।। बाबूलाल दाहिया ।।
भिंडी एक ऐसी सब्जी है जिसमें कई कीट लगते हैं। एक कीट तो फली में छेंद कर उसके बीज को ही नष्ट कर देता है। यही कारण है कि सब्जी उत्पादक यदि किसी को सबसे अधिक जहर स्नान कराता है तो बैगन और भिंडी को ही। लेकिन इस भिंडी को देखिए यह एक जंगली भिंडी है, जिसे कस्तूरी भिंडी भी कहा जाता है।
यूं तो यह खेतों की मेंड़ या झाड़ झंखाड़ के बीच अपने आप नैसर्गिक ढंग से उगती और अपना वंश परिवर्धन करती रहती है। लेकिन अध्ययन हेतु इसे गमले में लगाया गया है। इस भिंडी से उसके रक्षा कवच को बहुत कुछ समझा जा सकता है।
इसके चित्र को बड़ा करके देखने से स्पस्ट हो जाता है कि हमारी अनेक अनाजों और सब्जियों की जंगली य कुछ परम्परागत किस्में अपनी रक्षा के लिए किस प्रकार सुरक्षा कवच बना लेती हैं ? बस यही सब है उनका यहाँ की परिस्थितिकी में अपने को हजारों साल से सुरक्षित रख पाने का रहस्य। पर उनमें हम कुछ को समझ पाते हैं कुछ को नहीं। इसे गौर से देखिए ? इस भिंडी ने कीट ब्याधि से बचने के लिए अपने शरीर में बड़े - बड़े रोएं उगा रखे हैं। यह रोएं इतने चोंखे हैं कि भिंडी फल में आक्रमण करने आए अनेक कीड़े इसमें बिध कर मरे हुए स्पस्ट दिख रहे हैं।
फिर भी मनुष्य रूपी प्रकृति के इस अनूठे दुष्ट जन्तु से कस्तूरी भिंडी भी अपने को नही बचा पाई। क्योकि वह इसे भी भून और भुर्ता बना कर खा लेता है। कहना न होगा कि प्रकृति, पर्यावरण व जैव विविधता को अगर किसी से खतरा है तो कुदरत के इसी दो अदद फुर्सत के हाथ वाले विलक्षण प्राणी से। जिस गति से इसका तथा कथित विकास हो रहा है तो सौ दो सौ वर्षो बाद यह प्राणी अपनी करतूतों से खुद को तो नष्ट कर ही लेगा पर उसके पहले लगता है समूचे जीव जगत को ही ले डूबेगा।
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