Monday, February 15, 2021

खेती किसानी के पुराने औजार जो अब धरोहर बन गये

  •  पन्ना के पड़ोसी जिले बांदा में कृषक ने बड़े जतन से सहेजा है खेती के औजार 
  •  हीरों की नगरी में बन रहे डायमंड म्यूजियम से कम नहीं है यह अनूठा म्यूजियम 

पड़ोसी जिले बांदा में बड़ोखर खुर्द गांव के किसान प्रेम सिंह द्वारा बनाये गये म्यूजियम की झलक।  

।। अरुण सिंह,पन्ना।। 

खेती किसानी के क्रमिक विकास का इतिहास जितना पुराना है उतना ही रोचक भी है। आजादी से पहले जब हमारे देश में औद्योगिक विकास न के बराबर था, उस जमाने में देश की अधिसंख्य आबादी खेती-किसानी पर ही आश्रित थी। तब खेती करने के लिए जो औजार उपयोग में लाए जाते थे, उनकी खोज भी किसानों ने ही की थी। इन उपयोगी कृषि औजारों का निर्माण भी गांव में किया जाता रहा है। लेकिन तकनीकी विकास के साथ-साथ खेती किसानी में उपयोग किए जाने वाले पुराने औजारों की जगह आधुनिक यंत्रों ने ले ली है। इसका परिणाम यह हुआ है कि अब उन पुराने औजारों को नये जमाने के किसान भूलने लगे हैं। जबकि खेती के ये औजार हमारी पुरातन संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं।

 इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बड़ोखर खुर्द गांव के किसान प्रेम सिंह ने खेती किसानी से जुड़ी पुरातन संस्कृति को नष्ट होने से बचाने के लिए खेती में उपयोग किए जाने वाले पुराने औजारों को बड़े ही जतन से सहेजा है। उनका यह अनूठा प्रयास एक म्यूजियम का रूप ले चुका है, जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। प्रेम सिंह ने सिर्फ यह म्यूजियम ही नहीं बनाया अपितु उन्होंने खेती की एक ऐसी देसी पद्धति भी विकसित की है, जिसके जरिए वे न सिर्फ सुकून की जिंदगी जी रहे हैं बल्कि पूरी तरह से आत्मनिर्भर भी हैं। विंध्य क्षेत्र में जैविक खेती की अलख जगाने वाले तथा धान की तकरीबन 200 प्रजातियों का संरक्षण करने वाले पद्मश्री बाबूलाल दहिया जी भी खेती किसानी में उपयोग किए जाने वाले पुराने औजारों के म्यूजियम को देखकर उसकी सराहना की है।

खेती के पुराने औजारों को निहारते पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी। 

 मालुम हो कि देश भर में अनेकों म्यूजियम हैं जहां पुरातन संस्कृति व कला को संरक्षित किया गया है। यहां तक कि विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र भी सहेज कर रखे गये हैं। लेकिन ऐसा म्यूजियम शायद ही कहीं मिले जहां खेती किसानी के पुराने औजारों को सहेजा गया हो। यह कितने आश्चर्य की बात है कि जहां अधिसंख्य आबादी खेती किसानी पर आज भी आश्रित है, उन अन्नदाता किसानों के जीवन संघर्ष की न तो गाथा लिखी गई और न ही उनकी कला और संस्कृति को सहेजने का प्रयास किया गया। इतिहास उन्हीं का लिखा गया जो हमारे लुटेरे रहे हैं। इन अर्थों में बांदा जिले के छोटे से गांव बड़ोखर खुर्द के प्रेम सिंह की पहल व प्रयास निश्चित ही सराहनीय और काबिले तारीफ है।

गौरतलब है कि हीरो और मंदिरों के शहर पन्ना में प्रशासनिक पहल से डायमंड म्यूजियम का निर्माण कराया जा रहा है। इस म्यूजियम में बेशकीमती रत्न हीरों के बारे में जहां रोचक जानकारी प्रस्तुत की जाएगी, वहीं इसे आकर्षक बनाने के लिए अन्य गतिविधियों को भी जोड़ा जाएगा। पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती से हीरा सदियों से निकाला जाता रहा है और आज भी यहां पर हीरा की खदानें संचालित हैं, जहां से हीरा निकलता है। इस लिहाज से पन्ना में डायमंड म्यूजियम के निर्माण का अपना महत्व है। लेकिन खेती किसानी के पुरातन औजारों को सहेजने और उसे म्यूजियम के रूप में विकसित करने की एक कृषक की पहल निश्चित ही अनूठी है। इस म्यूजियम से आने वाली पीढ़ी को अपने पुरखों के संघर्ष गाथा की झलक मिल सकेगी।

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