Monday, May 30, 2016

अपराधों से मुक्त है पन्ना जिले का कुडरा गांव

  • यहां ग्रामीणों के बीच एकता और आपसी भाईचारा बेमिशाल 
  • आज तक थाने नहीं पहुंचा इस गांव का कोई भी विवाद 




। अरुण सिंह, पन्ना 

आर्थिक विकास की अंधी दौड़ और प्रतिस्पर्धा के इस माहौल में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में एक छोटा सा गांव ऐसा भी है जो अपराधों और विवादों से पूरी तरह मुक्त है. इस गांव के वाशिंदों में एकता, आपसी प्रेम और भाईचारा इतना प्रगाढ़ है कि आज तक गांव का कोई भी विवाद थाने तक नहीं पहुंचा. गांव के बड़े बुजुर्ग गर्व के साथ बताते हैं कि हमारी सबसे बड़ी पूंजी यही है कि हम सब मिल जुलकर रहते हैं. हमारे बीच किसी भी तरह का कोई जातिगत भेदभाव और ऊंचनीच नहीं है.

उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 52 किमी. दूर उ.प्र. की सीमा से लगा हुआ कुडऱा गांव जंगल और पहाड़ों के बीच बसा है. अजयगढ़ जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत धरमपुर के इस गांव तक विकास की किरणें भले नहीं पहुंची, लेकिन यहां आपसी प्रेम और भाईचारे की रोशनी भरपूर है. अपनी इसी खूबी की दम पर कुडरा गांव के लोग अनगिनत चुनौतियां और अभावों के बीच भी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. 

इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आजादी के गुजर चुके 67 सालों में कुडरा गांव को मूलभूत और बुनियादी सुविधायें भी मयस्सर नहीं हो सकी हैं और तो और इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग तक नहीं है. ग्राम पंचायत धरमपुर तक सड़क मार्ग तथा आवागमन के साधन हैं, लेकिन धरमपुर से कुडरा तक 7 किमी. बीहड़ और जंगल है. ग्रामवासियों को अपनी छोटी - मोटी जरूरतों की पूर्ति के लिए इस कठिन मार्ग से होते हुए पैदल ही धरमपुर आना पड़ता है. सात किमी. लम्बे इस मार्ग पर सात पहाड़ी नाले पड़ते हैं, फलस्वरूप बारिश के चार महीने कुडरा गांव के लोगों के लिए मुसीबतों से भरे होते हैं.
कुडरा गांव के 75 वर्षीय गोरेलाल लोध ने बताया कि हमारे गांव में लोधी, पाल, ब्राम्हण, प्रजापति, कुशवाहा, गोंड व बसोर जाति के लोग हैं, लेकिन सभी मिल जुलकर रहते हैं. जात - पात व छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई का भी इस गांव में कोई वजूद नहीं है. यही वजह है कि गांव में ग्रामीणों के बीच किसी भी तरह के कोई मतभेद और मनभेद नहीं हैं. यदि कभी कभार कोई बात होती भी है तो गांव में ही हम मिल बैठकर उसे सुलझा लेते हैं, कभी थाने जाने की नौबत नहीं आती. कुडरा गांव में आपसी प्रेम और भाईचारे की कई दशकों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा आज भी कायम है और नई पीढ़ी के लोग भी बड़े बुजुर्गों की इस परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं. गांव के लोगों को दंश इस बात का है कि कुडरा गांव आता तो पन्ना जिले में है लेकिन वह जिले से अलग - थलग है. इस गांव की कभी कोई खोज खबर नहीं ली जाती, आज तक यहां कोई मंत्री, विधायक व कलेक्टर नहीं आया.

