Monday, November 30, 2020

पृथ्वी परिक्रमा : प्रकृति से प्रेम की सीख देने वाली अनूठी परम्परा

  •   प्रणामी धर्मावलम्बी सैकडों वर्षों से कर रहे इस परम्परा का निर्वहन
  •   मंदिरों की नगरी पन्ना में आज पूरे दिन रही पृथ्वी परिक्रमा की धूम 

 

पृथ्वी परिक्रमा में शामिल श्रद्धालु जंगल और पथरीले रास्ते से गुजरते हुए। (फोटो - अरुण सिंह) 


अरुण सिंह,पन्ना। समूचे विश्व में भारत इकलौता देश है जहाँ सदियों पूर्व बसुधैव कुटुंबकम की उद्घोषणा की गई थी। यह इस देश की खूबसूरती है कि यहाँ पर विविध धर्मावलम्बियों की धार्मिक आस्थाओं व परम्पराओं को न सिर्फ पूरा सम्मान मिलता है अपितु उन्हें पल्लवित और पुष्पित होने का अवसर व अनुकूल वातावरण भी सहज उपलब्ध होता है। यही वजह है कि हमारे देश में हर धर्म और हर जाति के लोगों की अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं मौजूद हैं। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना शहर में लगभग 398 साल से चली आ रही है। प्राचीन भव्य मंदिरों के इस शहर में समूचे विश्व के प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र श्री प्राणनाथ जी का मंदिर स्थित है, जो प्रणामी धर्म के लिए विशेष तीर्थ स्थल माना जाता है।  इसी प्रणामी संप्रदाय के अनुयाई और श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। यहाँ किलकिला नदी के किनारे व पहाड़ियों के बीचों बीच बसे समूचे पन्ना नगर के चारों तरफ परिक्रमा लगाकर भगवान श्री कृष्ण के उस स्वरूप को खोजते हैं, जो कि शरद पूर्णिमा की रासलीला में उन्होंने देखा और अनुभव किया है। अंतर्ध्यान हो चुके प्रियतम प्राणनाथ को उनके प्रेमी सुन्दरसाथ भाव विभोर होकर नदी, नालों, पहाड़ों तथा घने जंगल में हर कहीं खोजते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं। 

 मंदिरों की नगरी पन्ना में सोमवार को आज पूरे दिन पृथ्वी परिक्रमा की धूम रही। कोरोना संकट के बावजूद देश के कोने-कोने से आये हजारों श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति भाव और उत्साह के साथ पृथ्वी परिक्रमा में भाग लिया। सैकड़ों फिट गहरे कौआ सेहा से लेकर किलकिला नदी के प्रवाह क्षेत्र व चौपड़ा मंदिर हर कहीं प्राणनाथ प्यारे के जयकारे गूँज रहे थे। रोमांचित कर देने वाले आस्था एवं श्रद्धा के इस सैलाब से पवित्र नगरी पन्ना  का कण-कण प्रेम और आनंद से सराबोर हो उठा है। मालुम हो कि प्रकृति के निकट रहने तथा विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख देने वाली इस अनूठी परम्परा को प्रणामी संप्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने आज से लगभग 398 साल पहले शुरू किया था, जो आज भी अनवरत् जारी है। इस परम्परा का अनुकरण करने वालों का मानना है कि पृथ्वी परिक्रमा से उनको सुखद अनुभूति तथा शान्ति मिलती है। महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर पन्ना के पुजारी देवकरण त्रिपाठी ने बताया कि पवित्र नगरी पन्ना में आज हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से आये सुंदरसाथ व स्थानीय जनों द्वारा पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होकर धर्मलाभ उठाया गया है। उन्होंने बताया कि कार्तिक शुक्ल की पूर्णमासी पर प्रात: 6  बजे से चारों मंदिरों की परिक्रमा के साथ पृथ्वी परिक्रमा का शुभारम्भ हुआ। सर्वप्रथम आये हुये श्रद्धालुओं ने पन्ना नगर में स्थित श्री प्राणनाथ जी मंदिर, गुम्मट जी मंदिर, श्री बंगला जी मंदिर, सद्गुरू धनी देवचन्द्र जी मंदिर, बाईजूराज राधिका मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ सिर नवाया तदुपरांत धूमधाम के साथ यात्रा शुरू की।


किलकिला नदी पारकर चौपड़ा मंदिर स्थित वट बृक्ष के नीचे विश्राम करते श्रद्धालु। 

 हजारों की संख्या में सुन्दरसाथ नाचते गाते, झूमते अपने मन में श्री जी की मनोहरी छवि को स्मरण कर पृथ्वी परिक्रमा के लिये बढ़ चले और जंगल के रास्ते से होते हुये प्राकृतिक व रमणीक स्थल चौपड़ा मंदिर पहुंचे। यहां पर प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करते हुये सुन्दरसाथ ने विश्राम किया साथ ही प्रसाद आदि ग्रहण किया और पास ही स्थित चौपड़ा जिसमें गंगा व यमुना दो प्राचीन जल स्त्रोत हैं वहां जल का पान कर अपनी अल्प थकान को मिटाकर फिर आगे बढ़ चले।

 नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से गुजरे श्रद्धालु 

नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से श्रद्धालु जब जयकारे लगाते हुए गुजर रहे थे, तब यह नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। कौआ सेहा की गहराई, चारो तरफ फैली हरीतिमा तथा जल प्रपात का कर्णप्रिय संगीत और जहाँ-तहाँ चट्टानों पर बैठकर विश्राम करती श्रद्धालुओं की टोली, सब कुछ बहुत ही मनभावन लग रहा था। जानकारों के मुताबिक इस परिक्रमा की दूरी करीब 27 किलोमीटर के आसपास होती है। पहाड़ी को पार करते हुये मदार साहब, धरमसागर, अघोर होकर यह विशाल कारवां खेजड़ा मंदिर में पहुंचा। यात्रा में रंग विरंगे कपड़े पहने मुस्कुराते बच्चे, सुन्दर परिधानों से सुसज्जित महिलायें, युवा, युवतियाँ व वृद्धजन अपने-अपने विशिष्ट अंदाज में दिखे। खेजड़ा मंदिर पहुंचने पर वहां महाआरती सम्पन्न की गई व प्रसाद वितरण हुआ। तत्पश्चात सभी सुन्दरसाथ कमलाबाई तालाब से होते हुये किलकिला नदी को पारकर उसी स्थान पर पहुंचे जहां से परिक्रमा शुरू की गई थी।

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