Wednesday, April 17, 2024

पन्ना में बाघ का जन्म दिन मनाने की परंपरा फिर शुरू

कर्णावती व्याख्या केन्द्र मड़ला में बाघ के जन्म दिन पर केक काटकर ख़ुशी मनाते पीटीआर के अधिकारी व कर्मचारी।    

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। पूरी दुनिया में जंगली बाघ का जन्म दिवस मनाने की अनूठी परंपरा मध्यप्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व में शुरू की गई थी। इस परंपरा का श्रीगणेश तब हुआ जब पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 ने पन्ना आकर 16 अप्रैल 2010 को यहाँ अपनी पहली संतान को जन्म दिया। तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति ने इस दिन को अविस्मरणीय बनाने के लिए बाघ का जन्म दिन मानाने की परंपरा शुरू की थी, जो हर साल 16 अप्रैल को धूमधाम के साथ मनाई जाती रही है। 

उल्लेखनीय है कि 16 अप्रैल 2010 को पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारिक कामयाबी मिलने के साथ ही यहाँ पर बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ने लगा तथा पन्ना के बाघ आसपास के वनक्षेत्रों में भी विचरण करने लगे। लेकिन देश और दुनिया में कोरोना संकट के कारण एक दशक से चली आ रही इस अनूठी परंपरा पर विराम सा लग गया था। जिससे वन्य जीव प्रेमी व पन्ना के लोग निराशा का अनुभव करने लगे, क्योंकि बाघ का जन्म दिन मनाने के पीछे यह सोच भी रही है कि आम जनमानस में वन्यजीवों के प्रति प्रेम व संरक्षण की भावना प्रगाढ़ हो। यह ख़ुशी की बात है कि कुछ समय के विराम के बाद  बाघ का जन्म दिन मनाने की परंपरा छोटे रूप में ही सही फिर शुरू हुई है, जो निश्चित ही सराहनीय है। 


परम्परानुसार 16 अप्रैल मंगलवार को पन्ना में जन्मे प्रथम बाघ शावक का जन्म दिन कर्णावती व्याख्या केन्द्र मड़ला में बकायदे केक काटकर मनाया गया और कामयाबी की गौरवपूर्ण स्मृतियों फिर से तरोताजा किया गया। वन्यजीव प्रेमियों व पर्यावरण से जुड़े लोगों का भी यह मानना है कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से न तो जंगल की सुरक्षा हो सकती है और न ही वन्य प्राणियों का संरक्षण किया जा सकता है। इसके लिए जनता की भागीदारी बेहद जरूरी है। ऐसी परम्पराओं व गतिविधियों से जन समर्थन से बाघ संरक्षण के नारे को प्रोत्साहन मिलता है। यही नारा पन्ना की चमत्कारिक सफलता का मूल मन्त्र रहा है।  

बाघ पुनर्स्थापना योजना व यहाँ जन्मे पहले बाघ के जन्म दिन की 14वीं वर्षगांठ मनाये जाने की जानकारी मिलने पर आर.श्रीनिवास मूर्ति ने प्रशन्नता प्रकट करते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होने कहा वाह शानदार, अच्छी परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए पन्ना टाइगर रिज़र्व की क्षेत्र संचालक श्रीमती अंजना तिर्की को धन्यवाद। श्री मूर्ति ने आगे कहा कि यह दुनिया का इकलौता टाइगर रिज़र्व है, जहाँ जंगली बाघ का जन्मदिन मनाये जाने की परंपरा है। आइये, पन्ना के लोगों सहित समूचे बुन्देलखण्ड, बघेलखण्ड व विस्तृत भू-भाग के लोगों में बाघों के प्रति प्रेम और स्वामित्व की भावना को कायम रखने के लिए इस अनूठी परंपरा को जारी रखने का संकल्प लें। जय पन्ना - जय हिन्द !

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Monday, April 15, 2024

पन्ना के जंगलों में दिखे विलुप्तप्राय दुर्लभ काले भेड़िये

  • बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिज़र्व फिर चर्चा में है। यहाँ के बफर क्षेत्र में पहली बार काला भेड़िया (Black Wolf) देखा गया है, जो वन्य जीव प्रेमियों के लिए बड़ी खुशखबरी है। विभिन्न प्रजाति के शाकाहारी व मांसाहारी वन्य जीवों के घर पन्ना टाइगर रिज़र्व की विशिष्ट पहचान इसीलिए है क्योंकि यहाँ का मौसम भी विविधता से परिपूर्ण (4 से 48 डिग्री सेल्सियस) रहता है।    

दुर्लभ काले भेड़ियों की यह तस्वीर रूपेश कुकाडे ने किशनगढ़ के जंगल से गुजरने वाले हाइवे के पास ली है। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में जहाँ बाघ, तेंदुआ, भालू सहित विभिन्न प्रजाति के मांसाहारी वन्य प्राणियों के साथ चीतल, सांभर, चिंकारा व चौसिंगा जैसे शाकाहारी वन्य जीव प्रचुर संख्या में पाये जाते हैं, वहीं यहाँ पर विलुप्तप्राय दुर्लभ काले भेड़िये की भी मौजूदगी के सबूत मिले हैं। काले भेड़िये पन्ना टाइगर रिज़र्व के किशनगढ़ बफ़र के जंगल से गुजरने वाले हाइवे के पास देखे गए हैं, जो निश्चित ही ख़ुशी की बात है। मालुम हो की अगस्त 2021 में पन्ना टाइगर रिजर्व में फिशिंग कैट के प्राकृतिक आवास की भी पुष्टि हुई थी।    