थाने में नहीं दर्ज कोई भी रिपोर्ट

धरमपुर थाना क्षेत्र के ग्राम कुडरा में कभी कोई अपराध घटित हुआ है या नहीं, इस बात का सत्यापन करने के लिए जब थाने में संपर्क किया गया तो कुडरा गांव के वाशिंदों की बात सच निकली. थाना प्रभारी धरमपुर एच.पी. अवस्थी व थाने में पदस्थ पुलिस कर्मियों ने बताया कि पिछले 40 वर्षों के रिकार्ड में आज तक कभी कुडरा गांव की रिपोर्ट थाने में नहीं दर्ज हुई. थाना पुलिस के मुताबिक इस गांव में कभी कोई अपराध घटित नहीं होते, गांव की छुटमुट समस्याओं को ग्रामीण आपस में ही सुलझा लेते हैं. थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की कभी नौबत नहीं आने पाती. महिला उत्पीडऩ व दुष्कृत्य और छेडख़ानी आदि की भी कभी कोई शिकायत कुडरा गांव से नहीं आई. 
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Saturday, May 28, 2016

चुनौतियों से जूझना खेहा गांव के लोगों की बनी नियति

  • इस दुर्गम गांव तक गर्मी के मौसम में भी पहुंचना कठिन 
  • बारिश में केन नदी और कमधा नाला से घिर जाता है गांव 




। अरुण सिंह,पन्ना  

जिले के पवई जनपद क्षेत्र में एक गांव ऐसा भी है जहां के रहवासियों को बिना कोई जुर्म के काला पानी जैसी सजा भुगतने को मजबूर होना पड़ रहा है. जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 87 किमी. दूर पवई जनपद की ग्राम पंचायत पिपरियादोन के खेहा गांव की भौगोलिक स्थिति आज भी कुछ ऐसी है कि गर्मी के इस मौसम में भी इस गांव तक पहुंच पाना आसान नहीं है. बारिश के मौसम में तो यह गांव पूरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है. केन नदी व कमधा नाला से यह गांव इस तरह घिर जाता है कि पूरे चार माह तक इस गांव के वाशिंदे कैदियों की तरह जिन्दगी जीने को विवश हो जाते हैं.

नौतपा के तीसरे दिन प्रचण्ड गर्मी में पन्ना से पत्रकारों का एक दल इस दुर्गम इलाके में स्थित ग्राम खेहा में केन नदी को पैदल पार करके टेढ़े - मेढ़े जंगली रास्तों से होकर जब पहुंचे तो गांव के लोग भी हैरत में पड़ गये. गांव की एक महिला जो अपने मवेशियों को भूसा डाल रही थी, उसने जब इतने लोगों को गांव में आते देखा तो उत्सुकतावश घर से बाहर निकलकर पूंछा कि गांव में सड़क बननी है क्या ? पत्रकारों ने जब अपना परिचय दिया और यहां आने की वजह बताई तो उस महिला ने गांव के बीच खड़े नीम के बड़े वृक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहां जायें, गांव के सभी लोग वहां मिल जायेंगे. 

पत्रकारों के वहां पहुंचने पर अपने आप गांव के लोग जुड़ गये और हांथ में डायरी व कैमरा देख वे बिना कुछ बताये यह भी समझ गये कि गांव में कौन लोग आये हैं. इतने पत्रकारों को एक साथ अपने गांव में पाकर ग्रामवासी अत्यधिक प्रशन्न हुए और अपनी समस्याओं व रोजमर्रा की जिन्दगी में आने वाली चुनौतियों को एक - एक करके बताने लगे.
खेहा गांव के कुछ पढ़े - लिखे और समझदार से दिखने वाले रामकिशोर शर्मा ने बताया कि हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस गांव तक आवागमन के कोई साधन नहीं है. गांव में यदि कोई बीमार हो जाय तो 25 किमी. दूर पवई के अलावा इलाज की कहीं कोई सुविधा नहीं है. सबसे बड़ी मुसीबत तो यह है कि गांव से पिपरियादोन तक जाने के लिए पैदल चलने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है. ऐसी स्थिति में बीमार व्यक्ति को चारपाई पर चार लोग कंधे में रखकर ले जाते हैं. 

