Saturday, April 18, 2020

गेहूं की कुछ देसी दुर्लभ किस्में जिन्हें हम भूल गये

  •  पद्मश्री बाबूलाल दहिया ने दुर्लभ किस्मों का किया संरक्षण 
  •  इनके पास धान सहित 200 किस्मों के देसी बीजों का है संग्रह


कृषक बाबूलाल दाहिया जी खेत में गेंहू की फसल के बीच। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। आधुनिक कृषि तकनीक, रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग होने के चलते  परंपरागत जैविक खेती लुप्त प्राय सी हो गई है। इसका परिणाम यह हुआ कि प्रकृति प्रदत्त अनाज की अनेकों देसी किस्में आंखों से ओझल हो चुकी हैं। इन परिस्थितियों में एक कृषक ऐसे भी हैं जिन्होंने देसी अनाज की किस्मों को बचाने और उन्हें संरक्षित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। मध्यप्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पिथौराबाद के निवासी 75 वर्षीय कृषक बाबूलाल दहिया के पास धान सहित देसी अनाजों की 200 किस्मों का दुर्लभ और बेशकीमती संग्रह है। उनके इस अनूठे योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है।
कृषक बाबूलाल दहिया जी में परंपरागत खेती को बढ़ावा देने तथा देसी अनाजों को बचाने व संरक्षित करने का जुनून है। उनका कहना है कि अगर किसान को आगे बढ़ना है और अपने परिवार का स्वास्थ्य बेहतर रखना है तो देसी अनाजों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना होगा। देसी बीज में लागत कम होने के साथ ही हर प्रकार के मौसम को सहन करने की क्षमता होती है, इसलिए किसान ज्यादा से ज्यादा देसी बीज बचायें। इससे पर्यावरण के साथ-साथ मिट्टी भी सुरक्षित रहेगी।
मौजूदा समय रबी सीजन की फसलों विशेषकर गेहूं की कटाई और गहाई का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है।कोरोना संकट के बावजूद किसान ऐन - केन प्रकारेण खेत से फसल अपने घर तक ले जाने के लिए पूरे जतन से जुटा हुआ है। ऐसे समय जैविक खेती को बढ़ावा देने वाले कृषक बाबूलाल दहिया जी द्वारा उगाई गई देसी गेहूं की कुछ दुर्लभ किस्मों के बारे में आप भी जाने -

गेहूं की यह नीलांबर  किस्म है




 जी हां, गेंहू की बेहद दुर्लभ देसी किस्मों में से एक यह नीलांबर किस्म का गेंहू है। नीलाम्बर इसलिये क्यों कि आकाश की तरह इसके दाने का रंग भी नीला है। दाहिया जी बताते हैं कि इस वर्ष हमारे पास इसके मात्र 10 पौधे ही उगाये गये थे, अस्तु अधिक अध्ययन तो नहीं हो सका है पर दाना मोटा, कम लम्बा और नीले रंग का होता है।  लेकिन पकने पर बाल सफेद  हो जाती है जिसमें  6 पंक्ति में बिरल दाने लगते हैं। इसमे 4 पंक्ति में बड़े दाने व दो में छोटे आकर के दाने। इसकी बाल के एक कतार में 9- 10 दाने होते हैं और पौधा लगभग 3 फीट ऊंचा होता है। बौनी किस्म होने के कारण निश्चय ही यह अधिक पानी लेता होगा पर इस वर्ष प्राकृतिक वर्षा की निरंतरता के कारण अध्ययन नहीं हो पाया। यह वंशी आदि गेहूं के साथ ही पक जाता है। लीजिए आप भी इसके दाने और बाल का अवलोकन कीजिए।
                                             

