Wednesday, July 16, 2025

सर्पदंश से बचाव एवं जागरूकता के लिये दक्षिण वन पन्ना की अनूठी पहल


पन्ना। वन विभाग ने वर्ल्ड स्नेक-डे पर सर्पदंश से होने वाली जनहानि को रोकने और ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से दक्षिण पन्ना वन मण्डल द्वारा दो अभिनव पहल की शुरूआत की गयी। जो पारम्परिक लोक संस्कृति और रचनात्मक शैक्षणिक संसाधनों के समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। 

इनमें “आल्हा गायन’’ और “साँप सीढ़ी’’ खेल के माध्यम से सर्पदंश से बचाव एवं उपचार के लिये जागरूक किया जा रहा है। इन दोनों पहल का उद्देश्य ग्रामीण समुदाय, विशेषकर बच्चों और युवाओं को सर्पदंश के प्रति सचेत करना, अंधविश्वासों से दूर रखते हुए वैज्ञानिक प्राथमिक उपचार की समझ बढ़ाना है। यह प्रयास जन-भागीदारी से जन-जीवन की सुरक्षा के लिये एक प्रभावशाली और प्रेरणादायक कदम है।

वन विभाग पन्ना द्वारा बुंदेलखण्ड की प्रसिद्ध वीरगाथा शैली “आल्हा’’ के माध्यम से एक विशेष लोकगीत की रचना एवं प्रस्तुति करवायी गयी। इसमें सर्पदंश के लक्षणों, सावधानियों एवं प्राथमिक उपचार की जानकारी सरल बुंदेली भाषा में दी गयी। ऑडियो गीत ग्राम वन समितियों, स्कूलों तथा सोशल मीडिया के माध्यम से भी व्यापक रूप से प्रसारित किया जायेगा। क्षेत्रीय लोक संस्कृति के माध्यम से समाज में गहरी और स्थायी जागरूकता आयेगी। ऑडियो गीत के रचनाकार डॉ. सुरेश श्रीवास्तव एवं उनकी टीम द्वारा तैयार किया गया है।

सर्पदंश से बचाव और उपचार की जानकारी को रोचक और प्रभावी ढंग से पहुँचाने के लिये दो विशेष “साँप सीढ़ी’’ खेल विकसित किये गये हैं। इन खेलों में “क्या करें और क्या न करें’’ के संदेश को सीढ़ियों और साँपों के माध्यम से प्रतीकात्मक चित्रों में दर्शाया गया है। 

इस खेल में कोबरा, करैत और रसेल वाइपर जैसे घातक सर्पों के आकर्षक कार्टून चित्र शामिल हैं, जो मध्यप्रदेश में सर्पदंश से होने वाली अधिकांश मौतों के लिये जिम्मेदार हैं। साथ ही गोंड कला के पारम्परिक मोटिफ भी इन खेलों में समाहित किये गये हैं, जिससे यह स्थानीय संस्कृति से जुड़ते हैं। वर्ल्ड स्नेक-डे के अवसर पर वन मण्डल के चयनित विद्यालयों में “साँप सीढ़ी’’ का वितरण किया जायेगा, जिससे यह संदेश प्रभावी रूप से पहुँच सके। 

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Tuesday, July 15, 2025

सिर्फ खुजली ही नहीं, केवांच से बनती है स्वादिष्ट सब्जी

  • जंगली केंवाच के रोएं से होती है तेज खुजली
  • आयुर्वेदिक दवावों में होता है बीजों का प्रयोग              



।। बाबूलाल दाहिया ।।

जंगली केंवाच के रोएं अगर शरीर पर लग जाए तो बहुत तेज खुजली, जलन करते हैं। इससे सूजन होने लगती है। केंवाच की फलियों के ऊपर बन्दर के रोम के जैसे रोम होते हैं। इससे बन्दरों को भी खुजली उत्पन्न होती है, इसलिए बंदर भी इसके नज़दीक नहीं जाते। केवांच एक लता है, इसे किवांच या कौंच भी बोला जाता है।

