद्धांजलि देते शहरवासी।  

पन्ना। कहते हैं समाज और जनकल्याण के लिए किये गए कार्य व्यक्ति की स्मृतियों को चिरस्थाई बना देते हैं। ऐसे लोग अल्प समय में ही अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार, मदद करने की भावना तथा समाज हित के कार्यों से ऐसी अमिट छाप छोड़ते हैं कि उनके जाने के बाद भी उनकी पावन स्मृतियाँ लोगों के जेहन में जगह बनाये रखती हैं। जब कभी कोई अवसर आता है तो ये स्मृतियाँ आंसू बनकर आँखों से प्रकट होने लगती हैं। इसका जीवंत उदाहरण बृजेन्द्र सिंह बुन्देला हैं जिन्हे मंदिरों और तालाबों का शहर पन्ना भुला नहीं पा रहा है। कोई भी सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रम तथा समारोह हो लोग उन्हें जरूर याद करते हैं। श्री बुन्देला की तीसरी पुण्यतिथि पर सोसल मीडिया पर 16 जून को जिस तरह से पन्ना शहरवासियों ने उन्हें याद करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है, उससे उनकी लोकप्रियता का सहज ही अंदाजा लगता है। 

उल्लेखनीय है कि पन्ना शहर के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले जनप्रिय युवा नेता बृजेन्द्र सिंह बुंदेला तीन वर्ष पूर्व 16 जून को महाराजा छत्रसाल जयंती समारोह की तैयारियों में उत्साह के साथ लगे हुए थे। अचानक उन्हें कुछ असहज सा महसूस हुआ और वे खुद ही अस्पताल चेकप के लिए गये , लेकिन वहां से फिर सही सलामत वापस नहीं आये। हमेशा खुश और प्रसन्न चित्त रहने वाले बृजेन्द्र बुन्देला तनावपूर्ण माहौल को अपने मजाकिया स्वभाव से खुशनुमा बना देते थे। घर के पास से गुजरने वाले हर शख्स से दुआ सलाम व जै राम जी की करना तथा रोककर चाय पिलाना उनके स्वभाव में था। ऐसे युवा नेतृत्व का असमय विदा हो जाना निश्चित ही बहुत पीड़ादायी होता है। यह पीड़ा उनकी हर पुण्यतिथि पर प्रकट होने लगती है। इस वर्ष भी उनकी याद में शहरवासियों की आंखें नम हो गईं। श्री बुन्देला के निकटतम रहे लोगों ने छत्रसाल पार्क में  पुण्यतिथि पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। 

कोविड-19 की बंदिशों को ध्यान में रखते हुए पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष स्व. बृजेन्द्र सिंह बुंदेला को लोगों ने अपने घरों में याद किया और उन्हें श्रद्धांजति दी। नगर में विकास पुरूष के नाम से विख्यात नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष स्व. बृजेन्द्र सिंह बुन्देला की तीसरी पुण्यतिथि आज मनाई गई। कोरोना संकट के चलते कोई बृहद कार्यक्रम तो नहीं हुआ। लेकिन नगर के लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से श्रद्धांजलि दी। सुबह से ही लोगों का श्रद्वाजंलि देने का सिलसिला जारी रहा। सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि आपका जीवन भले ही छोटा था, लेकिन अल्प समय में ही सबके दिलों में बस गये, तुम्हारी मौजूदगी का एहसास पन्ना शहर के चप्पे-चप्पे पर होता है, चाहकर भी हम तुम्हे कभी भुला नही पायेेगें, तुम्हारी प्यारी स्मृतियां सदैव जीवित रहेंगी। छत्रसाल पार्क में एक श्रद्वाजंलि सभा का आयोजन भी किया गया। जिसमें शामिल सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए लोगों ने उन्हे भावपूर्ण श्रद्वांजलि अर्पित की। स्व. बृजेन्द्र सिंह बुन्देला का निधन 16 जून 2018 को हदय घात होने से हो गया था। अचानक हुए निधन से लोगों को गहरा आघात पहुंचा था। जिस कारण लोग उनके जन्म दिवस व पुण्य तिथि पर अपने तरीके से याद कर उन्हे श्रद्वासुमन अर्पित करते हैं।

 उन्होने नगर पालिका के अध्यक्ष पद पर रहते हुए विकास के अनेकों कार्य करवाये थे। शहर के 11 तालाबों का जीर्णोधार हो या शहर में सीसी सडक बनाने तथा विकास और जनकल्याण से जुड़े कार्य वे हमेशा सक्रिय रहते थे। उनके द्वारा कराये गए कार्यों के लिए उन्हें याद किया जाता है। छत्रसाल पार्क में श्रद्धांजलि देने वालों में मुख्य रूप से उनके भाई अजेन्द्र बुन्देला व बेटे वंश बुन्देला सहित राम अवतार बबलू पाठक, अंकित शर्मा, गोपाल लालवानी, अशोक गुप्ता, रेहान मोहम्मद, अजय सिंह परिहार, ऋषि राजा सिंहपुर, स्वतंत्र प्रभाकर अवस्थी, तरूण पाठक, नीलमराज शर्मा नीलू, लखन राजा, भारतेंद्र बुंदेला, धर्मपाल सिंह, दीपेंद्र बुंदेला, कृष्ण पाल सिंह परमार, वीनू, आनन्द मिश्रा, दिलीप शिवहरे, रूबल बुंदेला, मोंटी राजा, टिंकल राजा, प्रदीप श्रीवास्तव, मनु बम्होरी सहित शहरवासी मौजूद रहे। 

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Wednesday, June 16, 2021

जंगल में स्वस्थ, सक्रिय और सहज हैं चारों अनाथ शावक

  •  मां की मौत के बाद पिता के संरक्षण में सीखा अपनी सुरक्षा करना
  •  वे अपनी एक वर्ग किलोमीटर की टेरिटरी से नहीं निकलते बाहर 

अपने रहवास स्थल में रात्रि के समय चारो शावक मस्ती करते हुए। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में चार नन्हे शावकों की मां बाघिन पी-213(32) की ठीक एक महीने पूर्व अज्ञात कारणों के चलते मौत हो गई थी। बाघिन की मौत के बाद अनाथ हुए उसके शावकों की खुले जंगल में सुरक्षा तथा उनका पालन पोषण कैसे होगा, इस बात को लेकर पार्क प्रबंधन व वन्यजीव प्रेमी चिंतित थे। लेकिन शावकों के रहवास स्थल के आसपास कुछ ऐसा अप्रत्याशित देखने को मिला, जो किसी अजूबे से कम नहीं था। दरअसल शावकों का पिता बाघ पी-243 अनाथ शावकों के न सिर्फ आसपास दिखने लगा अपितु उनको अपना किल (शिकार) भी खाने के लिए देने लगा।

 बाघिन की मौत के एक माह बाद इन अनाथ बाघ शावकों का खुले जंगल में चुनौतियों और असुरक्षा के बीच जीवन कैसा चल रहा है ? इस संबंध में पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने न्यूज़ बुलेटिन जारी कर अब तक की प्रगति का विवरण साझा किया है। श्री शर्मा बताते हैं कि चारों शावक जंगल में स्वस्थ, सक्रिय और सहज प्राकृतिक जीवन जी रहे हैं। शावकों को देखकर प्रतीत होता है कि वे पूर्णरूपेण तनावमुक्त हैं तथा उनमें बालपन की चंचलता भी दिखाई दे रही है। अपनी तकरीबन एक वर्ग किलोमीटर की टेरिटरी में चारों अनाथ शावक एक साथ रहते और घूमते टहलते हैं। यह टेरिटरी उनकी सीमा है, इसके बाहर वे नहीं निकलते।

