Wednesday, February 3, 2021

किसानों की समस्या का क्यों नहीं हो पा रहा समाधान ?

  •  आखिर कैसे बनें स्वावलंबी, समृद्ध और आत्मनिर्भर किसान 
  •  बुंदेलखंड में बांदा जिले के कृषक प्रेम सिंह ने दिखाई राह
  •  जहर मुक्त खेती करने का ईजाद किया अभिनव तरीका

आगंतुकों को खेती के अपने अभिनव प्रयोगों के बारे में बताते कृषक प्रेम सिंह।  
।। अरुण सिंह ।।

समूचे देश में हर तरफ आज किसानों की चर्चा है। देश का किसान सरकार द्वारा बनाये गये तीन कृषि कानूनों को लेकर विचलित है। कहा जा रहा है कि ये तीनों कानून किसानों के हितों को ध्यान में रखकर बनाने के बजाय पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की मंशा से बनाये गये हैं। यही वजह है कि देश भर के किसानों में इन तीनों कानूनों को लेकर न सिर्फ असंतोष है बल्कि वे आंदोलन की राह पर निकल पड़े हैं। जिस देश की अधिसंख्य आबादी आज भी खेती किसानी पर निर्भर है, उसे स्वावलंबी, समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के बजाय कमजोर और पूंजीपतियों का गुलाम बनाने की हर संभव कोशिश हो रही है। ऐसे कानून जिनके लागू होने से धरतीपुत्र किसान जो अन्नदाता है यदि वह निरीह और कमजोर होता है तो देश कैसे मजबूत रह पायेगा ?

 मौजूदा समय देश की राजधानी से लेकर गांव और कस्बों तक जिस तरह का माहौल तथा तनाव और आक्रोश है, वह चिंता पैदा करता है। लोगों के जेहन में अनगिनत सवाल तो उठ रहे हैं लेकिन उन सवालों का समाधान कहीं नजर नहीं आता। अगर हम यह सोचे कि हमारी समस्याओं का समाधान नेता करेंगे तो शायद यह हमारी बड़ी भूल होगी, समस्याओं का समाधान हमें खुद ढूंढना होगा। नेताओं और पूंजीपतियों का गठबंधन उनके निहित स्वार्थों के चलते इतने प्रगाढ़ हो चुके हैं कि उनको तोड़ पाना आसान नहीं है। इन हालातों में किसानों को खेती किसानी का ऐसा तरीका ईजाद करना होगा, जिससे वह किसी पर आश्रित न हो, स्वावलंबी रहे। बीते कुछ दशकों से किसान जिस पद्धति से खेती करनी शुरू की है उससे उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन भूमि की उर्वरता का क्षरण हुआ है। खेती से होने वाली आय का ज्यादातर हिस्सा रासायनिक खाद, कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों तथा बीज और कृषि उपकरणों की खरीदी में चला जाता है, जिससे किसान की माली हालत सुधरने  के बजाय न सिर्फ कमजोर होती है बल्कि वह कर्जदार तक हो जाता है। तो फिर क्या कोई ऐसा तरीका है जिसे अपनाकर किसान आत्मनिर्भर होकर सुकून की जिंदगी जी सके ? जी हां, वह तरीका बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिले के किसान प्रेम सिंह ने न सिर्फ ईजाद किया है बल्कि वे जहर मुक्त खेती करके सुख, समृद्धि और सुकून की जिंदगी भी जी रहे हैं।


कृषि भूमि के एक हिस्से में आराम फरमाता गो वंश। 

बांदा जिले के ग्राम बड़ोखर खुर्द निवासी 58 वर्षीय कृषक प्रेम सिंह अन्य दूसरे किसानों से अलहदा अपने तरीके से खेती करते हैं। ज्यादातर किसान जहां रासायनिक खादों के सहारे बाजार के लिए खेती करते हैं, वहीं प्रेम सिंह बिना किसी सहारे के खेती, पशुपालन और बागवानी का अनूठा मॉडल अपनाये हुए हैं।  वे बताते हैं कि मैं बाजार के लिए खेती नहीं करता। मैंने अपने लिए बाग लगाया है, पशु पाले हैं तथा बिना रासायनिक खाद व कीटनाशकों के विशुद्ध रुप से जैविक खेती करता हूँ। खेतों में पैदा होने वाले अनाज को सीधे बेचने के बजाय उसका प्रोडक्ट बना कर बेचता हूं। जैविक खेती से पैदा हुए अनाज का मेरा प्रोडक्ट ऊंची कीमत पर बिकता है।

