Thursday, April 1, 2021

आदिवासियों के लिये महुआ सीजन किसी उत्सव से कम नहीं

  •  महुआ फूलों की गंध से महक रहा विंध्य व बुंदेलखंड का जंगल
  • आदिवासी समाज के लिये महुआ फूल है रोजी-रोटी का जरिया 

सूखने के लिए फैले महुआ फूलों के पास बैठी आदिवासी महिला।  (फोटो - बाबूलाल दहिया) 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। वन क्षेत्रों के आस-पास रहने वाले आदिवासियों के लिये महुआ का सीजन किसी उत्सव से कम नहीं होता। गर्मी के इस मौसम में आदिवासी समाज के लोग व ग्रामीण महिलायें सुबह 5 बजे से महुआ बीनने के लिये जंगल की ओर कूच कर जाती हैं। विंध्य व बुंदेलखंड का जंगल इस सीजन में महुआ फूलों की गंध से महक उठता है। सुबह के समय यहां शीतल हवाओं व सफेद रसभरे महुआ फूलों की महक से वातावरण में मादकता इस कदर घुल जाती है कि गहरी सांस लेने भर से मन प्रफुल्लित और मदहोश हो जाता है। पन्ना जिले के कल्दा पठार में आदिवासी समाज के लिये तो महुआ के फूल रोजी-रोटी का जरिया है, इस मौसम में आदिवासियों का पूरा कुनबा महुआ फूल चुनने में लगा रहता है। जैविक खेती को बढ़ावा देने तथा देशी अनाजों विशेषकर धान की दो सौ से भी अधिक प्रजातियों को संरक्षित करने वाले सुप्रसिद्ध बघेली कवि पद्म श्री बाबूलाल दहिया जी ने महुआ फूल के संबंध में अपने भावों का इजहार कुछ इस तरह किया है-

 महुआ गनी गरीब का,सब का पालन हार।

विंध्य समूचा इनदिनों,है इससे  गुलजार।।

किया विन्ध्य ने इस तरह,मौसम से अनुबंध।

हर  आंगन  से  आ  रही, सोंधी सोंधी  गंध।।   

 उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले के दक्षिण वन मण्डल के अन्तर्गत आने वाले कल्दा पठार के जंगल में महुआ वृक्षों की भरमार है। महुआ के अलावा भी यहां के जंगल में हर्र, बहेरा, आंवला, चिरौंजी का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होता है। गर्मी का यह मौसम मार्च से लेकर मई तक कल्दा पठार के आदिवासियों के लिये बहुत अहम होता है, क्यों कि इसी सीजन में महुआ के वृक्षों से सफेद रसभरे फूल टपकते हैं। इन महुआ फूलों को एकत्र कर आदिवासी सुखाते हैं, जिससे उन्हें इतनी आय हो जाती है कि पूरे वर्ष भर उनका गुजारा हो जाता है। जैव विविधता से परिपूर्ण कल्दा के जंगल में महुआ के वृक्ष बहुतायत से पाये जाते हैं, नतीजतन यह इलाका महुआ फूल व गोही के उत्पादन में अग्रणी है। इन दिनों सुबह 5 बजे से ही आदिवासी बांस की टोकरियां लेकर कुनबा सहित महुआ फूल चुनने के लिये जंगल में निकल जाते हैं और दिन ढलने तक वृक्षों से टपकने वाले महुआ फूलों का संग्रहण करते हैं। इस सीजन में पठार के आदिवासियों की यह दिनचर्या बन जाती है।

वनोपज है आदिवासियों के जीवन का आधार


महुआ फूल चुनने के बाद प्रशन्न मुद्रा में खड़ी महिला।  (फोटो-अनिल नागर) 