उल्लेखनीय है कि बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व में जंगल के राजकुमार कहे जाने वाले तेंदुओं की तादाद सर्वाधिक पाई गई है। जाहिर है कि मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट के साथ तेंदुआ स्टेट का दर्जा दिलाने में पन्ना टाइगर रिज़र्व की अहम् भूमिका रही है। अब यहाँ के जंगलों में काले भेड़ियों की मौजूदगी यह बताती है कि जैव विविधता के मामले में पन्ना के जंगलों का कोई मुकाबला नहीं है। काले भेड़िया इसके पूर्व पन्ना के अलावा मध्यप्रदेश में कहीं देखे गए हैं या नहीं इसकी प्रामाणिक जानकारी नहीं है। लेकिन जानकारों का यह कहना है कि शायद पन्ना में ये पहली बार देखे गए हैं। 

राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य हनुमंत प्रताप सिंह (रजऊ राजा) का कहना है कि काले भेड़िया का पन्ना में देखे जाना पन्ना टाइगर रिज़र्व के लिए बहुत ही सुखद और उत्साह पैदा करने वाली खबर है। आने वाले समय में यदि इनकी संख्या बढ़ती है तो निश्चित ही इससे पर्यटन और बढ़ेगा जिसका लाभ पन्ना को मिलेगा। बताया गया है कि विलुप्तप्राय दुर्लभ भेड़ियों की यह तस्वीर रूपेश कुकाडे ने किशनगढ़ के जंगल से गुजरने वाले हाइवे के पास ली है। आमतौर पर पन्ना टाइगर रिज़र्व में भूरे रंग के भेड़िये नजर आते हैं लेकिन काले रंग के भेड़ियों की यहाँ पर मौजूदगी पहली मर्तबे पाई गई है। ये भेड़िये भी शिकार करने में माहिर होते हैं। 


बीएच लैब द्वारा भेड़ियों की तस्वीर ट्वीटर में पोस्ट की है, जिसमें कहा गया है कि पहली बार भारत में शुद्ध काले भेड़ियों की तस्वीर खींची गई है। तस्वीर में अलग-अलग काले रंग वाले दो भेड़िये दिखाई दे रहे हैं। काले भेड़िये दुर्लभ होते हैं, लेकिन अतीत में अमेरिका सहित कई देशों से इसकी सूचना मिली है। 2009 के एक अध्ययन के अनुसार, काले भेड़िये ऐसे भेड़िये हैं जो एक उत्परिवर्तन रखते हैं। जिसके कारण उनकी खाल काले रंग की हो जाती है। यह उत्परिवर्तन संभवतः पालतू कुत्तों से हुआ था, क्योंकि वे भेड़ियों के साथ प्रजनन करते थे।

भारत में भेड़ियों की दो प्रजातियां इंडियन ग्रे वुल्फ और हिमालयन वुल्फ पाई जाती हैं। भारतीय ग्रे वुल्फ राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के हिस्सों में पाए जाते हैं, जबकि हिमालयी भेड़िया ऊपरी हिस्से जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड और सिक्किम में पाए जाते हैं। दोनों को ही लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा 2022 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि देश में केवल 3100 ग्रे भेड़िये बचे हैं। यही वजह है कि भेड़ियों को भी बाघों की तरह संरक्षण की द्रष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है। 

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Friday, April 12, 2024

गांव के निकट बैल का शिकार करने वाली बाघिन को सुरक्षित जंगल भेजा गया

पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में स्थित ग्राम डोभा के निकट नजर आ रही बाघिन, जिसने बैल का शिकार किया।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की एक वयस्क बाघिन गुरुवार को बफर क्षेत्र के ग्राम डोभा के निकट स्थित खेत में जाकर एक बैल का शिकार करने के बाद वहीँ पास के नाले में झाड़ियों के नीचे छिपकर बैठ गई। गांव के निकट खेत में बाघिन के आने की खबर फैलते ही पूरे गांव में हड़कंप मच गया। मामले की जानकारी पन्ना टाइगर रिज़र्व के अधिकारीयों को दी गई, फलस्वरूप भारी मशक्कत के बाद हांथियों की मदद से बाघिन को सुरक्षित जंगल की ओर खदेड़ा गया।  

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व श्रीमति अंजना सुचिता तिर्की ने आज पत्रकारों को बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में गुरुवार को एक दो वर्षीय बाघिन द्वारा ग्राम डोभा से लगे हुए खेतों में बैल का शिकार किया गया था। मामले की जानकारी संबंधित बीट गार्ड द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों को दूरभाष के माध्यम से दी गई। वन अमले द्वारा मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों की सुरक्षा हेतु उपस्थित भीड़ को हटाकर किल एवं बाघिन की लोकेशन ली गई। बूडा दहार नाले में  बेसरम की झाड़ियों के नीचे बाघिन को बैठा देखा गया। 

प्रशिक्षित हांथी की मदद से बाघिन को जंगल की ओर खदेड़े जाने का द्रश्य। 

क्षेत्र संचालक द्वारा मौके पर पहुंचकर उपस्थित वन अमले को आवश्यक निर्देश दिए गए। मौके से ग्रामीणों को हटाने हेतु पुलिस चौकी बराछ से पुलिस बल की मदद ली गई। क्षेत्र संचालक ने बताया कि डोभा ग्राम में बाघिन के हटने तक विद्युत व्यवस्था क़ो बंद कराया गया। खेतों में काम कर रहे ग्रामीणों को समझाइस देकर खेतों से दूर किया गया। इतना ही नहीं बाघिन को सुविधा जनक मार्ग देने के लिए खेतों में से तार - बागड़ को भी हटाया गया। 

