Wednesday, May 18, 2022

कुप्रथाओं की जंजीरों को तोड़ शिकारी समुदाय की एक लड़की कैसे बनी नेशनल खिलाड़ी ?

  • परंपरागत रूप से जंगल में वन्य प्राणियों का शिकार करके अपनी आजीविका चलाने वाले पारधी समुदाय की कोई लड़की पढ़ाई के साथ खिलाड़ी के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाएगी, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन 20 वर्षीय नीलम पारधी ने यह कर दिखाया है। अब यह जंगली लड़की युवाओं की रोल मॉडल बन चुकी है। 

शिकारी समुदाय की लड़की नीलम पारधी जो कबड्डी की नेशनल खिलाड़ी है। 

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना (मध्यप्रदेश)। हमारे समाज में लड़कियों की शादी 5 साल की उम्र में ही कर दी जाती है, मैं चाहती हूं कि सदियों से चली आ रही यह कुप्रथा बंद हो। लड़कियां पढ़े-लिखें और आत्मनिर्भर बनकर अच्छी जिंदगी जीने में सक्षम हो, इसके लिए ऐसा होना जरूरी है। नीलम पारधी 20 वर्ष ने बताया कि पारधी समुदाय की वह पहली लड़की है, जिसने बचपन में ही शादी किए जाने की इस कुप्रथा को तोड़ा है। समाज ने इसका विरोध किया लेकिन मेरे माता-पिता ने इस लड़ाई में मेरा साथ दिया, इसीलिए मैं आज इस मुकाम पर पहुंच पाई हूँ।

पन्ना शहर के नजरबाग स्टेडियम में सुबह 6:00 बजे अन्य बच्चों के साथ व्यायाम और खेल की प्रैक्टिस कर रही नीलम ने बताया कि छत्रसाल महाविद्यालय पन्ना से उसने बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा दी है। कबड्डी की नेशनल टीम से वह अमरावती महाराष्ट्र में खेल चुकी है तथा खो-खो व वॉलीबॉल में भी संभाग स्तर तक खेली है। नीलम बताती है कि कबड्डी और एथलेटिक्स में उसकी रुचि है और वह इस क्षेत्र में बेहतर करना चाहती है। परिवार में 6 भाई व पांच बहनों में नीलम इकलौती सदस्य है, जिसने शिक्षा अर्जित कर नई राह बनाई है। बहनों में यह सबसे छोटी है, बड़ी बहनों की वर्षों पहले शादी हो चुकी है तथा उनके बच्चे हैं। नीलम के भाई भी पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे जंगल की जड़ी बूटियां बेचने का काम करते हैं।


नीलम पारधी का घर पन्ना से 80 किलोमीटर दूर खमतरा गांव में है। इस गांव में ज्यादातर पारधी समुदाय के लोग रहते हैं। नीलम के पिता राकेटलाल पारधी (57 वर्ष) एक समय जाने-माने शिकारी रहे हैं। पन्ना सहित आसपास के जंगलों में वन्य प्राणियों का शिकार करना इनका पेशा था। लेकिन पिछले करीब 10 वर्षो से इन्होंने शिकार करना बंद कर जड़ी-बूटी बेचने का काम कर रहे हैं। नीलम की मां अजमेर बाई (52 वर्ष) गांव-गांव जाकर महिलाओं के श्रृंगार का सामान चूड़ी-बिंदी आदि बेचती हैं।

राकेटलाल पारधी ने मोबाइल पर चर्चा करते हुए बताया कि सर जी बेटी से बड़ी उम्मीद है कि वह हमारे कुल का नाम रोशन करेगी। हमारा पूरा जीवन जंगल में यहां से वहां भटकते गुजरा है, बड़ी कठिन जिंदगी रही है। अब हमने जंगली जानवरों का शिकार करना छोड़ जड़ी-बूटी बेचकर गुजारा कर रहे हैं। राकेटलाल पारधी कहते हैं कि उनकी एक ही इच्छा है कि बेटी को अच्छी नौकरी मिल जाए और किसी पढ़े-लिखे लड़के से शादी हो जाए। हमने जिंदगी में जो परेशानी झेली है उससे नीलम दूर रहे और खुशहाल जिंदगी जिए। नीलम की मां अजमेर बाई ने बताया कि यह सुनकर बहुत खुशी होती है कि उनकी बेटी अच्छी तरह पढ़ रही है। हमारे पास आमदनी का जरिया कुछ भी नहीं है, बहुत मुश्किल से खाने पीने की व्यवस्था हो पाती है। सरकार और आप सब लोगों की मदद से लड़की की नौकरी लग जाए, बस यही इच्छा है।

