- जंगल के रहस्यमय संसार को निकट से देख रोमांचित हुये बच्चे
- पेड़-पौधों और वन्य प्राणियों के बारे में हासिल की रोचक जानकारी
अनुभूति कार्यक्रम के तहत जंगल भ्रमण के लिए निकले स्कूली बच्चे। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। वन एवं वन्य प्राणियों तथा पर्यावरण संरक्षण के प्रति स्कूली बच्चों में अभिरूचि पैदा करने तथा उनमें जागरूकता लाने के लिये म.प्र. ईको पर्यटन विकास बोर्ड द्वारा आयोजित होने वाला अनुभूति कार्यक्रम अत्यधिक लोकप्रिय हो रहा है। इस अनूठे कार्यक्रम के माध्यम से स्कूलों के बच्चे जंगल की निराली दुनिया से जहां रूबरू हो रहे हैं, वहीं प्रकृति की पाठशाला में उसके विविध रूपों से भी परिचित हो रहे हैं।
अनुभूति कार्यक्रम के तहत गत बुधवार को पन्ना टाईगर रिजर्व के अकोला बफर क्षेत्र का स्कूली बच्चों ने भ्रमण कर भरपूर लुत्फ उठाया। इस वन क्षेत्र से लगे ग्रामों के तकरीबन 120 स्कूली बच्चों को दो यात्री बसों से यहां लाया गया था। इन बच्चों ने अभी तक अपने बड़े बुजुर्गों से ही जंगल की निराली दुनिया के बारे में सुना था, लेकिन जब उन्हें खुद जंगल में भ्रमण करने का अवसर मिला तो उनकी खुशी और रोमांच देखते ही बन रहा था। बच्चों ने प्रकृति की इस पाठशाला में पेड़-पौधों व वनस्पतियों के साथ विभिन्न प्रजाति के वन्यजीवों के संबंध में न सिर्फ जानकारी हासिल की अपितु उनका दीदार भी किया।
सुबह कड़ाके की ठण्ड और घने कोहरे के बावजूद उत्साही बच्चे बसों में सवार होकर जब बच्चे अकोला पर्यटन क्षेत्र के जंगल में प्रवेश किया तो रिमझिम बारिश ने इन बच्चों का स्वागत किया। इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आयोजित कराने की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे वन परिक्षेत्राधिकारी लाल बाबू तिवारी मौसम के बदले तेवरों को देख ङ्क्षचतित हुये। लेकिन मौसम ने मासूम बच्चों को निराश नहीं किया, रिमझिम बारिश का सिलसिला जल्दी ही थम गया और मौसम अत्यधिक सुहाना नजर आने लगा। जंगल के बीच बने निगरानी टावर परिसर में बच्चों ने गर्म जलेबी और पोहा का नाश्ता करने के बाद भ्रमण पर निकले।
चट्टानों में प्राचीन शैल चित्रों को निहारते बच्चे। |
सुबह कड़ाके की ठण्ड और घने कोहरे के बावजूद उत्साही बच्चे बसों में सवार होकर जब बच्चे अकोला पर्यटन क्षेत्र के जंगल में प्रवेश किया तो रिमझिम बारिश ने इन बच्चों का स्वागत किया। इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक आयोजित कराने की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे वन परिक्षेत्राधिकारी लाल बाबू तिवारी मौसम के बदले तेवरों को देख ङ्क्षचतित हुये। लेकिन मौसम ने मासूम बच्चों को निराश नहीं किया, रिमझिम बारिश का सिलसिला जल्दी ही थम गया और मौसम अत्यधिक सुहाना नजर आने लगा। जंगल के बीच बने निगरानी टावर परिसर में बच्चों ने गर्म जलेबी और पोहा का नाश्ता करने के बाद भ्रमण पर निकले।
अनुभूति कार्यक्रम के मास्ट ट्रेनर मनीष कुमार रावत व भवानीदीन पटेल ने बच्चों को इस जंगल के अतीत व वर्तमान से अवगत कराया। बच्चों को बताया गया कि एक समय यहां घना और समृद्ध वन था और यहां के जंगल में बाघ सहित विविध प्रजाति के वन्य प्राणी भी विचरण करते थे। लेकिन मानव आबादी बढऩे के साथ ही वनों पर भी दबाव बढ़ा फलस्वरूप अनियंत्रित कटाई व चराई से यह वन क्षेत्र उजड़ गया। इस उजड़ चुके वन क्षेत्र को पुन: हरा-भरा करने की पहल एक वर्ष पूर्व मौजूदा क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया ने की और यहां पर पर्यटन गतिविधियां भी शुरू की। इसका चमत्कारिक असर हुआ, बिगड़ा वन फिर तेजी से न सिर्फ हरा-भरा हो गया अपितु अब इस वन क्षेत्र में वनराज सहित अन्य दूसरे वन्य प्राणी भी दिखने लगे हैं। लगभग 40 वर्ग किमी का यह वन क्षेत्र अब पर्यटकों को भी आकॢषत करने लगा है।
जंगल का भ्रमण करते स्कूली बच्चों का यह दल जब बिड़वानी नाले के निकट पहुँचा तो यहां के मनोरम दृश्य को देख रोमांचित हो उठा। किसी समय यह इलाका वनराज सहित आदिमानवों का प्रिय रहवास रहा है, जिसके प्रमाण नाले के आस-पास चट्टानों में बने प्राचीन शैल चित्रों के रूप में आज भी मौजूद हैं। नाले के किनारे खड़े वृक्षों में बया पक्षी के लटकते घोंसले बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं। यहां पर बया पक्षियों ने अपने हुनर और कलाकारी का प्रदर्शन करते हुये बड़ी संख्या में घोंसले बनाये हैं, जिन्हें बच्चों ने बड़ी उत्सुकता के साथ देखा।
प्रकति की पाठशाला बना बिड़वानी नाला
जंगल के बिड़वानी नाला में चल रही प्रकृति की पाठशाला का द्रश्य। |
जंगल का भ्रमण करते स्कूली बच्चों का यह दल जब बिड़वानी नाले के निकट पहुँचा तो यहां के मनोरम दृश्य को देख रोमांचित हो उठा। किसी समय यह इलाका वनराज सहित आदिमानवों का प्रिय रहवास रहा है, जिसके प्रमाण नाले के आस-पास चट्टानों में बने प्राचीन शैल चित्रों के रूप में आज भी मौजूद हैं। नाले के किनारे खड़े वृक्षों में बया पक्षी के लटकते घोंसले बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं। यहां पर बया पक्षियों ने अपने हुनर और कलाकारी का प्रदर्शन करते हुये बड़ी संख्या में घोंसले बनाये हैं, जिन्हें बच्चों ने बड़ी उत्सुकता के साथ देखा।
इस नाले के प्रवाह क्षेत्र में फैली चट्टानों पर सभी बच्चे विश्राम की मुद्रा में जब बैठ गये तब यहां प्रकृति की पाठशाला शुरू हुई। यहां पर बच्चों के मन में उठे सवालों का समाधान किया गया तथा उन्हें बड़े ही रोचक ढंग से वन, वन्य प्राणियों तथा पर्यावरण की महत्ता के बारे में बताया गया। सभी बच्चों ने प्रकृति की इस अनूठी पाठशाला में दी गई जानकारी को ध्यान से रूचि के साथ न सिर्फ सुना बल्कि उसे आत्मसात भी किया।
निगरानी टावर में हुआ कार्यक्रम का समापन
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