।। बाबूलाल दाहिया ।।
यह मडुआ है जिसे कहीं मड़िया या मेडिया अथवा रागी नाम से जाना जाता है। इसके बाल की बनावट ऊपर की ओर की गईं हाथ की पाँचो उंगलियों की तरह होती है। शायद इसीलिए अंग्रेजी में इसे "फिंगर मिलट" भी कहा जाता है।
इसमें आयरन आदि कई तत्वों की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसलिए कुछ लोग 80:10: 10 गेहूं चना और मड़िया को मिला उक्त अनुपात में पिसा कर रोटी खाते हैं। इसका पौधा जमते समय बघेली के (घोड़चबा ) नामक घास की तरह चौड़ी पत्ती का होता है, जिसे जानवर खूब खाते हैं।
बगैर रसायनिक खाद की खेती के इस फसल को उगाने की एक नई तकनीक भी आ गई है। पहले एक एकड़ हेतु 100 ग्राम बीज बो दिया जाय और जब पौधा रोपने लायक हो जाय तो अगस्त में खेत की दो बार जुताई कर एक लकड़ी से अड़ी और खड़ी एक-एक फीट के फासले की समानान्तर रेखा खींच दी जाय एवं जहां-जहां रेखा एक दूसरे को क्रॉस करें वहीं-वहीं एक - एक पौधा रोप दिया जाय। इससे कतार से कतार और पौधे से पौधों की दूरी 1 फीट होगी। जब खेत मे लगे पौधे 15 -20 दिन के हो जाय तो आदमी - आदनी से ही हल्का पाटा चला दिया जाय। पर यह स्मरण रहे कि पाटा एक ओर से ही चले जिससे सभी पौधे एक ओर ही झुकें। इस तरह पाटा चला देने से पौधों में खूब किल्ले आते हैं और प्रति एकड़ 7-8 क्विंटल तक उपज आती है।
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