Friday, March 8, 2019

साम्राज्य के लिए गोह में भी होता है संघर्ष

  • बाघ की भांति करता है इलाके का निर्धारण 
  • इस वन्य जीव के पंजे होते हैं शक्तिशाली 


दो नर गोहों के बीच हुये आपसी संघर्ष का द्रश्य। 

अरुण सिंह, पन्ना। जंगल में अपने साम्राज्य (टेरीटोरी) का निर्धारण करने के लिए सिर्फ बाघों के बीच ही संघर्ष नहीं होता. जंगल के राजा की तर्ज पर अन्य दूसरे वन्य जीव भी अपना इलाका बनाते हैं और इसके लिए उनके बीच भीषण लड़ाई भी होती है। सरीसृप वर्ग के वन्य जीव गोह में भी बाघ की तरह अपनी टेरीटोरी बनाने तथा अधिक से अधिक मादाओं को अपने नियंत्रण में रखने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
उल्लेखनीय है कि प्रकृति की गोद में हर वन्य प्रांणी के रहने तथा जीवन जीने का तरीका अनूठा और विचित्र होता है। छिपकली प्रजाति के वन्य जीव गोह जिसे मानीटर लिजार्ड भी कहते हैं, उसकी जीवन शैली बाघ की प्रकृति से मिलती जुलती प्रतीत होती है। लगभग ढाई से तीन फिट लम्बा तमाम खूबियों वाला यह विचित्र वन्य जीव बारिश के मौसम में ज्यादा नजर आता है। नर गोह बरसात प्रारंभ होते ही मैटिंग के लिए मादा गोहों की ओर आकर्षित होता है. इस दौरान नर गोह की टेरीटोरी में रहने वाली मादा गोहों के पास दूसरे नर गोह के आने पर दोनों नरों के बीच अस्तित्व कायम रखने के लिए भीषण संघर्ष होता है। शक्तिशाली नर गोह जो संघर्ष में जीत हासिल करता है, टेरीटोरी में उसी की हुकूमत चलती है तथा वही इस टेरीटोरी की मादाओं से मैटिंग करता है।
पन्ना टाइगर रिजर्व के सहायक संचालक रहे  एम.पी. ताम्रकार ने बताया कि गोह के पंजे अत्यधिक शक्तिशाली होते हैं तथा पेड़ या दीवाल में चिपक जाने पर इसे निकालना मुश्किल होता है। इस मांसाहारी वन्य जीव की जीभ काफी लम्बी और सांप की तरह दो भागों में बंटी होती है। राजाशाही जमाने में गोह का उपयोग ऊंचे स्थानों व किलों आदि में चढऩे के लिए सैनिक भी करते थे। श्री ताम्रकार ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में गोह प्रचुर संख्या में हैं तथा यहाँ  इनके बीच होने वाले संघर्ष के दुर्लभ नजारे यदा - कदा दिखाई दे जाते हैं। नर गोहों के बीच टेरीटोरी के लिए हुए संघर्ष का बेहद दुर्लभ नजारा  भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के रिसर्चर रवि परमार ने कुछ वर्ष पूर्व अपने कैमरे में कैद किया था , जिसमें गोहों की जीवन शैली व प्रकृति की झलक मिलती है।

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