अधिकांश लोग केंवाच की खुजली उत्पन्न करने वाली सिर्फ जंगली प्रजाति को ही जानते हैं। इसके खतरनाक खुजली उत्पन्न करने वाले रोएं के जो भुक्त भोगी हैं, केवॉच का नाम सुनकर ही उनके शरीर में सिहरन सी होने लगती है। लेकिन आपका यह जानना भी जरुरी है कि हर केवांच में खुजली नहीं होती ? केंवाच की ऐसी प्रजाति भी होती है जिसकी खेती की जाती है तथा उसकी स्वादिष्ट सब्जी भी बनती है। इसकी लताएँ 5-6 मीटर तक लंबी हो जाती हैं। इसे जून माह में बरसात शुरू होते ही लगाया जा सकता है और अक्टूबर में फ़लत शुरू हो जाती है। इसकी फलियाँ 5-8 सेंटीमीटर लंबे "S"आकार की होती हैं, जिसमें 4-6 गोल बीज होते है। पके बीजों का प्रयोग आयुर्वेदिक दवावों में होता है। 


अमूमन केवांच तीन प्रकार की होती हैं। काली केवॉच, हरी केवांच और भूरी केवांच। हरी और काली केंवाच की स्वादिष्ट सब्जी बनती है। लेकिन भूरी केवांच के रोएं लग जाने से देह में ऐसी खुजली उतपन्न होती है कि फिर गोबर लगाकर धोने से ही उससे निजात मिलती है। यह सब्जी वाली दोनों केवांच को लोग बाड़ में उगाते हैं पर भूरी केवांच जंगली है जो नैसर्गिक ढंग से ही जंगलों य खेतों के बाड़ में जमती है। इन तीनों प्रकार की केवांच का आयुर्वेद में बड़ा महत्व है। लेकिन भूरी केवॉच खुजली भर उत्पन्न नहीं करती, वह खेत से चूहे भगाने में भी लाजबाब है।

बस किसान को करना यह है कि पहले वह खेत में लगे चूहे के बिलों को चिन्हित करले कि  " कहां-कहां चूहा सक्रिय हैं ?"  यह जानने के लिए हर एक बिल को पहले मिट्टी से बन्द कर दें। फिर जिस बिल में चूहे होंगे तो वह बन्द बिल को खोल देंगे। चिन्हित करने के पश्चात भूरी केवांच के परिपुष्ट हरे फल को तोड़ एक पालीथीन बैग में रख लें। और हर एक चिन्हित बिल में चिमटे से पकड़-पकड़ उनमें एक-एक फल रख दें एवं बिल को पुनः गीली मिट्टी से बंद कर दें। 

जैसे ही उस फल का रुआ उड़कर चूहों के शरीर में लगेगा तो चूहे ऐसा भागते हैं कि कम से कम अनाज के उस सीजन तक तो लौटकर दोबारा खेत आने का नाम नही लेते। पर अभी तो केंवाच के बोने का समय है। चूहा भगाने का काम तो बाद में अक्टूबर से मार्च तक रहता है। इस वर्ष हमनें 100 से अधिक लोगों को जो 10-10 प्रकार की सब्जियों के बीज के पैकेट बांटे हैं, उनमें एक केवांच भी थी।

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Thursday, July 10, 2025

कुछ ऐसा हो, ताकि पन्ना में जीवित रहे वत्सला की स्मृतियां !

 

दुनिया की सबसे उम्र दराज हथिनी "वत्सला" जिसे जीते जी वह नहीं मिल सका, जिसकी वह हक़दार थी। 

"वत्सला" की स्मृति व उसके मानवीय गुणों की सुगंध पन्ना की माटी में हमेशा महसूस हो, इसके लिए पन्ना टाइगर रिज़र्व की धरोहर रही इस हथिनी के नाम पर कुछ ऐसा हो जो वत्सला की स्मृतियों को हमेशा जीवित रखे। यह भाव पन्ना वासियों का ही नहीं अपितु देश व दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमियों का भी है।