 क्षेत्र संचालक श्री शर्मा बताते हैं कि शावकों की उम्र 8-9 माह की है, इन्हें अभी तक किसी जीवित प्राणी का शिकार करते हुए नहीं देखा गया। शावकों को भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी का निर्वहन उनका पिता नर बाघ पी-243 कर रहा है। जंगल के नियमों का पालन करते हुए अपनी सुरक्षा करना शावक सीख गए हैं। यही वजह है कि उनकी निर्धारित टेरिटरी के बाहर यदि कोई किल है, तो वह वहां नहीं जाते। शावकों के इलाके में जब बाघ पी-243 द्वारा किल किया जाता है या फिर पार्क प्रबंधन कुछ उपलब्ध कराता है, तभी सब मिलकर खाते हैं। अमूमन शावक शाम के समय खाना शुरू करते हैं और सुबह होने तक आराम से खाते रहते हैं। बीते एक माह में इन चारो शावकों का आकार तथा वजन भी बढ़ा है।

बाघ पी-243 शावकों पर रखता है नजर 


शावकों का पिता नर बाघ पी-243  

नर बाघ पी-243 का व्यवहार शावकों के प्रति अच्छा है, वह अपने इलाके में घूमते हुए इन शावकों पर भी कड़ी नजर रखता है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा बताते हैं कि बाघिन की मौत के एक माह गुजर जाने पर भी नर बाघ ने अभी तक जोड़ा नहीं बनाया। बाघ का इलाका काफी बड़ा और फैला हुआ है, जिसकी वह सतत निगरानी करता है। लेकिन दो दिन से ज्यादा वह शावकों के रहवास स्थल से दूर नहीं रहता। नर बाघ की गतिविधि पर नजर रखने के बाद ऐसा लगता है कि वह शावकों की देखभाल करने में पूरी रुचि ले रहा है। बाघ यदि शावकों के रहवास वाले इलाके से बाहर कहीं किल करता है, तो वहां शावकों को नहीं ले जाता। पूर्व की एक घटना का जिक्र करते हुए श्री शर्मा ने बताया कि 21 मई को बाघ पी-243 ने शावकों के क्षेत्र में सांभर का शिकार किया था, जिसे उसने शावकों को खाने दिया।

 शावकों को अभी सीखना है शिकार करने का कौशल 


नर बाघ पी-243 द्वारा किये गए शिकार का भक्षण करते शावक। 

क्षेत्र संचालक बताते हैं कि बाघों में शिकार करने की स्वाभाविक व सहज प्रवृत्ति होती है। लेकिन उन्हें खुले जंगल में शिकार करने का यह कौशल सीखना होता है। आमतौर पर बाघिन अपने शावकों को शिकार करना तथा अपनी रक्षा करना सिखाती है। शावक 8 से 10 महीने की उम्र के बीच अपनी मां और भाई बहनों के साथ शिकार करना शुरू कर देते हैं। चूंकि शावक 8 माह से अधिक उम्र के हो चुके हैं, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने शिकार (किल) को खाने की कला सीख ली है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपनी मां के बिना जंगल में वन्य प्राणियों का शिकार करने की कला कैसे सीखते हैं ? नर बाघ पी-243 (पिता) इन शावकों को मां की तरह शिकार करने का प्रशिक्षण प्रदान करने में किस तरह की भूमिका निभाता है, यह आने वाला वक्त बताएगा। 

आगामी तीन माह शावकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण 

शावकों के लिए आने वाले 3 माह बेहद महत्वपूर्ण होंगे। इसी दौरान इन शावकों को खुले जंगल में जीवित रहने के लिए शिकार करने में दक्षता हासिल करनी होगी। क्षेत्र संचालक बताते हैं कि कैमरा ट्रैप में कैद हुई तस्वीरों से पता चला है कि शावकों के इलाके से एक वयस्क तेंदुआ व एक भालू गुजरा है। लेकिन शावकों को इससे कोई नुकसान व खतरा उत्पन्न नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि उन्होंने खुद को बचाने की कला सीख ली है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि मौजूदा समय एक शावक का वजन लगभग 50 किलोग्राम है, जो एक वर्ष की आयु पूरा करने तक बढ़कर 80-90 किलोग्राम हो जाना चाहिए। आगामी तीन-चार महीनों में 30-40 किलो वजन बढ़ाने के लिए हर चौथे दिन किल (शिकार) की आवश्यकता होगी।

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Tuesday, June 15, 2021

गिनीज बुक में अभी तक क्यों दर्ज नहीं हो सकी वत्सला ?

  •  मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की हथनी है वत्सला, जिसकी उम्र 100 वर्ष से अधिक है 
  •  पन्ना टाइगर रिजर्व की शान व धरोहर बन चुकी वत्सला को हक दिलाने हो सार्थक पहल व प्रयास
  •  दुनिया की इस सबसे बुजुर्ग हथनी वत्सला की जिंदगी का कैसा रहा सफर, यह जानने के लिए पढ़ें 

वर्ष 2007 में गणतंत्र दिवस समारोह में वत्सला कुछ इस तरह हुई थी शामिल,जिसे झांकी में प्रथम पुरस्कार मिला था। ( सभी फोटो अरुण सिंह ) 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। दुनिया का सबसे अधिक उम्र का लिन वांग नाम का हाथी ताइवान के चिडय़िाघर में था, जिसकी 86 वर्ष की उम्र में मौत हो चुकी है। इस रिकॉर्ड को भारत की हथिनी ने तोड़ दिया है। जी हां, दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी भारत के मध्य प्रदेश में स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व की वत्सला है, जिसकी उम्र 100 वर्ष से अधिक लगभग 105 वर्ष बताई जा रही है। पन्ना टाइगर रिजर्व की यह उम्रदराज हथनी दो बार मौत को चकमा दे चुकी है। 

 पिछले दो दशक से भी अधिक समय से वत्सला की सेहत पर नजर रखने के साथ-साथ उसे हर मुसीबत से बाहर निकालने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि वत्सला केरल के नीलांबुर फॉरेस्ट डिवीजन में पली-बढ़ी है। वत्सला ने अपना प्रारंभिक जीवन नीलांबुर वन मण्डल (केरल) में वनोंपज परिवहन में व्यतीत किया। इस हथिनी को 1971 में केरल से होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) लाया गया। उस समय वत्सला की आयु 50 वर्ष से अधिक थी। हथिनी वत्सला को 1993 में होशंगाबाद के बोरी अभ्यारण्य से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान लाया गया, तभी से यह यहां की शोभा बढ़ा रही है। डॉ. गुप्ता ने बताया कि वत्सला के साथ महावत रमजान खान एवं चारा कटर मनीराम भी होशंगाबाद से आए थे, जो आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व में वत्सला की देखरेख करते हैं।

 

