Tuesday, March 31, 2020

कुदरत के आगे महाशक्तिमान भी बौने साबित होने लगते हैं


रास्ता एक ही है...
क्लाईमेट क्राइसिस विनाश लाएगा। इस बात को तो तमाम लोग लगातार चिल्ला-चिल्लाकर कहते रहे हैं। लेकिन, यह विनाश कैसी-कैसी शक्लें अख्तियार करेगा, इसके बारे में शायद ही पहले से किसी ने सही-सही कल्पना की हो। कुदरत जब विनाश की पटकथा लिखती है तो महाशक्तिमान भी बौने साबित होने लगते हैं।
कोरोना वायरस पर लाइव अपडेट उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट वर्ल्डओमीटर के मुताबिक जिस समय मैं यह शब्द लिख रहा हूं, उस समय तक दुनिया भर में कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों की संख्या सात लाख 42 हजार से ज्यादा हो चुकी है। जबकि, 35 हजार 341 लोग इससे मारे जा चुके हैं। बीमारी से ठीक होने वालों की संख्या एक लाख 57 हजार के लगभग है। इसकी तुलना जरा बीस दिन पहले से कीजिए। दस मार्च को इस बीमारी से दुनिया भर में पीड़ित लोगों की संख्या एक लाख 18 हजार के लगभग थी और तब तक चार हजार 296 लोग इसके चलते मारे जा चुके थे।
फिलहाल अमेरिका में इससे संक्रमित लोगों की संख्या एक लाख 44 हजार है और यहां पर 2600 लोगों की मौत हो चुकी है। इटली में इससे संक्रमित लोगों की संख्या 97 हजार के लगभग है यहां पर मरने वालों की संख्या दस हजार सात सौ के लगभग है। स्पेन में इससे संक्रमित लोगों की संख्या 85 हजार के लगभग है और यहां पर सात हजार से ज्यादा लोग इससे मारे जा चुके हैं। चीन में इससे संक्रमित हुए लोगों की संख्या 81 हजार के लगभग रही और यहां पर 33 सौ के लगभग लोग इस बीमारी से मारे गए हैं। बीमारी की भयंकरता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने यह मान लिया है कि अगर वो बहुत ही अच्छी तरह से भी काम करे तब भी एक से दो लाख लोगों की मौत इसके चलते हो सकती है।
ये सब तो बीमारी की भयावहता के आंकड़े हैं। लेकिन, यह सभी कुछ एक बहुत बड़ी सच्चाई की तरफ इशारा कर रहे हैं। बीते साल भर में दुनिया  को प्रभावित करने वाली जितनी भी घटनाएं हुई हैं, वो सभी पर्यावरण से संबंधित है। भयंकर गर्मियां, भयंकर सर्दियां, जंगलों में लगने वाली भयानक आग, भारी बारिश, तबाह करने वाला सूखा। सब कुछ एक साथ ही हमारे सामने दिखाई पड़ता है। इसके परिणाम भी ऐसे-ऐसे तरीकों से हमारे सामने आ रहा है जिसके आगे हॉलीवुड के पटकथा लेखकों की कल्पनाएं भी फीकी पड़ जा रही हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी यह मानना है कि हाल के कुछ सालों में इंसानों में आईं 70 फीसदी तक बीमारियों के संक्रमण वन्यजीवों से इंसानों में आए हैं। इबोला, बर्ड फ्लू, रिफ्ट वैली फीवर, सीवीयर एक्यूट रेस्पाइरेटरी सिन्ड्रोम यानी सार्स, मिडिल ईस्ट रेस्पाइरेटरी सिन्ड्रोम यानी मार्स, वेस्ट नील वायरस और जीका वायरस जैसी तमाम बीमारियां या संक्रमण वन्यजीवों से इंसानों के अंदर आए हैं। इसमें से इबोला जैसी बीमारी में मृत्यु की आशंका 50 फीसदी तो निपाह में मृत्यु की आशंका 60 से 70 फीसदी होती है। इनकी तुलना में कोरोना वायरस में मृत्यु की आशंका का प्रतिशत कम है लेकिन यह वायरस उनकी तुलना में बहुत ही ज्यादा संक्रामक है। इसी के चलते इसने कुछ ही महीनों में पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। पूरी दुनिया पर कोरोना का भूत चढ़ गया है।
इंसान हजारों तरीके से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में घुसपैठ कर रहा है। उसके पर्यावास को नष्ट कर रहा है। बहुत सारे वायरस इन वन्यजीवों के शरीर में रहते हैं। इसके चलते इन वन्यजीवों ने उन वायरस के खिलाफ अपने शरीर का प्रतिरोधक तंत्र भी विकसित कर रखा है। जब इन वन्यजीवों का खात्मा होने लगता है, उनकी संख्या कम होने लगती है, वन्यजीवों और इंसानों की दूरी कम होने लगती है तो वायरस को घुसने के लिए एक और शरीर मिलने लगता है। किसी भी वायरस के लिए सबसे अच्छा होस्ट मानव शरीर ही है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा शरीर मानवों के हैं। इसलिए अगर कोई वायरस मानव शरीर में रहने लायक बदलाव खुद में लाए तो इससे अच्छा उसके लिए कुछ भी नहीं होगा। बिना जीवित कोशिका के संपर्क में आए वायरस का अस्तित्व नहीं।
कोरोना वायरस ने अपने आपको ऐसे ही म्यूटेंट किया है। अब वह इंसान के शरीरों का मजा ले रहा है। वह हमारे अंदर अपना घर बना रहा है। एक बात और है। जिन बीमारियों से हम लगातार घिरे रहते हैं, उनसे निपटने का एक सिस्टम हमारे शरीर में भी रहता है। हमारा शरीर उन्हें पहचान कर उसे खतम कर देता है या फिर लड़ने की कोशिश करता है। लेकिन, जब कोई नया वायरस आता है तो हमारा शरीर उसके सामने निहत्था साबित होता है।
शरीर बिना हथियार के उसके सामने बेबस होता है। जाहिर है बहुत सारे लोग इसे अपनी प्रतिरोधक क्षमता से हरा देंगे। बहुत सारे लोगों ने ऐसा किया भी है। लेकिन, पहले से ही कमजोर, अन्य बीमारियों से पीड़ित लोग हो सकता है कि ऐसा नहीं कर पाए। इसके अलावा, पूरी दुनिया के स्वास्थ्य व्यवस्था पर यह इतना बड़ा बोझ है कि उसके आगे इसे पूरी तरह चरमरा ही जाना है।
बड़ा दुर्भाग्य है कि आज दुनिया के सामने जो भी परेशानियां, मुसीबतें और चुनौतियां हैं, उनका मुकाबला समानता, भाईचारे और समाजवाद की विचारधारा से ही किया जा सकता है। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें जो कुछ भी मौजूद हो, वह सबके लिए हो। वह सिर्फ कुछ लोगों की सुविधा के लिए नहीं हो। अफसोस कि ऐसे समय में भी यह दुनिया मुश्किल से दस हजार विशालकाय कंपनियों की इच्छा पर चलाई जा रही है। हर निर्णय जो लिया है, वह इन्हीं का पेट भरने के लिए होता है। बाकी अरबों लोगों के जीवन की परवाह किसे है।
जाहिर है कि ऐसे तो यह लड़ाई जीती नहीं जा सकती।
@ कबीर संजय की फेसबुक वॉल से साभार 


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