Sunday, March 3, 2019

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना के पूरे हुये 10 वर्ष

  •   बांधवगढ़ से 4 मार्च 2009 को पन्ना आई थी पहली बाघिन
  •   बीते 10 वर्षों में यहां 77 से अधिक शावकों का हुआ जन्म
  •   पालतू अर्धजंगली बाघिनों को जंगली बनाने का भी हुआ सफल प्रयोग


पन्ना टाईगर रिजर्व का मड़ला स्थित प्रवेश द्वार।

अरुण  सिंह,पन्ना। म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व की बाघ पुनर्स्थापना  योजना के एक दशक पूरे हो गये हैं। इन दस वर्षों के सफर में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने में यहां जो करिश्मा घटित हुआ है, वह अपने आप में एक मिशाल है। बाघ पुनर्स्थापना योजना को सफलता की नई ऊँचाईयां प्रदान कर बाघों की दुर्लभ और विलुप्त होती प्रजाति को बचाने के लिहाज से पन्ना ने दुनिया को एक नई राह दिखाई है। सदियों से बाघों के प्रिय रहवास स्थल रहे पन्ना के जंगल वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो गये थे। बाघों के प्राकृतिक रहवास सूने हो गये थे, जिन गुफाओं और सेहों में वनराज की दहाड़ गूँजती थी, वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। कहते हैं कि जब बाघ की दहाड़ धुंधलके में गूँजती है तब प्रकृति भी अंगड़ाई लेकर जीवन्त हो उठती है। लेकिन वनराज की विदाई होने के साथ ही यहां के जंगल में पक्षियों के गीत भी शोक गीत में तब्दील हो गये थे। लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना की कामयाबी ने पन्ना के खोये हुये वैभव को वापस लौटा दिया है। अब यहां का जंगल वनराज की दहाड़ और शावकों की अठखेलियों से गुलजार है।
उल्लेखनीय है कि बाघ विहीन होने के बाद पन्ना टाईगर रिजर्व को फिर बाघों से आबाद करने के लिये वर्ष 2009 में पन्ना बाघ पुनस्र्थापना योजना शुरू की गई, जिसके तहत बांधवगढ़ से 4 मार्च 2009 को पहली बाघिन पन्ना लाई गई। इस युवा बाघिन को हिनौता रेन्ज के बडग़ड़ी में लोहे की जालियों से बनवाये गये विशेष इन्क्लोजर में रखा गया। दूसरी बाघिन कान्हा टाईगर रिजर्व से 9 मार्च को वायु सेना के हेलीकाप्टर द्वारा लाई गई।  प्रजनन क्षमता वाली इन दो युवा बाघिनों के पन्ना पहुँचने के बाद यहां का इकलौता बचा नर बाघ लापता हो गया। फलस्वरूप बाघों को आबाद करने की योजना पर प्रश्र चिह्न लग गया। बांधवगढ़ और कान्हा से पन्ना लाई गईं दोनों युवा बाघिन को इन्क्लोजर से मुक्त कर खुले जंगल में विचरण के लिये छोड़ दिया गया, लेकिन जंगल में उन्हें कोई जीवन साथी न मिलने के कारण वे कई माह तक तनहाई में ही जीवन गुजारने को मजबूर हुईं। इस दौरान पार्क प्रबन्धन द्वारा जंगल का चप्पा-चप्पा छनवाया गया, लेकिन कहीं भी नर बाघ की मौजूदगी के कोई चिह्न नहीं मिले।

