Tuesday, February 23, 2021

पन्ना में बाघों का कुनबा बढऩे से मवेशी बन रहे आसान शिकार

  •  कोर क्षेत्र की तुलना में शाकाहारी वन्य जीवो की संख्या बफर में कम 
  •  यहां प्रे पापुलेशन बढ़ाने घास के मैदान विकसित करने की बनी रणनीति

जंगल में आराम फरमाता बाघ परिवार। 

।। अरुण सिंह, पन्ना ।।

मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में जिस गति से बाघों का कुनबा बढ़ा है, उसी अनुपात में शाकाहारी वन्य प्राणियों की खपत में भी इजाफा हुआ है। मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलोमीटर में वयस्क एवं अर्ध वयस्क बाघों की संख्या 60 के आसपास है, जबकि कोर क्षेत्र में वयस्क बाघों की धारण क्षमता 30 के लगभग है। ऐसी स्थिति में बुजुर्ग हो चुके व युवा बाघ आशियाना की तलाश में कोर क्षेत्र से बाहर निकल रहे हैं। कोर से बाहर बफर के जंगल में चूंकि शाकाहारी वन्य प्राणियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, इसलिए यहां रहने वाले मवेशी इन बाघों का आसान शिकार बन रहे हैं।

 उपसंचालक पन्ना टाइगर रिजर्व जरांडे ईश्वर राम हरि ने बताया कि बीते 10 माह (1 अप्रैल से जनवरी 21 तक) के दौरान बाघ और तेंदुओं ने 350 से 400 छोटे-बड़े मवेशियों का शिकार किया है। जिसके लिए 30 लाख रुपये का मुआवजा भी दिया गया है। आपने बताया कि वर्ष 2009 के बाद बाघों की संख्या बढऩे के साथ-साथ मवेशियों के शिकार की घटनाओं में वृद्धि दर्ज हुई है। मवेशियों के शिकार की सबसे ज्यादा घटनाएं पन्ना कोर रेंज से लगे बफर क्षेत्र में हुई हैं। अमानगंज बफर क्षेत्र जहां बाघों के प्राकृतिक भोजन सांभर, चीतल व जंगली सुअर जैसे वन्य जीवों की कमी है, वहां मवेशियों का शिकार अधिक हो रहा है। श्री जरांडे ने बताया कि एक बाघ को साल भर में खाने के लिए लगभग 3 हजार किलोग्राम मांस चाहिए, जिसकी पूर्ति बफर क्षेत्र में वन्य प्राणियों से नहीं हो पा रही। यही वजह है कि बाघ और तेंदुआ बफर क्षेत्र में विचरण करने वाले मवेशियों का शिकार करके अपना पेट भरते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए बफर क्षेत्र को बाघों के लिए अनुकूल बनाने के प्रयास तेज किए जा रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि बफर क्षेत्र में शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या बढऩे के साथ-साथ वहां छिपने के लिए जंगल व पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो।

 घास विशेषज्ञ प्रो. गजानन मूरतकर पन्ना टाइगर रिजर्व के अमले को जानकारी देते हुए। 

गौरतलब है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलोमीटर है। इस विशाल क्षेत्र में सिर्फ कुछ इलाके ही ऐसे हैं जो बाघों के लिए अनुकूल कहे जा सकते हैं। जबकि बफर के अन्य इलाके मानवीय गतिविधियां अधिक होने व अन्य व्यवधानों के चलते अनुकूल नहीं हैं। कैमरा ट्रैप से बाघों के विचरण क्षेत्र का जो डाटा मिला है, उसके मुताबिक अकोला बफर बीते 1 वर्ष से जहां बाघों का पसंदीदा क्षेत्र बना हुआ है, वहीं अमानगंज बफर व किशनगढ़ बफर क्षेत्र के जंगल में भी बाघों की मौजूदगी पाई गई है। कोर क्षेत्र से लगे इन सभी इलाकों में जहां बाघों का मूवमेंट हो रहा है, वहां पर घास के मैदान विकसित किये जाने की योजना बनाई गई है, ताकि सांभर, चीतल, चिंकारा व चौसिंगा जैसे शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या बढ़ सके। श्री जरांडे ने बताया कि इसके लिए अभी हाल ही में हिनौता में दो दिवसीय कार्यशाला का भी आयोजन किया गया है। इस कार्यशाला में घास मैदान विशेषज्ञ प्रोफेसर गजानन मूरतकर ने शाकाहारी वन्य जीवों के लिए उपयोगी घास के मैदान कैसे विकसित किए जायें, इसकी जानकारी प्रदान की गई। आपने बताया कि बाघों की बढ़ती संख्या को दृष्टिगत रखते हुए भविष्य की जरूरत के अनुरूप रणनीति तैयार कर उस पर अमल शुरू कर दिया गया है।

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