Sunday, June 12, 2022

जिसके जन्मदिन पर केक कटता था, उसकी ऐसी विदाई ?

  • अंतिम विदाई में पी-111 को एक फूल भी नसीब नहीं हुआ 
  • पेंच में कॉलर वाली बाघिन को दी गई थी शानदार विदाई 

बाघ विहीन होने के बाद पन्ना टाइगर रिज़र्व में जन्मा पहला बाघ पी-111 अब नहीं रहा।  

 ।। अरुण सिंह ।।

जंगल की निराली दुनिया में "सर्वाइबल ऑफ फिटेस्ट" के तहत कुदरत का ही नियम चलता है। यहां वन्यजीवों के अनूठे संसार में कुछ विरले प्राणी ही ऐसे होते हैं जो जंगल में स्वच्छंद जीवन जीते हुए देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर ख्याति भी अर्जित कर पाते हैं। उनके यकायक बिछडऩे पर लोग दु:ख और पीड़ा का अनुभव करते हैं और शोक संवेदना जताते हैं। पन्ना का नर बाघ पी-111 ऐसा ही बिरला वन्य प्राणी था, जिसने जन्म के समय से ही न सिर्फ लोगों का ध्यान आकृष्ट किया अपितु प्रसिद्धि भी पाई।

मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिलाने में अहम योगदान देने वाले इस बाघ ने पन्ना टाइगर रिजर्व को अलविदा कह दिया है, अब बाघ पी-111 नहीं रहा। 16 अप्रैल 2010 को धुंधुवा सेहा में बाघिन टी-1 ने चार नन्हे शावकों को जन्म दिया था, जिनमें सबसे बड़ा यह शावक था। वर्ष 2009 में बाघ विहीन होने से जब पन्ना टाइगर रिजर्व शोकगीत में तब्दील हो गया था, उस समय इन नन्हे शावकों के जन्म से खुशियां फिर लौट आईं थीं और पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ शावकों की अठखेलियों से गुलजार हो गया था।

बाघ पी-111 पन्ना टाइगर रिजर्व में जन्मा वही पहला शावक है, जिसका जन्मदिन 16 अप्रैल को केक काटकर बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता रहा है। बाघ शावक के पहले जन्मदिन पर तत्कालीन केंद्रीय वन मंत्री जयराम रमेश सहित आला वन अधिकारी दिल्ली व भोपाल से पन्ना आकर जश्न में शामिल हुए थे। मुझे वह दिन भी अच्छे से याद है जब धुंधुवा सेहा में बाघिन टी-1 के साथ नन्हें शावक को पहली बार देखा गया था।

धुंधुवा सेहा के ऊपर से केंद्रीय वन मंत्री जयराम रमेश नीचे टकटकी लगाए जब नीचे निहार रहे थे, उसी समय यकायक उनकी नजर चट्टान पर लेटी बाघिन पर पड़ी। बाघिन को देख केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश का उत्साह और खुशी देखते ही बन रही थी। तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति व उपसंचालक विक्रम सिंह परिहार तथा पन्ना के कुछ पत्रकार भी इस मौके पर मौजूद थे। 

चूंकि धुंधुवा सेहा काफी गहरा है और बाघिन गुफा के निकट झाड़ी की ओट में चट्टान पर लेटी थी, इसलिए बाघिन सिर्फ वहीं से नजर आ रही थी जहां जयराम रमेश बैठे थे। फिर तो सभी ने इस रोमांचक दृश्य को देखा और खुशी का इजहार किया। नन्हे मेहमानों के साथ ही यहां पर सफलता, कामयाबी और जश्न का सिलसिला जो शुरू हुआ तो वह अनवरत जारी रहा। चौकस प्रबंधन, चुस्त निगरानी व टीम वर्क से बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ने लगा और नन्हे मेहमान यहां के जंगल को गुलजार करते रहे। नतीजतन पन्ना शून्य से शिखर तक पहुंचने में कामयाब हुआ। मौजूदा समय पन्ना लैंडस्केप में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं।