पेंच टाईगर रिजर्व से आया था नर बाघ


नर बाघ टी-3 जिसने पन्ना को फिर से किया आबाद।

बांधवगढ़ और कान्हा से ब्रीडिंग क्षमता वाली दो युवा बाघिनों को पन्ना लाने के उपरान्त जब कई महीनों की तलाश में भी यहां नर बाघ की मौजूदगी के कोई चिह्न नहीं मिले, तब बाहर से एक नर बाघ पन्ना लाने की योजना बनी ताकि बाघों के उजड़ चुके संसार को बसाया जा सके। योजना के तहत पेंच टाईगर रिजर्व से युवा बाघ टी-3 को सड़क मार्ग से 6 नवम्बर 2009 को पन्ना लाया गया। पूरे एक सप्ताह तक बडग़ड़ी स्थित इन्क्लोजर में रखा गया और 14 नवम्बर को इसे खुले जंगल में विचरण के लिये छोड़ दिया गया। नये और अजनबी माहौल में यह बाघ कुछ दिनों तक तो भटका, लेकिन जब उसे यहां की आबोहवा रास नहीं आई तो वह अपने रहवास की तलाश में निकल पड़ा। पन्ना टाईगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति के नेतृत्व में वन अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम निरन्तर इस बाघ का पीछा करती रही और 25 दिसम्बर 2009 को इसे दमोह जिले के तेजगढ़ जंगल में बेहोश कर फिर पन्ना लाया गया। यह बाघ पन्ना के जंगल में रुके और वंश वृद्धि में योगदान दे, इसके लिये अभिनव तरीका खोजा गया जो कामयाब रहा। बाघिन टी-1 से इस बाघ की मुलाकात हुई और पन्ना बाघ पुनस्र्थापना की सफलता की कहानी यहीं से शुरू हुई।

बांधवगढ़ की बाघिन ने जन्मे चार शावक


बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 अपने शावकों के साथ।

पन्ना की पटरानी के नाम से चॢचत बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को धुंधुवा सेहा में जब चार नन्हे शावकों को जन्म दिया तो पन्ना टाईगर रिजर्व के अधिकारी व वन अमला खुशी से झूम उठा। इन नन्हें मेहमानों के आने से पन्ना टाईगर रिजर्व का सूना पड़ा जंगल गुलजार हो गया। बाघिन टी-1 के इन्हीं शावकों का जन्म दिन हर साल 16 अप्रैल को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को सफलता की नई ऊँचाईयों तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाने वाले वन अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति ने नन्हे शावकों का नामकरण करते समय इस बात का ध्यान रखा ताकि पन्नावासियों का आत्मीय नाता हमेशा यहां जन्मे बाघों के साथ कायम रहे। कान्हा से पन्ना आई बाघिन टी-2 को सफलतम रानी कहा जाता है। इस बाघिन ने पहली बार अक्टूबर 2010 में चार शावकों को जन्म दिया था। बाघों की वंशवृद्धि में इस बाघिन का अतुलनीय योगदान रहा है। पन्ना में जन्मे बाघों का लगभग एक तिहाई कुनबा इसी बाघिन का है।

पालतू बाघिन ने पन्ना में रचा इतिहास


बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना में अनाथ और पालतू बाघिनों को जंगली बनाने का करिश्मा भी घटित हुआ। कान्हा से लाई गई दो पालतू अर्धजंगली बाघिनों ने पन्ना आकर यहां खुले जंगल में नैसर्गिक  जीवन जीने का न सिर्फ सलीका सीखा अपितु नन्हे शावकों को जन्म देकर एक नया इतिहास भी रच दिया। पालतू बाघिनों को जंगली बनाने का पूरी दुनिया में यह पहला अनूठा प्रयोग था, जिसकी कामयाबी से जंगल की निराली दुनिया में एक नया आयाम स्थापित हुआ। हर किसी को आश्चर्य चकित कर देने वाली यह कामयाबी तत्कालीन वन अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति व विक्रम  सिंह  परिहार जैसे लोगों की अथक मेहनत और जुनून के चलते संभव हुई।

अब तक जन्मे 77 से अधिक बाघ शावक  


पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू होने के बाद वर्ष 2009 से अब तक बीते 10 वर्षों में 77 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हो चुका है। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में 40 से भी अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं। बाघों की संख्या के मामले में पन्ना टाईगर रिजर्व में अब तक का यह उच्च शिखर है। यहां पर बाघों की निरंतर वंश वृद्धि होने के चलते कई बाघ कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर बफर व टेरीटोरियल में विचरण करते हुये अपने लिये अनुकूल वन क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं। कोर क्षेत्र से बाहर विचरण कर रहे बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करना मौजूदा समय सबसे बड़ी चुनौती है।
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1 comment:

  1. बेहतरीन। बहुत अच्छा लेख।

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