गौरतलब है कि दुनिया की सबसे उम्र दराज हथिनी वत्सला की जर्जर हो चुकी देह ने भले ही साथ छोड़ दिया है, लेकिन उसका प्रेम, वात्सल्य, आत्मीयता व सहनशीलता जैसे मानवीय गुण उसकी स्मृतियां को अमिट रखेंगे। वत्सला महज एक हथिनी नहीं थी बल्कि वह अपने नाम के अनुरूप प्रेम, स्नेह और ममता की प्रतिमूर्ति भी थी। पन्ना ही नहीं अपितु देश, प्रदेश व दुनिया भर के वन्य जीव और प्रकृति प्रेमियों ने जिस तरह से वत्सला की मौत पर अपनी भावनाओं का इजहार किया है, वह अभूतपूर्व है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव सहित केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान व भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद बीडी शर्मा ने वत्सला की पावन स्मृतियों को याद करते हुए सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है। मीडिया में राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना की इस धरोहर के जीवन पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है। यह इस बात का द्योतक है कि वत्सला से दुनिया भर के लोगों का किस तरह से जुड़ाव व आत्मीय रिश्ता रहा है।

पन्ना की शान रही "वत्सला" के जीते जी उसका नाम दुनिया की सबसे उम्र दराज हथिनी के तौर पर वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो सका। निश्चित रूप से जिसकी वह हकदार थी, वह जीते जी उसे नहीं मिल पाया। इस बात का अफसोस पन्ना वासियों को हमेशा रहेगा। इसकी भरपाई करने के लिए क्या यह जरूरी नहीं है कि पन्ना में वत्सला के नाम से कुछ ऐसा हो ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस अनूठी हथिनी के जीवन से परिचित हो सकें। 

शायद ऐसा करना "वत्सला" को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। क्या करना चाहिए यह पन्ना के नागरिक, जनप्रतिनिधि, पत्रकार व पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारी तय करें। इसके लिए सभी से सुझाव भी लिए जा सकते हैं और बेहतर सुझावों को मूर्त रूप दिया जा सकता है। वत्सला के पावन स्मृतियों की खुशबू पन्ना की माटी में सदा जीवंत रहे, ऐसी कामना है।

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Wednesday, July 9, 2025

पन्ना की सुप्रसिद्ध हथिनी वत्सला का हुआ अंतिम संस्कार, सीएम ने दी श्रद्धांजलि

  • "वत्सला" भौतिक रूप से भले ही अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमियों के जेहन में उसकी स्मृतियाँ हमेशा जीवित रहेंगी। मंगलवार की शाम तक़रीबन 7 बजे वत्सला को टाइगर रिज़र्व के अधिकारियों व कर्मचारियों की मौजूदगी में हिनौता हांथी कैम्प से कुछ दूरी पर खैरईया नाले के पास पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। सभी ने अपने प्रिय और बेहद आत्मीय वत्सला को नम आँखों के साथ अंतिम विदाई दी।

कुनबे के नन्हे-मुन्ने सदस्यों के साथ जंगल में टहलती "दाई मां" वत्सला।   

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर तथा बीते कई दशकों से यहां हाथियों के कुनबे में जन्मने वाले नन्हे-मुन्नों की दाई की तरह परवरिश करने वाली हथिनी वत्सला के निधन पर  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उसे श्रद्धांजलि अर्पित की है।  

डॉक्टर यादव ने सौ साल से भी अधिक उम्र वाली इस हथिनी वत्सला के देहांत पर सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से कहा कि वत्सला मात्र हथिनी नहीं थी, वह हमारे जंगलों की मूक संरक्षक, पीढ़ियों की सखी और प्रदेश की संवेदनाओं की प्रतीक थी। पन्ना टाइगर रिजर्व की यह प्रिय सदस्य अपनी आंखों में अनुभवों का सागर और अस्तित्व में आत्मीयता लिए रही। उसने कैंप के हाथियों के दल का नेतृत्व किया और नानी-दादी बनकर हाथी के बच्चों की स्नेहपूर्वक देखभाल भी की। वत्सला की स्मृतियां हमारी माटी और मन में सदा जीवित रहेंगी।