यह गेहूं की खैरा किस्म

  जी हां यह गेहूं की खैरा किस्म है जिसकी बाल का रंग हल्का ललामी लिए हुए पर दाना सर्बदी चमकदार है। यह परम्परागत किस्म का गेँहू 4 फीट ऊंचा और   बाल 6 की कतार में विभक्त होती है।  जिसमें 4 पंक्ति के दाने बड़े एवं 2 पंक्ति के छोटे आकार के होते हैं। बाल में दानों की कतार 9- 10 दानों की बिरल होती है।
 इसके दाने का रंग भले ही मटमैला हो पर खाने में स्वादिष्ट होता है, जिसकी रोटी और दलिया दोनों खाई जा सकती है। यह वर्षा आधारित खेती वाला पौधा है और बड़ा तना होता है।  इसलिए कुछ पानी अपने लम्बे तने में संचित कर लेता है अस्तु एक दो बार पानी मिल जाय तो ठीक किन्तु न मिले तब भी जितना पकेगा ठोस एवं चिलकदार ही।

सबसे लम्बे दाने वाला गेंहू - सर्जना 1


जी हां यह गेहू की ही एक किस्म है जिसके बाल  के दानों के आवरण से ही पता चल जाना है कि इसका दाना कितना लम्बा होगा ? सम्भवतः दुनिया के इस सबसे लम्बे दाने वाले  गेहूं के बिकसित होने का इतिहास भी अदभुत है। एक किसान ने अपने खेत में गेहूं बो रखा था। उसमें उसे एक ऐसा पौधा दिखा जिसका तना पत्तियां तो गेहूं की तरह थे किंतु बाल बिचित्र तरह की थी। वह उसे गेहूं में जमने वाली कोई हमशक्ल घास समझता था । उसने अपने कौतूहल बने गेहूं को सर्जना के अध्यक्ष को दिखाया। उन्होंने उसे संरक्षित कर रखने की सलाह दी। बाद में उसमे गेहूं के दाने जैसे बड़े - बड़े दाने निकले । वह किसान तो उस गेहू को संरक्षित नहीं रख सका ? किन्तु परम्परागत अनाजो को संरक्षण करने वाली संस्था सर्जना ने उसे चुनौती के रूप में लिया एवं उस गेहूं का संरक्षण किया। पर नाम मालूम न होने के कारण फिलहाल उसका नाम सर्जना 1 ही रख दिया गया है। इस गेहूं का पौधा 3 फीट ऊंचा और मोटा व दाना अन्य गेहुओ से लगभग दो गुना लम्बा होता है। अभी इसके स्वाद के बारे में अध्ययन तो नही हुआ पर दाने का रंग चमकीला सर्बदी है। फसल अन्य गेहुओ से 7- 8 दिन लेट आती है। बौनी किस्म होने के कारण हो सकता है सिचाई अधिक ले ? किन्तु इस वर्ष पर्याप्त वर्षा होने के कारण उसका अध्ययन नही हो पाया। इसका आज 5 किग्रा बीज उपलब्ध है।  इसलिए अगले साल विधिवत अध्ययन हो सकेगा। बाल में दाने की पंक्ति 6 एवं हर पंक्ति में दाने की संख्या 8- 9 होती है।

गेंहू जिसकी बाल सफ़ेद लेकिन दाना काला 



हमारे तमाम गेहुंओ की किस्मो में एक गेंहू यह भी है, जिसका पौधा हरा पकने पर बाल सफेद किन्तु उसे  मीजने पर जो दाने निकलते हैं उनका रंग काला होता है। इसे हमने एक छोटे से भ-ूखण्ड में 10 कतारों में बोया था। पता नहीं इसे किस बैज्ञानिक ने अनुसन्धान कर बिकसित किया किन्तु यह बौनी किस्म का गेहूं है, जिसके तने की लम्बाई 3 फीट होती है। इसके बाल के एक कतार में 9-10 बिरल दाने होते हैं जो 6 की कतारों में होते हैं। इसकी चार पंक्ति में बड़े एवं दो में छोटे दाने निकलते हैं। इसमें कौन - कौन पोष्टिक तत्व किस मात्रा में होते हैं, यह नहीं मालूम । खाने में स्वाद कैसा है ? यह भी ज्ञात नहीं। क्यो कि थोड़ा सा बीज  केदार सैनी जी से प्राप्त हुआ था जिसे हमने उगाया था।