कृषक प्रेम सिंह को कहां से मिली नया करने की प्रेरणा


देश व दुनिया के कई देशों में अपने प्रयोगों के लिए चर्चित बुन्देलखण्ड के कृषक प्रेम सिंह। 

वर्ष 1986 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करने वाले प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने चर्चा के दौरान बताया कि वर्ष 2010 में उन्होंने कर्नाटक के गुलबर्गा में आयोजित सम्मेलन में भाग लिया था। इस सम्मेलन में देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने शिरकत की थी और उन्होंने पूरे 45 मिनट का भाषण दिया था। भाषण के बाद वहां मौजूद बच्चों से आपने प्रश्न पूछने को कहा, तब एक छोटी बच्ची ने प्रश्न किया कि आप दुनिया भर में बच्चों को प्रेरित करते हैं कि वे डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी, साहित्यकार व नेता बनें, लेकिन आप किसी भी बच्चे को किसान बनने के लिए क्यों नहीं कहते ? ऐसे में देश में किसान व किसानी का क्या भविष्य होगा ? इस प्रश्न का जवाब किसी के भी पास नहीं था, पूर्व राष्ट्रपति के पास भी नहीं। उसी दिन से हमने सोचना शुरू कर दिया कि इस देश के सबसे बुद्धिमान आदमी के पास जब उत्तर नहीं है तो संसद में हो-हल्ला मचाने वालों के पास क्या होगा। मैंने इस सवाल का जवाब ढूंढने का प्रयास किया और वह मिल गया।

 अभिनव प्रयोग को नाम दिया आवर्तन खेती 

प्रकृति और पर्यावरण तथा मृदा की उर्वरता को बिना क्षति पहुंचाए खेती करने के अभिनव तरीके का ईजाद करने वाले प्रेम सिंह ने अपनी जमीन को तीन भागों में बांट रखा है। जमीन के एक तिहाई हिस्से में इन्होंने फलदार वृक्ष लगाए हैं तथा सब्जी उगाते हैं। जबकि दूसरा भाग पशुओं के चरने व उनके पालन पोषण के लिए है। जमीन के शेष बचे हिस्से में वे जैविक विधि से खेती करते हैं। खेती की इस पद्धति को प्रेम सिंह ने आवर्तनशील खेती का नाम दिया है। प्रेम सिंह बताते हैं कि जब आप समाधान की बात करते हैं तो उसकी ख्याति दूर दूर तक जाती है। दुनिया में बहुत से किसान हैं जो मेरी तरह मुनाफे वाली और सेहतमंद खेती करना चाहते हैं, लेकिन वे कर नहीं पाते। जब उन्हें पता चलता है कि कहीं इसका सफल प्रयोग हो रहा है तो वे इसे सीखने खुद चले आते हैं।

 खेती का गुर सीखने 23 देशों से आ चुके हैं लोग

 देश के कृषि विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थान खेती किसानी की नई-नई तकनीकें विकसित जरूर कर रहे हैं लेकिन इन कथित उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाकर किसान दिनोंदिन निराशा के गर्त में जा रहा है। विश्वविद्यालय किसान नहीं तैयार कर रहे वे कृषि के छात्रों को प्रकृति का शोषण करने वाली प्रक्रिया सिखा रहे हैं। प्रेम सिंह कहते हैं कि जब किसान ही नहीं बचेगा तो किसानी कौन करेगा ? खेती का तरीका प्रकृति और पर्यावरण को पोषित करने वाला होना चाहिए। जिससे किसान समृद्ध हो, जहर मुक्त पौष्टिक अनाज पैदा हो तथा मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहे। आवर्तनशील खेती में यह सारी चीजें समाहित हैं। प्रेम सिंह बताते हैं कि उनकी बगिया में खेती के गुर सीखने प्रतिवर्ष 3-4 हजार किसान आते हैं, इनमें किसानों के अलावा कृषि में शोध करने वाले छात्र व पर्यावरण प्रेमी भी होते हैं। अब तक कृषक प्रेम सिंह की बगिया में 23 देशों के लोग उनके अभिनव प्रयोग को देखने व सीखने के लिए आ चुके हैं।

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