उम्रदराज हथनी वत्सला मौजूदा समय ऐसी है। 

महावत रमजान खान (60 वर्ष) ने बताया कि मैं वत्सला के साथ पन्ना टाइगर रिजर्व में आया था, तब से यहीं हूँ। वत्सला की अधिक उम्र और सेहत को देखते हुए वर्ष 2003 में उसे रिटायर कर कार्य से मुक्त कर दिया गया था। रिटायरमेंट के बाद से वत्सला के ऊपर कभी भी होदा नहीं कसा गया, न ही किसी कार्य में उपयोग किया गया। मौजूदा समय वत्सला की दोनों आंखों में सफेदी आ जाने के कारण कम दिखता है। चारा कटर हथिनी का डंडा बनकर  उसे जंगल घुमाने के लिए ले जाता है।

 चारा कटर मनीराम ने बताया कि वह होशंगाबाद का रहने वाला है, वत्सला के साथ ही यहां आया था। हथिनी का पाचन तंत्र कमजोर हो चुका है, इसलिए उसे घास व गन्ना काट-काट कर खिलाता हूँ। मनीराम ने बताया कि हथिनी का सूंड या कान पकड़कर रोज उसे जंगल में भ्रमण कराता हूं। क्योंकि हथिनी बिना सहारे के ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती। हाथियों के कुनबे में शामिल छोटे बच्चे भी घूमने टहलने में वत्सला की पूरी मदद करते हैं।

नर हाथी ने दो बार किया प्राणघातक हमला


घायल हथिनी वत्सला की शल्य क्रिया करते हुए डॉ. संजीव कुमार गुप्ता। 

 वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एस. के. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के ही नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003 और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। डॉ गुप्ता ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर (42 वर्ष) ने मस्त के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गये। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। डॉ. गुप्ता ने 200 टांके 6 घंटे में लगाए तथा पूरे 9 महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दाँत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ।

 बेहद शांत और संवेदनशील है वत्सला


उपचार के उपरांत घाव के ऊपर पट्टी बंधवाते हुए वत्सला। 

हथिनी वत्सला अत्यधिक शांत और संवेदनशील है। पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों के कुनबे में बच्चों की देखभाल दादी मां की भांति करती है। कुनबे में जब कोई हथिनी बच्चे को जन्म देती है, तो वत्सला जन्म के समय एक कुशल दाई की भूमिका भी निभाती है। डॉ. गुप्ता बताते हैं कि उपलब्ध जानकारी के अनुसार हथिनी वत्सला ने पन्ना एवं होशंगाबाद में किसी भी बच्चे को जन्म नहीं दिया। आपने बताया कि जंगली हाथी की औसत उम्र 60 से 70 साल होती है, 70 वर्ष की उम्र तक हाथी के दांत गिर जाते हैं। डॉ. संजीव कुमार गुप्ता के मुताबिक वत्सला की उम्र 100 वर्ष से अधिक हो चुकी है, जिसका असर शरीर के अंगों पर पडऩे लगा है। उसकी आंखों में मोतियाबिंद हो चुका है, जिससे उसे कम दिखता है। पाचन तंत्र भी कमजोर हो गया है फलस्वरूप उसको सुगमता से पचने वाला विशेष आहार दिया जाता है।

 वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज होने का है इंतजार


पेट में लीद फसने पर वत्सला को एनिमा देते हुए वन कर्मचारी। 

पन्ना टाइगर रिजर्व की शान तथा देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र उम्रदराज हथिनी वत्सला भले ही दुनिया में सबसे अधिक उम्र की है, लेकिन अभी तक उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुआ। इसकी मुख्य वजह पीटीआर कार्यालय में वत्सला का जन्म रिकॉर्ड उपलब्ध न होना है। इस दिशा में वर्ष 2007 में पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक शहवाज अहमद की पहल से वत्सला के जन्म का रिकॉर्ड नीलांबुर फारेस्ट डिवीजन से प्राप्त करने हेतु पत्राचार किया गया था। बाद में अगस्त 2018 में जब शहवाज अहमद प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी के पद पर रहते हुए पन्ना दौरे पर आए, उस समय भी वत्सला का जन्म रिकॉर्ड नीलांबुर से मंगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन श्री अहमद के सेवानिवृत्त होने के बाद यह मामला ठंडा पड़ गया। मध्यप्रदेश को यह गौरवपूर्ण उपलब्धि हासिल हो सके, इस दिशा में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व वन मंत्री को जरूरी कदम उठाना चाहिए। ताकि वत्सला को जीवित रहते दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी होने का सम्मान अधिकृत रूप से मिल सके।

 हथिनी वत्सला को क्रेन की मदद से उठाये जाने का वीडियो -




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Monday, June 14, 2021

गिर गाय ने थारपारकर बछड़े को दिया जन्म

  •  दुग्ध क्रांति के क्षेत्र में यह बड़ी सफलता
  •  कम खर्च में सर्वाधिक दुग्ध देती हैं थारपारकर नस्ल की गाय


भोपाल स्थित देश की दूसरी सबसे बड़ी अत्याधुनिक सेक्स सॉर्टेड सीमन प्रोडक्शन प्रयोगशाला में आज गिर प्रजाति की गाय ने थारपारकर बछड़े को भ्रूण प्रत्योरोपण तकनीक से जन्म दिया। दुग्ध क्रांति के क्षेत्र में यह बड़ी सफलता है। स्वस्थ और उच्च स्तरीय थारपारकर बछड़े के बड़े होने के बाद प्रदेश में इस नस्ल की बछियों का प्रचुर उत्पादन हो सकेगा।

मूलत: राजस्थान की थारपारकर नस्ल की गाय कम खर्च में सर्वाधिक दुग्ध देती हैं। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बहुत अच्छी होती है। यह गाय सूखे और चारे की कमी की स्थिति में भी छोटे जंगली वनस्पति पर निर्वहन कर लेती है किन्तु संतुलित आहार व्यवस्था से इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता अधिक बढ़ जाती है। थारपारकर नस्लीय गौ-वंश की पशुपालन और डेयरी संस्थानों में काफी माँग बनी रहती है। भोपाल प्रयोगशाला का उद्देश्य देश की परंपरागत उस उच्च गौ-वंश नस्लों का संरक्षण करते हुए संवर्धन करना है। प्रयोगशाला में वितरण के लिये 20 हजार से अधिक फ्रोजन सीमन स्ट्रॉ तैयार किये जा चुके हैं।

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने गत 3 अप्रैल 2020 को भोपाल में इस अत्याधुनिक सेक्स सॉर्टेड सीमन प्रोडक्शन प्रयोगशाला का शुभारंभ किया था। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 47 करोड़ 50 लाख रूपये की लागत से स्थापित होने वाली प्रयोगशाला की लागत में 60 प्रतिशत केन्द्रांश और 40 प्रतिशत राज्यांश शामिल है। निकट भविष्य में प्रयोगशाला में गिर, साहीवाल, थारपारकर गाय और मुर्रा भैंस आदि उच्च अनुवांशिक गुणवत्ता की 90 प्रतिशत बछिया ही उत्पन्न की जायेंगी। बछियों की संख्या अधिक होने से दुग्ध उत्पादन में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी होगी और किसानों-पशुपालकों को बेहतर आमदनी होगी।

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Saturday, June 12, 2021

जैविक खाद बनाने का भरोसेमंद एवं सस्ता विकल्प है "प्रोम"


