रनेह जल प्रपात में केन नदी की ग्रेनाइट चट्टानों के अलौकिक सौन्दर्य का नजारा। फोटो - अरुण सिंह |
।।अरुण सिंह, पन्ना।।
हरी-भरी पहाडिय़ों व घने जंगलों के बीच से गुजरने वाली केन नदी देश की कुछ गिनी-चुनी नदियों में से एक है जो औद्योगिक प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त है। पन्ना जिले में लगभग 145 मील का लम्बा सफर तय करने के बाद केन नदी उ.प्र.में प्रवेश कर यमुना नदी में जाकर मिलती है.इस अनूठी नदी को पन्ना टाइगर रिजर्व की जीवन रेखा भी कहा जाता है।
सघन वन क्षेत्र से प्रवाहित होने वाली इस पैराणिक नदी की लहरों ने अनेक ऐतिहासिक परिवर्तन देखे हैं। आज भी इसकी एक-एक चट्टान अपना सिर उठाकर अपनी ऐतिहासिक महत्ता को घोषित करती है। प्रकृति ने भी केन नदी को अदभुत कारीगरी के साथ सजाया और संवारा है। रनेह फाल केन घडियाल अभ्यारण्य में इस नदी का अनुपम सौन्दर्य देखते ही बनता है। विश्व के सुप्रसिद्घ रहस्यदर्शी ओशो अपनी पुस्तक सहज योग में जबलपुर के भेड़ाघाट की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि मेरे हिसाब में शायद पृथ्वी पर इतनी सुन्दर कोई दूसरी जगह नहीं है.दो मील तक नर्वदा संगमरमर की पहाडिय़ों के बीच से बहती है.नदी के दोनों तरफ संगमरमर की पहाडिय़ों का अलौकिक सौन्दर्य हजारों ताजमहल के सौन्दर्य जैसा है। उन्होने जिक्र किया है कि वे अपने एक वृद्घ प्रोफेसर को जब पहली बार भेडाघाट लेकर गये तो वे अद्भुत नजारा देख आनंद से रोने लगे। जब नाव में बिठाकर उन्हें अन्दर ले गया तो वह कहने लगे कि यह जो मैं देख रहा हूँ , यह सच में है ? क्यों कि मुझे सपना जैसा प्रतीत होता है। उन्होने नाव को किनारे लगवाया और संगमरमर की पहाडिय़ों को अपने हांथों से छूकर देखा।
जबलपुर का भेडाघाट निश्चित ही बहुत अदभुत जगह है,लेकिन विश्व प्रसिद्घ पर्यटन स्थल खजुराहो से 20 किमी.दूर केन नदी का रनेह फाल भी कुछ कम नहीं है। इस स्थल में संगमरमर की पहाडिय़ां तो नहीं हैं.लेकिन लाल व काले ग्रेनाइट पत्थरों के बीच लगभग 200 फिट नीचे से प्रवाहित केन नदी का अलौकिक सौन्दर्य किसी को भी मोहित करने की क्षमता रखता है। खजुराहो आने वाले देशी व विदेशी पर्यटक केन घडियाल अभ्यारण्य देखने जरूर जाते हैं। यह अभ्यारण्य यूँ तो वर्ष भर पर्यटकों के लिए खुला रहता है किन्तु अभयारण्य में स्थित केन नदी के रनेह जल प्रपात की अनुपम छटा वर्षा ऋतु में देखते ही बनती है। आग्रेय चट्टानों में बने इस अनोखे प्रपात तथा नदी में आगे निर्मित कन्दराओं के सौन्दर्य को देख पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। केन नदी पन्ना जिले के अन्तर्गत विन्ध्याचल की भाण्डेर पर्वत श्रेणी से निकलती है और पवई,सिमरिया,अमानगंज व पन्ना टाइगर रिजर्व से होते हुए बांदा के आगे चिल्ला के पास यमुना में मिल जाती है। बारिश के मौसम में केन का रूप बहुत ही विकराल हो जाता है पर अन्य महीनों में बड़े-बड़े पत्थरों व काली चट्टानों के नीच नदी दुबकी सी दिखाई देती है।
जिले से प्रवाहित होने वाली केन की पांच सहायक नदिया भी हैं। उक्त पांचों सहायक नदियों के पानी को लेकर केन नदी अमानगंज के पास पंडवन में पत्थरों को फोडकर जमीन के अन्दर चली जाती है। लगभग एक मील तक यहां केन नीचे ही बहती है फिर गोहान पहाड़ के पास ऊपर आती है। एक किवदंती के अनुसार प्रवास काल में पाण्डव इस स्थल में भी आये थे और वे केन की धार रोककर बैठ गये। केन ने उन्हें बहाना उचित नहीं समझा और वह पत्थरों को फोडकर जमीन में समा गई। यहां अनेको पत्थर मोम की तरह पिघले नजर आते हैं। यहां पत्थरों में अनगिनत छिद्र हो गये हैं,उन्हीं छिद्रों से पानी की धारा नीचे जाती है। केन नदी का पाट विशाल चलनी के रूप में दिखाई देता है। देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन चुके पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र से होकर 55 किमी.की लम्बाई में केन नदी प्रवाहित होती है। केन नदी के बहने से टाइगर रिजर्व की खूबसूरती में चार चांद लग गया है। केन नदी सही अर्थो में देखा जाये तो पन्ना टाइगर रिजर्व की जीवन रेखा है.
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