Monday, November 1, 2021

बिछड़ गई पन्ना टाइगर रिजर्व के सुपर स्टार टाइगर ब्रदर्स की जोड़ी, बड़े भाई हीरा का हुआ शिकार

  • पन्ना टाइगर रिजर्व के अकोला बफर में जन्मे सुपरस्टार बाघ हीरा और पन्ना अब कभी मेल मुलाकात नहीं कर पाएंगे। पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र रहे इन टाइगर ब्रदर्स की जोड़ी टूट गई है। बड़े भाई हीरा को सतना के जंगल में शिकारियों ने करंट लगाकर बेरहमी के साथ मार दिया है।

सुपर स्टार टाइगर ब्रदर हीरा और पन्ना एक साथ बैठे हुए, अब नहीं होगी ऐसी मुलाकात। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में हीरा और पन्ना के नाम से मशहूर रहे दो युवा बाघों की जोड़ी अब हमेशा के लिए बिछड़ गई है। टाइगर रिजर्व के अकोला बफर में जन्मे दोनों नर बाघ पी 234-31 व पी 234-32 पर्यटकों के बीच हीरा और पन्ना के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। विगत 3 माह पूर्व बड़ा भाई हीरा अपने लिए नए ठिकाने की तलाश में सतना की तरफ निकल गया था। पूरे तीन माह तक यह बाघ अपने लिए जीवन संगिनी व ठिकाने की तलाश में भटकता रहा। उसे कोई सुरक्षित ठिकाना मिल पाता इसके पहले ही वह शिकारियों के हत्थे चढ़ गया और असमय काल कवलित हो गया। 

वन मंडल अधिकारी सतना राजेश राय ने बताया कि युवा बाघ पी 234-31 का शिकार हुआ है। मामले में तीन आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया है। वन अधिकारियों द्वारा बाघ के शिकार के इस मामले की गहराई से छानबीन की जा रही है। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि चूंकि शिकार की घटना सतना वन मंडल के अंतर्गत हुई है, इसलिए विवेचना और वैधानिक कार्यवाही वन मंडल सतना के अधिकारियों द्वारा ही की जाएगी। आपने बताया कि उन्हें भी डीएफओ सतना से यह जानकारी मिली कि पन्ना के बाघ का शिकार हुआ है।

करंट की चपेट में आकर असमय काल कवलित होने वाले युवा बाघ के गले में रेडियो कॉलर भी था, जिसकी मदद से बाघ के हर गतिविधि व मूवमेंट की मॉनिटरिंग की जाती रही है। रेडियो कॉलर होने के बावजूद बाघ शिकारियों के हत्थे चढ़ गया और वन अमले को इसकी भनक तक नहीं लगी। वन मंडल सतना के अंतर्गत अमदरी गांव के पास रेडियो कॉलर जब पड़ा मिला तब बाघ के शिकार का खुलासा हुआ। बताया गया है कि वन परीक्षेत्र सिंहपुर के अमदरी बीट में बाघ की मौत करंट लगने से हुई है। किसान के खेत में फैली बिजली की तार में फंसकर बाघ हीरा अपनी जान गंवा बैठा।

युवा बाघ की मौत होने के बाद जिस किसान का खेत था, उसने स्थानीय लोगों की मदद से बाघ की खाल निकाली तथा शरीर के अन्य हिस्सों को पास के तालाब में फेंक दिया। इसी तालाब के किनारे बाघ के गले में डली रेडियो कॉलर को निकाल कर फेंक दिया जिससे इस पूरे मामले का भंडाफोड़ संभव हुआ। वन अधिकारियों द्वारा की गई पूछताछ में इस तथ्य का भी खुलासा हुआ कि बाघ का शिकार 15-20 दिन पूर्व हुआ था। तालाब में मिले अवशेषों का पशु चिकित्सक द्वारा पोस्टमार्टम किए जाने पर भी इसकी पुष्टि हुई कि शिकार एक पखवाड़े पूर्व हुआ है। पोस्टमार्टम के बाद मृत बाघ के अवशेषों को वन अधिकारियों की मौजूदगी में जला दिया गया है।

बाघों के लिए सुरक्षित नहीं सतना का जंगल 

पन्ना टाइगर रिजर्व में जन्मे बाघ वयस्क होने पर वंश वृद्धि के लिए नये इलाके की खोज में बाहर निकलते हैं। इस दौरान ज्यादातर बाघ शातिर शिकारियों के जहां निशाने पर आ जाते हैं तो वहीं कुछ खेतों में फैले विद्युत करंट की भेंट चढ़ जाते हैं। बाघों की सुरक्षा की दृष्टि से सतना जिले के मझगवां व चित्रकूट का जंगल अत्यधिक संवेदनशील है। पूर्व में यहां ट्रेन की चपेट में आने से एक बाघ की मौत हो चुकी है, जबकि एक बाघ अवैध उत्खनन के चलते जब अपने इलाके को छोड़ने हेतु मजबूर हुआ तो वह भी असमय काल कवलित हुआ। इतना ही नहीं परसमनिया पठार में भी एक बाघ को शिकारियों ने गोली मारी थी। 

पन्ना टाइगर रिजर्व की एक बाघिन पी 212-23 भी इलाके की खोज में पन्ना से चित्रकूट के जंगल में जा पहुंची थी। यह बाघिन भाग्यशाली रही और सुरक्षित पहुंच कर एक नर बाघ से जोड़ा बनाकर वहां शावकों को भी जन्म दिया। इस तरह से देखा जाए तो बाघों का एक इलाके से दूसरे इलाकों में आना-जाना बना रहता है। लेकिन सुरक्षित कॉरिडोर ना होने के कारण वे या तो किसी हादसे के शिकार होते हैं या फिर शिकारियों के हत्थे चढ़ जाते हैं।

 कोर क्षेत्र के बाहर बाघों पर मंडराता रहता है खतरा

सुप्रसिद्ध बाघ विशेषज्ञ व रिसर्चर डॉ. रघु चुंडावत ने चर्चा के दौरान बताया कि कोर क्षेत्र से डिस्पर्स होने वाले बाघों पर हर समय खतरा मंडराता रहता है। सबसे ज्यादा क्षति विद्युत करंट से होती है। बाघ जब नये इलाके की तलाश में खेतों से होकर गुजरता है, तो मारा जाता है। डॉ. चुंडावत कहते हैं कि बाघों की पापुलेशन में वृद्धि के लिए यह निहायत जरूरी है कि कोरिडोर सुरक्षित रहें। जिससे कि बाघों का आवागमन एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बिना किसी बाधा के होता रहे। आपने बताया कि वयस्क बाघों (2 से 4 साल) पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है क्योंकि इस उम्र में बाघ अपने लिए ब्रीडिंग के अवसरों की तलाश करते हैं और कॉरिडोर के अभाव में असमय मारे जाते हैं। डॉ. चुंडावत का कहना है कि सिर्फ कोर क्षेत्र में संरक्षण होने से बाघों की पापुलेशन ग्रोथ नहीं हो सकती क्योंकि कोर क्षेत्र के बाहर सुरक्षा ना के बराबर है। उन्होंने जोर देकर कहा कि फॉरेस्ट कोरिडोर जो बचे हैं उन्हें बचाना जरूरी है अन्यथा टाइगर पापुलेशन को बचा पाना मुश्किल होगा।

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