जी हां यह मडुआ है जिसे इसके बादामी रंग के अनुरूप दक्षिण भारत मे रांगी भी कहा जाता है। लेकिन गोल घेरे में पाँचो उगलियों की आकृति में वाल आने के कारण अंग्रेजी वालो ने जथा गुण तथा नाम इस मोटे अनाज का नाम ही "फिंगर मिलेट" कर दिया।
वैसे इसका मूल निवास युगांडा माना जाता है। शुरू-शुरू में उन आफ्रीकन वासियों ने इसे जानवरों को आकर्षित करने के लिए घास के रूप में ही चिन्हित कर के उगाना शुरू किया होगा, जिससे जानवर चरने के लिए आए और वह अपने रहवासों के पास ही उनका शिकार कर सके ? क्यों कि जब तक दाने नहीं आते इसकी घास जानवरों के लिए बहुत आकर्षक और स्वादिष्ट होती है। पर बाद में यह अनाज के रूप में भी चिन्हित कर लिया गया होगा और वर्तमान में तो यह रोटी और भात दोनों के काम आता है।
बहरहाल लगभग चार हजार वर्षों से इस मोटे और प्रचुर मात्रा में आयरन केल्सियम एवं औषधीय गुण वाले अनाज की उपस्थिति के प्रमाण भारत में भी मिले हैं और तमिलनाडु का यह प्रमुख भोजन है। पर बंगलौर एवं हैदराबाद में भी इसका मीठा एवं नमकीन हलवा हमें खिलाया गया था। मुझे याद है कि आजादी के पहले इसे हमारे बघेलखण्ड में भी बोया जाता था और गुथे हुए सघन दानों के कारण मेडिया कहा जाता था। पर अब चलन से बाहर है।
इन मोटे अनाजों में औषधीय गुण तो थे ही, पर सब से बड़ी विशेषता यह थी कि यह अकाल दुर्भिक्ष के समय मनुष्य और चिड़ियों के प्राण रक्षक सच्चे साथी भी थे । क्योंकि एक तो यह कम वर्षा के बावजूद भी सूखा सहन करते शीघ्र ही पक कर भोजन की आपूर्ति करते थे, पर दूसरा गुण यह था कि यदि इन्हें सौ पचास ग्राम की मात्रा में भी खा लिया जाय तो दिन भर भूख नही सताती थी। लेकिन इनको सूखा खाया भी तो नहीं जा सकता था? इनके लिए दो हिस्सा कोई जंगली भाजी, तरकारी या दाल, दूध, मट्ठे की ब्यवस्था पहले करनी पड़ती थी। लेकिन समय बदला और हमने इन सब के उपकारों को भुला दिया।
अब इसके खेती की नई तकनीक आ गई है, जिसे अपना कर यदि 10 प्रतिशत इसके आटे को गेहूं के साथ मिलाकर खाया जाय तो भोजन में पर्याप्त केल्सियम एवं आयरन की आपूर्ति में यह सहायक बन सकता है। कुछ लोग 80-10-10 के अनुपात में गेंहू, चना और रांगी के आटे की रोटियां खाने भी लगे हैं। पिछले वर्ष से हमने कई मोटे अनाजो के साथ इसकी खेती भी शुरू कराई है। इसे हल्की से हल्की जमीन में 1 गुणे 1 फीट की दूरी में उगाया जा सकता है। बोया तो इस साल भी है पर अधिक वर्षा के कारण फसल फिलहाल कुछ खराब सी है।
मडुआ के फायदे
- मोटापा घटाने के लिए डाईटिंग के दौरान रागी मंडुआ आटे फायदेमंद है। मंडुआ रागी में फैट की मात्रा कम होती है। साथ में एमिनो अम्ल और रेशे बुहु मात्रा में होते हैं।
- रागी मंडुआ में 80 प्रतिशत कैल्श्यिम की मात्रा पाई जाती है। रागी / मंडआ हड्डियों में ऑस्टियोपोरोसिस होने से बचाने में सहायक है।
- मंडुआ डायबिटीज पीड़िता के लिए उत्तम अनाज माना गया है। रागी मंडुआ में रिच फाईबर युक्त और शुगर फ्री अनाज है।
- रागी मंडुआ में आयरन रिच मात्रा में मौजूद हैं। मंडुआ/रागी के आटे की रोटी और पत्तेदार हरी सब्जी लगातार 15-20 दिन मात्र खाने से रक्त की कमी तुरन्त दूर हो जाती है।
- रक्तचाप बढ़ने पर नियंत्रण का काम करता हैं। रक्त चाप नियत्रंण करने के लिए रोज रागी मंडुआ की रोटी खायें। फिर 1 गिलास नींबू रस पानी पीयें। मंडुआ रागी और नींबू रक्तचाव समस्या को ठीक करने सहायक है।
- माताओं में दूध की कमी होने पर रोज मंडुआ रोटी साग खाने से समस्या दूर हो जाती है। मंडुआ रोटी, हरी साग, अंगूर, दूध, फल खूब खायें। इससे माताओं में फोलिक एसिड, आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन, फाइबर, विटामिनस मिनरलस की पूर्ति आसानी हो जाती है। रागी मंडुवा एक तरह से नेचुरल टॉनिक का काम करता है।
- रागी - मंडआ खाने से पेट की गैस कब्ज की समस्या कम करने में सहायक और पाचन शक्ति सुचारू करने में सहायक है। रागी - मंडआ जल्दी पाचने वाला निरोग अनाज है।
@बाबूलाल दाहिया
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