- 9 माह में तय किया तीन हजार किमी. लम्बा सफर
- नये आशियाना व जीवन संगिनी की तलाश में की यात्रा
वह बाघ जिसने 3 हजार किमी. का सफर तय कर बनाया रिकॉर्ड। फोटो - बीबीसी |
।। अरुण सिंह ।।
इन दिनों एक बाघ चर्चा में हैं, जिसने अपने नाम 3000 किलोमीटर का सफर तय करने वाला रिकॉर्ड दर्ज किया है। दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमी व बाघों की जीवन चर्या पर रुचि रखने वाले लोग इस बाघ के हैरतअंगेज कारनामे से हतप्रभ हैं। इसके पहले कभी किसी बाघ ने इतनी लंबी दूरी तय की हो इसका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस लिहाज से यह बाघ अपने आप में न सिर्फ अनूठा है अपितु अपनी इस लंबी यात्रा में उसने बहुत कुछ बताने का भी प्रयास किया है। वॉकर नाम के इस बाघ ने महाराष्ट्र के टिपेश्वर अभयारण्य से जून 2019 में अपने सफर की शुरुआत कर महाराष्ट्र और तेलंगाना के 7 जिलों से गुजरता हुआ हिंगोली के ज्ञानगंगा अभयारण्य को अपना नया आशियाना बना लिया है।
अपने लिए बेहतर आशियाना जहां शिकार की प्रचुर उपलब्धता हो तथा जीवनसंगिनी की तलाश में कोई बाघ हर तरह की चुनौतियों को पार करते हुए 3000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है, इस बात पर सहसा भरोसा नहीं होता। लेकिन वॉकर ने यह अविश्वसनीय कारनामा न सिर्फ कर दिखाया है अपितु यह भी जता दिया है कि जंगल, वन्यजीवों व बाघों के बारे में हमारी जानकारी व ज्ञान कितना कम है। वॉकर नाम के इस बाघ ने इतना लंबा सफर तय किया इस बात का खुलासा इसलिए हो सका क्योंकि उसे पिछले वर्ष फरवरी में रेडियो कॉलर लगाया गया था। रेडियो कॉलर लगा होने के कारण वॉकर के लंबे सफर को जीपीएस सेटेलाइट के सहारे लगातार ट्रैक किया जाता रहा है। बाघ की इस यात्रा की अनूठी व दिलचस्प कहानी जहां चर्चा का विषय बनी हुई है, वहीं इस पर रोचक प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। एक व्यक्ति ने लिखा है कि वाह, इतना लंबा सफर और कोई झगड़ा नहीं, यह बाघ एक असली हीरो है। यदि इसे जीवनसंगिनी भी मिल जाए तो इसकी मेहनत सार्थक हो जाएगी।
पन्ना में भी बाघ टी-3 ने की थी यात्रा
मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से आबाद करने वाले नर बाघ टी-3 ने एक माह में साढे चार सौ किलोमीटर की यात्रा की थी। मालुम हो कि बाघ विहीन पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से दो बाघिन तथा एक नर बाघ लाया गया था। लेकिन बाघ टी-3 को नया ठिकाना रास नहीं आया और वह यहां लाए जाने के कुछ दिन बाद ही 27 नवंबर 2009 को अपने घर की तरफ कूच कर गया। पूरे एक माह तक इस बाघ का पीछा करते हुए बमुश्किल 26 दिसंबर 2009 को वापस पन्ना लाया जा सका। इसके बाद पेंच टाईगर रिज़र्व का यह बाघ यहीं का होकर रह गया। बाघिनों के संपर्क में आकर इस बाघ ने पन्ना को एक बार फिर से आबाद कर दिया, यही वजह है कि इस बाघ को "फादर ऑफ द पन्ना" का खिताब दिया गया। बाघ टी-3 के अलावा पन्ना के ही नर बाघ पी-212 ने भी फरवरी-मार्च 2014 में पन्ना से निकलकर रीवा जिले की आबादी वाले इलाकों तक जा पहुंचा था। जिसे पकड़कर संजय टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया। इस तरीके से इस बाघ ने भी केन से लेकर सोन तक का सफर तय किया था।
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Very good Tiger migration article with Panna comparisons. Congratulations Arunsingh ji.
ReplyDeleteVery good Tiger migration article with Panna comparisons. Congratulations Arunsingh ji.
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद सर।
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