- झाड़-फूंक नहीं, जान बचाने अस्पताल जाकर समय पर इलाज जरुरी
- देश में हर साल 58 हजार से भी अधिक लोग होते हैं काल कवलित
जहरीले सांप जिनके काटने से होती है अधिकांश लोगों की मौत। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। बारिश के मौसम में सर्पदंश की घटनाएं सर्वाधिक होती हैं। हमारे देश में हर साल 58 हजार से भी अधिक लोग सांप के काटने से असमय काल कवलित हो जाते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि अपने देश में पाये जाने वाले सांपों की तमाम प्रजातियों में सिर्फ रसेल वाइपर, कोबरा, करैत और सॉ स्केल्ड वाइपर ही जहरीले होते हैं। शेष प्रजाति के सांपों में जहर नहीं होता फिर भी इतने लोगों की मौत आखिर क्यों हो जाती है ?
पन्ना टाइगर रिज़र्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता बताते हैं कि सर्पदंश से होने वाली 90 फीसदी मौतें भय के कारण हार्ट अटैक से होती हैं। इसलिए कम से कम भारत में पाये जाने वाले चार जहरीले सांपों की पहचान सभी को बचपन से कराई जानी चाहिए। जहरीले सांपों की पहचान होने पर सर्पदंश की स्थिति में झाड़-फूंक में समय बर्बाद करने के बजाय पीड़ित व्यक्ति को तुरन्त अस्पताल ले जाकर एंटी-स्नेक वेनम दवा देनी चाहिए। क्योंकि जहरीले सांप के काटने पर झाड़-फूंक से कोई फायदा नहीं होने वाला, देरी करने पर जहर फैलने से मृत्यु हो जाती है। लेकिन यदि समय पर एंटी-स्नेक वेनम दवा दे दी गई तो जान बच जाती है।
डॉ. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना लैण्ड स्केप में तीन तरह के जहरीले सांप कोबरा, रसेल वाइपर व करैत पाये जाते हैं। ज्यादातर मौतें इन्ही जहरीले साँपों के काटने से होती हैं। बिना जहर वाले साँपों के काटने से जिन लोगों की मौत होती है उसकी वजह अज्ञानता और भय है। बिना जहर वाले साँपों के काटने से पीड़ित लोगों को ही झाड़-फूंक से आराम मिल जाता है, क्योंकि इससे मरीज की मनोदशा भयमुक्त हो जाती है। लेकिन जहरीले सांप के काटने से यह युक्ति काम नहीं आती।
सांपों से सबसे ज्यादा मुठभेड़ किसानों-मजदूरों की होती है। तीन बेहद आसान उपायों से इससे बचा जा सकता है। काम करते समय रबड़ के बूट व हाथों में दस्ताने पहनें और रात में निकलने से पहले रोशनी (टॉर्च) की व्यवस्था जरूर करें। गांवों में अभी भी किसान टूटी चप्पल पहनकर और फावड़ा लेकर रात के अंधेरे में पानी लगाने निकल पड़ता है। यह बेहद खतरनाक है, इससे आपकी और सांप दोनों की जान खतरे में पड़ जाती है।
कैसे करें जहरीले सांपों की पहचान
पीटीआर के रेस्क्यू दल में शामिल तस्लीम खान जो सांप पकड़ने में दक्ष हैं। |
अब तक हजारों सांपों को पकड़ कर उन्हें सुरक्षित जंगल में छोडऩे वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के रेस्क्यू दल के सदस्य तस्लीम खान बताते हैं कि पन्ना जिले में कोबरा व करैत के काटने से ज्यादातर लोगों की मौत होती है। कोबरा काले रंग का होता है तथा फन फैलाकर बैठता है, जबकि करैत में ऑडी धारियां होती हैं। बाइपर में अजगर की तरह छपके होते हैं तथा यह बेहद जहरीला होता है, जो कुकर की तरह सीटी मारता है।
वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता ने बताया कि कोबरा व करैत न्यूरोलाइटिक होता है। इनका जहर नर्व के माध्यम से चढ़ता है। जहां काटता है वहां सूजन व दर्द होता है। जबकि बाइपर ह्यूमोलाइटिक होता है, जहां काटता है वहां से बूंद-बूंद करके खून निकलता रहता है। खून का जमना बंद हो जाता है। डॉ. गुप्ता कहते हैं कि आम जनमानस में जहरीले सांपों के बारे में जागरूकता जरूरी है। सबको यह पता होना चाहिए कि इनके काटने पर उपचार अस्पताल में उपलब्ध है, झाड़-फूंक से कुछ नहीं होगा।
जंगल में वनकर्मी कैसे करते हैं बचाव
पन्ना टाइगर रिज़र्व का रेस्क्यू दल जिन्होंने इस विशाल अजगर को पकड़कर सुरक्षित जंगल में छोड़ा। |
जंगल खासकर रिजर्व वन क्षेत्र जहां मैदानी वनकर्मी झोपड़ी व वन सुरक्षा चौकियों में रहकर जंगल व वन्य प्राणियों की निगरानी चौबीसों घंटे करते हैं। जहरीले सांपों से बचने के लिए वन कर्मी झोपड़ी के चारों तरफ एक नाली खोदते हैं, जो एक-डेढ़ फीट गहरी व इतनी ही चौड़ी होती है। इस एंटी स्नेक ट्रेंच के कारण सांप झोपड़ी में नहीं आते। इसके अलावा लहसुन को पीसकर उसका घोल बनाकर छिड़काव करते हैं, इससे सांप नहीं आते। जंगल में ट्रैकिंग के समय वन कर्मी बड़े जूता पहनते हैं तथा लाठी ठोकते हुए चलते हैं। लाठी के कंपन से सांप भाग जाता है।
इन तमाम बातों के बावजूद सांप किसानों के मित्र होते हैं। वे ईकोसिस्टम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूहे जैसे किसानों के दुश्मनों का वे सफाया करके उपज बढ़ाते हैं। उनकी ज्यादातर प्रजातियां जहरीली नहीं होती। इसलिए ज्यादा जरूरत इस बात की है कि उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानें और सतर्क रहें।
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