- वन अमले की कमी से जूझ रहा है पन्ना टाईगर रिजर्व
- रेन्जरों के कई पद रिक्त, डिप्टी संभाल रहे रेन्ज की कमान
- सुरक्षा तंत्र और बाघों का मॉनिटरिंग सिस्टम भी हुआ कमजोर
- अवैध कटाई व शिकार की घटनाओं पर नहीं लग पा रहा अंकुश
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पन्ना स्थित क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व का कार्यालय। |
अरुण सिंह,पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में एक बार फिर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। वन परिक्षेत्राधिकारियों सहित मैदानी वन अमले की भारी कमी से जूझ रहे पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा व मॉनिटरिंग के लिये जो सिस्टम विकसित किया गया था, वह जहां कमजोर हुआ है वहीं व्यवस्था में भी खामियां नजर आने लगी हैं। यही वजह है कि पन्ना टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में जंगल की अवैध कटाई व शिकार की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है। मौजूदा हालातों को देखते हुये पर्यावरण के हितैषी व वन्य जीवन प्रेमी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अथक प्रयासों के बाद इस गौरवशाली मुकाम तक पहुँचा पन्ना टाईगर रिजर्व कहीं अतीत में हुई गलतियों को दोहराते हुये फिर से 2009 की ओर तो नहीं लौट रहा ?
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प्रशिक्षु वन अधिकारियों को पार्क भ्रमण कराते हुये आर. श्रीनिवास मूर्ति । (फाइल फोटो) |
उल्लेखनीय है कि 10 वर्ष पूर्व पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल शोक गीत में तब्दील हो गया था। यहां पर स्वच्छन्द रूप से विचरण करने वाले बाघ सुरक्षा प्रबन्ध की नाकामी और लापरवाही के चलते एक-एक करके तिरोहित हो गये थे। इस इलाके का जंगल शिकारियों और अपराधियों की शरण स्थली बन चुका था और स्थानीय लोग भी पन्ना टाईगर रिजर्व के विरोध में आवाज उठाने लगे थे। ऐसी विकट और विपरीत परिस्थितियों में उस समय शासन ने पन्ना टाईगर रिजर्व की कमान भारतीय वन सेवा के अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति को सौंपी और यहां पर उजड़ चुके बाघों के संसार को फिर से बसाने का एक नया अध्याय शुरू हुआ। बेहद ईमानदार और दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी वन अधिकारी श्री मूर्ति ने बड़ी सूझबूझ के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों, क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों तथा आम जनता का सहयोग व समर्थन हासिल करने के लिये प्रयास किया, जिसमें उन्हें काफी हद तक कामयाबी भी मिली। बाघ पुनर्स्थापना योजना को कामयाब बनाने के लिये उनके अथक श्रम, जुनून और जज्बे से लोग बेहद प्रभावित हुये और उनके ईमानदार प्रयासों की न सिर्फ सराहना करने लगे अपितु अपनी सहभागिता भी निभाने लगे। इस बदले हुये माहौल को और अनुकूल बनाने के लिये श्री मूर्ति ने जन समर्थन से बाघ संरक्षण का नारा दिया, जो लोगों को जोडऩे में मददगार साबित हुआ।
शून्य से शुरू हुआ सफर 52 तक पहुँचा
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नन्हे शावकों के साथ बाघिन। (फाइल फोटो) |
बाघ पुनर्स्थापना योजना का सफर वर्ष 2009 में शून्य से शुरू हुआ और अप्रैल 2010 में ही नन्हे शावकों के आने से पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल गुलजार हो गया। कामयाबी का यह सफर निरन्तर आगे बढ़ता रहा, जिससे पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल न सिर्फ बाघों से आबाद हुआ अपितु पन्ना में जन्मे बाघ आस-पास के वन क्षेत्रों में पहुँचकर वहां के जंगल को भी गुलजार किया है। बाघ पुनर्स्थापना योजना के शुरू होने से लेकर अब तक यहां पर 90 से भी अधिक शावकों का जन्म हो चुका है। पार्क सूत्रों के मुताबिक पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में मौजूदा समय आधा सैकड़ा से भी अधिक लगभग 52 बाघ विचरण कर रहे हैं। जबकि पन्ना टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र व आस-पास के जंगल में भी यहां जन्मे तकरीबन डेढ़ दर्जन बाघों की मौजूदगी है। पन्ना की इसी कामयाबी ने म.प्र. को एक बार फिर टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अपनी अनूठी कामयाबी को लेकर देश ही नहीं पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट करने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व विभिन्न समस्याओं से जूझते हुये अपने वजूद और बुन्देलखण्ड की धरोहर को बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है।