बारिश के मौसम में केन नदी जब बढ़ जाती है और कमधा नाला में भी पानी आ जाता है तो पैदल रास्ता भी बंद हो जाता है. इन विकट हालातों में भी गांव के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर बीमार व्यक्ति को पवई तक ले जाने की हर संभव कोशिश करते हैं. बंदी यादव बताते हैं कि नदी में यदि गले तक पानी रहता है तो हम चारपाई कंधे में रखकर किसी तरह मरीज को पिपरियादोन तक ले जाते हैं, लेकिन यदि पानी गले से ऊपर होता है तो गांव में ही मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाता. बीमार पडऩे पर यहीं गांव में ही बिना इलाज के मरना हमारी नियति बन चुकी है. खेहा गांव के लोगों को केन नदी दो बार पार करना पड़ता है.

इस पहुंचविहीन और दुर्गम गांव में ब्राम्हण, यादव तथा कुछ आदिवासी निवास करते हैं. लगभग दो सौ की आबादी वाले इस गांव में सिर्फ 70 मतदाता हैं, शायद इसीलिए जनप्रतिनिधियों ने भी इस गांव की कोई सुध नहीं ली. गांव में बुनियादी सुविधा के नाम पर न तो बिजली है और न ही सड़क. छोटा सा स्कूल जरूर है लेकिन आंगनवाड़ी केन्द्र नहीं है. उचित मूल्य की दुकान पिपरियादोन में है, इसलिए खाद्यान्न व मिट्टी तेल लेने के लिए ग्राम वासियों को सर्दी, गर्मी व बारिश हर मौसम में पैदल ही जाना पड़ता है. 

जंगल, पहाड़ तथा नदी और नाले से घिरे इस गांव में रोजगार के कोई साधन नहीं है, पंचायत से भी आवश्यकता के अनुरूप काम नहीं मिल पाता. ऐसी स्थिति में खेती - बाड़ी ही जीविका का मुख्य आधार है. चूंकि यहां कृषि भूमि भी ऊंची - नीची है तथा सिंचाई के कोई साधन नहीं है. इसलिए खेती भी बहुत अच्छी नहीं होती. गांव के गुमान यादव, सुरेश यादव, गोपाल यादव, सुकुवा आदिवासी तथा कुंजी आदिवासी ने कहा कि यदि कमधा नाला में पुल बन जाय तो खेहा गांव तक बारहमासी आवागमन की सुविधा बन सकती है.

पेयजल की नहीं है कोई परेशानी 



अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे खेहा ग्राम के निवासियों से जब पेयजल समस्या के संबंध में पूंछा गया तो उन्होंने बताया कि पीने के पानी की हमें कोई दिक्कत नहीं है. गांव में चार हैण्डपम्प लगे हैं और चारो ही चालू हालत में हैं, उनसे पर्याप्त पानी निकलता है. खेहा गांव में हैण्डपम्प कैसे लगे तथा यहां तक मशीन कैसे पहुंची, इस संबंध में रामकिशोर शर्मा ने बताया कि बोरिंग मशीन झालर की तरफ से लाई गई तथा गांव तक मशीन को लाने के लिए ग्रामवासियों ने मिलकर रास्ता बनाया, तब जाकर यहां हैण्डपम्प लग पाये हैं. हैण्डपम्पों के लगने से ग्रामवासियों को पेयजल समस्या से निजात मिल गई है.

घैरी, कछार व बन्डोरा गांव भी समस्या ग्रसित 


इसी इलाके में स्थित घैरी, कछार व बन्डोरा गांव में भी कमोवेश खेहा की ही तरह समस्याओं का अम्बार है. घैरी गांव खेहा के ही पास है और बारिश के मौसम में यह भी टापू बन जाता है. जबकि कछार और बन्डोरा गांव की समस्यायें जहां से कुछ अलहदा हैं. इन ग्रामों तक आवागमन की समस्या उतनी जटिल नहीं है फिर भी यहां के वाशिंदों को भारी मुसीबत झेलनी पड़ती है. ये दोनों गांव ग्राम पंचायत बछौन के अन्तर्गत आते हैं और पंचायत की इन ग्रामों से दूरी तकरीबन 25 किमी. है. 