बताया जाता है कि गांव के निकट बाघिन द्वारा बैल का शिकार किये जाने की खबर जैसे ही फैली बड़ी संख्या में लोग वहां जमा हो गए। आसपास के गांवों से भी लोग बाघिन को देखने पहुँचने लगे, जिससे भीड़ बढ़ने लगी। ऐसी स्थिति में कोई भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पार्क प्रबंधन द्वारा एहतियाती कदम भी उठाये गए। जिस तरफ भीड़ जमा थी, वहां पर हांथियों की तैनाती की गई तथा गाड़ियों की कतार लगा दी गई ताकि बाघिन भीड़ की तरफ न जाये।   

अधिकारीयों ने बाघिन को जंगल की तरफ ले जाने के लिए दिन ढलने का भी इंतजार किया। शाम होते ही रणनीति के तहत पटाखे फोड़कर जंगल की दिशा में बाघिन को जाने के लिए विवश किया गया, इसमें हांथी का भी उपयोग किया गया। इस तरह पन्ना टाइगर रिज़र्व के प्रशिक्षित हाथियों की सहायता से उप संचालक मोहित शूड एवं वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. संजीव कुमार गुप्ता पन्ना टाइगर रिजर्व के मार्गदर्शन में बाघिन को जंगल की ओर सुरक्षित खदेड़ दिया गया।  

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Tuesday, April 9, 2024

हमारे कृषि आश्रित समाज के पत्थर के उपकरण (दूसरी किस्त)


  ।। बाबूलाल दाहिया ।।

हमने इस उपकरणों के धारावाहिक में पत्थर शिल्पियों द्वारा निर्मित लोढ़ा, सिलौंटी एवं कूँड़ा की जानकारी मय चित्रों के प्रस्तुत की थी। आज उसी क्रम में कुछ अन्य प्रस्तर के बर्तनों एवं उपकरणों की जानकारी दे रहे हैं।

कुंड़िया - यह पत्थर शिल्पियों द्वारा निर्मित कूंड़े का लघु स्वरूप आधा बीता लम्बा और 3-4 इन्च ऊँची बाट का एक पात्र होता है जिसमें आम का पना, इमली का टहुआ य मट्ठे की कढ़ी बगजा आदि खट्टे पदार्थों को खाया जाता था। क्यो कि उन दिनों प्रचलित काँसे फूल य पीतल के बर्तनों में खट्टी वस्तु पना- टहुआ आदि खाने में कषैला पना आ जाता था। इसलिए यह  प्रस्तर बर्तन  हर घर के लिए आवश्यक भी था और लोग रखते भी थे। परन्तु चिनी मिट्टी की कुड़िया आजाने से अब यह पूर्णतः चलन से बाहर है।        

पथरी -  यह लगभग हाथ भर चौड़ा गोलाकार एवं 4 इंच ऊँची बाट का एक पत्थर का पात्र होता है जिसमें  पहले आटा गूथ कर रोटियां बनाई जाती थीं। इसके दोनो ओर पकड़ने के लिए दो इंच उभरी हुई मूठ भी बना दी जाती थी जिससे इधर उधर लाने लेजाने में आसानी रहे। पर इस बर्तन को औंधा करके उसके नीचे बची खुची रोटियां य दूध रखदेने से कुत्ते बिल्ली से उनकी सुरक्षा भी होजाती थी। परन्तु पीतल की कोपरी आदि आटा गूथने के बर्तन आ जाने से यह अब पूर्णतः चलन से बाहर है।    



चौकी -  यह एक से डेढ़ इंच मोटा एवं १फीट चौड़ा गोलाकार पत्थर का पात्र  होता है जिसमें बेलना से पूड़ी रोटी आदि बेली जाती थी। परन्तु वजनी होने के कारण यह एक स्थान पर ही रखी रहती थी। अब लकड़ी की हल्की चौकी आ जाने से यह पूर्णतः चलन से बाहर है।

होड़सा -  यह  डेढ़ इंच मोटा आधा फीट चौड़ा देवालय आदि में रखा रहने वाला पत्थर का एक छोटा सा पात्र होता था जिसमें पुजारियों द्वारा चन्दन घिस कर देवताओं और अपने माथे में लगाया जाता था। यह अब भी देवालयों में है।परन्तु पत्थर शिल्पी अब इसे बिल्कुल नही बनाते।

खलबट्टा -  इसे बनाने के लिए लगभग एक फीट ऊँचे चौकोर पत्थर में एक बालिन्स का होल बनाया जाता था।और  प्राचीन समय में उसी में डाल कर सूखी जड़ी बूटियों को लौह पिंड य लोढ़े  से कूट कर चूर्ण किया जाता था। यह दो तीन प्रकार के आकार का बनता था। परन्तु अब कम्पनियों की बनी औषधियां आजाने से यह चलन से पूर्णतः अलग है।

कृषि आश्रित समाज के भूले विशरे प्रस्तर उपकरण  ( तीसरी किस्त)




कांडी - यह पत्थर में बना 4-5 इंच गहरा गोलाकार एक गड्ढा होता था जिसे जमीन के बराबर तक आंगन य घर के किसी कोने में गड़ा दिया जाता था और फिर उसी में डालकर मूसल से चावल धान आदि की कुटाई की जाती थी। पर अब धान की मिलिंग मसीनों से होने के कारण यह पूर्णतः चलन से बाहर है।