प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी वत्सला के देह त्यागने पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट पर मंगलवार को लिखा कि आज एक दु:खद समाचार ने हृदय को व्यथित कर दिया। पन्ना टाइगर रिजर्व की गौरवशाली धरोहर, हम सबकी अत्यंत प्रिय वत्सला अब हमारे बीच नहीं रहीं। वे दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनियों में शुमार थीं। दशकों तक उन्होंने दादी की तरह नन्हे हाथियों की देखभाल की।

पन्ना टाइगर रिजर्व में उन्हें देखना और पुकारना, एक आत्मीय संवाद जैसा अनुभव होता था। वत्सला, तुम सदा हमारी स्मृतियों में जीवंत रहोगी।

अलविदा!


अपने नाम को पूरी तरह किया है चरितार्थ

 वत्सला को दो बार मौत के मुंह से बचाने वाले वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एस.के. गुप्ता बताते हैं कि वह बेहद शांत, संवेदनशील और वात्सल्य से परिपूर्ण रही है। इस हथिनी ने अपने नाम को पूरी तरह से चरितार्थ किया है। डॉ संजीव गुप्ता बताते हैं कि जब भी कोई हथिनी यहां बच्चे को जन्म देती थी तो वत्सला जन्म के समय एक कुशल दाई की भूमिका निभाती रही है। इस हथिनी का जैसा नाम है वैसा उसके द्वारा आचरण भी किया जाता रहा है। लगभग दो वर्ष की उम्र होने पर जब पार्क प्रबंधन द्वारा किसी बच्चे को उसकी मां से पृथक किया जाता रहा, तो उसे वत्सला के पास छोड़ते थे। इन बच्चों को वत्सला बड़े प्यार से अपने पास रखती थी। 

वत्सला के घाव में पट्टी करते वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता। 

डॉ. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में उनके कार्यकाल में लगभग 15 बच्चों का जन्म हुआ लेकिन एक भी डिलीवरी में उनके द्वारा कोई इंजेक्शन व उपचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वत्सला बखूबी एक दक्ष दाई की तरह बच्चे को जनाने का काम करती रही है। डॉ.गुप्ता बताते हैं कि उनकी जॉइनिंग के समय वर्ष 2000 में जब मैंने हथिनी वत्सला का स्वास्थ्य परीक्षण किया था उस समय हथिनी के पूरे दांत गिर चुके थे। 25 वर्ष पूर्व हथिनी की उम्र 80 से 85 वर्ष के बीच रही होगी। उस हिसाब से अब हथिनी की उम्र 103 से 105 वर्ष होनी चाहिए, जो दुनिया के जीवित हाथियों में सबसे अधिक है।

वत्सला की लंबी सूंड का क्या है रहस्य

 


दुनिया की सबसे उम्रदराज कही जाने वाली हथिनी वत्सला की तमाम खूबियों में से एक खूबी उसके शारीरिक बनावट को लेकर भी है। जिससे हाथियों के झुंड में भी वत्सला को आसानी से पहचाना जा सकता था। दरअसल वत्सला की सूंड दूसरे अन्य हांथियों के मुकाबले अधिक लंबी रही है। सूंड की लंबाई इतनी अधिक थी कि वत्सला जब खड़ी होती थी तो दो से तीन फिट सूंड को जमीन के ऊपर मोड़ कर रखना पड़ता था। उसकी इस खूबी के कारण वन्यजीव प्रेमी Peeyush Sekhsaria वत्सला को पांच पैर वाली हथिनी भी कहते रहे हैं। वत्सला की सूंड इतनी लंबी कैसे हुई, इस बाबत वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता का कहना है कि शुरुआती दिनों में हथिनी वत्सला के द्वारा लकड़ी की बोगियों को उठाने व रखने का कार्य किया जाता रहा है। यही वजह है कि उम्र बढ़ने के साथ ही वत्सला की सूंड भी लंबी हो गई।

वत्सला भौतिक रूप से भले ही अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमियों के जेहन में उसकी स्मृतियाँ हमेशा जीवित रहेंगी। मंगलवार की शाम तक़रीबन 7 बजे वत्सला को टाइगर रिज़र्व के अधिकारियों व कर्मचारियों की मौजूदगी में हिनौता हांथी कैम्प से कुछ दूरी पर खैरईया नाले के पास पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। सभी ने अपने प्रिय और बेहद आत्मीय वत्सला को नम आँखों के साथ अंतिम विदाई दी।