क्या आप जानते हैं फसल के उत्पादन में फॉस्फेट तत्व का प्रमुख योगदान होता है! रासायनिक उर्वरकों के लगातार उपयोग करने से खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है, जमीन सख्त हो रही है, भूमि में पानी सोखने की क्षमता घटती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ भूमि तथा उपभोक्ताओं के स्वास्थ पर प्रतिकूल असर भी पड़ रहा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नया उत्पाद विकसित किया गया है, जिसमें कार्बनिक खाद के साथ-साथ रॉक फॉस्फेट की मौजूदगी भी होती है। जिसे हम प्रोम के नाम से जानते हैं।

"प्रोम" को विस्तार पूर्वक समझते हैं

प्रोम (फॉस्फोरस रिच आर्गेनिक मैन्योर) तकनीक से जैविक खाद घर पर भी तैयार की जा सकती है। प्रोम, जैविक खाद बनाने की एक नई तकनीक है। जैविक खाद बनाने के लिए गोबर तथा रॉक फॉस्फेट को प्रयोग में लाया जाता है। रॉक फॉस्फेट की मदद से रासायनिक क्रिया करके सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP)  तथा डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) रासायनिक उर्वरक तैयार किए जाते हैं।

प्रोम में विभिन्न फॉस्फोरस युक्त कार्बनिक पदार्थों जैसे- गोबर खाद, फसल अपशिष्ट, चीनी मिल का प्रेस मड, जूस उद्योग का अपशिष्ट पदार्थ, विभिन्न प्रकार की खली और ऊन के कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ आदि को रॉक फॉस्फेट के साथ कम्पोस्टिंग करके बनाया जाता है। प्रोम मिनरल उर्वरक एवं जैविक खाद का मिश्रण है जो केवल कृषि में उपयोग के लिये काम में लाया जाता है। प्रोम का उपयोग पौधों को फॉस्फोरस (फॉस्फोरस पादप पोषक तत्व) उर्वरक प्रदान करने के लिए किया जाता है। जीवाणु रॉक फोसफोरस को पचा कर उसे गोबर में उपलब्ध करते हेै इस कारण प्रोम शुद्ध रुप से जैविक है।

प्रोम से क्या-क्या फायदे हैं :

  • जैविक खाद से अनाज, दालें, सब्जी व फलों की गुणवत्ता बढ़ाने से अच्छा स्वाद मिलता है।
  • रोगों में रोधकता आने से मानव के स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव नहीं पड़ते हैं।
  • प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल है।
  • प्रत्येक किसान, जिसके यहां गोबर उपलब्ध है, आसानी से अपने घर पर जैविक खाद बनाकर तैयार कर सकता है।
  • किसान  DAP व SSP खरीदने पर जितने पैसा खर्च करता है उससे कम पैसे में प्रोम तकनीक से जैविक खाद बनाकर भरपूर फसल पैदा कर सकता है।
  • प्रोम मिट्टी को नरम बनाने के साथ-साथ पोषक तत्वों की उपलब्धता लंबे समय तक बनाये रखता है।
  • प्रोम लवणीय व क्षारिय भूमि में भी प्रभावी रूप में काम करता है जबकि DAP ऐसी भूमि मे काम नहीं करता है।

जैविक खाद को घर पर बनाने की प्रक्रिया :



"फॉस्फोरस रिच जैविक खाद" घर पर भी रॉक फॉस्फेट के द्वारा बनाई जा सकती है। रॉक फॉस्फेट के अलग-अलग रंग होते हैं, रॉक फॉस्फेट एक तरह का पत्थर है जिसके अंदर 22 फीसदी फॉस्फोरस मौजूद है जो कि फिक्स फोम में होता है। प्रोम बनाने के लिए कमर्शियल में 10 फीसदी के आसपास फॉस्फोरस मेंटेन किया जाता है लेकिन हम घर पर बनाने के लिए 18%,19% या 20 फीसदी तक फॉस्फोरस इस्तेमाल में ले सकते हैं। इसे बनाने के लिए किसी भी जानवर का गोबर ले सकते हैं, घर में मौजूद कूड़ा-कर्कट या फिर फसलों के अवशेष जिससे खाद बनाते हैं (प्लांट बेस्ड) वो भी ले सकते हैं।

प्रोम बनाने के लिए सबसे पहले गाय या भैंस का 500 किलो गोबर लीजिए, इसके ऊपर से सूखी पत्तियां डाल दीजिए, बाद में ऊपर से 500 किलो रॉक फॉस्फेट का (पाउडर फोम में) छिड़काव करें, फिर वेस्ट डी कंपोजर का छिड़काव करें और इसे कम से कम 30 से 35 दिनों तक ढ़ककर रखें, जिसके बाद जैविक खाद तैयार हो जाएगी।

प्रोम को  DAP और SSP के पूरक के तौर पर किसान अपनी फसल के लिए खेत में प्रयोग कर सकते हैं और प्रोम खेत की उर्वरा शक्ति को बनाये रखते हैं। जिससे वह आने वाली नई पीढ़ी के किसानों को स्वस्थ भूमि प्रदान कर सकें।

वेस्ट डी कंपोजर क्या है ?



वेस्ट डी-कंपोजर जैविक खेती कर रहे किसानों के लिए जैविक खाद का बेहतर विकल्प है। कम खर्च में किसान इसकी मदद से स्वयं खाद बना सकते हैं। इसके उपयोग के बाद किसान को फसल में रासायनिक कीटनाशक और उर्वरक देने की जरूरत नहीं रहती है। खास बात है कि यह जड़ और तना संबंधी बीमारियों के नियंत्रण में उपयोगी पाया गया है।

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Thursday, June 10, 2021

जल संसाधन विभाग में कोविड से हुई 86 कर्मचारियों की मृत्यु

  • मंत्री श्री सिलावट ने कहा 8 दिन में अनुकंपा नियुक्ति-पत्र देगा विभाग 
  • पीड़ित के घर पहुंचकर नियुक्ति-पत्र दिया व आज ही कराई ज्वाइनिंग  


प्रदेश में कोरोना संक्रमण के चलते जल संसाधन विभाग के 86 अधिकारियों और कर्मचारियों की मृत्यु हुई है। पीड़ित परिवारों को त्वरित राहत प्रदान करने के लिए विभाग ने संवेदनशीलता दिखाई है। मंत्री तुलसी राम सिलावट ने विभाग के कर्मचारी की कोविड से मृत्यु होने पर कोलार कॉलोनी, भोपाल स्थित उनके घर पहुँचकर सांत्वना दी और उनके परिवार के लड़के को नियुक्ति- पत्र प्रदान किया। जल संसाधन विभाग में चौकीदार पद पर पदस्थ स्वर्गीय उत्तम मेश्राम की कोविड से मृत्यु हो गई थी। आज मंत्री श्री सिलावट उनके निवास पर पहुँचे और लड़के मनीष को नियुक्ति-पत्र दिया और अधिकारियो के साथ भेजकर आज ही ज्वाइनिंग भीं करवाई। 

मंत्री श्री सिलावट इसके बाद दूसरे कर्मचारी स्वर्गीय आशोक कुमार खरे के निवास पर पहुँचकर परिवार से मिले और उनकी पत्नी श्रीमती प्रतिभा खरे को शासकीय सेवा के लाभ अवकाश नगदीकरण, ग्रुप इंश्योरेंस, और प्रोविडेंट फंड की राशि लगभग 3 लाख 25 हजार रुपए का स्वीकृति-पत्र प्रदान किया। साथ ही परिवार को शेष सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एक अधिकारी को अधिकृत किया और परिवार से संबंधित अधिकारी के फोन नंबर भी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए है।