जेतबा (जेता) -  यह चार इन्च मोटा सवा फीट चौड़ा गोल आकार का एक पत्थर का पिसाई एवं घाठ आदि दरने वाला उपकरण होता था जिसमें लकड़ी की मानी में बनी मूठ तथा लोह की कील लगती थी। यह दो भागों में बटा होता था। नीचे का भाग स्थायी रूप से जमीन में स्थिर रहता किन्तु ऊपर वाला भाग घूमता रहता था। इसमें मानी के अगल बगल अनाज डालने के लिए 2 इंच लम्बे चौड़े छिद्र भी होते थे। इसकी मानी को जेतबा के बने खांचे में ठोक कर फिट कर दिया जाता था। और फिर उसकी मूठ को पकड़ कर पिसाई य घाठ की दराई की जाती थी।



 चकरिया -  यह पत्थर का दाल दलने का एक उपकरण है जिसके दो पाटे होते हैं और दोनों पाटों में एक छेंद होता है जिसमें पड़ी हुई लकड़ी के बीच चकरिया घूमती है। साथ ही ऊपर वाले खण्ड में एक डेढ़ इंच का होल रहता है जिसमें मुठिया लगा दी जाती है। यह अभी भी चलन में है परन्तु दाल मिलों में दलहन अनाजों की दली हुई दाल के प्रचलन से इसमें भी कमी आ गई है।



चकिया - यह गोलाकार चपटे पत्थर का बना आटा पीसने का एक यंत्र होता था जिसके दो भाग होते थे। पहले भाग को एक लकड़ी के खूँटे में लोहे की कील के साथ जमीन में स्थायी तौर पर रख कर मिट्टी से छाप दिया जाता था। फिर ऊपर के पाटे को उसी लोहे की  कील में फँसा कर पिसाई की जाती थी जिसमें किनारे की ओर एक  होल बना कर पकड़ने के लिए  मूँठ भी लगा दी जाती थी।

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Friday, April 5, 2024

खजुराहो में होगा रोमांचक मुकाबला, हाँथ के सहारे दौड़ेगी साईकिल

  • हीरे की खान और बुंदेल केसरी महाराज छत्रसाल की वीरगाथाओं के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के खजुराहो संसदीय क्षेत्र में इस बार चुनावी मुकाबला रोमांचक होने वाला है। इसकी खास वजह यह है की इण्डिया गठबंधन की ओर से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी को यहाँ से मैदान में उतारा गया है। प्रदेश की यह इकलौती सीट है जहाँ यह प्रयोग बहुत सोच समझकर किया गया है। जाहिर है कि लोकसभा के इस चुनाव क्षेत्र में साईकिल हाँथ के सहारे दौड़ेगी। 



।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। तीन जिलों पन्ना, छतरपुर व कटनी का प्रतिनिधित्व करने वाले खजुराहो संसदीय क्षेत्र में नामांकन भरने की तिथि गुजरने के साथ ही चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई है। यहाँ से भाजपा ने वीडी शर्मा को जहाँ फिर से मैदान में उतारा है, वहीं इण्डिया गठबंधन ने सपा के दिग्गज नेता दीप नारायण यादव की पत्नी मीरा यादव को प्रत्याशी बनाया है। सपा प्रत्याशी ने गुरुवार को अपना नामांकन भरा तथा इसके बाद आम सभा हुई, जिसमें कांग्रेस के दिग्गज नेताओं सहित सपा के नेता शामिल हुए। इस आम सभा में नेताओं ने जिस तरह के तेवर दिखाए उससे खजुराहो लोकसभा क्षेत्र का चुनावी माहौल गर्मा गया है, इस संसदीय क्षेत्र पर सबकी निगाहें टिक गई हैं। कुछ दिन पूर्व तक जो लोग भाजपा की जीत का आंकड़ा 5 लाख के पार का दावा कर रहे थे, वे अब फिर से गुणा भाग करने लगे हैं। 

समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी मीरा दीपक यादव के समर्थन में आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को आगाह किया कि इस बार चुनाव चिन्ह भले ही साईकिल है लेकिन यह बात याद रखो साईकिल को हाँथ का पंजा ही चलाएगा। जीतू पटवारी ने कहा कि बीजेपी के लोग तानाशाही पूर्ण ढंग से सरकार चलाते हुए विपक्ष के लोगों पर झूठे मुकदमे लगा रहे हैं। मंहगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। 

कालाधन के नाम पर जनता को गुमराह किया गया, जबकि इलेक्टोरल वॉन्ड के रूप मे हजारों करोड रूपये भाजपा ने काला धन के रूप में चंन्दा लिया है। उन्होने कहा कि इस क्षेत्र के सांसद वीडी शर्मा ने क्षेत्र के विकास हेतु कोई काम नहीं किया। उनकी आमदनी कई गुना बढ़ गई और जनता की आय काम हो गई। विद्यालयों में शिक्षक नहीं हैं, अस्पतालो में डॉक्टर नहीं हैं, समूचे प्रदेश में अराजक स्थिति है। क्षेत्र की बेहतरी और विकास के लिए इस बार बदलाव बहुत जरुरी है। 


पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण यादव ने कहा कि 2024 का यह लोकसभा चुनाव साधारण चुनाव नहीं है, यह देश के संविधान को बचाने का चुनाव है। यह तभी बचेगा जब हम मुस्तैदी के साथ लड़ते हुए गठबंधन के प्रत्याशी को जीत दिलायेंगे। उन्होंने कहा कि रंगा बिल्ला की सरकार को समाप्त करना है, आप लोग यह संकल्प लेकर यहाँ से जाएँ। अरूण यादव ने कहा इस क्षेत्र के सांसद वीडी शर्मा ने  सबसे ज्यादा अवैध उत्खनन करवाया है, पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा अवैध खनन पन्ना जिले में होता है। 

