Thursday, February 11, 2021

एनएमडीसी से भी पहले मझगवां में होता था हीरों का उत्खनन

  •  11 नवंबर 1936 को पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडिकेट ने शुरू किया था कार्य 
  •  तत्कालीन पन्ना नरेश ने इस मौके पर दिया था ऐतिहासिक उद्घाटन भाषण 

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की प्रसिद्ध मझगवां हीरा खदान। फोटो - अरुण सिंह 

।। अरुण सिंह।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में पाये जाने वाले हीरों का इतिहास बहुत पुराना है। मुगल काल 16वीं शताब्दी में भी यहां पर हीरा की खदानें चलती रही हैं, इस बात का उल्लेख कई जगह मिलता है। पन्ना की विश्व प्रसिद्ध मझगवां हीरा खदान की जहां तक बात है तो यहां पर एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना द्वारा वर्ष 1966 से छोटे संयंत्रों द्वारा बहुत ही कम मात्रा में हीरों का उत्पादन शुरू किया गया था। बाद में इस परियोजना को आधुनिक तकनीक से सुसज्जित कर इसकी उत्पादन क्षमता 1लाख कैरेट प्रति वर्ष कर दी गई।

मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है, जिसे पुन: शुरू कराने के लिए हर स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। मालूम हो कि एनएनडीसी द्वारा अब तक मझगवां खदान से लगभग 13 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन किया जा चुका है, जबकि तकरीबन 8.5 लाख कैरेट हीरे अभी भी इस खदान में दबे हुए हैं जिन्हें निकाला जाना शेष है।

"दि डायमंड माइन्स ऑफ़ पन्ना स्टेट इन सेंट्रल इंडिया" पुस्तक का एक अंश। 

 उल्लेखनीय है कि पन्ना से लगभग 20 किलोमीटर दूर मझगवां पाइप की खोज 1827 में कैप्टन फ्रैकलिन ने की थी। इस बात का जिक्र पन्ना दरबार की अनुमति से दि टाइम्स ऑफ इंडिया प्रेस बॉम्बे द्वारा प्रकाशित पुस्तक "दि डायमंड माइन्स ऑफ़ पन्ना स्टेट इन सेंट्रल इंडिया" में भी है। अंग्रेजी में प्रकाशित इस पुस्तक के लेखक उस समय के प्रसिद्ध माइनिंग जियोलॉजिस्ट के.पी. सिनौर हैं। वर्ष 1930 में प्रकाशित इस पुस्तक में एक अध्याय मझगवां खदान पर केंद्रित है। जिसमें जिक्र किया गया है कि कैप्टन फ्रैकलिन और डॉ. मेडलीकॉट ने यहां विजिट किया था। पन्ना की हीरा खदानों के संबंध में 90 वर्ष पूर्व लिखी गई इस महत्वपूर्ण पुस्तक में कहा गया है कि मझगवां में हीरो की उपलब्धता के बारे में स्थानीय लोगों को पूर्व से जानकारी थी। लेकिन दुर्भाग्य से इस बात का कोई रिकार्ड व अभिलेख नहीं है, जिससे यह पता चले कि मझगवां खदान में हीरों की खोज का काम कब से चल रहा है तथा उस समय इस खदान से प्रतिवर्ष कितने हीरे निकाले जाते रहे हैं। मझगवां हीरा खदान को पूर्व में स्थानीय लोग "धाराकिरन" के नाम से जानते थे। पुस्तक में बताया गया है कि महाराजा रुद्र प्रताप सिंह के समय स्टेट इंजीनियर मिस्टर मेनली ने यहां एक बड़ा गड्ढा खुदवाया था। इस पुस्तक के लेखक व जियोलॉजिस्ट के.पी. सिनौर ने वर्ष 1930 में इसे किंबरलाइट नाम दिया।

मुगल काल में उन्नति पर था हीरा व्यवसाय 


 पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडिकेट के उद्घाटन अवसर पर महाराजा के भाषण का अंश। 

तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा यादवेंद्र सिंह जूदेव ने ठीक धनतेरस के दिन 11 नवंबर 1936 को पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडिकेट का उद्घाटन किया था। इस मौके पर महाराजा ने जो भाषण दिया वह बेहद महत्वपूर्ण है तथा उस समय की स्थिति पर भी प्रकाश डालता है। उद्घाटन अवसर पर सर चिनुभाई माधोलाल बैरोनेट ने भी अपने विचार व्यक्त किए थे। महाराज यादवेंद्र सिंह जूदेव ने अपने उद्बोधन में कहा था कि हीरा व्यवसाय मुगल राज्य काल में बड़ी ही उन्नति दशा में था। मुगल राज्य की अवनति के समय से बुंदेलखंड में अशांति रहने के कारण यह व्यवसाय अवनति को प्राप्त हो गया था। जब इसमें पुनरुत्थान के कुछ चिन्ह दृष्टिगोचर हो रहे थे, उसी समय दक्षिण अफ्रीका में हीरा की खदानों के निकल आने और फिर शीघ्र उनकी वैज्ञानिक उन्नति ने इस व्यवसाय को धक्का पहुंचाया। लेकिन यहां की खदान खोदने वालों के अविकसित उपायों से काम लेने पर भी यह कार्य अभी तक चालू रहा और लगभग 1 लाख की आमदनी प्रत्येक वर्ष होती रही। 

श्री जूदेव ने कहा कि मुझे यह विश्वास दिलाया गया कि यदि इस व्यवसाय को उचित रूप से हाथ में लिया जाए और इसका विकास किया जाए तो उसका भविष्य बड़ा ही उज्जवल होगा। मुझे सदैव इस बात की भी चिंता थी कि मेरी प्रजा के हृदय में, जो सदर में एक प्रकार से इसी व्यवसाय पर ही अपना जीवन निर्वाह करती है, यह भाव न उत्पन्न हो जाय कि यह व्यवसाय पूर्णत: बाहरी लोगों के हाथ में देकर उनको उनकी जीविका से वंचित कर दिया गया है।

महाराजा ने हीरा धारित क्षेत्र के भूगर्भ की कराई थी जांच

 पन्ना के हीरा व्यवसाय को उन्नति प्रदान करने के लिए महाराजा यादवेंद्र सिंह जूदेव द्वारा एक अनुभवी भूगर्भ  विद्यावेत्ता से यहां के भूगर्भ की विस्तृत रूप से जांच कराई थी। अपनी खोज के परिणाम को भूगर्भवेत्ता के.पी. सिनौर ने एक पुस्तक के रूप में 1930 में प्रकाशित किया। महाराजा ने बताया कि यह रिपोर्ट बहुत ही आशाजनक सिद्ध होने पर मैंने अपने मंत्रियों को हीरा खदानों की वैज्ञानिक उन्नति के संबंध में बाहरी महाजनों से पत्र व्यवहार करने के लिए आदेश दिया। उन्होंने बताया की पॉलिटिकल मिनिस्टर कर्नल जोरावर सिंह को इस कार्य के लिए विशेष रूप से नियुक्त किया गया। मुझे बड़ा हर्ष है कि उन लोगों का परिश्रम सफल हुआ। सर चिनु भाई की ओर इशारा करते हुए महाराजा ने कहा कि आपकी कंपनी से जो शर्ते हुई हैं, उनसे मुझे विश्वास है कि खदान का कार्य आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से होते हुए हमारी प्रजा के अर्थ लाभ व कार्य रुचि की भी पूर्ण रक्षा होती रहेगी। मुझे इसमें और भी अधिक प्रसन्नता इस बात की है कि इस व्यवसाय की उन्नति एक प्रख्यात भारतीय कंपनी के द्वारा हो रही है। इस तरह से मझगवां हीरा खदान 11 नवंबर 1936 से 1959 तक पन्ना डायमंड माइनिंग सिंडीकेट द्वारा संचालित की जाती रही है। इसके बाद 1966 में एनएमडीसी (राष्ट्रीय खनिज विकास निगम) की मझगवां में एंट्री होती है। तब से मझगवां खदान में एनएमडीसी द्वारा हीरों का उत्खनन किया जा रहा है।

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