Thursday, February 17, 2022

कल्दा पठार में मशरूम की खेती से आदिवासी महिलाओं की बदल रही जिंदगी

  • तीन वर्ष पूर्व तक कल्दा पठार की जो आदिवासी महिलाएं मजदूरी और वनोपज के संग्रहण का कार्य करती थीं, वे अब मशरूम की खेती भी करने लगी हैं। मशरूम से अतिरिक्त आय होने के कारण इन महिलाओं की जिंदगी और रहन-सहन में चमत्कारिक बदलाव आया है।

कल्दा पठार की आदिवासी महिलाएं उत्पादित मशरूम दिखाते हुए।   

।। अरुण सिंह ।। 

कल्दा पठार, पन्ना (मध्यप्रदेश)। मशरूम की खेती बहुत अच्छा काम है, इसे घर में ही उगाया जा सकता है जिससे अतिरिक्त आय हो जाती है। कल्द पठार स्थित मगरदा गांव की आदिवासी महिला बड़ी बाई गोंड 50 वर्ष ने बताया कि उसने अपने घर में 180 बैग लगाए हैं, जिसमें डेढ़ कुंटल मशरूम का उत्पादन दो बार की तुडाई में हुआ है। बड़ी बाई बताती हैं कि अकेले मगरदा गांव की 17 महिलाएं अपने-अपने घरों में मशरूम की खेती शुरू की है। गांव की नई-नई बहुएं भी अतिरिक्त आमदनी के लिए मशरूम की खेती को अपना रही हैं।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 500 किलोमीटर तथा जिला मुख्यालय पन्ना से 70 किलोमीटर दूर स्थित आदिवासी बहुल कल्दा पठार को बुंदेलखंड क्षेत्र का पचमढ़ी भी कहा जाता है। हरी-भरी वादियों और जैव विविधता से परिपूर्ण खूबसूरत घने जंगलों से समृद्ध कल्दा पठार में खनिज व वन संपदा का विपुल भंडार है। लेकिन इसका समुचित लाभ यहां के आदिवासियों को नहीं मिल पाता, जिससे वे आज भी आर्थिक रूप से कमजोर और गरीब हैं। समुद्र तल से तकरीबन 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कल्दा पठार 500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जहां अधिसंख्य आबादी आदिवासियों की है। इन आदिवासियों का जीवन पूरी तरह से खेती किसानी के अलावा वनोपज व पत्थर खदानों में मजदूरी पर ही निर्भर है। कुछ साल पूर्व तक यह इलाका अत्यधिक दुर्गम और पहुंच विहीन माना जाता था। बारिश के 4 माह यहां पहुंचना मुमकिन नहीं था, लेकिन गोडऩे नदी में पुल का निर्माण हो जाने तथा कल्दा पठार तक पक्का सड़क मार्ग बन जाने से अब यहां हर मौसम में पहुंचना आसान हो गया है। आवागमन की सुविधा होने से पठार के आदिवासियों में न सिर्फ जागरूकता आई है बल्कि वे अब स्वावलंबन की दिशा में भी अग्रसर हुए हैं।

कल्दा पठार के ग्राम मगरदा में आयोजित प्रशिक्षण में शामिल महिलाएं। 

जिला पंचायत पन्ना के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) बालागुरु के. बताते हैं कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाएं दो वर्ष पूर्व तक वनोपज संग्रहण का कार्य करने के साथ मजदूरी करती रही हैं। इन आदिवासी महिलाओं की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की मंशा से यहां मशरूम उत्पादन की गतिविधि को शुरू किया गया है। बालागुरु बताते हैं कि कल्दा पठार में इस नवाचार को शुरू करना आसान नहीं था क्योंकि ज्यादातर आदिवासियों के घरों में मशरूम उत्पादन के लिए जगह ही नहीं थी। इस समस्या के निराकरण हेतु हमने कुटीर निर्माण की योजना बनाई और मशरूम के उत्पादन में रुचि रखने वाली आदिवासी महिलाओं को मनरेगा योजना से कुटीर बना कर दिया गया। जिला सीईओ ने बताया कि कल्दा पठार के 4 गांव मगरदा, गोबरदा, खबरी व दिया मंटोला में 74 कुटीर स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें 30 पूरे हो चुके हैं। इन सभी कुटीरों में मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है। आजीविका मिशन द्वारा इन आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाने के साथ-साथ जरूरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं।

