- विनाशकारी विदोहन से घट रही वृक्षों की संख्या
- औषधीय महत्व के चिरौंजी वृक्षों का संरक्षण जरूरी
उल्लेखनीय है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना व छतरपुर जिले के जंगलों में चिरौंजी के वृक्ष बड़ी तादाद में प्रचुरता से मिलते हैं. लगभग 20 मीटर ऊंचाई तक बढऩे वाले चिरौंजी के वृक्ष को स्थानीय लोग अचार का वृक्ष भी कहते हैं, इसका लेटिन नाम बुकेनेनिया लेटिफोलिया है. चिरौंजी के पत्ते छोटे - छोटे नोंकदार और खुरदरे होते हैं. इसके फल करौंदे के समान नीले रंग के होते हैं, इन फलों को तोडऩे पर उनके भीतर जो मगज निकलती है, उसे चिरौंजी कहते हैं. चिरौंजी का मेवों में जहां महत्वपूर्ण स्थान है वहीं यह पित्त और वात रोगों, कुष्ठ रोग, वीर्य दुर्बलता, श्वांस रोग, उदर रोग, चर्म रोग तथा मूत्र विकार हेतु उत्तम औषधि है. चिरौंजी को तेल के साथ पीसकर मालिश करने से मकड़ी का विष दूर होता है तथा इसे खाने से कलेजे, फेफड़े और मस्तक की शर्दी मिटती है. चिरांैजी को गुलाब जल में पीसकर मालिश करने से चेहरे पर होने वाली फुंसियां और दूसरी खुजली मिट जाती है. वैद्यों का यह कहना है कि एक छटांक भर चिरौंजी खा जाने से शरीर में उछलती हुई पित्ती शांत हो जाती है. अगर पित्ती किसी दवा से न जाय तो इससे जरूर चली जाती है. चिरौंजी की जड़ कसैली, कफ पित्त नाशक और रूधिर विकार को दूर करने वाली होती है.
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश के पन्ना, छतरपुर व छिन्दवाड़ा जिले में चिरौंजी फल का सर्वाधिक उत्पादन होता है. पन्ना जिले के जंगलों से लगभग 8 सौ कुन्टल चिरौंजी फल का संग्रहण वनवासियों व स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है. औषधीय महत्व वाले इस मेवे का उत्पादन प्रदेश के जिन अन्य जिलों में होता है, उनमें बालाघाट, बैतूल, भोपाल, बुरहानपुर, दमोह, गुना, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, सागर, सीहोर, सिवनी, शहडोल व सीधी हैं. लेकिन प्रदेश में चिरौंजी के कुल उत्पादन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना और छतरपुर जिले में उत्पादित होता है.
कल्दा पठार में चिरौंजी के सर्वाधिक वृक्ष
औषधीय वनस्पतियों के लिए अनुकूल पन्ना जिले के कल्दा पठार में चिरौंजी के सर्वाधिक वृक्ष पाये जाते हैं. कल्दा के अलावा पन्ना नेशनल पार्क के रिजर्व वन क्षेत्र सहित उत्तर व दक्षिण वन मण्डल के जंगल में चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में मिलते हैं. इस फल की उपयोगिता व कीमत को देखते हुए ग्रामीण फलों को परिपक्व होने से पहले ही तोड़ लेते हैं. जिससे अच्छी गुणवत्ता वाली चिरौंजी प्राप्त नहीं हो पाती. वन अधिकारियों का कहना है कि चिरौंजी (अचार) के पके हुए फलों को ही तोड़कर संग्रहित किया जाना चाहिए ताकि बेहतर गुणवत्ता वाली चिरौंजी प्राप्त हो सके. जंगल में लगभग 10 प्रतिशत फलों को बीजों द्वारा प्राकृतिक प्रवर्धन हेतु छोड़ दिया जाना चाहिए, ताकि जंगल में चिरौंजी के वृक्षों का पुन: उत्पादन हो सके.00