- पकने से पहले ही कच्चे आचार की हो जाती है तुड़ाई
- वनोपज के अवैज्ञानिक दोहन से होता है भारी नुकसान
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में अचार (चिरौंजी) तुड़ाई एवं संग्रहण पर २५ मई तक के लिए प्रतिबन्ध लगाया गया है। बुन्देलखण्ड अंचल पन्ना जिले में चिरौंजी के पेड़ बहुतायत से पाये जाते हैं। लेकिन अवैध कटाई व आग लगने से यह बेशकीमती वृक्ष जंगल से नदारत होता जा रहा है। यहां के जंगलों में कुछ वर्षों पूर्व तक चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में पाये जाते रहे हैं लेकिन अब उनकी संख्या तेजी से घट रही है।
चिरौंजी के वृक्षों की घटती संख्या की एक बड़ी वजह विनाशकारी विदोहन भी है। यही कारण है कि औषधीय महत्व वाले चिरौंजी के वृक्ष जो जंगल में हर तरफ नजर आते थे अब कम दिखते हैं। वृक्षों के कम होने से चिरौंजी का उत्पादन भी उसी अनुपात में घट रहा है। जंगल में आबादी के बढ़ते दबाव व वनों की हो रही अधाधुंध कटाई से भी इस बहुमूल्य वृक्ष की उपलब्धता कम हुई है।
वनमंडलाधिकारी दक्षिण वनमंडल पन्ना बताया कि म.प्र. वनोपज जैव विविधता संरक्षण पोषण कटाई नियम 2005 के तहत अचार फलों के संग्रहण के संबंध में निषिद्ध मौसम की घोषणा की गई है। जिसके तहत नियम की धारा 2(ख) के प्रावधान अनुसार धारा 4 एवं 5 के तहत वनमंडल के वन परिक्षेत्र सलेहा, कल्दा, पवई, मोहन्द्रा, रैपुरा और शाहनगर के वन क्षेत्रों में अचार फलों की तुड़ाई, संग्रहण व परिवहन पर आगामी 25 मई तक प्रतिबंध लगाया गया है। किसी व्यक्ति अथवा संस्था को प्रतिबंधित वन क्षेत्रों में प्रतिबंध की अवधि में ऐसा करते पाए जाने पर भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 77 के तहत कार्यवाही की जाएगी।
मालूम हो कि वन सम्पदा से समृद्ध पन्ना जिले में वनोपज के संग्रहण की उचित प्रक्रिया न अपनाये जाने के चलते भारी नुकसान होता है। पकने से पहले अचार व आंवला जैसे वनोंपज को तोडने की होड़ से उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। फलस्वरूप वनोंपज की उचित कीमत नहीं मिल पाती।
जिले में चिरौंजी संग्रह एवं प्रोसेसिग के क्षेत्र में स्वरोजगार व रोजगार की काफी संभावना है। अगर योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाए, तो इससे हजारों लोगों को काम मिल सकता है, साथ ही अर्थोपार्जन के माध्यम से उनकी आमदनी भी बढ़ाई जा सकती है। चिरौंजी के बीजों में वनवासियों की आर्थिक विपन्नता दूर करने की क्षमता है।
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