जंगली रास्तों व पहाड़ से होकर राशन व खाद्य सामग्री लेने के लिए ग्राम वासियों को पैदल बछौन जाना पड़ता है. आदिवासी गांव कछार के महाबली, भूरे सिंह आदिवासी तथा बेनी आदिवासी ने बताया कि बछौन स्थित उचित मूल्य की दुकान में 25 किमी. पैदल चलकर जाने के बाद भी कभी - कभी उन्हें खाद्यान्न नहीं मिल पाता.
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Wednesday, May 25, 2016

गुमनामी के अंधेरे में है पन्ना जिले का कुडरा गांव

  • आजादी के अरसठ सालों में नहीं पहुंचा कोई मंत्री, विधायक व अधिकारी 
  • सड़क मार्ग न होने से ग्रामवासी नारकीय जिन्दगी जीने को मजबूर 


विकास से वंचित गुमनामी के अँधेरे में खोया पन्ना जिले का कुडरा गांव। फोटो - अरुण सिंह 

अरुण सिंह,पन्ना।  यह सुनकर सहसा भरोसा नहीं होता कि कोई गांव ऐसा भी हो सकता है जहां आजादी के अरसठ साल गुजर जाने के बाद भी आज तक कोई मंत्री, सांसद, विधायक यहां तक की आला अधिकारी भी नहीं पहुंचा. गुमनामी के अंधेरे में खोया यह बदनसीब गांव कुडरा पन्ना विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां की विधायक प्रदेश शासन की कद्दावर मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेेले हैं. फिर भी इस गांव में मूलभूत सुविधायें तो दूर आवागमन के लिए सड़क मार्ग तक नहीं है. पहाडिय़ों और जंगली नालों से घिरा यह गांव बारिश के मौसम में पूरी तरह कट जाता है. किसी के बीमार पडऩे पर 7 किमी. दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र धरमपुर तक पहुंच पाना भी दुस्कर हो जाता है फलस्वरूप अनेको लोग इलाज के अभाव में असमय काल कवलित हो जाते हैं.
उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 52 किमी. दूर अजयगढ़ जनपद की सबसे बड़ी पंचायत धरमपुर के अन्तर्गत आने वाले कुडरा गांव की आबादी तकरीबन 600 है. धरमपुर तक तो पक्का सड़क मार्ग है तथा यात्री बसों का भी अवागमन होता है, लेकिन धरमपुर से कुडरा गांव तक 7 किमी. की दूरी तय करना आसान नहीं है. धरमपुर से कुडरा के लिए जो कच्चा मार्ग है, उस मार्ग से जाने पर रास्ते में जो परिद्रश्य और माहौल नजर आता है, उसे देख चंबल के बीहडों की याद ताजा हो जाती है. मिट्टी के ऊंचे टीलों के बीच से गुजरने वाले इस टेढ़े - मेढ़े कच्चे मार्ग पर यदा - कदा पैदल या साईकिल सवार ग्रामीण मिलते हैं, दूर - दूर तक और कुछ नजर नहीं आता. रविवार को सुबह लगभग 9 बजे पन्ना के पत्रकारों का दल जब इस दुर्गम और गुमनाम गांव में पहुंचे तो यहां के वाशिंदे भी हैरत में पड़ गये. कुडरा गांव के माध्यमिक शाला परिसर में गाड़ी खड़ी होने पर गांव के लोग कौतूहल वश यह जानने वहां एकत्रित हो गये कि कौन लोग आये हैं. जब उन्हें पता चला कि कोई नेता व अधिकारी नहीं अपितु पन्ना से पत्रकार इस गांव के हाल जानने के लिए आये हैं तो उनकी खुशी और प्रशन्नता का ठिकाना नहीं रहा.