मंत्री श्री सिलावाट ने विभाग के अधिकारियो को कोविड के कारण मृत कर्मचारियों के परिवारों को  नियुक्ति-पत्र और शासकीय सेवा के अन्य लाभ पेंशन , ग्रेच्युटी, प्रोविडेंट फंड आदि के स्वीकृति-पत्र 8 दिन में दिए जाने के निर्देश दिए है। जलसंसाधन विभाग के 86 अधिकारी और कर्मचारियों की मृत्यु कोविड के कारण हुई थी। ऐसे परिवारों के लिए संभागवार अधिकारी को उनकी समस्याओं को हल करने के लिए भी अधिकृत किया गया है। साथ ही उन परिवार के सदस्यों को भी उनसे लगातार संपर्क रखने के लिये कहा।  

मंत्री श्री सिलावट ने ईएनसी ऑफिस पहुँचकर जल संसाधन विभाग के वरिष्ठ संभागीय अधिकारियों को फोन लगाकर सभी अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों को तुरंत निराकृत करने और नियुक्ति-पत्र देने के निर्देश दिए है और कहा कि विभाग के वरिष्ठ अधिकारी संबंधित के घर जाकर नियुक्ति-पत्र प्रदान करें। मंत्री श्री सिलावट ने विभाग के अधिकारियो को निर्देश दिए की 8 दिन में ऐसे सभी अधिकारी और कर्मचारियों जिनकी मृत्यु कोविड के कारण हुई है। उनके परिवार के योग्य और पात्र सदस्य को अनुकंपा नियुक्ति दी जाए, पेंशन प्रकरण और ग्रेच्युटी की राशि भी 8 दिन में उपलब्ध करा दी जाए। अनुकम्पा नियुक्ति के सभी प्रकरणों में ज्वाइनिंग की सूचना तुरंत ईएनसी ऑफिस को प्रदान करें।

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टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में तैयार हुए आधुनिक रेस्क्यू वाहन

  •  अब बेहतर ढंग से हो सकेगा घायल वन्य प्राणियों का उपचार व परिवहन
  •  नौरादेही वन्य जीव अभ्यारण्य से पन्ना आया यह आधुनिक रेस्क्यू वाहन

आधुनिक सुविधाओं से लैस नये मॉडल वाला रेस्क्यू वाहन। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में आधुनिक सुविधाओं से लैस रेस्क्यू वाहन का नया मॉडल तैयार किया गया है। जिससे खुले जंगल में विचरण करने वाले वन्य प्राणियों के घायल व बीमार होने पर उन्हें त्वरित रूप से बेहतर उपचार सुविधा मिल सकेगी। इस नये रेस्क्यू वाहन में वन्य प्राणियों के शरीर को ठंडा रखने के भी पूरे इंतजाम हैं, फलस्वरूप गर्मी के मौसम में दिन के समय भी वन्य प्राणियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुविधा पूर्वक ले जाया जा सकेगा। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में अभी हाल ही में नौरादेही वन्य जीव अभ्यारण्य से नए मॉडल का यह रेस्क्यू वाहन मंगाया गया है।

 क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि पूर्व के रेस्क्यू वाहन में सुधार करके आधुनिक सुविधाओं से लैस यह नया मॉडल तैयार किया गया है। नये मॉडल वाले इस रेस्क्यू वाहन की उपलब्धता से अब गर्मियों में भी एनिमल को किसी भी समय आराम से ट्रांसपोर्ट किया जा सकेगा। अभी तक ऐसा करने के लिए ठंडे मौसम का इंतजार करना पड़ता था। श्री शर्मा ने बताया कि वन्य प्राणियों को सही समय पर सुरक्षित उनके रहवास स्थल तक पहुंचाया जा सके, इस बात को ध्यान में रखते हुए रेस्क्यू वाहन को डिजाइन कराया गया है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि नये मॉडल वाला यह रेस्क्यू वाहन पन्ना टाइगर रिजर्व को भी मिले, इसके लिए ऊपर पत्र व्यवहार किया गया है। आपने बताया कि उम्मीद है पन्ना की जरूरतों को देखते हुए यह रेस्क्यू वाहन हमें शीघ्र आवंटित हो जायेगा।


 वन प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि वर्ष 2008 में पन्ना टाइगर रिजर्व को जो वाहन मिला था, उसमें ऐसी सुविधाएं नहीं हैं। नये मॉडल वाले रेस्क्यू वाहन की विशेषताओं का जिक्र करते हुए डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि वन्य प्राणी के शरीर को ठंडा रखने के लिए इसमें पानी के फव्वारे लगे हैं। इसके अलावा वाहन में पंखे भी लगे हुए हैं, जिससे कि वन्य प्राणी को असुविधा और परेशानी न हो, उसे आराम मिले। रेस्क्यू वाहन में मौजूद वन्य प्राणी की हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं। आगे सीट पर बैठे रेस्क्यू दल के लोग वन्य प्राणी को बिना डिस्टर्ब किए स्क्रीन पर उसकी हर गतिविधि को देख सकेंगे। इस तरह के अभी पांच वाहन तैयार हुए हैं, जो देश में सिर्फ मध्य प्रदेश के पास हैं।

पन्ना रेस्क्यू टीम के कार्य क्षेत्र में चार जिले शामिल

बुंदेलखंड क्षेत्र के चार जिलों पन्ना, छतरपुर, दमोह व टीकमगढ़ यहां की रेस्क्यू टीम के कार्य क्षेत्र में आते हैं। इस पूरे इलाके में वन्य प्राणियों से संबंधित कोई भी घटना होती है तो पन्ना की रेस्क्यू टीम पहुंचती है। इस टीम में 11 सदस्य होते हैं, जिसमें उपसंचालक, सहायक संचालक, परीक्षेत्र अधिकारी, फॉरेस्ट गार्ड, वन्य प्राणी चिकित्सक सहित अन्य वन कर्मचारी होते हैं जो रेस्क्यू कार्य में दक्ष होते हैं। इस 11 सदस्यीय रेस्क्यू टीम का चयन क्षेत्र संचालक करते हैं, जो हर साल अपडेट होती है। रेस्क्यू टीम में शामिल सभी कर्मचारियों का 7 लाख रुपए का बीमा भी होता है। पन्ना रेस्क्यू टीम के विस्तृत कार्य क्षेत्र को द्रष्टिगत रखते हुए आधुनिक सुविधाओं से लैस रेस्क्यू वाहन की स्थाई रूप से उपलब्धता बेहद जरुरी है। ताकि इस पूरे वन क्षेत्र के वन्य प्राणियों के उपचार व संरक्षण में इसका उपयोग हो सके।

 पन्ना में हुआ फ्री रेजिंग बाघों का सर्वाधिक ट्रेंकुलाइजेशन


बाघ को बेहोश कर उसे रेडियो कॉलर करती पन्ना टाइगर रिज़र्व की रेस्क्यू टीम। 

मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बीते 10 वर्षों के दौरान फ्री रेजिंग बाघों का सर्वाधिक ट्रेंकुलाइजेशन हुआ है। दुनिया में अन्यत्र कहीं भी ऐसा नहीं हुआ। पन्ना टाइगर रिजर्व में बने इस रिकॉर्ड को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी भेजा गया है। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि विभिन्न कारणों से उनके द्वारा 70 बार बाघों को ट्रेंकुलाइज किया जा चुका है।

