Saturday, July 27, 2019

पांच साल में विकास खा गया 1 करोड़ 9 लाख पेड़



विकास पिछले पांच सालों में एक करोड़ नौ लाख से ज्यादा पेड़ों को खा गया। देश की संसद में कल यानी शुक्रवार को पर्यावरण मंत्रालय की ओर से इसकी जानकारी दी गई। लोगों को फल, छाया और प्राणवायु मुहैया कराने वाले ये दरख्त आज कहां हैं। इनकी कोई कब्र भी तो नहीं कि वहां जाकर निशानदेही की जा सके। कब्र पर फूल चढ़ाए जा सकें। अहसान जताया जा सके कि हां तुम्हारी दी हुई सांस पर हम जीवित रहे हैं।
लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से बाबुल सुप्रियों द्वारा शुक्रवार को बताया गया कि वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच में सरकार ने विकास कार्यों के लिए एक करोड़ नौ लाख पेड़ों को काटने की अनुमति दी। सबसे ज्यादा 26 लाख 91 हजार पेड़ काटने की अनुमति वर्ष 2018-19 में दी गई। वर्ष 14-15 में 23 लाख तीन हजार, 15-16 में 16 लाख नौ हजार, 16-17 में 17 लाख एक हजार, 17-18 में 25 लाख पांच हजार पेड़ काटने की अनुमति दी गई। मंत्रालय ने यह भी बताया कि जंगल में लगने वाली आग के चलते कितने पेड़ काटे गए या नष्ट हो गए, इसका डाटा उसके द्वारा नहीं रखा जाता। यह सरकार द्वारा दी गई अनुमति की जानकारी है। इसके अलावा चोरी-छिपे भी कितने पेड़ काटे गए, इसका क्या अनुमान किया जा सकता है।
विकास क्या है। क्या कंक्रीट की सड़कें और शीशे की इमारतें ही विकास हैं। या इनसान की खुशहाली और पृथ्वी का संरक्षण विकास है। बड़ा विरोधाभास है। लेकिन, यह ऐसा विरोधाभास है, जिस पर जूझने के लिए कम से कम अब तो समाज को तैयार हो जाना चाहिए। सरकार कहती है कि हर काटे गए पेड़ के बदले दस पेड़ लगाए जाते हैं, लेकिन, क्या वो दस के दस पेड़ जीवित बचे रह पाते हैं। अगर सौ साल के एक पेड़ को आप काट रहे हैं तो उसकी जगह पर लगाए गए पेड़ को उस पेड़ के बराबर आक्सीजन, छाया और फल देने में सौ साल लगेंगे। इसलिए सौ साल के पेड़ को काटकर उसकी जगह पर दस पेड़ लगाने से पर्यावरण को होने वाली क्षति की भरपाई नहीं की जा सकती है।
कुछ अध्ययन बताते हैं कि एक वृक्ष साल भर में 260 पाउंड आक्सीजन छोड़ता है। दो दरख्त इतनी ऑक्सीजन पैदा करते हैं जिससे चार लोगों का परिवार सांस ले सकता है। इस अनुसार ये एक करोड़ नौ लाख पेड़ दो करोड़ अट्ठारह लाख लोगों की सांस लेने भर का आक्सीजन पैदा करते थे। अब इनके काटे जाने के बाद क्या होगा। इन दो करोड़ अट्ठारह लाख लोगों के लिए आक्सीजन कौन पैदा करेगा। काटे गए पेड़ों की जगह पर लगाए गए छोटे पेड़ तो सौ-पचास साल बाद इतनी आक्सीजन देंगे, जितनी ये अभी देते थे।
धूप की तुलना में पेड़ों की छाया में तापमान पांच डिग्री तक कम हो जाता है। बहुत सारी गर्मी पेड़ खुद में सोख लेते हैं और उन्हें नीचे नहीं आने देते। इन पेड़ों के नहीं रहने से अब वह गर्मी कौन सोख रहा होगा। क्या हमारी दुनिया में तेजी से बढ़ती गर्मी का कारण यह नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया की चिंता कारण है। लेकिन, यह बात निश्चित है कि इससे निपटने के लिए दुनिया जो भी उपाय करेगी, कम से कम हम तो उसमें शामिल नहीं होंगे।
क्योंकि, हमें तो अभी बहुत सारे पुराने झगड़े सुलटाने हैं। खुन्नस निकालनी है। किसी को हिन्दू होने पर गर्व है। किसी को मुसलमान होने पर। कोई ब्राह्मण है तो कोई राजपूत। पहले कभी गाली की तरह इस्तेमाल होने वाला जातिसूचक शब्द चमार भी अब लोग अपनी बुलेट पर लिखवाकर चल रहे हैं। उन्हें भी उसमें गर्व करना है।
अभी पहले हम ये सब खुन्नसें निकाल लें फिर हम जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में भी सोच लेंगे। तब तक पूंजीपतियों का विकास होने दीजिए। इस देश के संसाधन खा-खा कर कारपोरेट कंपनियों को और मोटा होने दीजिए। बाकी इंसान होने का क्या है। उस पर गर्व करने की भला क्या बात है। हम तो अपनी जाति और धर्म पर ही गर्व करेंगे।
एक सवाल है आप लोगों से, देखकर बताइये तस्वीर में ये दोनों लोग आखिर काट क्या रहे हैं ?

साभार - @ कबीर संजय 

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