Tuesday, March 24, 2020

ध्वनि और वायरस



पिछले दिनों कोरोना से संबंधित राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी जी ने शंख, घण्टा आदि बजाने की बात कही। किसी ने इसे ढोंग कहा तो किसी ने विज्ञान, तहक़ीक़ात के लिये मैं भी कुछ अध्ययन करने लगा। मैंने अपने कुछ मित्रों से सम्पर्क किया तो पता चला कि यह एक विज्ञान है और चिकित्सा के क्षेत्र में भी अब ध्वनि का प्रयोग किया जाने लगा है। दिल की नसों में कैल्शियम जमा होने से ब्लॉक हो चुकी धमनी का सफल इलाज इंट्रा वैस्कुलर शॉकवेव लिथोट्रिप्सी पद्धति से होने लगा है। संगीत के सहारे ध्वनि के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी लोगों के पास तानसेन आदि संगीतज्ञों के द्वारा तो है ही।
वर्तमान स्थिति में उपजे इस सवाल पर गंभीरता से विस्तार से कार्य करने की आवश्यकता है।
ध्वनि मूल रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक तरंगों के रूप में गमन करती है। ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य यांत्रिक तरंगें होती हैं। ध्वनि तरंगें ध्रुवित (Polarised) नहीं हो सकती हैं। ध्वनि तरंगों के गमन के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। इन तरंगों में व्यतिकरण (interference) होता है। ध्वनि तरंग  (sound waves) वस्तुत यांत्रिक तरंगें होती हैं। जिन यांत्रिक तरंगों की आवृत्ति 20Hz से 2000Hz के बीच होती है, उनकी अनुभूति हमें अपने कानों के द्वारा होती है, और इन्हें हम ध्वनि के नाम से पुकारते हैं।
ध्वनि तरंगों का आवृत्ति परिसर-
अवश्रव्य तरंगें। इस  (infrasonic waves) : 20Hz से नीचे से आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंगें कहते हैं। इसे हमारा कान नहीं सुन सकता है प्रकार की तरंगो को बहुत बड़े आकर के स्रोत्रों से उत्पन्न किया जा सकता है।
श्रव्य तरंगें  (audible waves): 20Hz से 2000Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंगें कहते हैं। इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है।
पराश्रव्य तरंगें (ultrasonic waves): 2000Hz  से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहा जाता है. मुनष्य के कान इसे नहीं सुन सकता है. परंतु कुछ जानवर जैसे रू- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि, इसे सुन सकते है. इन तरंगों को गाल्टन की सीटी के द्वारा तथा दाब वैद्युत प्रभाव की विधि द्वारा क्वार्ट्ज के क्रिस्टल के कंपन्नों से उत्पन्न करते है. इन तरंगो की आवृत्ति बहुत ऊंची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है. साथ ही इनका तरंगदैधर्य छोटी होने के कारण इन्हें एक पतले किरण पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है।
पराश्रव्य तरंगें के उपयोग बहुत अधिक जगहों पर किया जाता है। जैसे- संकेत भेजने में, समुद्र की गहराई का पता लगाने में, कीमती कपड़ो, वायुयान तथा घड़ियों के पुर्जो को साफ़ करने में, कल-कारखानों की चिमनियों से कालिख हटाने में, दूध के अंदर के हानिकारक जीवाणुओं की नष्ट में, गठिया रोग के उपचार एवं मष्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने में। इस तरह पराश्रव्य तरंगों की उपयोगिता चिकित्सा विज्ञान में भी ली जाती है।
चूँकि पराश्रव्य तरंगें चमगादड़ जैसे जानवर सुन सकते है और कोरोना ग्रुप के कोविड-19 की उत्तपत्ति में चमगादड़ से मानव में प्रवेश की बात की गयी है तो तरंग पर कार्य होने की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जाना चाहिये।
इसलिये मेरी व्यक्गित राय है कि पशुओं के डकहा रोग और मनुष्यों में हो रहे कोरोना ग्रुप के कोविड-19 में कोई न कोई साम्यता है क्योंकि मिथिला में पशुओं के बीच होने वाले डकहा रोग को तरंगों के माध्यम से भगाने की परंपरा रही है। उम्मीद है चिकित्सा विज्ञान और तरंग विज्ञान पर कार्य करने वाले अध्येताओं का ध्यान इस ओर जायेगा।
00000

No comments:

Post a Comment