।। अरुण सिंह, पन्ना ।।
आर्थिक विकास की अंधी दौड़ और प्रतिस्पर्धा के इस माहौल में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में एक छोटा सा गांव ऐसा भी है जो अपराधों और विवादों से पूरी तरह मुक्त है. इस गांव के वाशिंदों में एकता, आपसी प्रेम और भाईचारा इतना प्रगाढ़ है कि आज तक गांव का कोई भी विवाद थाने तक नहीं पहुंचा. गांव के बड़े बुजुर्ग गर्व के साथ बताते हैं कि हमारी सबसे बड़ी पूंजी यही है कि हम सब मिल जुलकर रहते हैं. हमारे बीच किसी भी तरह का कोई जातिगत भेदभाव और ऊंचनीच नहीं है.
उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 52 किमी. दूर उ.प्र. की सीमा से लगा हुआ कुडऱा गांव जंगल और पहाड़ों के बीच बसा है. अजयगढ़ जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत धरमपुर के इस गांव तक विकास की किरणें भले नहीं पहुंची, लेकिन यहां आपसी प्रेम और भाईचारे की रोशनी भरपूर है. अपनी इसी खूबी की दम पर कुडरा गांव के लोग अनगिनत चुनौतियां और अभावों के बीच भी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं.
इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आजादी के गुजर चुके 67 सालों में कुडरा गांव को मूलभूत और बुनियादी सुविधायें भी मयस्सर नहीं हो सकी हैं और तो और इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग तक नहीं है. ग्राम पंचायत धरमपुर तक सड़क मार्ग तथा आवागमन के साधन हैं, लेकिन धरमपुर से कुडरा तक 7 किमी. बीहड़ और जंगल है. ग्रामवासियों को अपनी छोटी - मोटी जरूरतों की पूर्ति के लिए इस कठिन मार्ग से होते हुए पैदल ही धरमपुर आना पड़ता है. सात किमी. लम्बे इस मार्ग पर सात पहाड़ी नाले पड़ते हैं, फलस्वरूप बारिश के चार महीने कुडरा गांव के लोगों के लिए मुसीबतों से भरे होते हैं.
कुडरा गांव के 75 वर्षीय गोरेलाल लोध ने बताया कि हमारे गांव में लोधी, पाल, ब्राम्हण, प्रजापति, कुशवाहा, गोंड व बसोर जाति के लोग हैं, लेकिन सभी मिल जुलकर रहते हैं. जात - पात व छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई का भी इस गांव में कोई वजूद नहीं है. यही वजह है कि गांव में ग्रामीणों के बीच किसी भी तरह के कोई मतभेद और मनभेद नहीं हैं. यदि कभी कभार कोई बात होती भी है तो गांव में ही हम मिल बैठकर उसे सुलझा लेते हैं, कभी थाने जाने की नौबत नहीं आती. कुडरा गांव में आपसी प्रेम और भाईचारे की कई दशकों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा आज भी कायम है और नई पीढ़ी के लोग भी बड़े बुजुर्गों की इस परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं. गांव के लोगों को दंश इस बात का है कि कुडरा गांव आता तो पन्ना जिले में है लेकिन वह जिले से अलग - थलग है. इस गांव की कभी कोई खोज खबर नहीं ली जाती, आज तक यहां कोई मंत्री, विधायक व कलेक्टर नहीं आया.
कुडरा गांव के 75 वर्षीय गोरेलाल लोध ने बताया कि हमारे गांव में लोधी, पाल, ब्राम्हण, प्रजापति, कुशवाहा, गोंड व बसोर जाति के लोग हैं, लेकिन सभी मिल जुलकर रहते हैं. जात - पात व छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई का भी इस गांव में कोई वजूद नहीं है. यही वजह है कि गांव में ग्रामीणों के बीच किसी भी तरह के कोई मतभेद और मनभेद नहीं हैं. यदि कभी कभार कोई बात होती भी है तो गांव में ही हम मिल बैठकर उसे सुलझा लेते हैं, कभी थाने जाने की नौबत नहीं आती. कुडरा गांव में आपसी प्रेम और भाईचारे की कई दशकों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा आज भी कायम है और नई पीढ़ी के लोग भी बड़े बुजुर्गों की इस परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं. गांव के लोगों को दंश इस बात का है कि कुडरा गांव आता तो पन्ना जिले में है लेकिन वह जिले से अलग - थलग है. इस गांव की कभी कोई खोज खबर नहीं ली जाती, आज तक यहां कोई मंत्री, विधायक व कलेक्टर नहीं आया.
थाने में नहीं दर्ज कोई भी रिपोर्ट
धरमपुर थाना क्षेत्र के ग्राम कुडरा में कभी कोई अपराध घटित हुआ है या नहीं, इस बात का सत्यापन करने के लिए जब थाने में संपर्क किया गया तो कुडरा गांव के वाशिंदों की बात सच निकली. थाना प्रभारी धरमपुर एच.पी. अवस्थी व थाने में पदस्थ पुलिस कर्मियों ने बताया कि पिछले 40 वर्षों के रिकार्ड में आज तक कभी कुडरा गांव की रिपोर्ट थाने में नहीं दर्ज हुई. थाना पुलिस के मुताबिक इस गांव में कभी कोई अपराध घटित नहीं होते, गांव की छुटमुट समस्याओं को ग्रामीण आपस में ही सुलझा लेते हैं. थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की कभी नौबत नहीं आने पाती. महिला उत्पीडऩ व दुष्कृत्य और छेडख़ानी आदि की भी कभी कोई शिकायत कुडरा गांव से नहीं आई.00000