Friday, March 20, 2020

ओ री गौरैया कुछ तो बता तू खो गई है कहां?

  • घर आँगन से गायब हो रही है खूबसूरत चिडिय़ा गौरैया

         

    •  विश्व गौरैया दिवस पर इस नन्ही चिडिय़ा को बचाने लें संकल्प

    नन्हीं चिडिय़ा गौरैया की चहचहाहट अब गुम हो रही । 
    अरुण सिंह,पन्ना। ओ री गौरैया कुछ तो बता तू खो गई है कहां, तेरे बिन सूना-सूना है घर अंगना हमरा यहां। घर-आंगन में दिन उगने के साथ ही नजर आने वाली नन्हीं चिडिय़ा गौरैया की चहचहाहट अब गुम हो रही है। आबादी के भीतर हमारे बीच रहने वाला यह खूबसूरत पक्षी आखिर अब कम क्यों नजर आ रहा है, गौरैया का कम होना कहीं बिगड़ते प्राकृतिक संतुलन की ओर इशारा तो नहीं है। हमें इन मिलते इशारों से समय रहते सबक लेकर गौरैया पक्षी के संरक्षण व उसे बचाने की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिये ताकि घर-आंगन की रौनक बनी रहे। आज विश्व गौरैया दिवस है जिसके बहाने गौरैया से जुड़ी यादें सोशल मीडिया पर भी लोग बड़े ही भावनात्मक अंदाज में साझा कर रहे हैं जो इस बात का संकेत है कि इस नन्ही चिडिय़ा का लोगों से कितना जुड़ाव है।
    उल्लेखनीय है कि 20 मार्च को हर वर्ष विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। तेजी के साथ गुम हो रहे इस पक्षी के संरक्षण व इसे बचाने के लिये लोगों में जागरूकता लाने के मकसद से यह पहल शुरू की गई है, लेकिन अभी भी अधिसंख्य लोग इस रचनात्मक पहल के प्रति गंभीर व संवेदनशील नहीं हैं। जरा सोचिये यदि हमारे घर व आंगन में हर समय फ ुदक-फ ुदक कर दाना चुगने व चहचहाने वाली गौरैया गुम हो जाये तो हमें कैसा लगेगा? इस नन्हें परिंदे की गैर मौजूदगी के क्या मायने होंगे तथा उसका हमारे जीवन और पर्यावरण पर क्या असर पड़ेगा? इन सारे पहलुओं पर चिंतन जरूरी हो गया है ताकि समय रहते वे सारे उपाय किये जा सकें जिससे गायब होती गौरैया को बचाया जा सके।

                                  

     मौजूदा समय गौरैया पक्षी अपने अस्तित्व को बचाने के लिये मनुष्यों और अपने आस-पास के वातावरण से जद्दोजहद कर रही है। ऐसे समय में हमें इन पक्षियों के लिये वातावरण को इनके अनुकूल बनाने में सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि इनकी चहचहाहट कायम रहे। गौरैया का कम होना एक तरह का इशारा है कि हमारी
    आबोहवा, हमारे भोजन और हमारी जमीन में कितना प्रदूषण फैल गया है। कीटनाशकों का अधाधुंध प्रयोग होने से पक्षियों पर क्या असर हो रहा है, इसकी कोई चिन्ता और फिक्र नहीं की जा रही है। पहले तो पेड़ कटते थे, लेकिन अब जंगल कट रहे हैं। पेडों की जगह बिजली के खम्भों, मोबाइल टावर्स तथा बहुमंजिली इमारतों ने ले ली है। इंसान ने बढ़ती आबादी के लिये तो जगह बनाई लेकिन न जाने कितने पशु - पक्षी इसके चलते बेघर हो रहे हैं, उनका दाना-पानी छिन रहा है। हमेशा झुण्ड में आबादी के अन्दर रहने वाले गौरैया पक्षी की तेजी के साथ घटती संख्या को हर कोई महसूस करता है लेकिन गौरैया को बचाने तथा उसके लिये अनुकूल वातावरण व आबोहवा तैयार करने के लिये बहुत ही कम लोग आगे आ रहे हैं। कहा जाता है कि किसी भी प्रजाति को यदि खत्म करना हो तो उसके आवास और उसके भोजन को खत्म कर दो। कहीं गौरैया पक्षी के साथ भी यही तो नहीं हो रहा। घास के बीज, अनाज के दाने और कीडे-मकोडे गौरैया का मुख्य भोजन है, जो पहले उसे घरों में मिल जाता था, लेकिन अब शायद ऐसा नहीं है। गौरैया चिडिय़ा बहुत ही संवेदनशील पक्षी है, मोबाइल फोन तथा उनके टावर्स से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन से भी उनकी आबादी पर असर पड़ रहा है। विकास के नाम पर प्रकृति और पर्यावरण से हो रहे खिलवाड़ के बावजूद प्रकृति ने हर जीव को विपरीत परिस्थितियों में जिन्दा रहने की क्षमता प्रदान की है, यही वजह है कि गौरैया की चहक आज भी हम सुन पा रहे हैं। लेकिन यह चहक हमेशा बनी रहे इसके लिये सजगता और संवेदशीनता जरूरी है।

    चिडिय़ों के बिना सब सूना

    परिंदे प्रकृति की अनुपम सौगात हैं, इनके बिना यह जग सूना और बेरौनक हो जायेगा। हरियाली और जंगल इन्हीं चिडिय़ों की देन है, ये परिंदे ही जंगल बनाते हैं। तमाम प्रजातियों के वृक्ष तो तभी उगते हैं जब कोई परिंदा इन वृक्षों के बीजों को खाता है और वह बीज उस पक्षी की आहारनाल से पाचन की प्रक्रिया से गुजरकर जब कहीं गिरता है तभी उसमें अंकुरण होता है। फलों को खाकर धरती पर इधर - उधर बिखेरना और परागण की प्रक्रिया में सहयोग देना इन्हीं परिन्दों का अप्रत्यक्ष योगदान है। कीट पतंगों की तादाद पर यही परिंदे नियंत्रण करते हैं। विश्व गौरैया दिवस पर आईये हम सब इस खूबसूरत चिडिय़ा को बचाने की शपथ लें। यह नन्ही चिडिय़ा कहीं गई नहीं है बस रूठ गई है। हमें उसे मनाना होगा देकर थोड़ा दाना-पानी प्यार से बुलाना होगा।
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