- कोर क्षेत्र से बाहर बफर के जंगल में गुजार रहा जिंदगी
- सफलतम रानी टी-2 व पटरानी टी-1 भी जी रही एकाकी जीवन
- पिछले ढाई-तीन वर्ष से इन्होंने नहीं दिया शावकों को जन्म
पूरे 7 - 8 वर्षों तक जंगल में राज करने वाला यह वनराज अब अपनी ही सल्तनत से बेदखल हो गया है। ( फाइल फोटो ) |
अरुण सिंह,पन्ना। म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में 7-8 वर्षों तक एकक्षत्र राज करने वाला वनराज टी-3 अब बूढ़ा हो गया है। उम्रदराज होने पर उसकी अपनी ही सन्तानों ने इस वनराज से उसकी बादशाहत छीनकर साम्राज्य से बेदखल कर दिया है। ऐसी स्थिति में यह बूढ़ा बाघ बेघर होकर पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से बाहर बफर क्षेत्र में यहां से वहां भटकने को मजबूर है। इतना ही नहीं इस नर बाघ के संसर्ग से पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की नई दुनिया को आबाद करने में अहम भूमिका निभाने वाली सफलतम रानी टी-2 व पटरानी टी-1 भी उम्र बढऩे के साथ ही एकाकी जीवन जी रही हैं। इन दोनों बाघिनों ने पिछले ढाई-तीन वर्ष से शावकों को जन्म नहीं दिया है। बाघ पुनस्र्थापना योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाने वाले ये तीनों संस्थापक बाघ (एक नर व दो मादा) जिन्दगी के अन्तिम पड़ाव पर हैं।
उल्लेखनीय है कि रहस्य और रोमांच से भरी जंगल की दुनिया बहुत ही निराली होती है। यहाँ हर पल कुछ न कुछ ऐसा घटित होता रहता है जो लोगो विश्मय विमुग्ध कर देता है। वर्ष 2009 में पन्ना टाईगर रिजर्व के बाघ विहीन हो जाने पर यहां बाघों की नई दुनिया को फिर से आबाद करने की दास्तान भी बेहद रोचक और दिलचस्प है। यहाँ बाघों के उजड़ चुके संसार फिर आबाद करने के लिये मार्च 2009 में ही बाघ पुनर्स्थापना योजना की शुरूआत तब हुई, जब कान्हा व बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व से दो बाघिनों को पन्ना लाया गया। उस समय तक वन अधिकारियों का यह मानना था कि पन्ना के जंगल में एक नर बाघ मौजूद है। यही वजह है कि शुरूआत में सिर्फ दो बाघिनों को लाया गया, लेकिन जब इन्हें खुले जंगल में स्वच्छन्द विचरण के लिये छोड़ा गया तब पता चला कि पन्ना का इकलौता बचा नर बाघ लापता हो गया है। ऐसी स्थिति में बाघों की वंशवृद्धि के लिये प्रजनन क्षमता वाला नर बाघ कहीं अन्यत्र से यहां लाने की योजना बनी और 7 नवम्बर 2009 को पेंच टाईगर रिजर्व से बाघ टी-3 को पन्ना लाया गया।
नया ठिकाना इस नर बाघ को नहीं आया रास
पेंच टाईगर रिजर्व से तकरीबन 400 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करने के बाद पन्ना पहुँचे इस नर बाघ को एक हफ्ते तक बडग़ड़ी स्थित बाड़े में रखा गया। जब इस वनराज को बाड़े से पन्ना के खुले जंगल में विचरण हेतु रिलीज किया गया तो कुछ दिनों तक यह बाघ यहां के जंगल और आबोहवा का जायजा लिया जो शायद उसे रास नहीं आया। फलस्वरूप यह नर बाघ गहरीघाट-किशनगढ़ की ओर से पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल को अलविदा करते हुये अपने पुराने ठिकाने की ओर चल पड़ा। पेंच के इस बाघ ने एक माह से अधिक समय तक पार्क के अधिकारियों को हैरान और परेशान किया और अपने मूल ठिकाने की तरफ साढ़े चार सौ किमी की लम्बी दूरी तय कर डाली।वन अधिकारियों की टीम ने किया सतत पीछा
पन्ना में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये संकल्पित तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति व उप संचालक विक्रम सिंह परिहार तथा उनकी टीम ने हिम्मत नहीं हारी और इस बाघ का निरन्तर पीछा करते रहे। इस बाघ ने अपने अनूठे संकेतों से सुरक्षा व बिगड़ते हुये कॉरीडोरों के संबंध में भी प्रश्र चिह्न खड़े किये, जिससे वन अधिकारियों ने खासा सबक लिया। पन्ना में एक नया इतिहास रचने वाले इस नर बाघ को बेहोश कर 25 दिसम्बर 2009 को पुन: पन्ना लाया गया और 26 दिसम्बर को इसे खुले जंगल में छोड़ दिया गया।बाघ को पन्ना में रोकने किया गया अभिनव प्रयोग
पेंच का यह नर बाघ पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल को छोड़ फिर अपने मूल ठिकाने की ओर फिर कूच न करे, इसके लिये क्षेत्र संचालक श्री मूर्ति ने एक अभिनव युक्ति का प्रयोग किया। इस वनराज को आकर्षित करने के लिये बाघिन के यूरिन का जंगल में छिड़काव कराया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि चार दिन के भीतर ही बाघ टी-3 व बाघिन टी-1 की मुलाकात हो गई। बाघ और बाघिन के इस मिलन से पन्ना में नन्हे शावकों की नई पीढ़ी का आगमन हुआ। बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को पन्ना टाईगर रिजर्व के धुंधुवा सेहा में अपनी पहली सन्तान को जन्म दिया। इसके बाद से यहां शावकों के जन्म का सिलसिला अनवरत् जारी है। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की संख्या 50 के आँकड़े को भी पार कर गई है।वृद्ध बाघ टी-3 अब बफर में गुजार रहा जिन्दगी
फादर आफ दि पन्ना टाईगर रिजर्व के खिताब से नवाजा जा चुका वनराज टी-3 अब 16-17 वर्ष की आयु का हो चुका है। यह उम्र जंगल के बाघों की औसत उम्र से बहुत ज्यादा है। जंगल में अमूमन बाघ की औसत उम्र 12 से 14 वर्ष तक ही होती है, इस लिहाज से भी टी-3 एक नया रिकार्ड बनाने की ओर अग्रसर है। उम्रदराज होने के कारण शारीरिक रूप से कमजोर हो चुका यह बाघ अब कोर क्षेत्र में अपना साम्राज्य कायम रखने की स्थिति में नहीं है। फलस्वरूप अपनी ही सन्तानों से बचने के लिये यह कोर क्षेत्र को अवलिदा कह बफर क्षेत्र में शेष बचा जीवन मवेशियों का शिकार करके गुजार रहा है। अभी हाल ही में बलैया सेहा के जंगल में बाघ पी-213(31) ने हमला कर इसे घायल भी कर दिया था। फलस्वरूप यह इलाका छोड़ टी-3 ने दूसरे इलाके में शरण ली है।00000
No comments:
Post a Comment