आजीविका मिशन पन्ना के जिला प्रबंधक (कृषि) सुशील शर्मा ने बताया कि कल्दा पठार में 14 पंचायतें एवं 45 गांव हैं। पठार की कुल आबादी 28000 के लगभग है। सुशील शर्मा बताते हैं कि कल्दा पठार के 8 ग्राम मगरदा, गोबरदा, खबरी, दिया मंटोला, मुहली धरमपुरा, महुआडोल, झिरिया व कुटमी खुर्द में 114 आदिवासी महिलाओं द्वारा ओएस्टर मशरूम (ढींगरी) की खेती की जा रही है। श्री शर्मा के मुताबिक कल्दा पठार की 11 पंचायतों में 416 महिला स्व सहायता समूह हैं जिनमें सदस्य संख्या 4 हजार से अधिक है। स्व सहायता समूहों की ज्यादातर महिलाएं अब मशरूम उत्पादन के नवाचार में रुचि ले रही हैं।

महिलाएं बना रहीं अचार, पापड़ और नमकीन


मगरदा गांव की आदिवासी महिलाओं द्वारा तैयार किए गए मशरूम के पापड़। 

मशरूम की खेती एक ऐसी खेती है, जिसमें खेत की जरूरत नहीं होती है। अपने घरों में ही इसकी खेती की जा सकती है। यही वजह है कि मशरूम की खेती में महिलाओं का रुझान बढ़ रहा है। आजीविका मिशन पन्ना के जिला प्रबंधक सुशील शर्मा ने बताया कि अभी हाल ही में कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं को अचार, पापड़ और नमकीन बनाने का प्रशिक्षण ग्राम मगरदा में दिलाया गया है। मुरैना के कुलदीप तोमर ने महिलाओं को प्रशिक्षण दिया, फलस्वरूप पठार की आदिवासी महिलाएं अब मशरूम का अचार, पापड़ व नमकीन भी बना रही हैं।

शर्मा बताते हैं कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं द्वारा उत्पादित गीला मशरूम 120 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है। जबकि सूखा मशरूम 500 से 600 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है। आपने बताया कि पापड़ 350 रुपये, अचार 400 रुपये व नमकीन 350 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक्री किया जा रहा है। महिलाओं द्वारा बनाये गए अतिरिक्त उत्पाद को जो यहां से नहीं बिक पाता उसे पन्ना स्थित आजीविका मिशन द्वारा संचालित रूरल मार्ट (दुकान) में रखवाते हैं, जहां से बिकता है।

समाज सेवी संस्था समर्थन के रीजनल कोऑर्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं के नवाचार से दूसरे इलाके की महिलाएं भी प्रेरित हो रही हैं। यहां आकर महिलाएं मशरूम की खेती करने का तरीका व अन्य उत्पाद बनाना सीख रही हैं। तिवारी बताते हैं कि पिछले दिनों मगरदा में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में पन्ना जनपद के ग्राम बिल्हा, विक्रमपुर व गोविंदपुरा से 7 महिलाओं ने अचार, पापड़ और नमकीन बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

यहां आकर मशरूम के उत्पाद बनाना सीखने वाली ग्राम बिल्हा निवासी बिन्नू बाई पटेल 34 वर्ष ने बताया कि प्रशिक्षण में उन्होंने मशरूम का अचार, पापड़ व नमकीन बनाना सीख लिया है। अब वे अपने घर में इसे आराम से बना सकेंगी। ग्राम बिल्हा की ही शोभा पटेल 36 वर्ष ने बताया कि पृथ्वी ट्रस्ट संस्था के सहयोग से पन्ना जनपद के 5 गांव में मशरूम का उत्पादन हो रहा है, हमें वहां से गीला मशरूम मिल जाएगा, जिससे हम अचार, पापड़ और नमकीन बनाएंगे। इस कार्य में हमें पृथ्वी ट्रस्ट व समर्थन संस्था मदद कर रही है।

कल्दा पठार बनेगा मशरूम की खेती का हब


जिला पंचायत सीईओ बालागुरु के. मशरूम उत्पादक महिलाओं से चर्चा करते हुए। 

मशरूम की खेती में कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं के बढ़ते रुझान से जिला पंचायत पन्ना के  सीईओ बालागुरु के. बेहद उत्साहित हैं। वे बताते हैं कि जिन महिलाओं ने मशरूम का उत्पादन शुरू किया है उन्हें अतिरिक्त आय होने लगी है। इससे महिलाओं के जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार हुआ है। आपने बताया कि आने वाले समय में कल्दा पठार मशरूम की खेती का हब बनेगा, जिससे यहां की आदिवासी महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर होंगी।