रेन्जर, डिप्टी रेन्जर, वनपाल व वनरक्षक के 82 पद रिक्त
प्रदेश को टाईगर स्टेट का दर्जा मिलने पर हर कहीं खुशी और जश्न का माहौल है, बधाईयों का भी आदान-प्रदान हो रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत चिन्ता में डालने वाली है। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में रेन्जर सहित डिप्टी रेन्जर, वनपाल व वनरक्षकों के कुल 82 पद रिक्त हैं। हालात ये हैं कि रेन्ज की कमान डिप्टी रेन्जर संभाल रहे हैं। ऐसी स्थिति में बाघों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी यह विचारणीय है। गौरतलब है कि वन अधिकारियों, मैदानी कर्मचारियों के अथक श्रम व जनता के समर्थन से प्रदेश को जो गौरव हासिल हुआ है, उसे कायम रखने के लिये रिजर्व वन क्षेत्रों तथा बाघों के वासस्थलों की सुरक्षा व्यवस्था व संरक्षण के प्रयासों को और सुदृढ़ करना होगा। पन्ना टाईगर रिजर्व में वर्ष 2009 की फिर पुनरावृत्ति न हो इसके लिये रिक्त पड़े पदों की अविलम्ब पूर्ति करने के साथ ही नकारा, आरामतलब और भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों को चिह्नित कर उनकी जगह पर्यावरण व संरक्षण में रूचि रखने वाले योग्य और कर्मठ लोगों की पदस्थापना करनी होगी। अतीत में यहां जो गलतियां हुई हैं, उनसे सीख लेने की महती आवश्यकता है। यहां के बाघ पन्ना ही नहीं समूचे बुन्देलखण्ड की धरोहर और गौरव के प्रतीक हैं जिनकी सुरक्षा व संरक्षण की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों की भी है। आने वाले समय में यही बाघ पन्ना के विकास व यहां के लोगों का जीवन स्तर सुधारने में सहभागी बनेंगे।
चारा कटर कर रहे महावत का कार्य
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मानसून सीजन में जंगल की निगरानी करते हुए पन्ना टाइगर रिज़र्व के प्रशिक्षित हांथी। |
मानसून सीजन में जब पर्यटकों के भ्रमण हेतु टाईगर रिजर्व के द्वार तीन माह के लिये बन्द हो जाते हैं, उस समय दुर्गम और पहुँच विहीन क्षेत्रों में सुरक्षा और मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी पार्क के हाँथी निभाते हैं। लेकिन आश्यर्च और चिन्ता की बात यह है कि पन्ना टाईगर रिजर्व में स्वीकृत महावतों के कुल 6 पदों में सिर्फ एक पद भरा हुआ है। ऐसी स्थिति में यहां पर महावतों का काम चारा कटरों या अप्रशिक्षित टेम्प्रेरी महावतों से लिया जा रहा है। बारिश के इस मौसम में वन क्षेत्रों के आस-पास शिकारियों की सक्रियता बढ़ जाती है जिसे देखते हुये प्रशिक्षित हाँथियों का बेहतर उपयोग जरूरी होता है। क्योंकि वन क्षेत्र के कई इलाकों में गाडिय़ों से इस मौसम में नहीं पहुँचा जा सकता। शासन को इस समस्या की ओर भी ध्यान देना चाहिए ताकि टाईगर रिजर्व के कोर सहित बफर क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर हो सके।
बफर में भी कोर जैसी व्यवस्था जरूरी: भदौरिया
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के.एस. भदौरिया क्षेत्र संचालक। |
पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बाघों की संख्या बढऩे से यहां के बाघ बाहर निकल रहे हैं। टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में कई बाघों ने अपना ठिकाना बना लिया है, जिसे देखते हुये हम कोर क्षेत्र की तरह बफर क्षेत्र में भी सुरक्षा व निगरानी तंत्र विकसित करने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। इसके लिये संवेदनशील स्थलों पर सुरक्षा चौकियां बनाई गई हैं। क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने बताया कि रेन्जर सहित वन कर्मचारियों के कई पद रिक्त हैं जिससे व्यवस्था बनाने में दिक्कतें आ रही हैं। रिक्त पदों की पूर्ति के लिये प्रयास किये जा रहे हैं तथा वन क्षेत्र से लगे ग्रामों में लोगों को जागरूक कर उन्हें भी जोड़ा जा रहा है ताकि जन समर्थन से बाघ संरक्षण का नारा चरितार्थ हो।
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