कार्यक्रम को संबोंधित करते हुए समाजवादी पार्टी के नेता दीपनारायण यादव ने कहा कि यह गठबंधन नहीं दिलों का मिलन है। हम लोग एकजुट होकर अत्याचार, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की लडाई लडेगें। उन्होने आंगे कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जो इस देश में रह रहा है वह किसी भी क्षेत्र का हो उसकी जिम्मेवारी है कि सरकार जिसे हम चुन रहे हैं वह जनहित में काम कर रही है या नहीं इस पर पैनी नजर रखे।  क्योकि दिल्ली की सरकार से ही देश का भविष्य टिका होता है। 

उन्होने आंगे कहा कि यह किस प्रकार की सरकार चल रही है, आम जनता भी गरीब हो रही है और सरकार के खजाने पर भी लगातार कर्ज बढ रहा है। यदि किसी विद्यालय मे शिक्षक नहीं पंहुचता है, तो उससे एक व्यक्ति का नुकसान नही होता पूरी पीढी बर्बाद होती है। उन्होंने कहा कि यह लडाई जिंदगी बदलने की लडाई है, जिसे हर हाल में जीतना है। आमसभा को गठबंधन के अन्य कई नेताओं ने भी संबोंधित किया। कार्यक्रम का सफल संचालन अनीश खान तथा राज बहादुर पटेल द्वारा किया गया। आभार प्रदर्शन जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना के अध्यक्ष शिवजीत सिंह भईया राजा ने किया।

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Thursday, April 4, 2024

अचार (चिरौंजी) तुड़ाई एवं संग्रहण पर 25 मई तक लगा प्रतिबंध

  • पकने से पहले ही कच्चे आचार की हो जाती है तुड़ाई 
  • वनोपज के अवैज्ञानिक दोहन से होता है भारी नुकसान


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में अचार (चिरौंजी) तुड़ाई एवं संग्रहण पर २५ मई तक के लिए प्रतिबन्ध लगाया गया है। बुन्देलखण्ड अंचल पन्ना जिले में चिरौंजी के पेड़ बहुतायत से पाये जाते हैं। लेकिन अवैध कटाई व आग लगने से यह बेशकीमती वृक्ष जंगल से नदारत होता जा रहा है। यहां के जंगलों में कुछ वर्षों पूर्व तक चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में पाये जाते रहे हैं लेकिन अब उनकी संख्या तेजी से घट रही है। 

चिरौंजी के वृक्षों की घटती संख्या की एक बड़ी वजह विनाशकारी विदोहन भी है। यही कारण है कि औषधीय महत्व वाले चिरौंजी के वृक्ष जो जंगल में हर तरफ नजर आते थे अब कम दिखते हैं। वृक्षों के कम होने से चिरौंजी का उत्पादन भी उसी अनुपात में घट रहा है। जंगल में आबादी के बढ़ते दबाव व वनों की हो रही अधाधुंध कटाई से भी इस बहुमूल्य वृक्ष की उपलब्धता कम हुई है।

वनमंडलाधिकारी दक्षिण वनमंडल पन्ना बताया कि  म.प्र. वनोपज जैव विविधता संरक्षण पोषण कटाई नियम 2005 के तहत अचार फलों के संग्रहण के संबंध में निषिद्ध मौसम की घोषणा की गई है। जिसके तहत नियम की धारा 2(ख) के प्रावधान अनुसार धारा 4 एवं 5 के तहत वनमंडल के वन परिक्षेत्र सलेहा, कल्दा, पवई, मोहन्द्रा, रैपुरा और शाहनगर के वन क्षेत्रों में अचार फलों की तुड़ाई, संग्रहण व परिवहन पर आगामी 25 मई तक प्रतिबंध लगाया गया है। किसी व्यक्ति अथवा संस्था को प्रतिबंधित वन क्षेत्रों में प्रतिबंध की अवधि में ऐसा करते पाए जाने पर भारतीय वन अधिनियम 1927  की धारा 77  के तहत कार्यवाही की जाएगी।

मालूम हो कि वन सम्पदा से समृद्ध पन्ना जिले में वनोपज के संग्रहण की उचित प्रक्रिया न अपनाये जाने के चलते भारी नुकसान होता है। पकने से पहले अचार व आंवला जैसे वनोंपज को तोडने की होड़ से उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। फलस्वरूप वनोंपज की उचित कीमत नहीं मिल पाती। 

जिले में चिरौंजी संग्रह एवं प्रोसेसिग के क्षेत्र में स्वरोजगार व रोजगार की काफी संभावना है। अगर योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाए, तो इससे हजारों लोगों को काम मिल सकता है, साथ ही अर्थोपार्जन के माध्यम से उनकी आमदनी भी बढ़ाई जा सकती है। चिरौंजी के बीजों में वनवासियों की आर्थिक विपन्नता दूर करने की क्षमता है।

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Tuesday, April 2, 2024

पानी की तलाश करते घरों में घुसने लगे वन्य प्राणी

  •  पन्ना में पुलिस लाइन के निकट मकान में घुसा नर सांभर 
  •  पीटीआर की रेस्क्यू टीम ने पकड़कर खुले जंगल में छोड़ा 

पन्ना शहर में पुलिस लाइन के निकट स्थित मकान के भीतर सीढ़ियों में बैठा नर सांभर, जिसे रेस्क्यू किया गया ।  


