- सदियों से वन्य प्राणियों का शिकार करने वाले पारधी समुदाय के लोगों ने अपने हुनर तथा जंगल व वन्यजीवों के ज्ञान को अब रोजी रोजगार का जरिया बना लिया है। इस समुदाय के युवक व युवतियां नेचर गाइड बनकर पर्यटकों को जंगल की निराली दुनिया से रूबरू कराते हैं।
रानीपुर जंगल के सेहा में पाए जाने वाले वन्यजीवों व पक्षियों के बारे में बताते हुए पारधी गाइड। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना (मध्यप्रदेश)। डेढ़ दशक पूर्व तक जंगलों के आसपास डेरा डालकर शिकार करना जिनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा था, वे शातिर शिकारी कभी जंगल और वन्य प्राणियों का संरक्षण करेंगे इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन यह अविश्वसनीय सी लगने वाली बात मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में साकार हो रही है। शिकार के लिए मध्य प्रदेश सहित महाराष्ट्र और राजस्थान के जंगलों में घूमने वाले इन पारधियों का पहले कोई स्थाई ठिकाना नहीं था, लेकिन वन महकमे की पहल से अब उन्हें बसाकर समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का काम किया जा रहा है।
पन्ना शहर से 7 किलोमीटर दूर गांधीग्राम में पारधियों की बस्ती है, जहां 60-70 परिवार निवास करते हैं। पारधियों के इस कुनबे में सबसे बुजुर्ग 70 वर्षीय तूफान सिंह हैं। तूफान सिंह ने बताया कि "मुगलों के जमाने से हम जंगल में जाकर शिकार करते रहे हैं। हमारे बाप दादा भी यही काम करते थे। जंगल में घूम-घूम कर शिकार करना हमारी जिंदगी थी। हमारे पुरखों ने कितने जानवरों का शिकार किया, इसका कोई हिसाब नहीं है।"
पन्ना शहर से 7 किलोमीटर दूर गांधीग्राम स्थित पारधी समुदाय की बस्ती का दृश्य। (फोटो - अरुण सिंह) |
शिकार और शिकारियों का यह सिलसिला तब थमा जब पन्ना टाइगर रिजर्व सहित आसपास के जंगलों से वर्ष 2008-09 में बाघों का नामोनिशान मिट गया। पन्ना के जंगलों में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर आबाद करने से पहले शिकारी पारधियों की जीवन शैली में बदलाव लाना जरूरी था। इस दिशा में वन विभाग ने सकारात्मक पहल करते हुए उन्हें गांधीग्राम में बसाकर उनके बच्चों को शिक्षा से जोड़ा तथा पारधी युवकों का उपयोग नेचर गाइड के रूप में करना शुरू किया। इस पहल का असर यह हुआ कि पारधियों के बच्चे जहां अब पढऩे लगे हैं, वहीं नेचर गाइड सहित अन्य रचनात्मक गतिविधियां उनकी कमाई का जरिया बन गया है।
पारधियों की इस बस्ती में किलकिली बाई पारधी ने बताया कि जंगल की जड़ी बूटियों का ज्ञान बुजुर्गों से हमें मिला है। इन जड़ी-बूटियों से औषधि बनाकर हम बेचते हैं। लेकिन पिछले एक डेढ़ साल से कोरोना के कारण यह धंधा प्रभावित हुआ है। गांव-गांव जाकर हम दवा बेचते थे, कुछ महिलाएं चूडय़िां बेचती थीं लेकिन अब रोक होने से कहीं नहीं जा पा रहे। वहीं पास में टेबल नुमा पत्थर की पटिया में पढ़ाई कर रही युवती सिजारन पारधी की ओर सहज ही हमारा ध्यान आकृष्ट हुआ। उसने बताया कि वह महात्मा गांधी कॉलेज सतना में बी.ए. फाइनल में पढ़ती है। पारधियों के इस कुनबे में सिजारन पारधी सबसे ज्यादा शिक्षित है। इसके पति बड्डा पारधी नेचर गाइड हैं। सिजारन जब गांधीग्राम में होती है, तो वह कुनबे के बच्चों को पढ़ाती भी है।
रानीपुर के जंगल में चलाते हैं पर्यटन गतिविधि
जंगल में वृक्ष की डाल पर दूर बैठे दूधराज पक्षी को निहारते हुए। |