इस दुर्गम गांव में पत्रकारों के पहुंचने पर उत्साहित ग्रामवासी। 
कुडरा गांव के 75 वर्षीय बुजुर्ग गोरेलाल लोध ने अपनी उत्सुकता प्रकट करते हुए कहा कि गाड़ी देखकर हमने सोचा था कि अभी तो कोई चुनाव भी नहीं है, फिर यहां कौन आया है. क्यों कि सिर्फ चुनाव के समय ही प्रत्याशियों के चमचा यहां वोट मांगने के लिए आते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा व सपा के प्रत्याशी भी आये थे लेकिन कांग्रेस व भाजपा का कोई भी प्रत्याशी यहां कभी नहीं आया. स्कूल परिसर में पेड़ की छांव के नीचे एकत्रित ग्रामीणों ने पत्रकारों के सामने जमकर अपना गुबार निकाला और कहा कि उनका नेताओं से विश्वास उठ गया है. वे सिर्फ कोरे आश्वासन देते हैं और चुनाव जीतने के बाद अपना घर भरते हैं. क्षेत्रीय विधायक व प्रदेश शासन की मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेले के प्रति ग्रामीणों में खासा रोष है. गांव के शिवप्रसाद सिंगरौल ने बताया कि कुछ माह पूर्व खोरा गांव में सोनी परिवार के ऊपर जब डकैती पड़ी थी, उस समय मंत्री महदेले जी के खोरा आने पर गांव के लड़कों ने उन्हें कुडरा आने के लिए जब कहा तो उन्होंने कहा कि यह कुडरा कहां है मुझे नहीं मालुम. मंत्री के इस जवाब से पूरा गांव आहत है, हमने यह सोच रखा है कि इस बार चुनाव होने पर हम सब एकजुट होकर सबक जरूर सिखायेंगे.

पेयजल और सड़क सबसे बड़ी समस्या 

गांव का एकलौता कुंआ जहां से ग्रामीण पेयजल लेते हैं। 

इस गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल और सड़क मार्ग का अभाव है. दुनिया से अलग - थलग पड़े तथा विकास से अछूते इस गांव के लोगों में आक्रोश तो है लेकिन वे बेवश और लाचार हैं. चुन्नू सिंगरौल अपना गुस्सा प्रकट करते हुए कहते हैं कि ऐसी सरकार नहीं रहना चाहिए जिसे आम जनता के दु:ख दर्द और तकलीफ से कोई वास्ता नहीं है. इन्द्रपाल सिंगरौल का कहना है कि हम चाहते हैं गांव की पेयजल समस्या दूर हो तथा सड़क बन जाय. अभी गांव में सिर्फ एक हैण्डपम्प है तथा खेत में बना एक निजी कुंआ है जिससे गांव का निस्तार होता है. इन्द्रपाल ने बताया कि वह 40 साल का हो गया लेकिन हमारी समस्या दूर करने का कोई प्रयास नहीं हुआ अब तो ऐसा लगता है कि इस गांव का भविष्य अंधकारमय है. आज आप लोग यहां आये तो एक उम्मीद जागी है कि शायद पानी और सड़क की समस्या दूर करने के लिए कोई पहल हो.

आठवीं के बाद नहीं पढ़ पाते बच्चे 

गांव में सिर्फ आठवीं कक्षा तक के लिए स्कूल है, इसलिए गांव के लड़के व लड़कियां आठवीं तक पढ़ाई कर लेते हैं, लेकिन आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते. ग्रामवासी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं लेकिन मजबूरी ऐसी है कि चाहकर भी वे पढ़ा नहीं पाते. पक्की सड़क न होने से बारिश के मौसम में पैदल जाना मुश्किल हो जाता है. कुडरा से धरमपुर तक 7 किमी. लम्बे मार्ग पर सात नाले पड़ते हैं जिन्हें बारिश में पार करना कठिन हो जाता है. ठंड के मौसम में भी बच्चे जंगली रास्ते से होकर नहीं जा पाते, जिससे आगे की पढ़ाई थम जाती है. गांव के कुछ बच्चों ने साहस दिखाते हुए उच्च शिक्षा हासिल करने का प्रयास भी किया है, उनमें से एक संतोष पाल है जो चित्रकूट से डी.एड. कर रहा है. संतोष पाल का कहना है कि गांव के कई युवक शिक्षा हासिल करना चाहते हैं लेकिन हालात इतने विपरीत हैं कि उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाती.

