Thursday, February 25, 2021

पन्ना टाइगर रिजर्व में नये तरह के संकट ने दी दस्तक

  •  यहां के जंगल में खतरनाक किस्म के खरपतवारों का फैलाव होने से बढ़ी मुसीबत 
  •  शाकाहारी वन्य जीवों के लिए उपयोगी घास के मैदानों में भी हुई घुसपैठ
  •  गाजर घास, खिरैंती व वन तुलसी का जंगल में तेजी से हो रहा फैलाव
  •  खरपतवारों के फैलते साम्राज्य को न रोका गया तो घास के मैदानों को होगा नुकसान

पन्ना टाइगर रिज़र्व का मड़ला स्थित प्रवेश द्वार। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में एक नये किस्म के संकट ने दस्तक दे दी है। यहां के जंगल में रहने वाले शाकाहारी वन्य प्राणियों के लिए बेहद जरूरी और उपयोगी घास के मैदानों में जिस तरह से गाजर घास, खिरैंती व वन तुलसी जैसी वनस्पतियों (खरपतवारों) का तेजी से फैलाव हो रहा है, वह आने वाले समय में बड़ी मुसीबत बन सकती है। पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में स्थित घास के मैदानों पर भी इन खतरनाक खरपतवारों की घुसपैठ हो चुकी है। इस घुसपैठ पर समय रहते यदि प्रभावी रोक नहीं लगाई गई तो घास के मैदानों पर आश्रित रहने वाले चीतल, सांभर, चिंकारा व चौसिंगा जैसे शाकाहारी वन्य जीवों का कुनबा संकट में पड़ सकता है। जाहिर है कि इसका असर मांसाहारी वन्य प्राणियों विशेषकर बाघ और तेंदुओं की सेहत पर भी पड़ेगा।

 

उमरावन वीट में गाजर घास के फैलते साम्राज्य का नजारा। 

उल्लेखनीय है कि खरपतवार भी कहने को तो वनस्पतियों की ही श्रेणी में आते हैं, लेकिन इनकी सबसे बड़ी खूबी कहें या दोष वह यह है कि यह बिना किसी देखरेख और सुरक्षा के तेजी के साथ फैलते हैं। इन खरपतवारों में सबसे ज्यादा खतरनाक गाजरघास है, जिसका वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। इसकी घुसपैठ शहर, गांव और खेतों के बाद अब जंगल में भी हो चुकी है। यह एक ऐसी खतरनाक बनस्पति है कि जहां फैलती है वहां की दूसरी बनस्पतियों के वजूद को खत्म कर देती है। वन्य जीव तो क्या मवेशी भी गाजर घास को खाना तो दूर उसके पास फ़टकना भी पसंद नहीं करते। क्योंकि इसके संपर्क में आने से कई तरह की एलर्जी हो जाती है।

 

चन्द्रनगर रेंज के रैपुरा घास मैदान में खिरैंती या छमछी के फैलाव का द्रश्य। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के उपसंचालक जरांडे ईश्वर राम हरि ने भी स्वीकार किया कि गाजरघास सहित वन तुलसी व खिरैंती या छमछी का फैलाव निश्चित ही हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। चूंकि इन वनस्पतियों को वन्य प्राणी खाते भी नहीं हैं और इनके विस्तार से दूसरी उपयोगी वनस्पतियों व घास को नुकसान पहुंचता है। इसलिए जंगल में इनके विस्तार को रोकना तथा प्रभावी उन्मूलन बेहद जरूरी है। आपने बताया कि वन तुलसी व खिरैंती या छमछी पूरे टाइगर रिजर्व क्षेत्र में है, जबकि गाजरघास का फैलाव तालगांव में ज्यादा है।

उप संचालक श्री जरांडे ने बताया कि पूर्व में पन्ना टाइगर रिजर्व के भीतर जो गांव थे, उनका विस्थापन हो जाने के बाद वहां पर घास के मैदान निर्मित हुए हैं। घास के ये मैदान शाकाहारी वन्य प्राणियों के लिए बेहद जरूरी हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व की जीवन रेखा कही जाने वाली केन नदी के किनारे स्थित घास के मैदान बहुत ही अच्छे हैं। यहां चीतल, चिंकारा, व चौसिंगा जैसे वन्यजीवों को उनकी पसंद वाली हरी भरी घास सुगमता से मिल जाती है। 

उन्मूलन के बाद चन्द्रनगर रेंज के रैपुरा घास मैदान का नजारा। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में पीपरटोला, तालगांव व भडार के घास मैदान अच्छी श्रेणी में गिने जाते हैं। लेकिन खरपतवारों की घुसपैठ होने तथा उनके विस्तार को देखते हुए टाइगर रिजर्व के इन घास मैदानों के साथ-साथ जंगल को इनकी चपेट में आने से बचाना पार्क प्रबंधन की प्राथमिकता बन चुकी है। श्री जरांडे ने बताया कि खरपतवार उन्मूलन पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा घास के नये मैदान विकसित करने की योजना पर भी अमल किया गया है। आपने बताया कि गाजरघास सहित अन्य दूसरे खरपतवारों के फैलाव की रोकथाम का एकमात्र तरीका यही है कि फूल आने से पहले इनके पौधों को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर दिया जाये। इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जा रहा है।

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