Thursday, September 20, 2018

औषधीय गुणों वाली वनस्पतियों का पन्ना में अकूत भण्डार

  • हर्बल उद्योगों के विकास से रोजगार के नये अवसरों का हो सकता है सृजन
  • ऑवला उत्पादन के मामले में पन्ना जिला प्रदेश में अग्रणी



अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले को प्रकृति ने अनगिनत सौगातों से नवाजा है। यहां की रत्नगर्भा धरती में बेशकीमती रत्न हीरा ही नही अपितु दुर्लभ जड़ी बूटियों का भी अकूत भण्डार है। लेकिन प्रकृति प्रदत्त इन सौगातों का इस क्षेत्र के विकास व रोजगार के नये अवसरों को सृजित करने की दिशा में सार्थक उपयोग नहीं किया जा सका। जबकि पन्ना जिले में औषधि एवं हïर्बल उद्योगों के विकास की विपुल संभावनायें मौजूद हैं। यहां के समृद्ध वनों में औषधीय गुणों से सम्पन्न वनस्पतियों व वन औषधियों का भण्डार हैं। ऑवला उत्पादन के मामले में तो पन्ना जिला प्रदेश में अग्रणी है। यदि यहां पर वनौषधि उद्योग को बढ़ावा मिले तो इस पिछड़े जिले की भी तस्वीर बदल सकती है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले के 50 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र में आज भी जंगल है।उत्तर वन मण्डल में सारंगधर की पहाडिय़ों से लेकर कालींजर तक तथा पन्ना शहर के निकट स्थित मनोरम स्थल कउवा सेहा से लेकर देवगांव के पहाड़ों तक चारों तरफ वनौषधियों का अकूत भण्डार मौजूद है। जिले का दक्षिण कल्दा पठार जो पवई और शाहïनगर दो विकासखण्डों की सीमा को घेरता है, यहां के सघन वनों में प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। जानकारों का कहना है कि पठार में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी-बूटियों की तासीर हिïमालय में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों से मिलती जुलती हैं। वनौषधियों के मामले में यह वन क्षेत्र प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। बताया जाता है कि देश के 25 आयुर्वेदिक ऋषियों में 19 ऋषि इसी क्षेत्र में रहे हैं। प्राकृतिक ऑवले की उपलब्धता के मामले में तो इस जिले का कोई सानी नहीं है। पन्ना जिले के
ऑवले प्राकृतिक गुणों से भरपूर होते हैं, यही वजह है कि आयुर्वेद की फैक्ट्रियों में पन्ना के ऑवले की बहुत अधिक मांग रहïती है। यहां के ऑवले देश के विभिन्न हिस्सों व प्रान्तों में जाते हैं। जिले में प्राकृतिक रूप से ऑवले की प्रचुर उपलब्धता को देखते हुए डेढ़ दशक पूर्व प्रदेश के तत्कालीन वन मंत्री ने पन्ना को ऑवला जिला घोषित किया था। उस समय यहï योजना भी बनाई गई थी कि बिगड़े वनों की रिक्त पड़ी भूमि में ऑवला वृक्षों का रोपण किया जायेगा। अजयगढ़ की घाटी को ऑवला घाटी के रूप में विकसित किये जाने की भी बात कही गई थी। लेकिन सारी योजना धरी की धरी रह गई। ऑवला से बनने वाले उत्पादों के लिए यहां पर अभी तक कोई
बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो सका है। 


जंगलों की कटाई से उजड़ रही हैं वनौषधियां 


पन्ना के विकास तथा यहां के लोगों को रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस व सार्थक प्रयास न होने से जिले के अधिसंख्य लोग उत्खनन और जंगल की अवैध कटाई में लिप्त हैं। तेजी के साथ यहां के जंगलों की अवैध कटाई होने के कारण प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी बूटियों का अद्भुत संसार भी उजड़ रही हैं। यदि प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली इन जड़ी-बूटियों के संरक्षण व संवर्धन हेतु प्रभावी पहल की जाये और वन क्षेत्रों के ग्रामों में इनकी वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा दिया जाये तो पन्ना जिला बहुमूल्य जड़ी-बूटियों का एक बहुत बड़ा स्त्रोत बन सकता है। ऐसा होने पर उद्योगविहीन इस जिले की बेरोजगारी की समस्या जहां दूर हो सकेगी, वहीं औषधि व हर्बल उद्योगों की स्थापना का भी मार्ग प्रशस्त होगा। 


इन जड़ी-बूटियों की है प्रचुर उपलब्धता 


ऑवले के अलावा पन्ना जिले के जंगलों व पहाड़ों में सफेद मूसली, तुलसी,अश्वगंधा, शतावर, नागरमोथा, अचार गुठली, शहद, महुआ गुठली, हर्र,बहेरा, काली मूसली, मुश्कदाना, लेमन ग्रास, कलिहारी, सर्पगंध, कांगनी,इमली, चिरौंटा, लटजीरा, जामुन, अर्जुन छाल, ब्राह्मी, बिहारीकंद,मुलहटी, गिलोय, गोखरू, शंखपुष्पी, पुनर्नवा, हर सिंगार, भटकटइया और ईसबगोल जैसी वनौषधियां प्रचुर मात्रा में मिलती हैं।

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दैनिक जागरण में छपी खबर

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