Tuesday, December 1, 2020

सुरक्षा और संरक्षण मिले तो निखरे कौआ सेहा का अप्रतिम सौंदर्य

  •  पन्ना शहर के निकट स्थित है यह प्राकृतिक मनोरम स्थल 
  • देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का बन सकता है केन्द्र 

कौआ सेहा के प्राकृतिक सौन्दर्य का विहंगम द्रश्य। 

अरुण सिंह, पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में प्रकृति के दिलकश नज़ारे मंत्रमुग्ध कर देने वाले हैं। प्रकृति ने यहाँ की धरती को जहाँ रत्नगर्भा बनाया है वहीँ हरी भरी पहाड़ियों, गहरे सेहों और खूबसूरत झरनों के रूप में उसके हस्ताक्षर जगह - जगह नजर आते हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि प्रकृति के अनुपम सौगातों का पन्ना के विकास की दिशा में रचनात्मक उपयोग हम नहीं कर सके हैं। बातें तो बहुत होती हैं लेकिन ठोस पहल व प्रयास नहीं होते। यही वजह है कि पर्यटन विकास की असीम संभावनाओं के बावजूद अभी तक यह जिला पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र नहीं बन सका है। यहां प्राचीन भव्य मन्दिरों के अलावा ऐतिहासिक महत्व के स्थलों, खूबसूरत जल प्रपातों व प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण मनोरम स्थलों की भरमार है। इनका समुचित ढंग से प्रचार-प्रसार न होने के कारण देशी व विदेशी पर्यटक इस जिले की खूबियों से अनभिज्ञ हैं। यदि पन्ना शहर के आसपास 10-15 किमी. के दायरे में स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थलों व जल प्रपातों का ही योजनाबद्ध तरीके से समुचित विकास हो जाये तो देशी और विदेशी पर्यटकों का यहाँ तांता लग सकता है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना शहर से बमुश्किल तीन-चार किलोमीटर दूर स्थित कौवा सेहा का अप्रतिम सौंदर्य देखने जैसा है। यदि इस प्राकृतिक सेहा तक सुगम मार्ग व यहां सुरक्षा के जरूरी इंतजाम करा दिए जाएं तो मानसून सीजन के अलावा भी पूरे वर्ष भर यह स्थल पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है। गत 30 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन आयोजित पृथ्वी परिक्रमा का कवरेज करने के लिए अपने एक मित्र के साथ मैं जब कौवा सेहा पहुंचा और यहां के विहंगम दृश्य को देखा तो अवाक रह गया। प्रकृति की इस अद्भुत रचना के सौंदर्य को यहां जाकर ही अनुभव किया जा सकता है। किलकिला नदी का पानी इस गहरे सेहा में जब सुमधुर संगीत के साथ सैकड़ों फीट नीचे गिरता है, तो उसे सुनकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। चोपड़ा मंदिर से किलकिला नदी को पार करके जंगल के रास्ते से पैदल जब हम यहां पहुंचे, तो कौवा सेहा के चारों तरफ पृथ्वी परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं का हुजूम नजर आ रहा था। सामान्य दिनों में यहां सन्नाटा पसरा रहता है और झरने के सुुुमधुर संगीत के बीच वृक्षों में कुल्हाड़ी चलने की आवाजें गूंजती हैं, जिससे यहां का माहौल बेहद डरावना प्रतीत होने लगता है। यदि यह स्थल विकसित हो जाए तो अवैध कटाई सहित अन्य गैरकानूनी गतिविधियों पर जहां रोक लग सकती है, वहीं उपेक्षा के चलते उजड़ रहा यह स्थल अप्रतिम सौंदर्य को पुन: प्राप्त हो सकता है।

 

  • कौवा सेहा से किलकिला नदी के प्रवाह मार्ग पर चलते हुए जब हम चोपड़ा मंदिर की ओर वापस लौटे तो किलकिला नदी की दुर्दशा को देख मन व्यथित हो गया। शहर के निकट से प्रवाहित होने वाली यह नदी जंगल से गुजर कर कौवा सेहा में गिरती है और आगे चलकर केन नदी में मिल जाती है। प्रणामी संप्रदाय में किलकिला नदी का वही महत्व है जो हिंदुओं के लिए गंगा नदी का है। यही वजह है कि किलकिला को प्रणामी संप्रदाय की गंगा कहा जाता है। लेकिन यह नदी इस कदर दूषित और विषाक्त है कि इसका पानी हाथ धोने के लायक भी नहीं है। पन्ना शहर की पूरी गंदगी इस नदी में पहुंचती है, जो इसे विषाक्त बनाए हुए है। नदी के प्रवाह क्षेत्र में दोनों तरफ कचरा और पॉलिथीन के ढेर जमा हैं। नदी किनारे स्थित वृक्षों के तने पॉलीथिन से पटे हुए हैं। पन्ना के विकास व सौंदर्यीकरण की बात करने वाले जनप्रतिनिधि व आला अधिकारी यदि किलकिला नदी को साफ स्वच्छ बनाने व कौवा   सेहा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में सार्थक पहल करें तो निश्चित ही यह पन्ना शहर पर न सिर्फ बहुत बड़ा उपकार होगा अपितु इससे रोजगार के नए अवसरों का सृजन व पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।

मालुम हो कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विगत 5 वर्ष पूर्व पन्ना प्रवास के दौरान यह घोषणा की थी कि पन्ना शहर के आस-पास स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थलों व जल प्रपातों का विकास कर यहां मानसून पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये प्रयास किये जायेंगे ताकि बारिश के मौसम में जब पन्ना टाईगर रिजर्व के गेट पर्यटकों के भ्रमण हेतु बंद हो जायें, उस समय भी पर्यटक यहां आकर प्रकृति के अद्भुत नजारों का आनन्द ले सकें। इससे यहां पर रोजगार के नये अवसरों का जहां सृजन होगा, वहीं मन्दिरों के शहर पन्ना को एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री जी की इस सोच व घोषणा की पन्नावासियों ने सराहना की थी, लेकिन 5 वर्ष गुजर जाने के बाद भी इस दिशा में कोई सार्थक पहल व प्रयास नहीं हुये। प्राकृतिक मनोरम स्थलों के विकास की मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा कब मूर्त रूप लेगी पन्तवासियों को उसका बेसब्री से इंतजार है।  

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