Sunday, March 17, 2019

पन्ना में बाघों के रेडियो कॉलर का बना रिकार्ड

  •   दुनिया में फ्री रेन्जिंग बाघों का ट्रंक्युलाइजेशन इतना और कहीं नहीं
  •   साढ़े सात वर्षों में यहां  सर्वाधिक बाघों को पहनाया गया रेडिया कॉलर


ट्रंक्युलाइजकरने के बाद बाघ का चेकप करते डॉ संजीव गुप्ता  

अरुण सिंह,पन्ना। बाघ पुर्नस्थापना योजना को मिली चमत्कारिक सफ लता के साथ-साथ म.प्र. के पन्ना  टाइगर रिजर्व ने देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अनाथ व अर्धजंगली दो बाघिनों को यहां पर सफलतापूर्वक जहां जंगली बनाया गया, वहीं सीमित अवधि में फ्री रेन्जिंग बाघों को ट्रंक्युलाइज कर उन्हें रेडिया कॉलर पहनाये जाने के मामले में भी रिकार्ड कायम किया गया है। बीते साढ़े सात वर्ष के दरम्यान  यहां 58 बार बाघों को ट्रंक्युलाइज करने का कार्य वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता द्वारा किया गया जो अपने आप में एक मिशाल है। विशेष गौरतलब बात यह है कि रेडियो कॉलर किये जाने की प्रत्येक कार्यवाही की यहां वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई जाती है। पन्ना टाइगर रिज़र्व में बने इस अनूठे रिकॉर्ड को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में भी भेजा गया है। जानकारों का कहना है कि दुनिया में फ्री रेन्जिंग बाघों का ट्रंक्युलाइजेशन इतना और कहीं नहीं हुआ।
उल्लेखनीय है कि दुनिया में सबसे ज्यादा बाघ भारत में और भारत में सबसे अधिक म.प्र. में पाये जाते हैं। इस लिहाज से प्रदेश में बाघों के संरक्षण हेतु जो भी अनूठे और अभिनव प्रयोग होते हैं उस पर न सिर्फ पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट होता है बल्कि नये रिकार्ड भी म.प्र. में ही बनते हैं। बाघों को बेहोश कर उन्हें रेडिया कॉलर पहनाने के मामले में पन्ना टाइगर रिजर्व ने जो रिकार्ड बनाया है, इसके पूर्व दुनिया में इतने कम समय में कहीं भी फ्र ी रेन्जिंग बाघों का इतना ट्रंक्युलाइज आपरेशन नहीं हुआ। पन्ना टाइगर रिजर्व में 22 नवम्बर 2011 से 15 मार्च 2019  तक विभिन्न नर व मादा बाघों को 58  मर्तबे रेडिया कॉलर पहनाया गया। सीमित अवधि में दुनिया में सबसे ज्यादा बाघों को बेहोश करके सफलता पूर्वक रेस्क्यू कार्य करने का करिश्मा पन्ना टाइगर रिजर्व के इकलौते वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ने किया है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। जानकारों के मुताबिक बाघों को ट्रंक्युलाइज करके बेहोश करने का कार्य आमतौर पर कालर पहनाने, कालर उतारने व कालर बदलने तथा उपचार हेतु किया जाता है। पूर्व में यहां पर बाघों को बेहोश करने का कार्य चार से पांच वन्य प्राणी चिकित्सकों की उपस्थिति में होता था, लेकिन विगत साढ़े सात  वर्षों से यह कार्य पन्ना टाइगर रिजर्व के अनुभवी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता द्वारा अकेले ही किया जा रहा है। डॉ. गुप्ता की अपने कार्य व दायित्वों के प्रति लगन व जुनून का ही यह नतीजा है कि आज तक बाघों को ट्रंक्युलाइजेशन के दौरान तमाम तरह की चुनौतियों व विषम परिस्थितियों के बावजूद आज तक  कोई अप्रिय स्थिति नहीं बनी। इनके द्वारा अकेले ही ट्रंक्युलाइजेशन का कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न करने से बाघ सहित अन्य वन्य प्रांणियों को बेहोश करने की कार्यवाही कम समय में पूर्ण होती है,जिससे शासन का पैसा भी बचता है। जबकि पूर्व में चिकित्सकों की टीम आने के बाद ही ट्रंक्युलाइज करने का कार्य सम्पन्न होता था, जिसमें कई दिन का समय लग जाता था। लेकिन अब इस मामले में पन्ना टाइगर रिजर्व आत्मनिर्भर हो चुका है, यहां के वन्य प्रांणी चिकित्सक डॉ. गुप्ता पूरे आत्म विश्वास के साथ जटिल परिस्थितियों में भी ट्रंक्युलाइज ऑपरेशन रेस्क्यू कार्य सफलता पूर्वक पूरा करते हैं।

टीम वर्क से मिलती है कामयाबी: डॉ. गुप्ता

वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता का कहना है कि पन्ना में बाघ पुनस्र्थापना योजना को मिली शानदार कामयाबी के पीछे सक्षम और ईमानदार नेतृत्व तथा अधिकारियों व कर्मचारियों में टीम वर्क की भावना का होना है। बाघ पुनस्र्थापना योजना की कामयाबी के सूत्रधार तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति की बाघों व वन्य प्रांणियों के प्रति निष्ठा तथा उनकी कड़ी मेहनत और लगन से टाइगर रिजर्व का पूरा अमला प्रेरणा व ऊर्जा पाता रहा  है, नतीजतन कामयाबी की नित नई इबारत यहां लिखी जा रही है। बीते 9 सालों में यहां पर बाघों का कुनबा इतनी तेजी से बढ़ा है कि अब पन्ना के बाघ इस जिले की सीमा को पार करते हुये दूर-दूर तक अपनी मौजूदगी प्रकट करने लगे हैं। इसी तरह  से यदि यहां बाघों की वंशवृद्धि होती रही तो पन्ना के बाघ पूरे विन्ध्यांचल के जंगल में विचरण करते नजर आयेंगे।
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