"पहले हम शिकार के लिए इस जंगल से उस जंगल भटकते फिरते थे, लेकिन अब हमारा यही हुनर आय का जरिया बन रहा है"। नेचर गाइड वीरेन पारधी बताते हैं कि जंगली जानवरों व पक्षियों की आवाज निकाल कर हम पर्यटकों को जब जंगल की सैर कराते हैं तो उनको बहुत अच्छा लगता है। सोमवार 21 जून को हम पारधी गाइडों के साथ रानीपुर के जंगल व सैकड़ों फिट गहरे सेहा का भ्रमण किया। यहां का गहरा सेहा, घना जंगल तथा सैकड़ों प्रजाति के पक्षी व वन्यजीव पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं। इस पर्यटन गतिविधि को "वॉक विद पारधी" कहा जाता है। जंगल, वन्यजीव और पक्षी पारधियों के जीवन में इस कदर रचे बसे हैं कि वे जंगल की आबोहवा से ही भांप लेते हैं कि कौन सा वन्यजीव आसपास मौजूद है।
वन्य प्राणियों के पग मार्क से उनकी मौजूदगी पता करने में पारधी गाइड माहिर हैं। वे जब पक्षियों की आवाज निकालते हैं तो पक्षी भी धोखा खा जाते हैं और आवाज की दिशा में चले आते हैं। रानीपुर सेहा के ऊपर गाइड वीरेन पारधी ने हमें भी तेंदुआ, तीतर, राष्ट्रीय पक्षी मोर सहित अन्य कई पक्षियों की आवाज निकाल कर सुनाई। इस वॉक में नेचर गाइड बड्डा पारधी, रातनी पारधी व दिशावरनी पारधी भी थे, जिन्होंने पेड़-पौधों और पक्षियों के बारे में रोचक जानकारी दी।
कई जिलों में है पारधी समुदाय की मौजूदगी
डेढ़ दशक पूर्व जंगल के आसपास इस तरह डेरा डाल कर रहते थे पारधी। |
क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि पारधी मूलत: शिकारी समुदाय के लोग हैं, जिनमें हंटिंग के अलावा दूसरा कोई स्किल नहीं था। हमने नई पीढ़ी को शिक्षित करने की पहल की है। पारधी बच्चों के लिए स्कूल व छात्रावास संचालित किया जा रहा है। आपने बताया कि अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग में पारधी नहीं आते, उन्हें विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ समुदाय के रूप में जाना जाता है।
लास्ट विल्डरनेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला ने बताया कि इनका आधार कार्ड बनवाया जा चुका है तथा वोट डालने का भी इन्हें अधिकार है। पारधियों का पन्ना जिले में राशन कार्ड भी बनवाया गया है, जिससे उन्हें राशन मिल रहा है। आप ने बताया कि इस समुदाय की मौजूदगी छोटे-छोटे कुनबों में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में है। लेकिन बुंदेलखंड क्षेत्र में इनकी संख्या अधिक है। प्रदेश में इनकी अनुमानित संख्या लगभग 10 हजार है। आपने बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना, कटनी, छतरपुर, दमोह व सागर जिले में पारधी समुदाय के लोग रहते हैं। इसके अलावा होशंगाबाद, डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, भोपाल, विदिशा व निवाड क्षेत्र में भी इनकी मौजूदगी पाई गई है।
सेहा राज्य पक्षी दूधराज का अच्छा हैबिटेट
रानीपुर सेहा का जंगल जहां पर्यटन गतिविधि "वॉक विद पारधीज" संचालित होती है, वह मध्य प्रदेश के राज्य पक्षी दूधराज का अच्छा हैबिटेट (पर्यावास) है। लास्ट विल्डरनेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला जो पारधी समुदाय के युवकों को पर्यटन गतिविधि के संचालन में मदद करते हैं, उन्होंने बताया कि रानीपुर का सेहा दूधराज पक्षी (इंडियन पैराडाइज फ्लाइकैचर) का प्रिय रहवास है। यहां टुइयाँ (तोता), उल्लू, पपीहा, धनेश, इंडियन पिटटा (नवरंगा) सहित दर्जनों प्रजाति के पक्षी बहुतायत से पाए जाते हैं। विलुप्त प्राय गिद्धों की प्रजाति भी यहां पाई जाती है। श्री बुंदेला ने बताया कि रानीपुर का यह जंगल पन्ना टाइगर रिजर्व व रानीपुर वन्य जीव अभ्यारण के बीच का गलियारा है, जिसका उपयोग बाघ करते रहे हैं। वर्ष 2015 में पन्ना टाइगर रिजर्व की एक बाघिन इसी गलियारे का उपयोग करते हुए चित्रकूट के जंगल में पहुंची थी।
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