- इस दुर्गम गांव तक गर्मी के मौसम में भी पहुंचना कठिन
- बारिश में केन नदी और कमधा नाला से घिर जाता है गांव
।। अरुण सिंह,पन्ना ।।
जिले के पवई जनपद क्षेत्र में एक गांव ऐसा भी है जहां के रहवासियों को बिना कोई जुर्म के काला पानी जैसी सजा भुगतने को मजबूर होना पड़ रहा है. जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 87 किमी. दूर पवई जनपद की ग्राम पंचायत पिपरियादोन के खेहा गांव की भौगोलिक स्थिति आज भी कुछ ऐसी है कि गर्मी के इस मौसम में भी इस गांव तक पहुंच पाना आसान नहीं है. बारिश के मौसम में तो यह गांव पूरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है. केन नदी व कमधा नाला से यह गांव इस तरह घिर जाता है कि पूरे चार माह तक इस गांव के वाशिंदे कैदियों की तरह जिन्दगी जीने को विवश हो जाते हैं.
नौतपा के तीसरे दिन प्रचण्ड गर्मी में पन्ना से पत्रकारों का एक दल इस दुर्गम इलाके में स्थित ग्राम खेहा में केन नदी को पैदल पार करके टेढ़े - मेढ़े जंगली रास्तों से होकर जब पहुंचे तो गांव के लोग भी हैरत में पड़ गये. गांव की एक महिला जो अपने मवेशियों को भूसा डाल रही थी, उसने जब इतने लोगों को गांव में आते देखा तो उत्सुकतावश घर से बाहर निकलकर पूंछा कि गांव में सड़क बननी है क्या ? पत्रकारों ने जब अपना परिचय दिया और यहां आने की वजह बताई तो उस महिला ने गांव के बीच खड़े नीम के बड़े वृक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहां जायें, गांव के सभी लोग वहां मिल जायेंगे.
पत्रकारों के वहां पहुंचने पर अपने आप गांव के लोग जुड़ गये और हांथ में डायरी व कैमरा देख वे बिना कुछ बताये यह भी समझ गये कि गांव में कौन लोग आये हैं. इतने पत्रकारों को एक साथ अपने गांव में पाकर ग्रामवासी अत्यधिक प्रशन्न हुए और अपनी समस्याओं व रोजमर्रा की जिन्दगी में आने वाली चुनौतियों को एक - एक करके बताने लगे.
खेहा गांव के कुछ पढ़े - लिखे और समझदार से दिखने वाले रामकिशोर शर्मा ने बताया कि हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस गांव तक आवागमन के कोई साधन नहीं है. गांव में यदि कोई बीमार हो जाय तो 25 किमी. दूर पवई के अलावा इलाज की कहीं कोई सुविधा नहीं है. सबसे बड़ी मुसीबत तो यह है कि गांव से पिपरियादोन तक जाने के लिए पैदल चलने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है. ऐसी स्थिति में बीमार व्यक्ति को चारपाई पर चार लोग कंधे में रखकर ले जाते हैं.
खेहा गांव के कुछ पढ़े - लिखे और समझदार से दिखने वाले रामकिशोर शर्मा ने बताया कि हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस गांव तक आवागमन के कोई साधन नहीं है. गांव में यदि कोई बीमार हो जाय तो 25 किमी. दूर पवई के अलावा इलाज की कहीं कोई सुविधा नहीं है. सबसे बड़ी मुसीबत तो यह है कि गांव से पिपरियादोन तक जाने के लिए पैदल चलने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है. ऐसी स्थिति में बीमार व्यक्ति को चारपाई पर चार लोग कंधे में रखकर ले जाते हैं.
बारिश के मौसम में केन नदी जब बढ़ जाती है और कमधा नाला में भी पानी आ जाता है तो पैदल रास्ता भी बंद हो जाता है. इन विकट हालातों में भी गांव के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर बीमार व्यक्ति को पवई तक ले जाने की हर संभव कोशिश करते हैं. बंदी यादव बताते हैं कि नदी में यदि गले तक पानी रहता है तो हम चारपाई कंधे में रखकर किसी तरह मरीज को पिपरियादोन तक ले जाते हैं, लेकिन यदि पानी गले से ऊपर होता है तो गांव में ही मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाता. बीमार पडऩे पर यहीं गांव में ही बिना इलाज के मरना हमारी नियति बन चुकी है. खेहा गांव के लोगों को केन नदी दो बार पार करना पड़ता है.
