Thursday, November 11, 2021

टाइगर स्टेट में आखिर क्यों नहीं थम रहा बाघों की मौत का सिलसिला

  •  पन्ना में युवा बाघिन पी-213 (63) की मौत से उठ रहे सवाल 
  • वर्ष 2018 की बाघ गणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में बाघों की सबसे अधिक संख्या मध्यप्रदेश में 526, कर्नाटक में 524 तथा उत्तराखंड में 442 पाई गई थी। लेकिन टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल कर चुके मध्यपदेश में जिस तरह से बाघों की मौत हो रही है उससे टाइगर स्टेट का दर्जा कैसे कायम रह पाएगा ?

पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से लगे अमानगंज बफर में इस तरह मृत पाई गई बाघिन पी-213 (63) 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। महज 10 दिनों के अंतराल में पन्ना टाइगर रिजर्व के सेटेलाइट कॉलर वाले दो युवा बाघों की मौत ने रेडियो कॉलर लगाने के औचित्य व मॉनिटरिंग व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए हैं। बुधवार 10 नवंबर को पन्ना टाइगर रिजर्व की युवा बाघिन पी-213 (63) कोर क्षेत्र से लगे अमानगंज बफर के रमपुरा बीट में मृत पाई पाई पाई गई है। तीन वर्ष की यह बाघिन गर्भवती भी थी, जिसके दो शावक जन्म से पहले ही मां की मौत के साथ खत्म हो गए। इसके पूर्व पन्ना के युवा नर बाघ "हीरा" का सतना जिले के जंगल में शिकार हो गया था। इस तरह से बाघों की हो रही असमय मौतों ने वन्यजीव प्रेमियों को जहां विचलित कर दिया है, वहीं बाघों की सुरक्षा व मॉनिटरिंग व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे हैं।

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि बुधवार 10 नवंबर को अमानगंज बफर क्षेत्र में गश्ती दल को रमपुरा डैम के पास बाघिन पी- 213 (63)  मृत मिली थी। जानकारी मिलते ही उप संचालक व वन्य प्राणी चिकित्सक के साथ मैं स्वयं मौके पर जाकर स्थल का निरीक्षण किया। मौके पर कहीं भी अवैध गतिविधि के कोई साक्ष्य नहीं पाए गए। श्री शर्मा ने बताया कि बाघिन का पोस्टमार्टम वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता द्वारा बुधवार को ही सायं किया गया, जिससे पता चला कि बाघिन गर्भवती थी। आपने बताया कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रतिनिधि इंद्रभान सिंह बुंदेला की मौजूदगी में मृत बाघिन के शव का शाम को ही दाह संस्कार कर दिया गया है।

बाघिन की मौत कैसे व किन परिस्थितियों में हुई, इस बाबत पूछे जाने पर क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने बताया कि बाघिन के गले व कंधे में घाव थे, घाव में मैगट (सूंड़ी) भी पड गए थे। उन्होंने आशंका जताई कि शिकार के दौरान संभवत: चोट लगी होगी। लेकिन अभी स्पष्ट रूप से कुछ कह पाना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि बाघिन के शव से सैंपल लिए गए हैं, जिसे जांच के लिए भेजा जा रहा है। जांच रिपोर्ट आने पर ही मौत की असल वजह का पता चल सकेगा।

डेढ़ साल में तीन बाघिनों की हुई मौत 


इस हालत में मिला था सबसे चहेती बाघिन पी- 213 का शव। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में ब्रीडिंग क्षमता वाली बाघिनों की लगातार हो रही मौतों पर चिंता जाहिर करते हुए राज्य  वन्य प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य हनुमंत सिंह (रजऊ राजा) ने बताया कि 3 वर्षीय गर्भवती बाघिन की मौत बहुत बड़ी क्षति है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर रेडियो कॉलर लगाने का औचित्य ही क्या है ? बीते साल रेडियो कॉलर वाली बाघिन पी- 213 की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी, जिसका सड़ा-गला शव पन्ना कोर क्षेत्र के तालगांव सर्किल में मिला था। पन्ना टाइगर रिजर्व की यह सबसे चर्चित हुआ चहेती बाघिन थी, जिसे लोग पन्ना की रानी कहकर पुकारते थे। 

बाघिन पी 213 की बेटी पी- 213 (32) की भी मौत इसी तरह संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। रेडियो कॉलर लगी इस बाघिन का शव 15 मई 21 को गहरी घाट परिक्षेत्र के कोनी बीट में पड़ा मिला था। इस बाघिन के चार नन्हे शावक थे, जिनका पालन पोषण नर बाघ (पिता) ने किया और अब वे प्राकृतिक रूप से शिकार करने में सक्षम हो गए हैं। बाघिन पी- 213 की ही दूसरी बेटी पी-213 (63) है, जिसकी मौत बुधवार 10 नवंबर को हुई। इस युवा बाघिन के गले में भी रेडियो कॉलर डला हुआ था, बावजूद इसके मॉनिटरिंग दल यह जानने में नाकाम रहा कि बाघिन जख्मी हालत में है। 

रेडियो कॉलर वाली बाघिन पी- 213 (32) जिसकी मौत मई 2021 में हुई। 


हनुमंत सिंह ने मॉनिटरिंग व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते हुए कहा कि यदि समय रहते जख्मी बाघिन का इलाज हो जाता तो उसकी असमय मौत नहीं होती। श्री सिंह ने बताया कि चूंकि बाघिन के कंधे में भी गहरा घाव था, इसलिए वह शिकार करने में सक्षम नहीं रही होगी। मृत बाघिन के शव को देखकर यह स्पष्ट होता है कि वह भूखी थी, उसके पेट में कुछ नहीं था। श्री सिंह ने कहा कि बाघिन के मूवमेंट की ( कम से कम 7 दिन) जांच होनी चाहिए कि वह कहां कहां गई। यदि बाघिन जख्म के कारण शिकार करने में सक्षम नहीं थी, तो भूखी बाघिन आखिर कितने दिनों तक सरवाइव कर पाएगी ?

बाघों की संख्या बढऩे से कम पड़ रही जगह 

पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, परिणाम स्वरूप बाघों का एरिया सिकुड़ रहा है। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि संख्या बढऩे पर हर टाइगर को बचा पाना संभव नहीं है। पन्ना टाइगर रिजर्व के इतिहास में इतने बाघ यहां कभी नहीं रहे। मौजूदा समय पन्ना में 30 बाघिन हैं जिनमें 14 बाघिन ब्रीडिंग क्षमता वाली हैं। श्री शर्मा बताते हैं कि मध्यप्रदेश में तकरीबन डेढ़ सौ ब्रीडिंग बाघिनें हैं, जिनसे 300 के लगभग शावक पैदा होते हैं। यदि इनमें से डेढ़ सौ शावक भी सरवाइव करें तो क्या इन शावकों के लिए पर्याप्त जंगल है ? 

श्री शर्मा ने बताया कि जंगल में जगह कम पडऩे पर बाघ आबादी क्षेत्र की ओर रुख करते हैं, ताकि वे मवेशियों का शिकार कर सकें। इन परिस्थितियों में मानव के साथ संघर्ष की स्थिति निर्मित होती है। कोर क्षेत्र से डिस्पर्स होकर बाहर जाने वाले बाघ जब खेतों से होकर गुजरते हैं, तो विद्युत तारों की चपेट में आकर "हीरा" की तरह मारे जाते हैं। उन्होंने आगे बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में अब और बाघों के लिए जगह नहीं बची, इसलिए बाघों का मरना उनकी नियति है।

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