 मालुम हो कि दुनिया में सबसे ज्यादा बाघ भारत में और भारत में सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं। इस लिहाज से प्रदेश में बाघों के संरक्षण हेतु जो भी अनोखे और अभिनव प्रयोग होते हैं, उस पर न सिर्फ पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट होता है बल्कि नए रिकॉर्ड भी मध्यप्रदेश में ही बनते हैं। बाघों को बेहोश कर उन्हें रेडियो कॉलर पहनाने के मामले में भी पन्ना टाइगर रिजर्व अग्रणी है। यहां अनाथ व अर्ध जंगली दो बाघिनों को जंगली बनाने का भी सफल प्रयोग हो चुका है। अभी हाल ही में नर बाघ पी-243 द्वारा चार अनाथ बाघ शावकों की परवरिश किए जाने का मामला भी पन्ना टाइगर रिजर्व का है, जिसने देश भर के वन्यजीव प्रेमियों का ध्यान आकृष्ट किया है।

वीडियो - रेस्क्यू वाहन में उपलब्ध सुबिधाओं का द्रश्य -




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Monday, June 7, 2021

चार पहियों की रफ्तार ने आशा गोंड़ को बना दिया स्टार

  •  स्केटिंग ने आदिवासी बहुल जनवार गांव की बदल दी तस्वीर 
  •  अब इस छोटे से गांव के बच्चे देश और दुनिया में मचा रहे हैं धूम

स्केटिंग में दक्ष अपने दो साथियों के साथ स्केट गर्ल प्रैक्टिस करते हुए। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। पांच वर्ष पूर्व तक मध्य प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े इलाकों में शुमार पन्ना जिले का आदिवासी बहुल गांव जनवार अब चर्चा में है। स्केटबोर्डिंग गांव के नाम से मशहूर हो चुके जनवार की आदिवासी बालिका आशा गोंड़ को चार पहियों की रफ्तार ने स्टार बना दिया है। स्केटिंग में माहिर अब इस छोटे से गांव के बच्चे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर धूम मचा रहे हैं।

 बुंदेलखंड अंचल के पन्ना जिले का यह आदिवासी बहुल गांव जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुछ वर्ष पूर्व तक इस गांव में सड़क व बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं थी। गांव की आदिवासी महिलाएं जंगल से लकड़ी का गट्ठा सिर में रखकर पन्ना बेचने के लिए आती थीं। इसी से उनके परिवार का गुजारा चलता था। लेकिन स्केटिंग ने बीते 5 सालों में ही इस गांव की तस्वीर को बदल दिया है। जनवार गांव में आए इस बदलाव का श्रेय किसी राजनीतिक दल, प्रशासनिक अधिकारी या सरकार को नहीं अपितु एक विदेशी महिला को जाता है। जिन्होंने खेल के जरिए गांव के बच्चों को न सिर्फ शिक्षित होने के लिए प्रेरित किया, अपितु ग्रामीणों को भी उनकी संकीर्ण सोच से बाहर निकाला।

स्केट बोर्डिंग गांव जनवार पहुंचने  के लिए पक्का सड़क मार्ग। 

स्केट गर्ल आशा गोंड़ ने चर्चा करते हुए बताया कि जर्मन महिला उलरिके रेनहार्ट 5 वर्ष पूर्व घूमने के लिए पन्ना आई थीं। उन्होंने जनवार गांव की गरीबी और पिछड़ेपन को जब देखा तो उनका मन विचलित हो गया। इस विदेशी महिला ने गांव के बच्चों की ऊर्जा व उनकी छिपी प्रतिभा को भी पहचाना। यहीं से शुरू होती है जनवार गांव के बदलाव की कहानी, जो अब उपलब्धियों की नई इबारत लिख रही है। पांच साल पूर्व तक जनवार गांव के जिन घरों में फावड़ा, गैंती और तसला रखे नजर आते थे, वहां अब स्केटबोर्ड नजर आते हैं। गांव के शत-प्रतिशत बच्चे अब पढ़ते हैं, क्योंकि उलरिके रेनहार्ट ने नियम बनाया था कि स्कूल नहीं तो स्केट बोर्ड भी नहीं मिलेगा। इस तरह से खेलने के लिए बच्चों में पढऩे की रुचि पैदा हुई।

स्केट गर्ल आशा बोलती है फर्राटेदार अंग्रेजी 

जनवार गांव की स्केट गर्ल आशा गोंड़ पहली लड़की है जो गांव की तंग गलियों से निकलकर देश की सरहदों को पार करते हुए विदेश यात्रा की है। पूरे आत्मविश्वास के साथ फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली गरीब परिवार की इस आदिवासी लड़की ने वर्ष 2018 में चीन के नानजिंग शहर में आयोजित एशियाई देशों की स्केटिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। इसी तरह विशाखापट्टनम में वर्ष 2019 में आयोजित राष्ट्रीय रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप में जनवार के एक दर्जन बच्चों ने हिस्सा लिया और दो गोल्ड मेडल सहित पांच मेडल जीते। यहां के बच्चे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में 30 से अधिक मेडल जीत चुके हैं। 

कोरोना काल में गांव के बच्चों को कर रहीं शिक्षित


गांव के बच्चों को कंप्यूटर से पढ़ाते हुए आशा गोंड़। 

 विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को जब हम जनवार गांव पहुंचे तो सुबह लगभग 11 बजे आशा गोंड़ कंप्यूटर के माध्यम से बच्चों को पढ़ा रही थीं। पढ़ाई में व्यवधान न पड़े, इसलिए हम आशा के घर उनके अभिभावकों से मिलने चले गए। आदिवासी बस्ती की गली में स्थित घर के सामने ही आशा की मां कमला गोंड़ मिल गईं। चर्चा छेड़ने पर उन्होंने एक सांस में ही अपनी बेटी की खूबियों और उपलब्धियों को गिना डाला। आशा की मां ने बताया कि शुरू में हमें बहुत डर लगता था। गांव व समाज के लोग भी बोलते थे कि लड़की घर का काम करने के बजाय यहां वहां जाती है और फालतू काम करती है। लेकिन अब हर कोई उसकी तारीफ कर रहा है। कमला गोंड़ ने बताया कि पहले वह लकड़ी बेचने जाया करती थी, लेकिन अब बंद कर दिया है।

स्केटिंग न करती तो मेरी भी हो जाती शादी


स्केट गर्ल आशा गोंड़ चर्चा करते हुए। 

जनवार गांव के बच्चों की रोल मॉडल बन चुकी आशा गोंड़ ने बताया कि वे दो बहने व एक भाई हैं। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। यदि मेरी भेंट मैडम से न होती और मैं स्केटिंग न करती तो गांव की अन्य लड़कियों की तरह मेरी भी शादी हो चुकी होती। लेकिन स्केटिंग ने मेरी जिंदगी और सोच को पूरी तरह बदल दिया है। बदलाव की इस हवा का असर अब गांव के ज्यादातर बच्चों में भी दिखने लगा है। आशा बताती है कि लगभग 14 सौ की आबादी वाले जनवार गांव में पहले छुआछूत तथा ऊंच-नीच की भावना बहुत ज्यादा थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है, गांव के बच्चे एक साथ न सिर्फ स्केटिंग करते हैं बल्कि अपना सामान भी एक दूसरे से शेयर करने लगे हैं। कभी सबसे पिछड़े गांव के रूप में चिन्हित जनवार अब विकास की राह पर दौडऩे लगा है। गांव तक पक्की सड़क बन गई है तथा बिजली की भी सुविधा है। जंगल की लकड़ी बेचकर गुजारा करने वाले आदिवासी अब जैविक खेती कर जायकेदार सब्जियां उगा रहे हैं।

