Monday, June 7, 2021

चार पहियों की रफ्तार ने आशा गोंड़ को बना दिया स्टार

  •  स्केटिंग ने आदिवासी बहुल जनवार गांव की बदल दी तस्वीर 
  •  अब इस छोटे से गांव के बच्चे देश और दुनिया में मचा रहे हैं धूम

स्केटिंग में दक्ष अपने दो साथियों के साथ स्केट गर्ल प्रैक्टिस करते हुए। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। पांच वर्ष पूर्व तक मध्य प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े इलाकों में शुमार पन्ना जिले का आदिवासी बहुल गांव जनवार अब चर्चा में है। स्केटबोर्डिंग गांव के नाम से मशहूर हो चुके जनवार की आदिवासी बालिका आशा गोंड़ को चार पहियों की रफ्तार ने स्टार बना दिया है। स्केटिंग में माहिर अब इस छोटे से गांव के बच्चे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर धूम मचा रहे हैं।

 बुंदेलखंड अंचल के पन्ना जिले का यह आदिवासी बहुल गांव जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुछ वर्ष पूर्व तक इस गांव में सड़क व बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं थी। गांव की आदिवासी महिलाएं जंगल से लकड़ी का गट्ठा सिर में रखकर पन्ना बेचने के लिए आती थीं। इसी से उनके परिवार का गुजारा चलता था। लेकिन स्केटिंग ने बीते 5 सालों में ही इस गांव की तस्वीर को बदल दिया है। जनवार गांव में आए इस बदलाव का श्रेय किसी राजनीतिक दल, प्रशासनिक अधिकारी या सरकार को नहीं अपितु एक विदेशी महिला को जाता है। जिन्होंने खेल के जरिए गांव के बच्चों को न सिर्फ शिक्षित होने के लिए प्रेरित किया, अपितु ग्रामीणों को भी उनकी संकीर्ण सोच से बाहर निकाला।

स्केट बोर्डिंग गांव जनवार पहुंचने  के लिए पक्का सड़क मार्ग। 

स्केट गर्ल आशा गोंड़ ने चर्चा करते हुए बताया कि जर्मन महिला उलरिके रेनहार्ट 5 वर्ष पूर्व घूमने के लिए पन्ना आई थीं। उन्होंने जनवार गांव की गरीबी और पिछड़ेपन को जब देखा तो उनका मन विचलित हो गया। इस विदेशी महिला ने गांव के बच्चों की ऊर्जा व उनकी छिपी प्रतिभा को भी पहचाना। यहीं से शुरू होती है जनवार गांव के बदलाव की कहानी, जो अब उपलब्धियों की नई इबारत लिख रही है। पांच साल पूर्व तक जनवार गांव के जिन घरों में फावड़ा, गैंती और तसला रखे नजर आते थे, वहां अब स्केटबोर्ड नजर आते हैं। गांव के शत-प्रतिशत बच्चे अब पढ़ते हैं, क्योंकि उलरिके रेनहार्ट ने नियम बनाया था कि स्कूल नहीं तो स्केट बोर्ड भी नहीं मिलेगा। इस तरह से खेलने के लिए बच्चों में पढऩे की रुचि पैदा हुई।

स्केट गर्ल आशा बोलती है फर्राटेदार अंग्रेजी 

जनवार गांव की स्केट गर्ल आशा गोंड़ पहली लड़की है जो गांव की तंग गलियों से निकलकर देश की सरहदों को पार करते हुए विदेश यात्रा की है। पूरे आत्मविश्वास के साथ फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली गरीब परिवार की इस आदिवासी लड़की ने वर्ष 2018 में चीन के नानजिंग शहर में आयोजित एशियाई देशों की स्केटिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। इसी तरह विशाखापट्टनम में वर्ष 2019 में आयोजित राष्ट्रीय रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप में जनवार के एक दर्जन बच्चों ने हिस्सा लिया और दो गोल्ड मेडल सहित पांच मेडल जीते। यहां के बच्चे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में 30 से अधिक मेडल जीत चुके हैं। 

