- सूखी उबड़ - खाबड़, बंजर जमीन में तैयार कर दिया हरा-भरा जंगल
- भरतपुर गांव के 55 वर्षीय भैयाराम यादव सही अर्थों में बने वृक्ष पुरुष
।। अरुण सिंह ।।वृक्ष पुरुष भैयाराम यादव |
गहन दुःख, संताप और पीड़ा के क्षणों में भी कभी-कभी सृजन के अंकुर फूट पड़ते हैं। ऐसी मनोदशा में जब जीवन व्यर्थ और अर्थहीन प्रतीत होने लगता है उस निर्णायक क्षण में व्यक्ति या तो आत्मघाती कदम उठाने की ओर जाने -अनजाने अग्रसर हो जाता है या फिर उसकी जिंदगी में आमूलचूल परिवर्तन होता है, जिंदगी की दिशा ही बदल जाती है। इसके लिए कोई भी छोटी घटना, विचार व बात जिंदगी के नजरिए में बदलाव लाने की वजह बन जाती है। ऐसा ही कुछ घटित हुआ चित्रकूट के अंतर्गत आने वाले भरतपुर गांव के निवासी भैयाराम यादव के साथ।
भैयाराम के संबंध में प्रियंका गाँधी का ट्वीट |
विगत 20 वर्ष पूर्व तक भैयाराम भी एक साधारण ग्रामीण की तरह अपने परिवार के साथ जीवन यापन कर रहा था। लेकिन उनकी जिंदगी में ऐसा वज्रपात हुआ कि पूरी जिंदगी का ताना - बाना ही छिन्न-भिन्न हो गया। हालात ये हो गये कि गांव के लोग इन्हें पागल समझने लगे। लेकिन जिंदगी बड़ी उलट और रहस्यपूर्ण होती है, कभी-कभी तथाकथित समझदारों से पागल समझे जाने वाले लोग कहीं ज्यादा गहरी समझ वाले और संवेदनशील साबित होते हैं। भैया राम यादव भी कुछ ऐसे ही बिरले व्यक्ति हैं जिन्होंने विगत 12 वर्षों के दौरान वह कर दिखाया है जिसे करने की कल्पना भी समझदार लोग नहीं कर सकते। बीते 12 वर्षों में गांव से दूर सूखी पड़ी उबड़ - खाबड़ भूमि में 40 हजार पौधे बड़े कर एक हरा-भरा जंगल तैयार कर दिया है। रोपे गए पौधों को जीवन देने के लिए भैया राम को मीलों दूर से पानी ढोकर लाना पड़ता था लेकिन प्रतिकूल हालात व परिस्थितियों ने भैया राम यादव की दृढ़ इच्छाशक्ति व जुनून के सामने हार मान ली और आज उस जमीन में हरा भरा जंगल लहलहा रहा है।
सही अर्थों में वृक्ष पुरुष बन चुके भैया राम यादव की जिंदगी में यदि झांके तो वहां दुःख, कष्ट और पीड़ा के पहाड़ दिखाई देते हैं। बताते हैं कि वर्ष 2001 में भैयाराम की पत्नी ने बच्चे को जन्म देते समय दम तोड़ दिया था, पत्नी की मौत ने निश्चित ही भैया राम को बहुत गहराई तक आहत किया रहा होगा। लेकिन नवजात शिशु ने उनकी जिंदगी को एक मकसद और उद्देश्य दे दिया। इन्होंने बच्चे को बड़े प्यार और जतन से पाला लेकिन अस्तित्व को शायद कुछ और ही मंजूर था, फलस्वरूप 7 वर्ष की उम्र में उनके बेटे की भी मौत हो गई। पत्नी और पुत्र के वियोग में काफी दिनों तक भैयाराम यहां वहां भटकते रहे। उसी दौरान उन्हें कहीं यह वाक्य पढ़ने को मिला श्एक वृक्ष 100 पुत्र समानश् । इस स्लोगन को पढ़ते ही भैया राम के अंतरतम में बिजली सी कौंधी और क्षण भर में ही उनका रूपांतरण हो गया। जिंदगी की दिशा व सोच ने एक नया आयाम ले लिया। भैया राम अपने गांव वापस लौट आए और पेड़-पौधों को ही अपनी संतान मानने लगे। उन्होंने गांव से कुछ दूरी पर एक झोपड़ी बनाई और पेड़-पौधों की सेवा में जुट गए। बीते 12 वर्षो में उन्होंने 40 हजार पौधों को पाल पोसकर बृक्ष बनाने में कामयाबी हासिल की है। यही वजह है कि 55 वर्षीय भैयाराम यादव न सिर्फ अपने गांव अपितु समूचे प्रदेश में अब वृक्ष पुरुष के रूप में जाने जा रहे हैं।
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