गेहूं की परम्परागत किस्म हंसराज



यह गेहूं की एक परम्परागत किस्म हंसराज  है। इसका दान सर्बदी रंग का चमकदार होता है। वर्षा आधारित खेती के लिए प्रकृति द्वारा सौगात के रूप में मिले इस गेहू का तना 4 फीट ऊँचा होता है ताकि वक्त जरूरत कुछ पानी वह लम्बे तने में संचित रख बीज को ठोस और चिलकदार बनाने में मददगार हो सके। एक दो बार सिंचाई हो जाय तो ठीक पर न हो तब भी चिन्ता से मुक्त। बाल में दाने बिरल किन्तु कतार में 9-10 की संख्या में व 6 पंक्ति जिसमे 4 में बड़े दाने 2 में छोटे दाने होते हैं। खाने में चाहे रोटी बने चाहे दलिया दोनों के लिए उपयुक्त है।

   यह कठिया की ही एक किस्म कठुई 



यह कठिया गेहूं की ही एक किस्म  कठुई है। कठिया की बाले गसे दाने की होती है और बाल में लम्बे टेढ़े से काटे उसकी पहचान है पर बालो के रंग से यह दो प्रकार का होता है। बाल सफेद किन्तु दाने मटमैले। बाल का रंग हल्का ललामी युक्त पर दाना मटमैला। यह दूसरे प्रकार का है जिसे कठिया के बजाय कठुई कहा जाता है। यह गेहूं की ऐसी किस्म है जिसे प्रकृति ने वर्षा आधारित खेती के लिए बनाया था। क्योकि अगर इसकी अधिक सिचाई हो गई तो फसल में गेरुआ लगने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल जब सिचाई के साधन नहीं थे तब नम खेत तो नवम्बर में ही बोने योग्य बतर में आते थे जिनमें किसान सर्बदी पिसी आदि गेहूं उगाते थे। पर कुछ ऐसी ऊंचे खेतो वाली भूमि होती जो 20 - 25 अक्टूबर तक ही बोने लायक हो जाती थी। ऐसे खेतो में यह कठुई किस्म ही अच्छी मानी जाती थी जो उस समय की धूप और गर्म मौसम बर्दास्त कर सकती थी। बाकी गेहूं उस गर्मी को बर्दाश्त नही कर पाते थे और पौधे सूख जाते थे। शर्त यह थी कि बुबाई थोड़ी गहरी की जाय। कठुई के बाल में दानों की कतार 6 और एक कतार में 8-9 दाने होते हैं, जिनमे 4 कतार के दाने मोटे व 2 के छोटे होते है। यह रोटी और दलिया दोनों के लिए अच्छा माना जाता है।

गेहूं की एक किस्म बसिया 



गेहूं की एक किस्म बसिया भी है। यह पूर्णतः लम्बे तने की परम्परागत किस्म है, जिसका बीज 4-5 वर्ष पहले झाबुआ की एक संस्था "सम्पर्क" से प्राप्त हुआ था। इसका दाना सर्बदी की तरह चमकीला बाल बिरल दाने युक्त 6 दानों के कतार में होती है जिसमे 4 में मोटे दाने और दो में पतले दाने होते हैं। एक कतार में नीचे से ऊपर तक दानों की संख्या 9-10 होती है व बड़ा तना होने के कारण अन्य परम्परागत किस्मो की तरह यह भी कुछ पानी तने में संचित रखता है।  जिससे सिचाई न हो तब भी दाने ठोस और चिलकदार ही पकते हैं। इसकी रोटी स्वादिष्ट होती है।
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