जिला सीईओ बालागुरु बताते हैं कि वर्तमान में मशरूम का बीज (स्पान) ग्वालियर से मंगाया जा रहा है। लेकिन जल्दी ही कल्दा पठार के मगरदा में स्पान तैयार करने के लिए लैब स्थापित की जाएगी ताकि बीज यहीं उपलब्ध हो सके। इसके लिए मगरदा में 9 लाख रुपये की लागत से सामुदायिक भवन तैयार कराया गया है, जिसका उपयोग आदिवासी महिलाओं द्वारा मशरूम के उत्पाद बनाने हेतु वर्क शेड के रूप में किया जाएगा। लेकिन मशरूम की खेती करने वाली महिलाओं की संख्या बढऩे पर (लगभग 500 होने पर) इस भवन में लैब स्थापित की जाएगी।

कुपोषण की समस्या से मिलेगी निजात


अपने कुटीर में मशरूम बैगों के बीच बड़ी बाई गोंड। 

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का आदिवासी बहुल इलाका कल्दा पठार हमेशा कुपोषण की समस्या से ग्रसित रहा है। लेकिन दो वर्ष पूर्व की तुलना में अब यहां कुपोषण की स्थिति में सुधार हुआ है। महिला एवं बाल विकास विभाग पन्ना के जिला कार्यक्रम अधिकारी ऊदल सिंह ने बताया कि कल्दा पठार में जनवरी 2020 तक 0 से 5 वर्ष तक के अति गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 35 व मध्यम गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 123 थी। जो घटकर जनवरी 2022 तक अति गंभीर कुपोषित 23 व मध्यम गंभीर कुपोषित 88 हो गई है। 

समाजसेवी संस्था समर्थन के ज्ञानेंद्र तिवारी बताते हैं कि कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं ने मशरूम का उत्पादन करने के साथ ही उसका उपयोग अपने भोजन में भी शुरू किया है, परिणाम स्वरूप कुपोषण में कमी आई है। आपका कहना है कि मशरूम एक ऐसा खाद्य है जिसके सेवन से सभी प्रकार के पौष्टिक तत्व मानव शरीर में पहुंचते हैं, जिससे कुपोषण खत्म होता है।

ईको टूरिज्म के विकास की भी यहाँ अच्छी संभावनायें




कल्दा पठार के समृद्ध और खूबसूरत वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म के विकास की भी अपार संभावनायें मौजूद हैं। यदि इस दिशा में सार्थक और रचनात्मक पहल शुरू हो तो इससे रोजी और रोजगार के भी नये अवसर पैदा हो सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण के कार्य में रूचि रखने वाले इसी इलाके के पटना तमोली निवासी अजय चौरसिया बताते हैं कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र का पचमढ़ी कहा जाने वाला यह पूरा इलाका खनिज व वन संपदा से समृद्ध है। यहां चिरौंजी, आँवला, महुआ, तेंदू, हर्र, बहेरा, शहद व तेंदूपत्ता जैसी वनोपज जहां प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, वहीं इस पठार में दुर्लभ जड़ी बूटियों का भी खजाना है। यहां के जंगल में सफेद मूसली, खस, महुआ गुठली, हर्र, बहेरा, काली मूसली, सतावर, मुश्कदारा, लेमन ग्रास, कलिहारी, अश्वगंध, सर्पगंध, माल कांगनी, चिरौटा, लहजीरा, अर्जुन छाल, मेलमा, ब्राह्मी, बिहारी कंद, मुलहटी, शंख पुष्पी, सहदेवी, पुनर्नवा, धवर्ई, हर सिंगार, भटकटइया, कालमेघ, जंगल प्याज, केव कंद, तीखुर तथा नागरमोथा जैसी वनौषधियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। यदि कल्दा पठार के नैसर्गिक सौन्दर्य तथा यहां पर प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दुर्लभ वनौषधियों का संरक्षण व संवर्धन किया जाये तो इस वन क्षेत्र में ईको टूरिज्म को बढ़ावा मिल सकता है। ऐसा होने पर यहां के रहवासियों को जहां रोजगार मिलेगा वहीं यहां की प्राकृतिक खूबियां भी बरकरार रहेंगी।

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