इस पहुंचविहीन और दुर्गम गांव में ब्राम्हण, यादव तथा कुछ आदिवासी निवास करते हैं. लगभग दो सौ की आबादी वाले इस गांव में सिर्फ 70 मतदाता हैं, शायद इसीलिए जनप्रतिनिधियों ने भी इस गांव की कोई सुध नहीं ली. गांव में बुनियादी सुविधा के नाम पर न तो बिजली है और न ही सड़क. छोटा सा स्कूल जरूर है लेकिन आंगनवाड़ी केन्द्र नहीं है. उचित मूल्य की दुकान पिपरियादोन में है, इसलिए खाद्यान्न व मिट्टी तेल लेने के लिए ग्राम वासियों को सर्दी, गर्मी व बारिश हर मौसम में पैदल ही जाना पड़ता है.
जंगल, पहाड़ तथा नदी और नाले से घिरे इस गांव में रोजगार के कोई साधन नहीं है, पंचायत से भी आवश्यकता के अनुरूप काम नहीं मिल पाता. ऐसी स्थिति में खेती - बाड़ी ही जीविका का मुख्य आधार है. चूंकि यहां कृषि भूमि भी ऊंची - नीची है तथा सिंचाई के कोई साधन नहीं है. इसलिए खेती भी बहुत अच्छी नहीं होती. गांव के गुमान यादव, सुरेश यादव, गोपाल यादव, सुकुवा आदिवासी तथा कुंजी आदिवासी ने कहा कि यदि कमधा नाला में पुल बन जाय तो खेहा गांव तक बारहमासी आवागमन की सुविधा बन सकती है.
अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे खेहा ग्राम के निवासियों से जब पेयजल समस्या के संबंध में पूंछा गया तो उन्होंने बताया कि पीने के पानी की हमें कोई दिक्कत नहीं है. गांव में चार हैण्डपम्प लगे हैं और चारो ही चालू हालत में हैं, उनसे पर्याप्त पानी निकलता है. खेहा गांव में हैण्डपम्प कैसे लगे तथा यहां तक मशीन कैसे पहुंची, इस संबंध में रामकिशोर शर्मा ने बताया कि बोरिंग मशीन झालर की तरफ से लाई गई तथा गांव तक मशीन को लाने के लिए ग्रामवासियों ने मिलकर रास्ता बनाया, तब जाकर यहां हैण्डपम्प लग पाये हैं. हैण्डपम्पों के लगने से ग्रामवासियों को पेयजल समस्या से निजात मिल गई है.
इसी इलाके में स्थित घैरी, कछार व बन्डोरा गांव में भी कमोवेश खेहा की ही तरह समस्याओं का अम्बार है. घैरी गांव खेहा के ही पास है और बारिश के मौसम में यह भी टापू बन जाता है. जबकि कछार और बन्डोरा गांव की समस्यायें जहां से कुछ अलहदा हैं. इन ग्रामों तक आवागमन की समस्या उतनी जटिल नहीं है फिर भी यहां के वाशिंदों को भारी मुसीबत झेलनी पड़ती है. ये दोनों गांव ग्राम पंचायत बछौन के अन्तर्गत आते हैं और पंचायत की इन ग्रामों से दूरी तकरीबन 25 किमी. है.
पेयजल की नहीं है कोई परेशानी
अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे खेहा ग्राम के निवासियों से जब पेयजल समस्या के संबंध में पूंछा गया तो उन्होंने बताया कि पीने के पानी की हमें कोई दिक्कत नहीं है. गांव में चार हैण्डपम्प लगे हैं और चारो ही चालू हालत में हैं, उनसे पर्याप्त पानी निकलता है. खेहा गांव में हैण्डपम्प कैसे लगे तथा यहां तक मशीन कैसे पहुंची, इस संबंध में रामकिशोर शर्मा ने बताया कि बोरिंग मशीन झालर की तरफ से लाई गई तथा गांव तक मशीन को लाने के लिए ग्रामवासियों ने मिलकर रास्ता बनाया, तब जाकर यहां हैण्डपम्प लग पाये हैं. हैण्डपम्पों के लगने से ग्रामवासियों को पेयजल समस्या से निजात मिल गई है.
घैरी, कछार व बन्डोरा गांव भी समस्या ग्रसित
जंगली रास्तों व पहाड़ से होकर राशन व खाद्य सामग्री लेने के लिए ग्राम वासियों को पैदल बछौन जाना पड़ता है. आदिवासी गांव कछार के महाबली, भूरे सिंह आदिवासी तथा बेनी आदिवासी ने बताया कि बछौन स्थित उचित मूल्य की दुकान में 25 किमी. पैदल चलकर जाने के बाद भी कभी - कभी उन्हें खाद्यान्न नहीं मिल पाता.
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