Wednesday, April 29, 2020

अंधविश्वास की वजह से उल्लू प्रजाति की घट रही संख्या


एक आउल का चित्र लेने के लिए फरवरी से जून तक का समय सबसे अच्छा माना जाता है, क्योकि उस समय आप इन्हें आराम से ढूंढ लेते हैं। या यूं कहें कि ये उस समय ही सबसे ज्यादा असुरक्षित होते हैं क्योंकि यही समय मध्य भारत में इनके प्रजनन और अंडे देकर बच्चे निकलने का होता है। उस समय घोसले की सुरक्षा के लिए ये ज्यादातर खुले में बैठे मिल जाते हैं। 
 इनकी इसी कमजोरी का फायदा शिकारी ओर कुछ छायाचित्र प्रेमी करते हैं।  इस समय मादा घोसले में बच्चो के साथ होती है व नर पास में कहीं खुले में बैठा होता है। जो पहले नजर आ जाता है, फिर वह शिकारी को अपनी ओर आकर्षित करके वहाँ से दूर उड़ जाता है, जिससे शिकारी को ये पता ही नही चलता कि वहाँ घोसले भी है और  वह घोसले से दूर हो जाता है।  पर कई छायाकार उनके घोसले की ताक में रहते हैं और उस समय तक उनको परेशान करते हैं जब तक कि वे घोसले से उड़ कर अच्छा फ़ोटो न दे दें।
इसी तरह अपने भारत मे उल्लुओं को लेकर पुरातन काल से बहुत से मिथक भी चले आ रहे हैं। लोग इन्हें देवी लक्ष्मी का रूप मानते हैं, कुछ लोग इन्हें काले जादू का प्रतीक भी मानते हैं, तो कुछ इन्हें बली की वस्तु भी मानते हैं। इन सब मिथकों की वजह से दीवाली, होली, पूर्णिमा, अमावस्या को इनकी पूजा या बली दी जाती है।
जिससे किसी व्यक्ति को तो आज तक कुछ नहीं मिला पर इस वजह से इन उल्लुओं का अस्तित्व खतरे में जरूर पड़ गया है। इस अवैध शिकार की वजह से मध्य भारत में भी उल्लू प्रजाति की संख्या में बहुत कमी आई है।
जबकि ये जीव अनजाने में हमारे कई काम आता है जिसमे से सबसे ज्यादा ये चूहों की संख्या को नियंत्रित करके कई बीमारियों से भी बचाता है अपितु खेतों की फसलों को भी सुरक्षित करता है। परंतु अंधविश्वास की वजह से हम इन जैसे शर्मीले प्राणी को मार डालते हैं। आज काफी लोग इस बात को जान गये हैं पर अभी भी कई अंधविश्वासी लोग इस तरह के गैर कानूनी रूप से  हो रहे व्यापार और शिकार में शामिल हैं। अगर आप इस तरह की गतिविधियों को देखे तो तुरंत वन विभाग या पुलिस को सूचित करें। और इन सुंदर और शर्मीले जीवों को बचायें।
@Aamir Nasirabadi bhiya

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