Tuesday, March 19, 2019

पन्ना में भी है एक बृज और बरसाना

  •   मंदिरों के शहर पन्ना में खिलने लगे होली के रंग
  •   देश के विभिन्न प्रान्तों से होली खेलने आते हैं श्रद्धालु


प्रणामी सम्प्रदाय के लोगों की आस्था का केन्द्र महामति श्री प्राण नाथ जी मंदिर 

अरुण सिंह,पन्ना। मन्दिरों के शहर पन्ना में रंगों के पर्व होली को बड़े ही अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। बृज और वृन्दावन की तरह पन्ना में भी कृष्ण भक्ति परंपरा के विशेष त्यौहार होली को धूमधाम से मनाने की परम्परा है। जिसका निर्वहन आज भी उसी तरह किया जाता है।प्रणामी सम्प्रदाय के सबसे बड़े तीर्थ पन्ना धाम में  किलकिला नदी के निकट  एक ओर राधिका रानी का मंदिर है इस परिक्षेत्र को बरसाना कहते हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ दूरी पर कृष्ण और कृष्णलीला को केन्द्र में रखकर एक बृह्म चबूतरे की स्थापना है जहां श्री प्राणनाथ श्री कृष्ण की समस्त शक्तियों के साथ पूर्णबृह्म परमात्मा के रूप में विराजमान हैं। इस क्षेत्र को बृजभूमि और परना परम धाम कहते हैं। यहां बृज, बृन्दावन और बरसाने की तरह पारम्परिक होली मनाई जाती है।
उल्लेखनीय है कि होली दण्ड की स्थापना के साथ-साथ पन्ना धाम के मंदिरों में होली उत्सव की तैयारी शुरू हो जाती है। दण्ड स्थापना के दिन को मोहन होरी पर्व के रूप में मनाया जाता है। पन्ना धाम के मंदिरों में संध्या आरती के पश्चात दण्ड स्थापना की परंपरा है, लंबे गीले बांस  में लाल रंग की पताका लगाकर उसे किलकिला नदी के किनारे एवं ग्वालनपुरा में निर्दिष्ट स्थान हैं जहा धाम मुहल्ले की होली रचाई जाती है। हरे बांस की जड़ में सुपारी, हल्दी की गांठ और पूजन सामग्री अर्पित करके ठीक 14 दिनों बाद फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा पर इन्हीं दोनों स्थानों पर धाम मुहल्ले की होली प्रज्जवलित होती है। मोहन होरी की रात्रि में सबसे पहले जो गीत धमार में गाया जाता है वह इस प्रकार है- मोहन खेलत होरी..... वृन्दावन  बंशीवट कुंजन, तरे ठाड़े वनमाली कृउते सखिन को मंडल जोरे, श्री वृषभान दुलारी। परीवा प्रथम कृष्णपक्ष के दिन गुम्बटजी एवं बंगला जी में होरी गीतों का सुमधुर गायन होता है रात्रि 9 बजे गुम्बट जी के प्रांगण में भक्त गण इकट्ठे  होते हैं  और परीवा प्रथम का उत्सव प्रारंभ होता है।

मंदिर में पूरी रात चलता है फ़ाग  उत्सव




यहां होलिका दहन के एक दिन पूर्व जागरण की रात होती है। इस दिन श्री महारानी जी (राधिका जी) के मंदिर में विशेष श्रृंगार होता है। रात्रि में भोग लगने के पश्चात लगभग 10 बजे महारानी के मंदिर के प्रांगण में श्रद्धालु एकत्रित होने लगते हैं  फिर फ़ाग गायन का कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता है। गोकुल सकल ग्वालिन, घर घर खेलें फ़ाग..., बेंदा भाल बन्यो राधा प्यारी को.....तू वेदी भाल न दे री.. आज के फ़ाग उत्सव में राधिका जी केन्द्र में है। दरअसल यह उन्हे फ़ाग खेलने का निमंत्रण है। दूसरे दिन गुम्बटजी एवं बंगला जी में पुन: फ़ाग गीतों का गायन होता है। परिकल्पना यह है कि यहां राधा और कृष्ण मिलकर परस्पर भाग खेलते हैं। समस्त सुन्दरसाथ सखियों के रूप में गीत गाते हुये इस फ़ाग उत्सव में सम्मिलित होते हैं। देर रात तक यहां  रंगारंग कार्यक्रम चलता रहा। उत्सव और उल्लास के इस अनूठे आयोजन का हिस्सा बनने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पन्ना धाम पहुँचते हैं। इस वर्ष भी श्रद्धालुओं के पन्ना पहुँचने का सिलसिला शुरू हो गया है।
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