Thursday, November 19, 2020

कुपोषण के कलंक से क्यों नहीं मिल पा रही मुक्ति ?

  •  कोरोना के चलते संजीवनी अभियान की रफ़्तार भी हुई धीमी 
  • कुपोषित बच्चों को गोद लेने वाले लोग अब नहीं ले रहे रूचि 



अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले से कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिये विगत कुछ माह पूर्व शुरू किये गये पोषण संजीवनी अभियान की रफ़्तार अब धीमी पड़ चुकी है। जिन समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों ने कुपोषण को जड़ मूल से ख़त्म करने के इस अभियान में बड़े उत्साह के साथ जुड़कर कुपोषित बच्चों को गोद लिया था, उनमें से ज्यादातर लोग परिद्रश्य से गायब हो चुके हैं। कुपोषित बच्चों की क्या स्थिति है, यह जानने तथा उनकी खोजखबर लेने की अब उनको सुध नहीं है। मालुम हो कि पन्ना के पूर्व कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने कमलनाथ सरकार के समय संजीवनी अभियान की धूमधाम के साथ शुरुआत की थी।  उन्होंने अभियान से शासकीय अमले के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को जोडऩे का प्रयास किया था, जिससे यह कार्यक्रम जन आन्दोलन का रूप ले सके। इस अभियान के दौरान जिले के लगभग 3 हजार अतिकुपोषित बच्चों को संजीवनी अभिभावकों को गोद दिलाया गया। उस समय जिले में 5 हजार बच्चे चिन्हित किये गये थे, जिन्हें गोद दिलाकर कुपोषण से मुक्ति दिलाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन सत्ता बदलने के साथ ही अधिकांश संजीवनी अभिभावकों का उत्साह भी ठंढा पड़ गया है। 

अब बदली हुई परिस्थितियों में कुपोषण के खिलाफ जंग के लिए नई रणनीति बनाई गई है। संजीवनी अभिभावकों के मैदान से हट जाने पर अब फिर पूर्व की ही तरह कुपोषण मिटाने के लिए स्वास्थ्य एवं महिला बाल विकास विभाग को संयुक्त रूप से सक्रिय किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में कलेक्टर संजय कुमार मिश्र की अध्यक्षता में कुपोषण मिटाने संबंधी समीक्षा बैठक आयोजित हुई जिसमें उन्होंने दोनों विभागों को आपसी समन्वय के साथ कार्य करने के निर्देश दिये हैं। कलेक्टर ने कहा है कि  बच्चों, गर्भवती माताओं का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण, टीकाकरण के साथ पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जाये। बैठक में बताया गया कि सितंबर से अक्टूबर माह के मध्य 516 कुपोषित बच्चों का चिन्हांकन किया गया। इनमें 66 बच्चे ऐसे पाए गए जो बीमार थे और उन्हें पोषण पुर्नवास केन्द्र में भर्ती कराया गया। चिन्हित बच्चों को आवश्यकतानुसार दवाएं उपलब्ध कराई गई हैं। जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी ऊदल सिंह ने बताया कि जिले में 2433 महिलाओं की प्रथम प्रसव पूर्व जांच कराई गई है। किशोरी बालिकाओं 11 से 18 वर्ष तक आयु समूह की 45923 चिन्हित किशोरियों की जांच कराई गई, जिनमें 24455 किशोरी बालिकाओं की हिमोग्लोबिन जांच की गयी। इनमें 22260 किशोरियां सामान्य एवं 2195 बालिकाओं में रक्ताल्पता पायी गयी है। जिन्हें आयरन फोलिक एसिड टेबलेट प्रदाय की गयी। जिले में 3478 नवविवाहित महिलाओं को चिन्हित किया गया। इनमेें 3033 नवविवाहिताओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। स्वास्थ्य परीक्षण में 2786 महिलाओं का स्वास्थ्य सामान्य पाया गया। इनमें 254 नवविवाहिताओं में रक्ताल्पता पायी गयी, उन्हें आयरन फोलिक एसिड दवा दी गयी। इसी प्रकार जिले में 10416 धात्री माताओं को चिन्हित किया गया। इनमें स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान 909 महिलाओं में रक्ताल्पता पायी गयी, उन्हें आयरन फोलिक एसिड दवा दी गयी। बैठक में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एल.के. तिवारी द्वारा बताया गया कि ग्रामीण अंचलों में बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता नियुक्त हैं। उनके सहयोग से आंगनवाडी कार्यकर्ता, कुपोषित बच्चों, नवविवाहिता, धात्री माताओं का स्वास्थ्य परीक्षण कर आवश्यकतानुसार कार्यवाही करें। जिन बच्चों को पोषण पुर्नवास केन्द्र भेजने की आवश्यकता है उन्हें केन्द्र में भर्ती कराया जाये। इसके अलावा गर्भवती माताओं जिनको उपचार की आवश्यकता है उन्हें चिकित्सालय में भर्ती करायें। 

देश की 14 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित

 वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2020 में भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर दिखाया गया है। चूंकि इस सूचकांक में भारत को श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों से भी पीछे बताया गया है इसलिए उस पर खासी चर्चा हो रही है। 107 देशों में से केवल 13 देश ही कुपोषण के मामले में भारत से खराब स्थिति में दर्शाए गए हैं। वर्ष 2019 में भारत 117 देशों की सूची में 102वें स्थान पर था, जबकि 2018 में 103वें स्थान पर था। इस सूचकांक के साथ जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित है एवं बच्चों में बौनेपन की दर 37.4 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में करीब 69 करोड़ लोग कुपोषित हैं। यद्यपि यह रिपोर्ट यह कहती है कि भारत में बाल मृत्यु दर में सुधार हुआ है, जो अब 3.7 प्रतिशत है, परंतु यह दर अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है। विशेषज्ञों की मानें, तो सामाजिक योजनाओं का खराब कार्यान्वयन, कार्यक्रमों में प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने में स्वास्थ्य संस्थाओं की उदासीनता और बड़े राज्यों की खराब स्थिति के कारण समस्या और बढ़ी है। भारत की रैंकिंग में समग्र परिवर्तन के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के प्रदर्शन में सुधार की आवश्यकता है। 

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