शिखर पर पहुंचने का अनुभव निश्चित ही बड़ा सुहाना होता है। लेकिन इस ऊंचाई को बनाए रखना उतना ही चुनौतीपूर्ण और कठिन होता है। जो जमीन पर है उसके गिरने की संभावना कम होती है, क्योंकि वह वही खड़ा है जहां गिरना है। लेकिन ऊंचाई पर जो है उसके गिरने और लहूलुहान होने का खतरा हमेशा बना रहता है। इसलिए सजगता और चौकसी हर समय जरूरी है, ऐसे समय जरा सी भी चूक खतरनाक साबित हो सकती है। कामयाबी पर इठलाना गलत नहीं है, लेकिन जिम्मेदारी का एहसास भी होना चाहिए और उसी के अनुरूप काम भी। लेकिन पिछले कुछ सालों से यहाँ सजगता और चौकसी में कमी दिखने लगी है, परिणाम स्वरूप पन्ना टाइगर रिजर्व ने इस बीच बहुत कुछ खोया है। जन समर्थन से बाघ संरक्षण की भावना को भी क्षति पहुंची है। इतना ही नहीं कमियों को दबाने और छिपाने का खेल पहले की तरह फिर शुरू हो गया है। जंगल में वन्य प्राणियों की मौत हो जाती है और किसी को खबर तक नहीं लगती। मौत कैसे और किन परिस्थितियों में हुई यह भी पता नहीं लग पाता। लिहाजा एक बार फिर यह सवाल उठने लगे हैं कि पन्ना क्या उसी राह पर चल पड़ा है, जिस राह से 2009 में पहुंचा था ?

आइये, हम फिर से बात करें पन्ना के सबसे डॉमिनेन्ट मेल टाईगर पी-111 की, जो दुनिया का पहला बाघ है जिसका जन्मदिन मनाने की परंपरा शुरू हुई। इस मेल टाईगर ने पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े इलाके में एकछत्र राज किया और कई बाघिनों के संपर्क में रहकर यहां बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस नर बाघ को देखना अपने आप में रोमांचकारी व गौरव का एहसास दिलाने वाला होता था। पन्ना टाइगर रिजर्व का यह सबसे ताकतवर और डील डौल में भी बड़ा बाघ था। इसे वनकर्मी राजाबरिया का राजा कहते थे।

लेकिन बेहद शानदार और राजाशाही जिंदगी जीने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के इस पहले बाघ की विदाई जिस तरह से हुई है, वह जरूर पीड़ादायी है। इस बाघ ने पन्ना को शोहरत, गौरव और जश्न मनाने का तो अवसर दिया ही प्रदेश को भी टाइगर स्टेट का तमगा दिलाने में भी अहम रोल अदा किया। लेकिन जंगल के इस राजा की विदाई ऐसे कर दी गई जैसे उसका कोई वजूद ही नहीं था।

पेंच में कॉलर वाली बाघिन "सुपर मॉम" को इस तरह दी गई थी अंतिम विदाई। 

अभी ज्यादा समय नहीं हुआ, इसी साल जनवरी के महीने में पेंच टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध कॉलरवाली बाघिन ने 17 वर्ष की उम्र में जब शरीर छोड़ा तो इस बाघिन को जिस तरह शाही अंदाज में विदाई दी गई, उसे दुनिया ने देखा। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री व वन्यजीव प्रेमियों सभी ने उसकी अंतिम विदाई के मौके पर शोक संवेदना व्यक्त करने के साथ अपनी भावनावों का भी इजहार किया। दाह संस्कार के समय इस बाघिन की चिता फूल मालाओं से सुशोभित थी। अनेकों लोगों ने फूलमाला चढ़ाकर इस सुपर मॉम बाघिन को अंतिम विदाई दी थी। 

हमें भी यह अवसर मिला था कि हम पन्ना में जन्मे अपने पहले बाघ को शानदार तरीके से विदाई देते। ताकि दुनिया पन्ना के इस डोमिनेंट मेल टाइगर के बारे में जान पाती कि यही वह दुनिया का इकलौता बाघ है जिसके जन्मदिन पर केक काटकर जश्न मनाया जाता रहा है। लेकिन पार्क प्रबंधन ने यह अवसर खो दिया। किसी वन्य प्राणी की मौत होने पर उसके शव को जलाने की परंपरा है, उसी का निर्वहन करते हुए राजाबरिया के राजा को भी जला दिया गया। अंतिम समय में उसकी चिता को एक फूल भी नसीब नहीं हुआ। पन्ना टाइगर रिजर्व की शान रहे राजाबरिया के राजा पी-111 की स्मृति में मैं उसे भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

जय शेरखान, जय पन्ना टाइगर रिज़र्व ! 🐯

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2 comments:

  1. सादर श्रद्धांजलि ....💐💐👏👏

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  2. आपकी लेखनी ने पूरी जीवन यात्रा का परिदृश्य दिखया ...
    अंतिम विदाई पीड़ादायी रहेगी , इस अनमोल विरासत के युवराज की विदाई भी सम्मानजनक होनी चाहिए थी ....

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