कोरोना काल में गांव के बच्चों को कर रहीं शिक्षित


गांव के बच्चों को कंप्यूटर से पढ़ाते हुए आशा गोंड़। 

 विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को जब हम जनवार गांव पहुंचे तो सुबह लगभग 11 बजे आशा गोंड़ कंप्यूटर के माध्यम से बच्चों को पढ़ा रही थीं। पढ़ाई में व्यवधान न पड़े, इसलिए हम आशा के घर उनके अभिभावकों से मिलने चले गए। आदिवासी बस्ती की गली में स्थित घर के सामने ही आशा की मां कमला गोंड़ मिल गईं। चर्चा छेड़ने पर उन्होंने एक सांस में ही अपनी बेटी की खूबियों और उपलब्धियों को गिना डाला। आशा की मां ने बताया कि शुरू में हमें बहुत डर लगता था। गांव व समाज के लोग भी बोलते थे कि लड़की घर का काम करने के बजाय यहां वहां जाती है और फालतू काम करती है। लेकिन अब हर कोई उसकी तारीफ कर रहा है। कमला गोंड़ ने बताया कि पहले वह लकड़ी बेचने जाया करती थी, लेकिन अब बंद कर दिया है।

स्केटिंग न करती तो मेरी भी हो जाती शादी


स्केट गर्ल आशा गोंड़ चर्चा करते हुए। 

जनवार गांव के बच्चों की रोल मॉडल बन चुकी आशा गोंड़ ने बताया कि वे दो बहने व एक भाई हैं। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। यदि मेरी भेंट मैडम से न होती और मैं स्केटिंग न करती तो गांव की अन्य लड़कियों की तरह मेरी भी शादी हो चुकी होती। लेकिन स्केटिंग ने मेरी जिंदगी और सोच को पूरी तरह बदल दिया है। बदलाव की इस हवा का असर अब गांव के ज्यादातर बच्चों में भी दिखने लगा है। आशा बताती है कि लगभग 14 सौ की आबादी वाले जनवार गांव में पहले छुआछूत तथा ऊंच-नीच की भावना बहुत ज्यादा थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है, गांव के बच्चे एक साथ न सिर्फ स्केटिंग करते हैं बल्कि अपना सामान भी एक दूसरे से शेयर करने लगे हैं। कभी सबसे पिछड़े गांव के रूप में चिन्हित जनवार अब विकास की राह पर दौडऩे लगा है। गांव तक पक्की सड़क बन गई है तथा बिजली की भी सुविधा है। जंगल की लकड़ी बेचकर गुजारा करने वाले आदिवासी अब जैविक खेती कर जायकेदार सब्जियां उगा रहे हैं।

प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह पहुंचे जनवार 

मध्यप्रदेश शासन के खनिज मंत्री एवं स्थानीय विधायक बृजेन्द्र प्रताप सिंह सोमवार को जनवार गांव पहुंचे। स्केटबोर्डिंग गांव के नाम से मशहूर हो चुके जनवार के बच्चे चार पहियों की रफ़्तार से देश और दुनिया में धूम मचा रहे हैं। खेल प्रेमी मंत्री जो खुद एक अच्छे स्पोर्ट्स मैन हैं, उन्हें जब इस छोटे से गांव की खूबी और बच्चों की खेल प्रतिभा के बारे में पता चला तो वे तुरंत यहाँ पहुँच गये। मंत्री जी स्केटिंग में दक्ष जनवार के बच्चों से मुलाकात की और उनका हौसला भी बढ़ाया।  


इस सम्बन्ध में मंत्री जी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि "पन्ना के ग्राम जनवार के आदिवासी बच्चों द्वारा स्केटिंग प्रतिस्पर्धा में न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया है। बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्केटिंग प्रतिस्पर्धा में भी देश का प्रतिनिधित्व किया है।" आज ग्राम जनवार पहुंचकर उन सभी बच्चों से मिला एवं उनका उत्साहवर्धन किया साथ ही शासन की तरफ से उनके खेल को बढ़ावा देने हेतु हर प्रकार की मदद का आश्वासन दिया। मंत्री जी को अपने बीच पाकर गांव के बच्चों की ख़ुशी देखते ही बन रही थी। ग्रामवासियों ने भी प्रशन्नता जाहिर करते हुए उम्मीद की है कि जनवार गांव में जैविक खेती करने वाले किसानों को भी शासन स्तर पर हरसंभव मदद मिलेगी, ताकि यह गांव स्केटिंग के साथ - साथ जैविक खेती के लिए भी जाना जाय।  

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