श्यामगिरी में महुआ फूल का संग्रहण कर रहे कुसुआ आदिवासी व तुलसी बाई ने बताया कि कल्दा पठार के श्यामगिरी सहित रामपुर, मैनहा, पिपरिया, जैतुपुरा, टोकुलपोंडी, भोपार, कुसमी, झिरिया व डोडी आदि में 50 ट्रक से भी अधिक महुआ फूल का संग्रहण हो जाता है। आदिवासियों ने बताया कि पेडों से इस कदर महुआ फूल टपकते हैं कि पूरे दिन चुनने के बाद भी पूरे फूल हम नहीं चुन पाते। इस सीजन की सबसे बड़ी खूबी और विशेषता यह भी होती है कि महुआ फूल आने पर बिछुड़े परिजनों का भी मिलन हो जाता है।

पठार के जो लोग रोजी रोटी की तलाश व अन्य कारणों से बाहर चले जाते हैं वे भी इस सीजन में वापस घर लौट आते हैं। पूरा कुनबा साथ मिलकर महुआ फूलों के संग्रहण में जुटता है ताकि पूरे साल के खर्च की व्यवस्था हो सके। कुसुआ आदिवासी ने बताया कि अमदरा, मैहर, पवई व सलेहा के व्यापारी यहां आकर आदिवासियों से महुआ खरीदकर ले जाते हैं। सीजन में यहां एक व्यक्ति 5 से 6 क्विंटल महुआ एकत्र कर लेता है। हर्र, बहेरा, आंवला, चिरौंजी व शहद से भी पठार के आदिवासियों को आय हो जाती है। यहां के लोग खेती किसानी से कहीं ज्यादा वनोपज पर ही आश्रित रहते हैं, जंगल यहां के आदिवासियों के जीवन का आधार है।

भालुओं का हर समय रहता है खतरा

पन्ना टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र व कल्दा पठार के जंगल में जहां महुआ के पेड़ बहुतायत में हैं, वहां भालुओं का खतरा भी हर समय बना रहता है। महुआ फूल चूंकि भालुओं का प्रिय भोजन है, इसलिये महुआ फूल बीनने के लिये जंगल जाने वालों का आमना-सामना भालुओं से यदा-कदा हो जाता है। ऐसी स्थिति में कभी-कभी भालू हमला भी कर देते हैं। इस खतरे से बचने के लिये वन क्षेत्र के लोग आमतौर पर महुआ बीनने के लिये समूह में जंगल जाते हैं, वहीं हर समय सजग और चौकन्ने भी रहते हैं ताकि भालुओं द्वारा यकायक हमला करने की स्थिति में बचाव कर सकें। महुआ सीजन में भालुओं के हमले की सबसे ज्यादा घटनायें होती हैं। जानकारों के मुताबिक छोटे बच्चों वाली मादा भालू ज्यादा आक्रामक और हमलावर होती है। यदि धोखे से भी किसी ने उसके बच्चों की तरफ रुख किया तो मादा भालू बच्चों को असुरक्षित जान हमला बोल देती है।

पत्ते जलाने से भड़क जाती है आग

महुआ सीजन गर्मी के मौसम में आता है। तेज धूप और गर्मी पडऩे पर ही महुआ फूल नीचे टपकते हैं। चूंकि गर्मी में पतझड़ भी होता है जिससे महुआ वृक्ष के नीचे बड़ी मात्रा में पत्ते जमा हो जाते हैं जिसके चलते महुआ फूल इन पत्तों के बीच से बीनने पर काफी असुविधा होती है। इसे दूर करने के लिये लापरवाहीवश ग्रामीण पेड़ के नीचे सफाई करने के लिये पत्तों में आग लगा देते हैं, यह आग फैलकर कभी-कभी जंगल को ही अपनी चपेट में ले लेती है जिससे वन व वन्य प्राणियों को नुकसान होता है। महुआ फूल बीनने वालों को चाहिये कि वे पत्तों पर आग लगाने के बजाय पत्तों को वहां से हटाकर पेड़ के नीचे की सफाई करें ताकि जंगल की आग से सुरक्षा हो सके।

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