।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। तपिश बढ़ने के साथ ही जल संकट भी गहराने लगा है। नतीजतन पानी की तलाश में वन्य प्राणी रिहायसी इलाकों की ओर रुख करने लगे हैं। पन्ना शहर में पुलिस लाइन के निकट स्थित मकान में आज सुबह एक वयस्क नर सांभर घुस गया। प्यास और धूप से बेहाल यह सांभर मकान के भीतर घुसकर सीढ़ियों में जाकर बैठ गया। इस घर के लोगों ने जब वन विभाग को जानकारी दी तो पन्ना टाइगर रिज़र्व की रेस्क्यू टीम तुरंत मौके पर पहुंचकर सांभर का फिजिकल रेस्क्यू किया। स्वास्थ्य परीक्षण के उपरांत इस सांभर को स्वच्छंद विचरण हेतु केरवन के जंगल में छोड़ दिया गया है। 

गौरतलब है कि गर्मी के मौसम में तपिश बढ़ने के साथ ही जब जंगलों में पानी की उपलब्धता काम हो जाती है तो वन्य प्राणी पानी की तलाश में आबादी क्षेत्र में आने लगते हैं। इससे मानव व वन्य प्राणी संघर्ष की स्थितियां भी निर्मित होती हैं। पूर्व में हिंसक वन्य प्राणियों के आबादी क्षेत्र में आने व हमले की घटनाएं हो चुकी हैं। जिसे देखते हुए वन महकमे को सजकता के साथ-साथ वन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु ठोस पहल करनी होगी। ताकि गर्मियों में मानव व वन्य प्राणी संघर्ष को रोका जा सके। 

शाकाहारी वन्य प्राणी सांभर के आबादी क्षेत्र में आने से कोई अप्रिय स्थिति तो नहीं बनी लेकिन आज की घटना ने यह संकेत जरूर दे दिया है कि आने वाले दिनों में जब तपिश और बढ़ेगी तो हिंशक वन्य प्राणी भी आबादी क्षेत्र की तरफ रुख कर सकते हैं। इन हालातों में अप्रिय स्थितियां निर्मित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसलिए सजगता और पूर्व तैयारी बेहद जरुरी है। 

पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी डा. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि जैसे ही उन्हें मकान के भीतर सांभर के घुसने की जानकारी मिली , उन्होंने तत्काल रेस्क्यू टीम को रवाना किया। रेस्क्यू टीम में तफ्सील खान, उदयमणि सिंह परिहार, अरविन्द रैकवार,अर्जुन पाल, विनोद वर्मन व पुरुषोत्तम यादव शामिल थे। इस टीम ने पूरी दक्षता के साथ सांभर का फिजिकल रेस्क्यू किया। डॉ. गुप्ता ने बताया कि उनके द्वारा सांभर का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया, जो पूर्ण रूपेण स्वस्थ्य पाया गया। तक़रीबन 4-5 वर्ष का यह वयस्क सांभर बेहद खूबसूरत और शांत स्वाभाव का था, जिसे स्वस्थ हालत में केरवन के जंगल में ले जाकर स्वच्छंद विचरण हेतु छोड़ दिया गया है। 

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पत्थर शिल्पियों की बनाई वस्तुएं (प्रथम किस्त)


।। बाबूलाल दाहिया ।।

कल हमने इस धारावाहिक के सम्बंध में बताया था कि आज से उसकी शुरुआत करेंगे। लगता है नर वानर से मनुष्य के रूप में विकसित होने के पश्चात मनुष्य ने सर्व प्रथम यदि कुछ बनाया रहा होगा तो वह पत्थर के उपकरण ही बनाए होंगे। क्योंकि पुरातत्व में पत्थर के वह उपकरण आदिम युग तक के प्राप्त हैं, जब मनुष्य पाषाण कुठार से अपनी तथा अपने परिजनों की रक्षा करता और उसी से शिकार भी करता रहा है। 

परन्तु हम अपने इस कार्य में जिन प्रस्तर बर्तनों और उपकरणों को प्रस्तुत कर रहे हैं, वह पाषाण युग के नही बल्कि ईशा पूर्व 800 वर्ष के बाद तब से अब तक के हैं जब लोह अयस्क के खोज के पश्चात मनुष्य नदियों के किनारे बसने के बजाय मैदान में बसने लगा था। क्योंकि लौह की यह खोज अपने पूर्ववर्ती आग और पहिए की खोज के पश्चात की तीसरी क्रांति थी, जिससे समाज का अमूल चूल परिवर्तन हुआ था। यही कारण है कि समस्त ग्रामीण शिल्पियों के उद्योगों का जनक लौह अयस्क ही माना जाता है।

हमारी यह पड़ताल उस कालखंड से लेकर 19वी शताब्दी तक की है, जिनमें लोढ़ा, सिलौंटी, चकिया,जेतबा से लेकर मनुष्य समाज ने कुड़िया, पथरी तक की अपनी यात्रा कर लिया था। इस धारावाहिक में हम कुछ प्रस्तर शिल्पियों के उपकरणों की वही समस्त जानकारी मय चित्र क्रमशः प्रस्तुत कर रहे हैं।    


सिलौंटी - 

यह एक हाथ लम्बी और सवा बीता चौड़ी एक पत्थर की शिला होती है जिसके बीच के भाग को टाँकी से टांक कर खुरदरा बना दिया जाता है। इसमें मुख्यतः चटनी, मसाले, नमक आदि पीसे जाते हैं। पर इसके साथ एक लोढ़ा भी होता है। क्योकि बिना लोढ़ा उसका कोई अस्तित्व नही होता।