जिंदगी में बदलाव की ऐसे हुई शुरुआत


अपने परिवार के साथ नीलम पारधी। 

अपने कुनबे के बीच जंगल में रहने वाली नीलम पारधी की जिंदगी में यह आमूलचूल बदलाव कैसे आया, इसकी बड़ी दिलचस्प दास्तान है। नीलम बताती है कि 8 वर्ष की उम्र में उसकी जिंदगी बदलनी तब शुरू हुई जब उसे पारधी आवासीय विद्यालय में प्रवेश मिला। यह वह समय था जब पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघों का सफाया हो चुका था। यहां पर बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू कर फिर से बाघों के उजड़ चुके संसार को आबाद करने के बारे में सोच विचार चल रहा था। लेकिन शातिर शिकारियों की इस इलाके में सक्रियता के चलते योजना के सफल होने की उम्मीद कम थी। ऐसी स्थिति में शिकारी पारधी समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का काम शुरू हुआ। ताकि पारधी समुदाय के लोग शिकार करना छोड़ कर आजीविका हेतु दूसरे कार्यों व गतिविधि से जुडऩे को प्रेरित हों।

लास्ट वाइल्डर्नेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला ने बताया कि वर्ष 2007 में पन्ना टाइगर रिजर्व ने सर्व शिक्षा अभियान के सहयोग से पारधी समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने हेतु ब्रिज कोर्स शुरू किया। श्री बुंदेला बताते हैं कि LWF संस्था ने पारधी बच्चों में कौशल उन्नयन हेतु सतत प्रयास किया। इसका परिणाम यह हुआ कि पारधी समुदाय के बच्चे पढऩे लिखने लगे और विविध गतिविधियों में शामिल होकर समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने लगे। पन्ना में पारधी समुदाय के बच्चे भारत के पहले नेचर गाइड बने हैं, जिन्हें शासन से भी मान्यता मिली है। बेंगलुरु की संस्था नेचुरलिस्ट स्कूल ने इन्हें गाइड का  प्रशिक्षण कोर्स कराया है। मौजूदा समय 10 प्रशिक्षित पारधी गाइड हैं, जो "वॉक विद दि पारधीज" गतिविधि संचालित कर रहे हैं।

स्पोर्ट्स अकैडमी भोपाल में भी मिला था मौका


पन्ना (कुंजवन) स्थित बहेलिया छात्रावास के सामने समुदाय की अन्य लड़कियों के साथ।  

पिछले एक दशक से मध्य भारत के वन्य जीव संरक्षित क्षेत्रों पन्ना, बांधवगढ़, कान्हा एवं कूनों में मानव व वन्यजीव संघर्ष को कम करने एवं जंगल से जुड़े समुदायों को संरक्षण के लिए प्रेरित कर आजीविका का साधन मुहैया कराने का काम LWF संस्था कर रही है। इस संस्था की डायरेक्टर विद्या वेंकटेश ने  बताया कि वे पिछले 10 वर्षों से नीलम पारधी को जानती हैं। पारधी बच्चियों के लिए बने कुंज वन हॉस्टल में रहकर इस बच्ची ने 12वीं तक पढ़ाई की है। नौवीं से बारहवीं तक फंडिंग हमारी संस्था ने किया। पढ़ाई के साथ खेलकूद में रुचि लेने वाली नीलम ने 78 फ़ीसदी अंकों के साथ 12वीं की परीक्षा पास की है। तब इसे स्पोर्ट्स अकैडमी भोपाल में प्रशिक्षण का मौका भी मिला था। लेकिन नीलम के माता-पिता उसे अकेले भेजने को तैयार नहीं हुए। पारधी समुदाय में नीलम अकेली लड़की है जो स्पोर्ट्स में आगे बढ़ी है। एकेडमी ज्वाइन न कर पाने से नीलम काफी निराश हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी।

