Friday, November 5, 2021

बुंदेलखंड क्षेत्र के दीवारी नृत्य की अनूठी परंपरा पन्ना में जीवंत

  • समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों से ग्वालों की सैकड़ों टोलियां जन आस्था के केंद्र श्री जुगल किशोर जी मंदिर में दिवारी नृत्य करने आती हैं। ग्वाले भगवान श्री कृष्ण को अपना बालसखा मानते हैं और यहां उनके सानिध्य में पूरे भक्ति भाव के साथ नृत्य करते हैं।

मंदिरों के शहर पन्ना में दिवारी नृत्य के दौरान करतब दिखाते ग्वाले। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों में श्रद्धा और आस्था के केंद्र पन्ना के श्री जुगल किशोर जी मंदिर में दीपावली के दूसरे दिन परीवा को दिवारी नृत्य की धूम रहती है। समूचे बुंदेलखंड से ग्वाले विशेष वेशभूषा व हाथों में मोर पंख लिए यहां पहुंचते हैं और जुगल किशोर जी मंदिर में माथा टेककर दिवारी नृत्य करते हैं। पन्ना में दिवारी नृत्य की यह अनूठी परंपरा लगभग 300 वर्षों से चली आ रही है, जो आज भी उसी तरह जारी है। श्री जुगल किशोरजी मंदिर के अलावा पन्ना शहर के अन्य प्रमुख मंदिरों श्री राम जानकी, श्री बलदाऊ जी मंदिर, श्री जगन्नाथ स्वामी मंदिर व श्री प्राणनाथ जी मंदिर में जाकर वहां भी तरह-तरह के करतब दिखाते हुए ग्वाले दिवारी नृत्य करते हैं। यह अद्भुत नजारा देखने लोगों की भीड़ उमड़ती है।

श्री जुगल किशोर जी मंदिर के महंत परिवार के सदस्य देवी दीक्षित ने बताया कि दिवारी नृत्य की यह अनूठी प्राचीन परंपरा यहाँ तीन सौ वर्षों से चली आ रही है। दीपावली के दूसरे दिन परीवा को यहाँ उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले से बड़ी संख्या में ग्वालों की टोलियां आती हैं जबकि मध्यप्रदेश के छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़ आदि जिलों के ग्रामीण इलाकों से ग्वाले यहाँ आते हैं और जुगल किशोर जी मंदिर में नृत्य कर अपने को धन्य समझते हैं। श्री दीक्षित बताते हैं कि पन्ना सहित पड़ोसी जिलों के ग्रामीण अंचलों से सैकड़ों की संख्या में ग्वालों की टोलियां यहाँ रात्रि 12 बजे से ही पहुंचने लगती हैं। प्रथमा को सुबह 5 बजे से भगवान जुगल किशोर जी के दरबार में माथा टेकने के साथ ही दिवारी नृत्य का सिलसिला शुरू हो जाता है जो पूरे दिन चलता है।  ग्वालों की टोलियां नगर के अन्य मंदिरों के प्रांगण में भी दिवारी नृत्य का हैरतांगेज करतब का प्रदर्शन करते हैं।

पन्ना के श्री राम जानकी मंदिर में दर्शन के लिए जाती ग्वालों की टोली। 

सुबह से ही आज हांथों मे मोर पंख लिए तथा रंग बिरंगी पोशाक पहने ग्वालों की टोलियों का जुगल किशोर जी, प्राणनाथ जी, बलदाऊ जी, श्रीराम जानकी  आदि मंदिरों में आने का सिलसिला शुरू हो गया था। ग्वाले पूरे भक्ति भाव के साथ भगवान की नयनाभिराम छवि के दर्शन करने के उपरांत पूरी मस्ती के साथ नगडिय़ा, ढोलक और मजीरों की धुन में दिवारी नृत्य व रोमांचकारी लाठी बाजी का प्रदर्शन करते हैं जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां खिंचे चले आते हैं। मालूम हो कि पन्ना नगर के सुप्रसिद्ध मंदिरों में दिवारी नृत्य प्रस्तुत करने की पौराणिक परम्परा है, जिसका निर्वाहन बुन्देलखण्ड के ग्वाले आज भी करते हैं। यहां आने वाली ग्वालों की टोलियों में कुछ ग्वाले कठिन मौन व्रत भी करते हैं इन ग्वालों को मौनी कहा जाता है। 

 भगवान श्री कृष्ण को बताते हैं अपना सखा


  परीवा को पन्ना के श्री जुगल किशोर जी ने भी ग्वाले का वेष धारण किया। इस वेष के दर्शन सिर्फ इसी दिन होते हैं। 

दिवारी नृत्य का प्रदर्शन करने वाले पूरे अधिकार के साथ भगवान श्री कृष्ण को अपना बाल सखा मानते हैं। इसी आत्मीय भाव को लेकर ग्वाले तपोभूमि पन्ना में आकर मंदिरों में माथा टेकते हैं तो उनमें असीम ऊर्जा का संचार हो जाता है। इसी भाव दशा में ग्वाले सुध बुध खोकर जब दिवारी नृत्य करते हैं तो उन्हें इस बात की अनुभूति होती है मानो बालसखा कृष्ण स्वयं उनके साथ दिवारी नृत्य कर रहे हैं। अमानगंज क्षेत्र के पण्डवन गाँव से आई टोली के सदस्य बृजेश यादव ने बताया कि उनकी टोली में कई मौनी हैं। हम लोग दीपावली को चित्रकूट में थे और आज सुबह भगवान श्री जुगल किशोर जी के दरबार में आकर माथा टेका है। यहाँ दिवारी खेलने का अलग ही महत्व है, हमारे गाँव से ग्वालों की टोली पिछले 9 वर्षों से लगातार आ रही है। सिंहपुर गाँव के रामकरण प्रजापति ने बताया कि हम लोग 10 वर्षों से यहाँ आकर मंदिर में दिवारी नाचते हैं। दिवारी नृत्य करते समय जिस आनंद का अनुभव होता है उसे कह पाना कठिन है।  

बुन्देलखण्ड अंचल में प्रसिद्ध है ग्वाल बाल का दिवारी नृत्य


लाठी से दिवारी खेलते हुए ग्वाले। 

समूचे बुन्देलखण्ड अंचल में कार्तिक कृष्ण अमावस्या से प्रथमा को ग्वाल बाल दिवारी नृत्य करते हैं और विभिन्न प्रकार के करतब भी दिखाते हैं, जो दीपावली के अवसर पर गांव-गांव में होता है। दिवारी नृत्य की टोलियों में शामिल ग्वालों को मौनी कहा जाता है। मौनियों की टोली जब पूरी मस्ती में दिवारी नृत्य करती है तो दर्शकों के पांव भी थिरकने लगते हैं। दीपावली के दूसरे दिन पन्ना शहर में दिवारी नृत्य की धूम देखते ही बनती है। समूचा शहर नगडिय़ों, ढोलक व मजीरों की विशेष धुन से गुंजायमान रहता है। दिवारी नृत्य करने वाली ग्वालों की टोलियों में शामिल मौनी अपने विशेष वेशभूषा में नृत्य करते हैं। वे सिर पर मोर पंख व कमर में घुंघरूओं का पट्टा बांधते हैं, मोर पंख का पूरा एक गठ्ठा मौनी अपने हांथ में भी थामे रहते हैं तथा इसी गठ्ठर को उछालकर नृत्य करते हैं।

क्या कहते हैं महंत परिवार के सदस्य, देखें वीडियो :-



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