प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह पहुंचे जनवार 

मध्यप्रदेश शासन के खनिज मंत्री एवं स्थानीय विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह सोमवार को जनवार गांव पहुंचे। स्केटबोर्डिंग गांव के नाम से मशहूर हो चुके जनवार के बच्चे चार पहियों की रफ़्तार से देश और दुनिया में धूम मचा रहे हैं। खेल प्रेमी मंत्री जो खुद एक अच्छे स्पोर्ट्स मैन हैं, उन्हें जब इस छोटे से गांव की खूबी और बच्चों की खेल प्रतिभा के बारे में पता चला तो वे तुरंत यहाँ पहुँच गये। मंत्री जी स्केटिंग में दक्ष जनवार के बच्चों से मुलाकात की और उनका हौसला भी बढ़ाया।  


इस सम्बन्ध में मंत्री जी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि "पन्ना के ग्राम जनवार के आदिवासी बच्चों द्वारा स्केटिंग प्रतिस्पर्धा में न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया है। बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्केटिंग प्रतिस्पर्धा में भी देश का प्रतिनिधित्व किया है।" आज ग्राम जनवार पहुंचकर उन सभी बच्चों से मिला एवं उनका उत्साहवर्धन किया साथ ही शासन की तरफ से उनके खेल को बढ़ावा देने हेतु हर प्रकार की मदद का आश्वासन दिया। मंत्री जी को अपने बीच पाकर गांव के बच्चों की ख़ुशी देखते ही बन रही थी। ग्रामवासियों ने भी प्रशन्नता जाहिर करते हुए उम्मीद की है कि जनवार गांव में जैविक खेती करने वाले किसानों को भी शासन स्तर पर हरसंभव मदद मिलेगी, ताकि यह गांव स्केटिंग के साथ - साथ जैविक खेती के लिए भी जाना जाय।  

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Friday, June 4, 2021

उजड़ा हुआ जंगल ढ़ाई साल में बन गया बाघों का पसंदीदा रहवास

  • विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष : पन्ना टाइगर रिज़र्व के अकोला बफर में आये चमत्कारिक बदलाव की कहानी 
  • मध्यप्रदेश में पन्ना टाइगर रिज़र्व के अकोला बफर का जंगल न सिर्फ हरा-भरा हुआ है अपितु बाघ व वन्य प्राणियों से भी आबाद हो गया है


पन्ना टाइगर रिज़र्व के बफर क्षेत्र का अकोला पर्यटन गेट। 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मौजूदा वैश्विक महामारी कोरोना ने समूची दुनिया का ध्यान प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की ओर आकृष्ट किया है। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना आज की महती आवश्यकता बन गई है। ऐसे मौके पर मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का अकोला बफर क्षेत्र का उजड़ा हुआ जंगल एक मिसाल बन चुका है। जो महज ढ़ाई साल में समुचित देखरेख और संरक्षण से न सिर्फ हरा-भरा हुआ है अपितु यह जंगल अब बाघों और वन्य प्राणियों का पसंदीदा रहवास बन गया है। 

उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 16 किमी दूर आबादी क्षेत्र से लगे अकोला बफर का उजड़ा जंगल बाघों का घर बनेगा, ढाई वर्ष पूर्व  इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन अवैध कटाई व मवेशियों की अनियंत्रित चराई में अंकुश लगाये जाने पर अकोला बफर क्षेत्र के जंगल में जिस तरह का बदलाव आया है उसे देख लोग चमत्कृत हैं। पिछले ढ़ाई साल पूर्व तक यहां सब कुछ अव्यवस्थित और उजड़ा हुआ था। बड़े पैमाने पर अवैध कटाई होने तथा हजारों की संख्या में मवेशियों की हर समय धमाचौकड़ी मची रहने के चलते यह पूरा वन क्षेत्र उजड़ चुका था, दूर-दूर तक हरियाली के दर्शन नहीं होते थे। जहां-तहां बांस के लगे भिर्रे व बड़े वृक्ष ही यह इंगित करने का प्रयास करते थे कि यह वन क्षेत्र है।

 इस बिगड़े हुये और उजड़ चुके वन को फिर से हरा-भरा बनाने तथा वन्य प्राणियों के अनुकूल वातावरण निर्मित करने के लिये एक अभिनव पहल के तहत पन्ना टाईगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया द्वारा 30 जनवरी 19 को पन्ना बफर क्षेत्र के अकोला गेट से पर्यटन गतिविधियां शुरू की गईं। नतीजतन अवैध कटाई पर जहां रोक लगी है, वहीं शिकार की घटनाओं पर भी अंकुश लगा है। बीते ढाई साल में इस जंगल का कायाकल्प होने के साथ ही यहां पर बाघ और तेंदुआ सहित दूसरे वन्य प्राणी भी बहुतायत से नजर आने लगे हैं।

अकोला बफर क्षेत्र की विगत एक माह पूर्व तक कमान सभालने वाले वन परिक्षेत्राधिकारी लालबाबू तिवारी बताते हैं कि पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण बफर क्षेत्र के इस जंगल में अब अक्सर ही वनराज के दर्शन होने लगे हैं। वन भूमि के झाडिय़ों से आच्छादित हो जाने के चलते बाघ सहित वन्य प्राणियों को छिपने में कोई असुविधा नहीं होती। श्री तिवारी ने बताया कि दो नर बाघों के अलावा एक बाघिन भी शावकों के साथ अब यहां नजर आती  है। यहां स्थित करधई का जंगल शाकाहारी वन्य प्राणियों विशेषकर चीतल और सांभर के लिये किसी जन्नत से कम नहीं है। इस पेड़ की पत्तियों को ये शाकाहारी वन्य प्राणी बड़े रूचि से खाते हैं। रेन्जर श्री तिवारी बताते हैं कि अवैध कटाई व शिकार पर प्रभावी रोक लगा है, लेकिन मवेशियों की समस्या अभी भी बनी हुई है। जिस पर अंकुश लगाने के लिये वन क्षेत्र से लगे ग्रामों के लोगों को जागरूक करने तथा संरक्षण के कार्य में उनका सहयोग लेने का प्रयास किया जा रहा है।  

संरक्षण के प्रयासों को मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने भी सराहा 


अकोला बफर में बराछ पेट्रोलिंग कैम्प का लोकार्पण करते मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह। 