लोढ़ा -  

यह पत्थर का एक बालिन्स लम्बा और लगभग 4-5 अंगुल चौड़ा गोल आकार का  पिंड होता है। उसके भी नीचे टाँकी से टांक कर खुरदरा बना दिया जाता है जिससे सिलौंटी में रखे मसाले, नमक, चटनी आदि समस्त वस्तुओं को यह आसानी से बांट कर बारीक बना सके। कम से कम साल में एक बार लोढ़ा- सिलौंटी को पत्थर शिल्पी टकिए से  टकवाना अवश्यक होता है। क्योंकि लम्बे समय तक घिसते -घिसते उनका खुरदना पना चिकना हो जाता है। सिलौंटी की तरह यद्दपि इसकी अहमियत आज भी यथावत है पर मसाला पिसाई के मिक्सर आदि आ जाने से उपयोगिता कुछ-कुछ घटने लगी है।         

कूँड़ा - 

यह पत्थर का लगभग 1फीट चौड़ा गोलाकार एवं चार इंच ऊँचा बाटीदार एक पात्र होता है, जिसमें खट्टे पदार्थ बगजा, टहुआ, कढ़ी आदि को बना कर रखा जाता था। क्योंकि पीतल, काँसे, तांबे आदि के बर्तन में रखने से उनमें कषैला पना आ जाता था। अस्तु जब तक चीनी मिट्टी के बर्तन चलन में नही आए थे तब तक खटाई की वस्तुएं उसी में रखी जाती थीं। परन्तु चीनी मिट्टी के बर्तन आ जाने से पूर्णतः चलन से बाहर है। कूंड़े की बनावट दो तीन तरह की होती है।
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Monday, April 1, 2024

हमारे सप्त ग्रामीण रिसर्च ऋषि एवं उनकी अनुसंधान की वस्तुएं

  • पद्मश्री से सम्मानित बाबूलाल दाहिया जी अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने काम ही कुछ ऐसा किया है जो अनूठा और अकल्पनीय है, उनके कार्य ने ही उन्हें विशिष्ट बना दिया है। जिला मुख्यालय सतना से तकरीबन 26 किलोमीटर दूर स्थित पिथौराबाद गांव के निवासी बाबूलाल दाहिया वह शख्स हैं, जिन्होंने ढाई सौ से अधिक दुर्लभ धान की किस्मों सहित, गेहूं और मोटे अनाज और सब्जियों के अनेकों किस्मों का संरक्षण किया है। इसके अलावा आपने एक ऐसा संग्रहालय भी बनाया है जिसमें सदियों पुराने विलुप्त हो चुके कृषि यंत्रों और नायाब वस्तुओं को संजोया गया है। यह संग्रहालय मौजूदा समय देश व दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके बारे में श्री दाहिया क्या कहते हैं, आइये पढ़ते हैं उन्ही की लेखनी -                       

 

पद्मश्री बाबूलाल दाहिया द्वारा बनाये गए इस अनूठे संग्रहालय को देखने देश व दुनिया भर से लोग आ रहे हैं। 

।। बाबूलाल दाहिया ।।

जब हम राजस्थान या किन्ही अन्य राजाओं के प्राचीन किले या उनके म्यूजियम को देखने जाते हैं, तो वहां उनके ढाल, तलवार, भाला बरछी आदि सभी अस्त्र शस्त्र देखने को मिलते हैं। आज जब बड़े-बड़े टैंक मसीनगन, मिसाइल आदि आधुनिक मारक अस्त्र बन गए हैं, तो भला इन ढाल तलवारों की क्या  आवश्यकता ? पर आवश्यकता है, क्योंकि वह उन राजाओं के अतीत और बहादुरी का बखान कर रहे हैं। जिनने इन अस्त्रों को चलाकर युद्धों में विजय प्राप्त की थी।

70 के दशक में हरित क्रांति आने और उससे कृषि की पद्धति बदल जाने के कारण हमारी परम्परागत खेती के भी सैकड़ों उपकरण चलन से बाहर हो गए हैं। क्योंकि अगर घर से एक हल भी निकल जाता है तो उसके साथ, जुआं, ढोलिया, ओइरा, बांसा, हरइली, डेंगर, खरिया, मुस्का, गड़ाइन आदि अनेक छोटे-बड़े उपकरण भी चलन से बाहर हो जाते हैं।

मनुष्य का स्वभाव रहा है कि वह विकास के रास्ते जितना आंगे बढ़ जाता है तो फिर पीछे नहीं लौटता। उसके इसी आंगे बढ़ने की प्रवृत्ति के कारण हमारे बघेलखण्ड की अनेक दैनिक उपयोग की वस्तुएं एवं बर्तन भी इसके शिकार हुए हैं। इस तरह सब मिलकर लगभग दो तीन सौ ऐसी चीजें व उपकरण हैं, जो आज चलन से बाहर हैं। यह जितने उपकरण या वस्तुएं हैं वह किसी फैक्ट्री के बने नहीं बल्कि हमारे गांव में ही निवास करने वाले अपढ़ व देशज इंजीनियरों के बनाए हुए हैं। जिनके हाथ में प्राचीन समय में समस्त गांव के विकास की धुरी ही हुआ करती थी।

हमारे ग्रामों में उस समय एक मुहावरे नुमा वाक्य होता था (शतीहों जाति), जिसका आशय यह था कि जिस गाँव में यह सात उद्दमी जातियां निवास करतीं थीं वह गांव आत्म निर्भर गांव माना जाता था। क्योकि तब वहां बाहर से मात्र नमक और कच्चा लोहा ही आता था। बांकी सभी जरूरत की वस्तुएं गांव में खुद ही तैयार हो जाती थीं। वह शिल्पी जातियां थीं लोहार, बढ़ई, तेली, कुम्हार, बुनकर, चर्मकार, वंशकार, नाई, धोबी।  इनमें से कुछ अपनी निर्मित वस्तुएं हमें देते थे, तो कुछ अपनी सेवाएं। परन्तु यह लोक विद्याधर अपने यंत्र और उपकरण बनाने का प्रशिक्षण लेने किसी संस्थान में नहीं जाते थे, बल्कि अपने यंत्रों एवं उससे निर्मित वस्तुओं की परिकल्पा स्वयं करते थे। 

