Friday, March 15, 2019

भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है खजुराहो सीट



  •   चुनाव में भावनात्मक मुद्दों के आगे हासिये पर चला जाता है विकास का मुद्दा
  •   भाजपा को लगातार मिल रही जीत के बावजूद क्षेत्र पिछड़ा और उपेक्षित



अरुण सिंह,पन्ना, 14 मार्च 19। तीन जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले खजुराहो संसदीय क्षेत्र में भी चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई है। यह लोकसभा क्षेत्र पन्ना जिले के पवई, पन्ना व गुनौर, कटनी जिले के विजयराघवगढ़, मुड़वारा व बहोरीबंद तथा छतरपुर जिले के चंदला व राजनगर विधानसभा क्षेत्र तक फैला है। लोकसभा परिसीमन के पूर्व पन्ना जिले की तीनों विधानसभा दमोह लोकसभा क्षेत्र में शामिल थीं। उस समय दमोह-पन्ना- संसदीय क्षेत्र में मलहरा, नोहटा, दमोह, पथरिया, हटा, पन्ना, अमानगंज व पवई विधानसभा आती थीं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का यह पूरा इलाका बीते लगभग ढाई दशक से भाजपा का मजबूत गढ़ बना हुआ है। पन्ना-दमोह संसदीय क्षेत्र में वर्ष 1989 से लेकर 1999 तक लगातार भाजपा का कब्जा रहा, यहां से लगातार चार बार 1991 से 1999 तक रामकृष्ण कुसमरिया चुनाव जीतकर सांसद रहे हैं। परिसीमन के बाद जिला खजुराहो संसदीय क्षेत्र में शामिल हो गया और यहां भी वर्ष 2004 से लेकर 2014 तक लगातार भाजपा प्रत्याशी को ही जीत हासिल हुई है।
उल्लेखनीय है कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र में बाहुबल व जातिवाद का बोलबाला रहता है। चुनाव के समय विकास का मुद्दा आमतौर पर हासिये पर ही रहता है। यही वजह है कि चुनाव जीतने के बाद इस क्षेत्र के सांसदों ने विकास व क्षेत्र की मूलभूत समस्याओं के निराकरण में विशेष रूचि नहीं ली। इस क्षेत्र से डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया लगातार चार बार सांसद चुने गये और मजबूत जातिगत समीकरणों के चलते कांग्रेस के रसूख वाले सवर्ण प्रत्याशियों व पूंजीपतियों को पटकनी देते रहे हैं। बावजूद इसके विकास के नाम पर इन्होंने क्षेत्र को ऐसी कोई बड़ी सौगात नहीं दी है, जिससे उन्हें याद रखा जा सके। डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया के बाद चन्द्रभान सिंह लोधी ने कांग्रेस प्रत्याशी तिलक सिंह  लोधी को हराया और सांसद चुने गये। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव से इस क्षेत्र की कमान पिछड़ा वर्ग से छूटकर सवर्णों के हाँथ में पहुँची। खजुराहो सीट से 2009 में भाजपा प्रत्याशी जीतेन्द्र सिंह बुन्देला ने कांग्रेस के राजा पटेरिया को कड़े मुकाबले में 28 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। इस चुनाव में जीतेन्द्र सिंह बुन्देला को 2,29,369 मत मिले जबकि निकटतम प्रतिद्वन्दी कांग्रेस के राजा पटेरिया को 2,01,037 मत प्राप्त हुये थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर ने कांग्रेस को फिर शिकस्त दे दी। इस बार यहां से भाजपा ने बघेलखण्ड के क्षत्रिय नेता नागेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाया जबकि कांग्रेस ने फिर राजा पटेरिया पर ही विश्वास जताया। इस चुनाव में बघेलखण्ड व बुन्देलखण्ड का मुद्दा भी गर्माया तथा नागेन्द्र सिंह को बाहरी प्रत्याशी बताया गया, बावजूद इसके मोदी लहर ने भाजपा के कथित बाहरी प्रत्याशी को रिकार्ड मतों के अन्तर से जीत दिलाई।

क्षेत्र को अब सक्षम नेतृत्व की दरकार

विकास के मामले में हमेशा से उपेक्षित रहे इस क्षेत्र को अब सक्षम नेतृत्व की दरकार है। पूर्व में यहां जातिगत समीकरणों के आधार पर चुनाव परिणाम आने से यह इलाका पिछड़ा और उपेक्षित रहा है। यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुँचने वालों ने क्षेत्र के विकास में कोई रूचि नहीं ली, लोकसभा में भी यहां के लोगों की आवाज नहीं उठाई। सिर्फ चुनाव के समय भावनात्मक मुद्दे उछालकर लोगों की भावनाओं का दोहन किया गया। यहां से चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र को बड़ी सौगात देना तो दूर सांसद निधि का भी पूरा उपयोग करने में लापरवाही दिखाई, नतीजतन यह इलाका खासकर पन्ना जिला की हालत जस की तस बनी रह गई। अब इस संसदीय क्षेत्र के लोगों को ऐसे नेतृत्व की दरकार है जो यहां के पिछड़ेपन को दूर करने में सक्षम हो। लोगों की यह अभिलाषा वर्ष 2019 के इस लोकसभा चुनाव में पूरी हो पायेगी या नहीं, यह आने वाला समय बतायेगा।
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