बफर क्षेत्र में बिगड़े वनों के सुधार व संरक्षण के लिए शुरू की गई गतिविधियों को प्रदेश के खनिज मंत्री व स्थानीय विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह ने भी सराहा है।  उनका कहना है कि इन क्षेत्रों में वन व वन्य प्राणियों का संरक्षण होने तथा पर्यटन को बढ़ावा मिलने से इसका लाभ ग्रामवासियों को भी मिलेगा। उन्होंने कहा कि अकोला बफर के जंगल को देखकर उन्हें अत्यधिक प्रसन्नता हुई, यहां वनों के सुधार और संरक्षण हेतु जिस तरह के अभिनव प्रयास हुए हैं उसकी जितनी भी सराहना की जाए वह कम है। इस तरह के प्रयास अन्य दूसरे वन क्षेत्रों में भी होना चाहिए।

इस उजड़े हुए क्षेत्र को फिर से हरा-भरा और वन्य प्राणियों के रहवास हेतु अनुकूल बनाने की पहल जनवरी 2019 में पन्ना टाइगर रिज़र्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक के.एस. भदोरिया द्वारा की गई थी। उस समय किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि उजड़ा हुआ यह वन क्षेत्र इतनी जल्दी न सिर्फ हरा - भरा हो जाएगा बल्कि इस इलाके में वन्य प्राणी भी निर्भय होकर विचरण करने लगेंगे। ढाई वर्ष पूर्व शुरू की गई पहल के जो परिणाम अब दिखाई दे रहे हैं उसे देखकर लोग हैरत में हैं। इससे यह साबित होता है यदि जंगल की थोड़ी भी देखरेख की जाए और अवैध कटाई रोक दी जाए तो प्रकृति शीघ्रता से उजड़े हुए क्षेत्र को सजा संवारकर फिर से हरा भरा कर देती है। पन्ना वन परिक्षेत्र का अकोला बफर इसका जीता-जागता उदाहरण है।

 अब यहां बाघ परिवार का रहता है बसेरा 


नाले के किनारे करधई की घनी झाडिय़ां, जहां विचरण करते हैं वन्य प्राणी। 

पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने के कारण अनेकों बाघ आसपास के क्षेत्र में विचरण कर रहे हैं। अकोला बफर का यह जंगल मौजूदा समय बाघों का पसंदीदा स्थल बन चुका है। यहां करधई का शानदार जंगल तथा प्राकृतिक नालों में अविरल बहने वाली जलधार शाकाहारी वन्य जीवों के साथ-साथ शिकारी वन्य प्राणियों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है। मौजूदा समय इस बफर क्षेत्र के जंगल में अपने तीन शावकों के साथ बाघिन व एक नर बाघ डेरा डाले हुए है। इस बाघ परिवार ने तो इस जंगल को ही अपना रहवास बना लिया है। 

 कोर क्षेत्र में क्षमता से अधिक बाघ

बाघों की संख्या तेजी से बढ़ने के चलते टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र यहां जन्मे सभी बाघों को उनके लिए अनुकूल रहवास दे पाने में नाकाम साबित हो रहा है।बाघों की बढ़ती तादाद के लिहाज से 576 वर्ग किलोमीटर का कोर क्षेत्र काफी छोटा पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में यहां के युवा व बुजुर्ग बाघ अपने लिए नये आशियाना की तलाश में कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर बफर के जंगल में पहुंच रहे हैं। कोर क्षेत्र के चारों तरफ 1021.97 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले बफर के जंगल में मौजूदा समय दो दर्जन से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। बफर क्षेत्र में अपने लिए ठिकाना तलाश रहे इन बाघों की निगरानी व उनकी सुरक्षा इस समय पर प्रबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों की नई पीढ़ी को बफर क्षेत्र में अनुकूल माहौल व रहवास उपलब्ध कराना पार्क प्रबंधन की पहली प्राथमिकता बन चुकी है। इसके लिए जरूरी है कि बफर क्षेत्र के बिगड़े हुए वन को सुरक्षित कर उसे सुधारा और संवारा जाये। इस दिशा में टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के एस भदौरिया ने ढाई वर्ष पूर्व ही पहल शुरू कर दी थी। उन्होंने भविष्य की जरूरतों व बाघों के रहवास को लेकर आने वाली समस्याओं का पूर्वानुमान लगाते हुए अकोला बफर क्षेत्र से अभिनव प्रयोग की शुरुआत की। बीते ढाई सालों में ही यह बिगड़ा और उजड़ा हुआ वन क्षेत्र हरियाली से न सिर्फ आच्छादित हो गया अपितु यहां जल संरचनाओं का भी विकास और संरक्षण हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि इस उजड़े वन क्षेत्र में बड़ी संख्या में चीतल, सांभर, नीलगाय जैसे वन्य प्राणी पहुंच गये और इनके साथ बाघ परिवार का भी आगमन हो गया। मौजूदा समय कई बाघ अकोला बफर क्षेत्र को न केवल अपना ठिकाना बनाये हुये हैं बल्कि बाघिन भी नन्हे शावकों के साथ यहां देखी जा रही है।

वन क्षेत्र के ग्रामीणों को किया जा रहा जागरूक

जंगल व वन्य प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वन क्षेत्रों के ग्रामों में जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। ग्रामीणों को पर्यावरण संरक्षण की महत्ता और उसके लाभों को बताकर उन्हें जंगल की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिसके बहुत ही सकारात्मक और उत्साहजनक परिणाम आने शुरू हुए हैं। क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि बफर क्षेत्र के जंगल को सुधार कर उसे बाघों के रहवास लायक बनाना आज की जरूरत है। पन्ना के बाघों को बचाने तथा उन्हें सुरक्षित रखने का यही एकमात्र विकल्प है, क्योंकि बाघों को रहने के लिए सुरक्षित वन क्षेत्र चाहिए। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए जन समर्थन से बाघ संरक्षण के कॉन्सेप्ट पर कार्य किया जा रहा है, ताकि ग्रामीणों की संरक्षण के कार्य में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने बताया कि बफर क्षेत्र के कई इलाकों में यह अनूठा कॉन्सेप्ट कारगर साबित हो रहा है। ग्रामवासी वन कर्मियों के साथ मिलकर जंगल में गस्ती कर रहे हैं।

अकोला बफर में हुआ है तीन शावकों का जन्म


अकोला बफर क्षेत्र में चहल - कदमी करते नन्हे शावक। 

विगत कुछ माह पूर्व ही यहां बाघिन पी-234 (23) ने तीन नन्हे शावकों को जन्म दिया था, जो अब 6 -7 माह के हो चुके हैं और अपनी मां के साथ चहल कदमी भी करने लगे हैं। इन नन्हे शावकों के फोटो जब पहली बार कैमरा ट्रैप में आये थे तो क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा द्वारा जारी किया गया था। अब ये शावक बड़े हो गए हैं तथा यहां आने वाले पर्यटकों को अक्सर नजर आते हैं। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा बताते हैं कि बाघिन पी-234(23) पन्ना में ही जन्मी और यहीं पर पली बढी है। लगभग चार वर्ष की इस युवा बाघिन ने कोर क्षेत्र से बाहर अकोला बफर को अपना नया ठिकाना बनाया है। यहीं पर इस बाघिन ने पहली बार तीन शावकों को जन्म दिया है। अकोला बफर क्षेत्र के जंगल में तीनों शावक अब अपनी मां के साथ चहल कदमी करते हुए नजर आते हैं। इन नन्हें मेहमानों की मौजूदगी से अकोला बफर क्षेत्र का आकर्षण और बढ़ गया है।

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