संग्रहालय में रखे पुराने उपकरणों व वस्तुओं के बारे में बताते हुए श्री दाहिया। 

उदाहरण के लिए यदि किसी मिट्टी शिल्पी कुम्हार ने अपना चाक बनाया, तो मनुष्य के लिए उपयोगी बर्तन मटकी, मटका, नाद, दोहनी, डबुला से लेकर दिया चुकड़ी आदि 30-35 प्रकार के वर्तनों की परिकल्पना भी उसने खुद ही की। उनमें एक और लोकविद्याधर है, वह है (पत्थर शिल्पी) जो स्वतन्त्र रूप से अपने बर्तन या वस्तुए बनाकर बेंचता था।

हमने अपने अथक प्रयासों से अब तक चलन से बाहर हो चुकी विभिन्न शिल्पियों की ऐसी 250 से अधिक बस्तुए संकलित कर उनको अपने संग्रहालय में स्थान दिया है। आज तो मात्र भूमिका ही है, पर कल से हम अपने संग्रहालय में संग्रहीत उन सभी उपकरणों एवं वर्तनों की जानकारी क्रमशः चित्र सहित धारा वाहिक रूप से प्रस्तुत करेंगे।

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Saturday, March 30, 2024

पन्ना जिले की चांदीपाठी एवं भीना रेत खदान पर हुई कार्यवाही

  •  चांदीपाठी, बीरा व चंदौरा सहित अनेकों जगह चल रही हैं अवैध खदानें 
  •  भारी भरकम मशीनों से अवैध खनन होने से केन नदी का मिट रहा वजूद

केन नदी की चाँदीपाठी रेत खदान क्षेत्र में कार्यवाही करती प्रशासन की संयुक्त टीम। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले से गुजरने वाली जीवन दायिनी केन नदी को रेत माफियाओं ने छलनी कर दिया है जिसके दुष्परिणाम केन किनारे स्थित ग्रामों में साफ नजर आने लगा है। बड़े पैमाने पर यहां हो रहे अवैध खनन की ओर प्रशासन का ध्यान आकर्षित कराए जाने के बाद आज शनिवार को राजस्व व पुलिस महकमें की टीम द्वारा चांदीपाठी एवं भीना रेत खदान पर छापामार कार्यवाही की गई है।

प्रशासनिक सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार अजयगढ़ एसडीएम कुशल सिंह गौतम की अगुवाई में भारी पुलिस बल के साथ राजस्व विभाग की टीम ने शनिवार को अपरान्ह चांदीपाठी रेत खदान पर छापा मार करवाई की है। बताया जा रहा है कि प्रशासन द्वारा की जाने वाली इस कार्यवाही की भनक रेत माफियाओं को पहले ही लग चुकी थी, इसलिए खनन में उपयोग होने वाली भारी भरकम मशीनों को वहां से हटा दिया गया था। प्रशासन की इस टीम ने मौके पर पहुंच कर जायजा लियां, जहां पाया गया कि यहां पर अवैध रूप से रेत का खनन किया जा रहा है। अधिकारियों ने खदान क्षेत्र में बनी झोपड़ियों को हटवाया तथा मौके से तकरीबन एक दर्जन तेल से भरे ड्रम व दो लिफ्ट मशीन जप्त किये गए हैं, जिनमें 2850 लीटर डीजल भरा हुआ था।

खनन माफियाओं द्वारा केन नदी के प्रवाह को रोक कर अवैध रूप से रेत निकाली जा रही थी। ट्रैकों व डंपरों में रेत  लोड करने के लिए अस्थाई मार्ग वह पुल भी बनाया गया था। छापा मार कार्यवाही के दौरान इस अस्थाई मार्ग व पुल को भी तोड़ा गया है। इस कार्यवाही के संबंध में जब पन्ना के खनिज अधिकारी रवि पटेल से जानकारी चाही गई तो उन्होंने बताया कि उनकी ड्यूटी निर्वाचन में लगी है, इसलिए वे मौके पर नहीं गए। खनिज विभाग के कर्मचारी को टीम के साथ भेजा गया है। लेकिन पता चला है कि इस कार्यवाही के दौरान खनिज विभाग से मौके पर कोई भी मौजूद नहीं था। जिसे देखते हुए खनिज महकमें की भूमिका को संदेह की नजरों से देखा जा रहा है। 


कलेक्टर सुरेश कुमार ने बताया कि अवैध उत्खनन की शिकायत मिलने पर संयुक्त टीम द्वारा उक्त कार्यवाही की गई है। इस दौरान 600 घनमीटर रेत जप्त कर चंदौरा चौकी में रखवाया गया है। कार्यवाही के दौरान संयुक्त कलेक्टर कुशल सिंह गौतम सहित एसडीओपी राजीव सिंह भदौरिया, थाना प्रभारी अजयगढ़ बखत सिंह, तहसीलदार सुरेन्द्र अहिरवार, नायब तहसीलदार खेमचन्द्र यादव एवं पुलिस बल मौजूद रहा। इस छापामार कार्यवाही के बाद से रेत खदान क्षेत्रों में हड़कंप मचा हुआ है। प्रशासन द्वारा समय-समय पर यदि इस तरह की छापा मार कार्यवाही की जाती रहे तथा अवैध खनन पर सतत निगरानी हो तो काफी हद तक अवैध खनन पर रोक लग सकती है।  

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