इलाज के अभाव में हो जाती है मौत 

स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर कुडरा गांव में कुछ भी नहीं है. गांव में किसी के बीमार पडऩे पर उसे धरमपुर या फिर अजयगढ़ ले जाना पड़ता है. लेकिन बारिश के मौसम में यहां की स्थिति बेहद चिन्ताजनक हो जाती है. बीमार व्यक्ति को चारपाई पर उठाकर ले जाना पड़ता है. रामकिशोर ने बताया कि इलाज के अभाव में हर साल गांव में कईयों की मौत हो जाती है. कई बार तो धरमपुर भी नहीं पहुंच पाते, रास्ते में ही लोग दम तोड़ देते हैं. आपने बताया कि पिछले पांच साल के दौरान वंशगोपाल लोधी 50 वर्ष, लाला प्रजापति पिता फूलचंद प्रजापति 16 वर्ष, चन्द्रपाल लोधी की पत्नी 25 वर्ष, मंगल पाल की पत्नी सुन्दीपाल तथा भूरा पाल 50 वर्ष की मौत इलाज के अभाव में हुई है. प्रसव के दौरान भी नवजात शिशुओं की मौत होती है, अभी हाल में रामभरोसे सिंगरौल की पत्नी का प्रसव हुआ और 24 घंटे के भीतर ही बच्चे की मौत हो गई.

सड़क निर्माण की राशि का हुआ दुरूपयोग

धरमपुर - कुडरा सड़क मार्ग के निर्माण हेतु मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना से 59.16 लाख रू. स्वीकृत हुए हैं, जिसमें 19.25 लाख रू. व्यय भी हो चुके हैं. इस बात की जानकारी पत्रकारों ने जब ग्रामीणों को दी तो वे हैरान रह गये. सड़क मार्ग की हालत जस की तस है, वन विभाग द्वारा मिट्टी के टीलों को छीलकर जरूर कहीं - कहीं समतल किया गया है ताकि उनका आवागमन हो सके. ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग द्वारा सड़क के निर्माण में 19.25 लाख रू. कहां खर्च किये गये, यह आश्चर्यजनक है. गांव के रामसनेही का कहना है कि यदि 19 लाख रू. कुडरा गांव के लोगों को दे दिए जाते तो इतने पैसे से ही वे 7 किमी. लम्बी सड़क का निर्माण कर देते. ग्राम वासियों ने बताया कि सरपंच कोई भी हो काम भाजपा जिलाध्यक्ष का भाई कराता है. उन्होंने गांव की सीसी रोड बनवाई जो अत्यधिक घटिया है पूरी रोड बर्बाद कर दी है. गांव के लोग यदि कुछ बोलते हैं तो उन्हें डांटकर चुप करा दिया जाता है और कहा जाता है कि ज्यादा नेतागिरी न करो.

गांव में नहीं है एक भी शौचालय 

कुडरा गांव के महिलाएं अपनी समस्याएं बताते हुए। 
इस गुमनाम और उपेक्षित गांव में एक भी शौचालय किसी के घर में नहीं है. पूरे गांव के लोग शौच के लिए खुले मैदान में जाते हैं. गर्मी के इस मौसम में जब खेतों की फसल कट चुकी है, ऐसी स्थिति में कोई आड़ न होने के कारण गांव की महिलाओं को शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता है क्यों कि उन्हें मैदान में तब्दील हो चुके खेतों में ही बैठना पड़ता है. गांव के पुरूष मैदान के बजाय पास की पहाड़ी में चढ़कर ऊपर जंगल में शौचक्रिया के लिए जाते हैं . पत्रकारों का दल जब गांव के भ्रमण पर निकाल तो महिलाओं ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा कि यदि घरों में शौचालय बन जायें तथा पानी की समस्या दूर हो जाय तो हमें शर्मिन्दगी और परेशानी से निजात मिल जायेगी.
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