वीडियो : उम्रदराज हथिनी "वत्सला" को पन्ना टाइगर रिज़र्व के महावत बड़े प्यार के साथ जंगल में पूरी सतर्कता के साथ इस तरह टहलाने ले जाते थे -


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Tuesday, July 8, 2025

दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला का निधन

  • तीन दशक से भी अधिक समय तक पन्ना टाइगर रिजर्व की शान रही हथिनी वत्सला अब नहीं रही। पन्ना टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटक व वन्य जीव प्रेमी दुनिया की इस सबसे बुजुर्ग हथिनी का दीदार जरूर करते थे। लेकिन अब ऐसा संभव नहीं हो सकेगा क्योंकि हिनौता हांथी कैम्प में वत्सला नजर नहीं आएगी।  

 पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर रही हथिनी वत्सला 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। म.प्र. के पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर तथा बीते कई दशक से पर्यटकों और वन्य जीव प्रेमियों के लिए आकर्षक का केंद्र रही दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला का आज दोपहर लगभग डेढ़ बजे हिनौता हांथी कैम्प के निकट निधन हो गया। पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि हिनौता हांथी कैम्प के पास एक नरिया में वत्सला गिर गई थी, जो फिर उठ नहीं पाई। सौ वर्ष से भी अधिक उम्र की इस हथिनी की मौत से पन्ना टाइगर रिजर्व में जहाँ शोक का माहौल है वहीं वन्य जीव प्रेमी सहित पन्ना जिले के लोग भी दुखी हैं। 

शतायु पार कर चुकी हथिनी वत्सला की कहानी बेहद दिलचस्प तथा रहस्य व रोमांच से परिपूर्ण है। वत्सला मूलतः केरल के नीलांबुर फॉरेस्ट डिवीजन में पली-बढ़ी है। इसका प्रारंभिक जीवन नीलांबुर वन मंडल (केरल) में वनोपज परिवहन का कार्य करते हुए व्यतीत हुआ। इस हथिनी को 1971 में केरल से होशंगाबाद मध्यप्रदेश लाया गया, उस समय वत्सला की उम्र 50 वर्ष से अधिक थी। वत्सला को वर्ष 1993 में होशंगाबाद के बोरी अभ्यारण्य से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान लाया गया, तभी से यह हथिनी यहां की पहचान बनी हुई है। 

विशेष गौरतलब बात यह है कि वत्सला की अधिक उम्र व सेहत को देखते हुए वर्ष 2003 में उसे रिटायर कर कार्य मुक्त कर दिया गया था। तब से किसी कार्य में उसका उपयोग नहीं किया गया। वत्सला का पाचन तंत्र भी कमजोर हो चुका था, इसलिए उसे विशेष भोजन दिया जाता रहा है। फरवरी वर्ष 2020 में वत्सला की दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो जाने से उसे दिखाई भी नहीं देता था, फलस्वरुप चारा कटर मनीराम उसकी सूंड अथवा कान पकड़कर जंगल में घुमाने ले जाता था। बिना सहारे के वत्सला ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती थी। हाथियों के कुनबे में शामिल छोटे बच्चे भी घूमने टहलने में वत्सला की पूरी मदद करते रहे हैं।


वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एस. के. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के ही नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003 और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। डॉ गुप्ता ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर (42 वर्ष) ने मस्त के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गये। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। डॉ. गुप्ता ने 200 टांके 6 घंटे में लगाए तथा पूरे 9 महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। 

लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दाँत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ। हथिनी वत्सला अत्यधिक शांत और संवेदनशील थी। पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों के कुनबे में बच्चों की देखभाल दादी मां की भांति करती रही है। कुनबे में जब कोई हथिनी बच्चे को जन्म देती है, तो वत्सला जन्म के समय एक कुशल दाई की भूमिका भी निभाती थी।


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