Saturday, March 14, 2020

होली के समय इस बार सुर्ख नहीं हुये पलाश के पेड़

  • मार्च के महीने में होली से पहले फूलों से लद जाते थे पेड़
  • पलाश के फूलों पर हुआ है बदले मौसम का सबसे अधिक असर


पन्ना शहर के निकट इंद्रपुरी कॉलोनी में पुष्प विहीन उदास नजर आते पलाश के पेड़। ( फोटो - अरुण सिंह )

अरुण सिंह, पन्ना। रंगों के पर्व होली और पलाश के सुर्ख फूलों का पुरातन काल से गहरा नाता रहा है। होली में पलाश के फूलों से निर्मित प्राकृतिक रंग के उपयोग की समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र में परंपरा रही है। लेकिन इस वर्ष होली में न तो पलाश के सुर्ख फूल नजर आये और न ही इन फूलों से बने रंग। होली के समय इस बार पलाश के पेड़ सूने और उदास दिखाई दिये। हर साल मार्च के महीने में होली के समय रंग-बिरंगे फूलों से पलाश के पेड़ लदे होते थे, लेकिन इस साल सूने पड़े हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मौसम का सबसे अधिक असर पलाश के फूलों पर हुआ है। उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प अमूमन होली के समय अपने शबाब पर होता था, लेकिन इस बार सतपुरा से लेकर विंध्यांचल के जंगल तक सूने दिख रहे हैं। विशेषज्ञ इसकी वजह असामान्य मौसम को मान रहे हैं और इसे गंभीर जलवायु परिवर्तन का संकेत भी बता रहे हैं।
 उल्लेखनीय हैं कि पलाश में अमूमन फरवरी के अंत तक फूल आते हैं और जून तक इसके बीज तैयार हो जाते हैं। होली के समय इन फूलों को चुनकर इससे प्राकृतिक रंग बनाया जाता है। पलाश के फूल चुनकर आदिवासी बाजार में बेजते हैं। इसके अलावा फूलों की डाल पर लाह नामक पदार्थ भी इकट्ठा होता है जिसकी बाजार में कीमत 300 से 400 रुपए किलो होती है। इसका उपयोग गहने बनाने और दवा उद्योग में होता है। विभिन्न भाषाओं में पलाश को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे हिंदी में टेसू, केसू, ढाक या पलाश, गुजराती में खाखरी या केसुदो, पंजाबी में केशु, बांग्ला में पलाश या पोलाशी, तमिल में परसु या पिलासू, उड़िया में पोरासू, मलयालम में मुरक्कच्यूम या पलसु, तेलुगु में मोदूगु, मणिपुरी में पांगोंग, मराठी में पलस और संस्कृत में किंशुक नाम से जाना जाता है। पलाश को वैज्ञानिक भाषा में ब्यूटिया मोनोस्पर्मा कहते हैं। मार्च माह में पूरा पेड़ सिंदूरी यानि लाल रंग के फूलों से लद जाता है और मीलों दूर से यह अपनी मौजूदगी की सूचना देता है। इसी वजह से इसे फ्लेम ऑफ़ फौरेस्ट यानि जंगल की आग भी कहते हैं।
पलाश भारतबर्ष के सभी प्रदेशों और सभी स्थानों सहित बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बहुतायत से पाया जाता है। पन्ना के जंगलो में भी पलाश की बहुलता है। पन्ना शहर के इंद्रपुरी कॉलोनी में दर्जनों की संख्या में पलाश के पेड़ आज भी बचे हुये हैं। बीते साल ये पेड़ इस मौसम में सुर्ख लाल नजर आ रहे थे लेकिन इस साल बेरौनक और उदास से खड़े हैं। अनगिनत खूबियों और गुणों वाला यह वृक्ष मैदानों और जंगलों ही में नहीं, 4 हजार फुट ऊँची पहाड़ियों की चोटियों तक पर किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है। वृक्ष बहुत ऊँचा नहीं होता, मझोले आकार का होता है। क्षुप झाड़ियों के रूप में अर्थात् एक स्थान पर पास पास बहुत से उगते हैं। पत्ते इसके गोल और बीच में कुछ नुकीले होते हैं जिनका रंग पीठ की ओर सफेद और सामने की ओर हरा होता है। पत्ते सीकों में निकलते हैं और एक में तीन तीन होते हैं। इसकी छाल मोटी और रेशेदार होती है। लकड़ी बड़ी टेढ़ी मेढ़ी होती है। कठिनाई से चार पाँच हाथ सीधी मिलती है। इसका फूल छोटा,अर्धचंद्राकार और गहरा लाल होता है। फूल को प्रायः टेसू कहते हैं और उसके गहरे लाल होने के कारण अन्य गहरी लाल वस्तुओं को लाल टेसू कह देते हैं। फूल फागुन के अंत और चैत के आरंभ में लगते हैं। उस समय पत्ते तो सबके सब झड़ जाते हैं और पेड़ फूलों से लद जाता है जो देखने में बहुत ही भला मालूम होता है। फूल झड़ जाने पर चौड़ी चौ़ड़ी फलियाँ लगती है जिनमें गोल और चिपटे बीज होते हैं।

उपयोगी और औषधीय गुणों से होता है भरपूर 

पलास के पत्ते प्रायः पत्तल और दोने आदि के बनाने के काम आते हैं। राजस्थान और बंगाल में इनसे तंबाकू की बीड़ियाँ भी बनाते हैं। फूल और बीज ओषधि रूप में उपयोग होते हैं। वीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से है। फूल को उबालने से एक प्रकार का ललाई लिए हुए पीला रंग भी निकलता है जिसका खासकर होली के अवसर पर उपयोग किया जाता है। फली की बुकनी कर लेने से वह भी अबीर का काम देती है। छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है। जड़ की छाल से जो रेशा निकलता है उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं। दरी और कागज भी इससे बनाया जाता है।  मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं। शरीर में घाव होने पर इसके छिलके को कुचलकर लगाने से घाव भर जाता है। बकले के अन्दर के गूदे को उबालकर पीने से छाले मिट जाते हैं और दाँत का दर्द ठीक हो जाता है।  इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है। पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है। पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता। यह वृक्ष हिंदुओं के पवित्र माने हुए वृक्षों में से हैं जिसका उल्लेख वेदों तक में मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इससे प्राप्त लकड़ी से दण्ड बनाकर द्विजों का यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है।
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1 comment:

  1. Very nice blog. Thank you so much for sharing with us! Please share some Phoolon ki holi 2023 videos.

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