- समस्या से निपटने बफर क्षेत्र को बनाना होगा बाघों के अनुकूल
- बिगड़े वनों के सुधार व संरक्षण पर देना होगा ज्यादा ध्यान
नन्हे शावकों के साथ आराम फरमाती बाघिन। |
अरुण सिंह,पन्ना। समृद्ध और जीवंत जंगल में ही बाघों का रहवास होता है, बाघ की मौजूदगी जंगल के बेहतर स्वास्थ्य का परिचायक है। मध्यप्रदेश में पन्ना जिले का जंगल आदिकाल से बाघों का प्रिय रहवास स्थल रहा है, लेकिन तेजी से मानव आबादी बढ़ने के साथ ही बाघों के लिए कभी अनुकूल रहे वन क्षेत्रों में दखलंदाजी व मानवीय गतिविधियां शुरू हो गई। जंगल कटने से बाघों के आशियाना उजड़ने लगे और हालात यह हुए कि एक सीमित वन क्षेत्र में बाघों का ठिकाना सिमट गया। चूंकि बाघ एक ऐसा वन्य प्राणी है जो अपनी टेरिटरी बनाकर रहता है। इस नैसर्गिक स्वभाव के कारण जब किसी सीमित वन क्षेत्र में बाघों के कुनबे का विस्तार होता है तो टेरिटरी के लिए उनके बीच आपसी संघर्ष शुरू हो जाता है। पन्ना टाइगर रिजर्व की स्थिति भी अब कुछ ऐसी ही निर्मित हो गई है।
उल्लेखनीय है कि 576 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले पन्ना टाइगर रिजर्व में बीते 10 वर्षो के दौरान बाघों के कुनबे का तेजी से विस्तार हुआ है। विगत 10 वर्ष पूर्व यहां का जंगल बाघों से विहीन हो गया था लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के चलते अल्प समय में ही पन्ना टाइगर रिजर्व बाघों से आबाद हो गया। अब तो आलम यह है कि यहां बाघों की संख्या कोर क्षेत्र की धारण क्षमता से अधिक हो गई है। इसका परिणाम यह हुआ कि जंगल में अच्छे इलाके पर कब्जा जमाने के लिए यहां के वयस्क नर बाघों के बीच खूनी संघर्ष शुरू हो गया है, जिसमें अब तक कई बाघों की मौत हो चुकी है। वन्य प्राणी विशेषज्ञों का यह मानना है कि बाघों के बीच होने वाली यह टेरिटोरियल फाइट नैसर्गिक है, इसे कम करने का एक ही उपाय है कि कोर क्षेत्र के अतिरिक्त बाघों को बफर क्षेत्र के जंगल में अनुकूल माहौल व सुरक्षा दी जाये ताकि वे यहां अपना इलाका निर्धारित कर सकें।
बफर क्षेत्र का प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती
निगरानी कैम्प में वनकर्मियों को खाद्य सामग्री प्रदान करते क्षेत्र संचालक। |
पन्ना टाइगर रिजर्व के अतिरिक्त बाघों को कोर क्षेत्र के चारों तरफ 1021.97 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले बफर के जंगल को सुरक्षित और संरक्षित करते हुए बाघों के अनुकूल बनाना मौजूदा समय पार्क प्रबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। हालांकि इस दिशा में दूरदर्शिता दिखाते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के.एस.भदौरिया ने विगत 2 वर्ष पूर्व ही पहल शुरू कर दी थी। उन्होंने भविष्य की जरूरतों व बाघों के रहवास को लेकर आने वाली समस्याओं का पूर्वानुमान लगाते हुए अकोला बफर क्षेत्र के बिगड़े वन को सुरक्षित करने की पहल की थी, जिसके अच्छे नतीजे दिखने लगे हैं। यह क्षेत्र झाड़ियों और पेड़-पौधों से न सिर्फ हरा - भरा हो गया है अपितु बाघों का नया ठिकाना भी बन चुका है। कोर क्षेत्र में हो रहे आपसी संघर्ष को देखते हुए अकोला बफर की तर्ज पर दूसरे वन क्षेत्रों को भी इसी तरह बाघों के लिए अनुकूल बनाने की पहल करनी होगी। क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया बताते हैं कि जनभागीदारी से बाघ संरक्षण की सोच को उन्होंने जमीनी स्तर पर मूर्त रूप देने का प्रयास किया है। इसके लिए वन क्षेत्रों से लगे ग्रामों में जहां जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, वहीं ग्रामीणों को जंगल के महत्व व लाभों की जानकारी देकर उन्हें सुरक्षा और संरक्षण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। आपने बताया कि बफर क्षेत्र में कोर जैसा प्रबंधन व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में निगरानी कैम्प बनाये गये हैं जहां वनकर्मी रहकर जंगल की सुरक्षा के साथ-साथ वन्य प्राणियों की गतिविधियों पर भी नजर रखते हैं।
बाघिन टी-2 ने सातवीं बार दिया शावकों को जन्म
पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघिन टी-2 ने सातवीं बार शावकों को जन्म दिया है। दिल को सुकून देने वाली यह खबर उस समय आई है जब आपसी संघर्ष के चलते हुई बाघों की मौत को लेकर पन्ना टाइगर रिजर्व चर्चा में है। बताया जा रहा है कि पन्ना की सफलतम रानी कही जाने वाली इस बाघिन ने करीब 9 माह पहले 3 शावकों को जन्म दिया था। कुछ दिन बाद से तीसरा शावक वनकर्मियों को बाघिन के साथ नजर नहीं आ रहा था। जंगल में लगे कैमरों में भी बाघिन 2 शावकों के साथ नजर आ रही थी। इससे तीसरे शावक के साथ अनहोनी की अटकलें लगाईं जा रहीं थी। लेकिन पिछले दिनों टाइगर रिजर्व के गश्ती दल को बाघिन अपने तीसरे शावक के साथ अठखेलियां करती नजर आई है। गश्तीदल ने बाघिन और उसके शावकों का वीडियो बनाकर अधिकारियों को दिखाया है। उन्होंने भी बाघिन की पहचान टी-2 के रूप में की है। मालुम हो कि पन्ना के बाघों का एक तिहाई कुनबा बाघिन टी-2 का ही है, यही वजह है कि इसे पन्ना की सफलतम रानी कहा जाता है।
00000
No comments:
Post a Comment