- यह है शाहनगर जनपद के प्राथमिक शाला चहकना की स्थिति
- जिले में 20 से कम बच्चों वाली शालाओं की संख्या डेढ़ सौ से अधिक
शासकीय प्राथमिक शाला चहकना का भवन। फोटो - अरुण सिंह |
अरुण सिंह,पन्ना। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले ताकि सब पढ़े सब बढ़े का नारा हकीकत बन सके। लेकिन शासन की यह मंशा पन्ना जिले के ग्रामीण अंचलों में पूरी होती नजर नहीं आ रही। गांव-गांव स्कूल जरूर खुल गये हैं तथा शिक्षक भी पदस्थ हैं लेकिन इन स्कूलों से पढऩे वाले बच्चे नदारद हैं। लाखों रू. की लागत से बनवाये गये ज्यादातर स्कूल भवनों में सन्नाटा पसरा रहता है। ऐसा क्यों है तथा इसके लिए कौन जिम्मेदार है, इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा, फलस्वरूप ग्रामीण अंचलों की शैक्षणिक व्यवस्था बेहतर होने के बजाय बेहद चिंताजनक स्थिति में जा पहुँची है।
यहां हम बात कर रहे हैं शाहनगर जनपद क्षेत्र की शासकीय प्राथमिक शाला चहकना की, जहां पर कक्षा-1 से लेकर 5वीं तक स्कूल में सिर्फ 7 बच्चे दर्ज हैं। गत 15 फरवरी को यह प्रतिनिधि अचानक जब इस छोटे से गांव की शाला पहुँचा तो वहां के हालात देख दंग रह गया। दोपहर के 12:30 बज रहे थे, स्कूल में अतिथि शिक्षक कोमल प्रजापति अकेले ही कुर्सी में बैठे कुछ गुनगुना रहे थे। स्कूल के कमरे में एक बस्ता रखा हुआ था, अचानक इस प्रतिनिधि के पहुँचने पर अतिथि शिक्षक उठकर खड़े हो गये। उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के यह बताया कि यहां 7 बच्चे दर्ज हैं और आज सिर्फ एक बालक ही पढऩे के लिए स्कूल आया है जो कुछ देर पूर्व ही पानी पीने के लिए पास के हैण्डपम्प में गया है। उपस्थिति रजिस्टर मांगने पर अतिथि शिक्षक ने तुरंत उपलब्ध कराया, जिसमें 7 बच्चों के नाम दर्ज थे जिनमें दो बालक व पांच बालिकायें हैं। मजे की बात यह है कि चार कक्षाओं में सिर्फ एक-एक बच्चे हैं जबकि कक्षा 3 में चार बच्चे हैं। यह पूछने पर कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं आते तो अतिथि शिक्षक ने बताया कि कभी-कभी चार से पांच बच्चे आ जाते हैं। चहकना गांव के रन्जोर सिंह से पूछने पर कि गांव के बच्चे पढऩे के लिए स्कूल क्यों नहीं आते? तो उन्होंने बताया कि सभी बच्चों के स्कूल में नाम नहीं लिखे, जिनके लिखे हैं वे भी कभी आते हैं और कभी नहीं आते। जाहिर है कि बच्चों के अभिभावक भी इस ओर ध्यान नहीं देते जितना कि उन्हें देना चाहिए। बच्चों की इतनी कम संख्या के बावजूद शाला में मध्याह्न भोजन बनता है। दोपहर 1 बजे मध्याह्न भोजन लेकर जब एक बुजुर्ग महिला आई उसी समय तीसरी कक्षा में पढऩे वाला एक दूसरा बालक राजभान यादव भी आ गया। इस तरह पूर्व से उपस्थित छात्र बृजेन्द्र सिंह यादव के साथ इस नवागन्तुक छात्र ने मध्याह्न भोजन की रोटी-सब्जी खाई और अपनी कटोरी लेकर फिर वापस घर चला गया। शासकीय प्राथमिक शाला चहकना तो सिर्फ एक उदाहरण है, ऐसी शालाओं की पन्ना जिले में भरमार है, जहां हर माह शासन का पैसा तो खर्च हो रहा है लेकिन उसका कोई लाभ किसी को नहीं मिल रहा। लाखों रू. की लागत से गांव-गांव बनवाये गये शाला भवन अनुपयोगी पड़े हुये हैं, आखिर जब बच्चे ही नहीं हैं तो इन शाला भवनों के निर्माण का औचित्य ही क्या है?
शाला में कम से कम होने चाहिए 20 बच्चे
शाला में उपस्थित एक मात्र छात्र बृजेन्द्र सिंह यादव। |
शालाओं में बच्चों की कम उपस्थिति व चहकना प्राथमिक शाला के संबंध में जिला समन्वयक सर्व शिक्षा अभियान बी.के. त्रिपाठी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि शासन के नियमों और निर्धारित मापदण्डों के मुताबिक प्रत्येक प्राथमिक शाला में कक्षा 1 से लेकर 5वीं तक कम से कम 20 बच्चे दर्ज होने चाहिए। इससे कम छात्र संख्या पर स्कूल के संचालन की अनुमति नियमानुसार नहीं दी जा सकती। आपने यह स्वीकार किया कि जिले में तकरीबन डेढ़ सौ से भी अधिक ऐसी शालायें हैं जहां बच्चों की संख्या कम है। यदि माध्यमिक शालाओं को भी जोड़ दिया जाये तो यह आंकड़ा दो सौ के करीब पहुँच जायेगा। इस स्थिति को श्री त्रिपाठी ने चिन्तनीय बताया और कहा कि क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के दवाब से जगह-जगह स्कूल भवन बनवा दिये गये हैं लेकिन उन स्कूलों में अपेक्षित छात्र संख्या नहीं है।
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