खेल के प्रति है गजब का जुनून

नेहरू एवं युवक कल्याण विभाग से नीलम सहित अन्य खिलाडी बच्चों को विविध खेल गतिविधियों की नियमित कोचिंग दी जा रही है। नीलम पारधी के कोच राहुल गुर्जर ने बताया कि नीलम में खेलों के प्रति गजब का जुनून और जज्बा है। कबड्डी के अलावा यह सौ व दो सौ मीटर की दौड़ बहुत अच्छा कर रही है। फुटबाल, थ्रो व जम्प में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करती है। राहुल ने बताया कि नीलम कबड्डी नेशनल खेल चुकी है, जबकि ऐथलेटिक्स में स्टेट तक खेली है। खिलाडी को जिस तरह की डाइट मिलनी चाहिए वैसी डाइट नीलम को नहीं मिल पाती, नार्मल खाना से एक खिलाडी की रिक्वायरमेंट पूरी नहीं होती। यदि इस लड़की की मंथली डाइट की समुचित व्यवस्था हो जाय तो यह काफी आगे जा सकती है।

बच्चों को पढ़ाकर निकालती रही जेब खर्च

आत्मविश्वास से भरी नीलम पारधी हिम्मत और साहस के साथ हर तरह की परिस्थितियों का सामना करने से पीछे नहीं हटती। विद्या वेंकटेश बताती हैं कि 12वीं के बाद नीलम ने छत्रसाल महाविद्यालय पन्ना में प्रवेश लिया। इस दौरान नीलम ने अपनी जेब खर्च के लिए कुंज वन हॉस्टल के बच्चों को पढ़ाने का काम भी शुरू किया। कॉलेज में अपनी क्लास करने के बाद यह हॉस्टल के पारधी बच्चों को पढ़ाती थी, जिससे इसका जेब खर्च निकलता रहा। हॉस्टल के पारधी बच्चों को भी नीलम से पढऩा बहुत पसंद था, क्योंकि वह उनकी ही भाषा में पढ़ाती थी।

इकलौती लड़की जिसने 20 वर्ष की उम्र में भी नहीं की शादी




नीलम पारधी इकलौती ऐसी लड़की है जिसने 20 वर्ष की उम्र होने पर भी शादी नहीं की। उसका साफ कहना है कि जब तक वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो जाती तब तक शादी नहीं करेगी। विद्या वेंकटेश बताती हैं कि पारधी समुदाय में बहुत ही कम उम्र (5-10 वर्ष) में लड़कियों की शादी करने की परंपरा है। नीलम पहली लड़की है जिसने शादी से मना किया है। बातचीत के दौरान विद्या वेंकटेश ने बताया कि पारधी समुदाय में आटा-साटा (लड़कियों के लेनदेन) की परंपरा है। इस परंपरा के मुताबिक जिस परिवार में लड़की देते हैं, उस परिवार की लड़की लेते भी हैं। पारधी समुदाय में लड़कियों के लेन-देन की यह परंपरा चली आ रही है। इसके पीछे उनकी सोच यह है कि "हम आपकी लड़की को संभालते हैं तो आप भी हमारी लड़की को संभालो"। विद्या व्यंकटेश बताती हैं कि इस अजीबोगरीब परंपरा पर अब काफी हद तक रोक लगनी शुरू हुई है। जब से पारधी समुदाय के बच्चे पढऩे लगे हैं तो पढ़ाई के कारण उनकी शादी में रुकावट पैदा हुई है। क्योंकि बच्चे कुनबे से दूर हॉस्टल में रहकर पढ़ते हैं। पारधी बच्चों खासकर लड़कियों के लिए नीलम पारधी रोल मॉडल बन चुकी है। नीलम तेज दिमाग वाली बहुत ही अच्छी खिलाड़ी है, जिससे बच्चे प्रेरित हो रहे हैं।

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